Ardhangini - 50 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 50

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 50

रात के दस बज चुके थे... जैसे जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही थीं वैसे वैसे जतिन और मैत्री दोनो  के दिलो मे एक दूसरे से बात करने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.... जहां एक तरफ मैत्री अपनी मम्मी, चाची, नेहा और सुरभि से बात करती जा रही थी और बार बार फोन पलट के टाइम देखती जा रही थी और मन ही मन मना रही थी कि "जतिन जी टाइम होता जा रहा है प्लीज कॉल करिये ना... प्लीज" इधर दूसरी तरफ जतिन की नजर भी अपने  मोबाइल की घड़ी पर टिकी हुयी थी जो हर थोड़ी देर मे एक एक मिनट करके आगे बढ़ती जा रही थी... और अपने साथ जतिन की बेचैनी को बढ़ाती जा रही थी...  

"मैत्री को कॉल करूं कि ना करूं, करूं कि ना करूं " सोचते सोचते जतिन ने सोचा कि "यार इतना परेशान होने का क्या फायदा एक कॉल कर ही लेता हूं.... फिर जो होगा देखा जायेगा " ये सोचकर जतिन झटके से अपनी जगह से उठा और अपने मोबाइल की फोनबुक मे जाकर मैत्री का नंबर खोल लिया... जतिन के हाथ मे मोबाइल था और उसका अंगूठा मोबाइल के डायलिंग बटन के ठीक ऊपर... पर हिचक इतनी की उसका अंगूठा डायलिंग का बटन दबा ही नही पा रहा था... ऐसा लग रहा था मानो उसका अंगूठा अपनी जगह पर जम गया हो.... फिर बड़ी हिम्मत करके बड़े संकोच और बेचैनी के साथ जतिन ने आर या पार का सोचकर जैसे ही डायलिंग का बटन दबाया... वैसे ही उसने बिना देर किये फोन काट भी दिया...  जतिन ने कॉल मैत्री के फोन की रिंग बजने से पहले  भले ही काट दी थी लेकिन उसका दिल जो लगातार मैत्री को कॉल कर रहा था वो कॉल शायद मैत्री के दिल तक पंहुच गयी थी... इधर कानपुर मे बैठे जतिन ने जैसे ही मैत्री का नंबर काटा वैसे ही लखनऊ मे अपने घरवालो के साथ बैठी मैत्री एकदम से ऐसे चौंकी जैसे उसे जतिन ने आवाज दी हो... जोर से चौंक कर मैत्री ने झटके से अपना फोन देखा... तो उस पर कोई कॉल नही थी... उसे ऐेसे चौंक कर अपने फोन को देखने पर पास ही बैठी नेहा ने उससे कहा- क्या हुआ दीदी... कोई बात है क्या बड़ी जोर से चौंकी आप... 

नेहा समझ गयी कि हो ना हो मैत्री को जतिन के फोन का ही इंतजार है.... लेकिन सबके बीच मे बैठे होने के कारण अंजान बनते हुये उसने ये बात पूछी...  इधर कानपुर मे जतिन मैत्री को फोन करने की हिम्मत ना जुटा पाने के कारण जैसे अपने आप को ही कोस रहा था.... ये सोचते हुये कि "क्या यार... कैसा आदमी है तू... अपनी खुद की बीवी को एक कॉल नही कर पा रहा... जबकि तुझे पता है कि वो कितनी सीधी है.. सो भी रही होगी तो भी कुछ नही कहेगी" ये ही सब सोचते हुये जतिन ने आगे सोचा "सच मे यार अजीब ही आदमी हूं मै... रुको अब मै कॉल करके ही दम लूंगा".... ये सोचकर जतिन ने आखिरकार मैत्री को कॉल कर ही दिया... उधर लखनऊ मे सबके साथ बैठी मैत्री के फोन की रिंग जैसे ही बजी.... और उसने जैसे ही फोन की स्क्रीन पर जतिन का नाम देखा वो एकदम से जैसे सुबह सुबह सूरज की पहली किरण के पड़ने पर फूल खिलते हैं उसीकी तरह खिल सी गयी... और बेहद भौचक्की सी हुयी खुश होते हुये अपनी जगह से उठी और तेज तेज कदमो से चलकर बालकनी की तरफ जाकर जैसे ही उसने फोन उठाया... उसकी सांसे तेज तेज चलने लगीं... और वो धीरे से सकपकाई हुयी सी बोली- ह.. हैलो...!! 

जतिन भी संकुचाया हुआ सा बोला- अम्म्म्... हैलो मैत्री!!! 

मैत्री ने कहा- जी... 
जतिन ने कहा- अम्म्म् इतनी रात मे कॉल करके डिस्टर्ब तो नही किया ना... तुम सो गयी थीं क्या?? 

मैत्री ने कहा- नही जी... ना तो मै सोई थी और ना आपने डिस्टर्ब किया... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन मुस्कुराने लगा.... फिर मुस्कुराते हुये जतिन ने कहा- और क्या कर रही थीं... माता जी बाउ जी और बाकी सब लोग कैसे हैं.... 

मैत्री ने कहा- जी सब अच्छे हैं... और मै मम्मी, चाची और दोनो भाभियो के साथ बैठी बाते कर रही थी... आपने खाना खाया?? 
जतिन ने कहा- हां खा लिया... और तुमने? 
मैत्री ने कहा- जी... मैने भी खा लिया... और आपको पता है मम्मी पापा अब यहीं हमारे पुराने वाले घर मे सबके साथ रहने के लिये आ गये हैं... 
जतिन ने कहा- हां... मम्मी ने मुझे बताया.... मुझे बहुत अच्छा लगा ये सुनकर कि अब वो सबके साथ हैं.... और अब वो जब चाहे वहां रहें और जब चाहें यहां कानपुर आ जायें... पर अब अकेले नही रहेंगे.... हैना.. 

मैत्री ने कहा- जी.. सही कह रहे हैं आप... 

जतिन ने कहा- हमम्म्.... चलो आराम करो... और घर मे सबको मेरा नमस्ते कहना... 
मैत्री ने कहा- जी... आप भी आराम से सो जाइये... सुबह जल्दी उठना है ना... 

मैत्री ने ये बात इतने हक और प्यार से कही कि जतिन अपने कमरे मे बैठे बैठे जोर से मुस्कुराने लगा... और मुस्कुराते मुस्कुराते आंहें सी भरते हुये वो मैत्री से बोला- हम्म्म् चलो ठीक है... अब मै रखता हूं फोन.... 

जतिन के फोन काटने के बाद मुस्कुराते हुये और कोई गाना हल्के हल्के गुनगुनाते हुये मैत्री कमरे मे आ गयी है... उसे इस तरह खुश देखकर सबको बहुत अच्छा लगा... मैत्री के अंदर कमरे मे आने के बाद उसकी चाची सुनीता ने कहा- मैत्री बेटा तुम थक गयी होगी... अभी रात हो गयी है काफी... अब सो जाते हैं... बाकि बाते कल करेंगे... 

इसके बाद सब एक दूसरे को गुडनाइट बोलकर अपने अपने कमरे मे चले गये और मैत्री अपनी मम्मी सरोज के साथ उनके कमरे मे ही सोने चली गयी.... मैत्री ने पहले ही अपनी मम्मी के साथ सोने की इच्छा जताई थी इसलिये खाना खाकर और मैत्री को प्यार करके जगदीश प्रसाद पहले ही दूसरे कमरे मे सोने चले गये थे... अपनी मम्मी के साथ कमरे मे जाने के बाद मैत्री उनके हाथ मे सिर रखकर उनसे लिपट कर बिल्कुल ऐसे लेट गयी जैसे बचपन मे लेटा करती थी.... उसे इतने दिनो बाद ऐसे अपने से लिपट कर लेटा देख सरोज को बहुत अच्छा लगा और वो मैत्री के बालो मे हाथ फेरने लगीं... जैसे ही सरोज ने मैत्री के बालो पर हाथ फेरना शुरू किया वैसे ही मैत्री ने आंखे खोलकर उनकी तरफ देखा तो मुस्कुरा कर और जोर से उनसे लिपट गयी.... मैत्री के ऐसा करने पर सरोज ने धीरे से कहा- सब अच्छे हैं ना...!! 

मैत्री ने भी धीरे से कहा- हां मम्मा सब बहुत अच्छे हैं... खासतौर पर जतिन जी.... वो बिल्कुल अलग हैं.... सबसे अलग... उनके जैसा कोई हो ही नही सकता.... 

मैत्री के अपनी बात कहने पर सरोज ने राहत की गहरी सांस ली और मैत्री को और जोर से अपने से लिपटा के उसका माथा चूमा और दोनो मां बेटी एक दूसरे को बांहो मे भरे भरे ही सो गयीं.... 

वैसे तो जतिन की हर बात मैत्री को अच्छी लगती थी लेकिन उस सुहागरात वाली रात की गयी जतिन की हर बात ने मैत्री के दिल मे, सोच मे जैसे गहरी छाप छोड़ दी थी... ऐसी छाप जो हर पल हर दिन उसे पिछली बाते भूलकर जतिन से प्यार करने के लिये मजबूर कर रही थीं.... 

दूसरी तरफ भले ही जतिन और मैत्री पति पत्नि थे... भले ही दोनो के दिलो मे एक दूसरे के लिये बेइंतहा प्यार पनप रहा था..... पर अभी तक इजहार नही हुआ था... और इसी वजह से दोनो के बीच मे हिचक थी... सामने रहकर बात करना एक बात होती है... लेकिन इन मनस्थितियो मे जिनमे जतिन और मैत्री थे उनमे इतनी रात को एक दूसरे को फोन करना वाकई मुश्किल था.... 

क्रमशः