Ardhangini - 49 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 49

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 49

मायके मे सबसे मिलने के थोड़ी देर बाद मैत्री ने कहा- मै कानपुर मम्मी जी को कॉल करके बता देती हूं कि मै घर पंहुच गयी उन्होने कहा था कि पंहुच कर फोन कर देना.... उन्हे चिंता हो रही होगी...

मैत्री के ऐसा कहने पर वहां खड़े सब लोग खासतौर पर सरोज और जगदीश प्रसाद मुस्कुराने लगे ये सोचकर कि रवि से शादी के बाद जब मैत्री विदा होकर आयी थी तो उसके चेहरे पर असंतुष्टि और घबराहट साफ दिख रही थी लेकिन इस बार अपनी सास बबिता का जिक्र करके उसके चेहरे पर उनसे बात करने का उतावला पन और एक अलग ही खुशी दिखाई दे रही थी.... 

इसके बाद मैत्री ने जैसे ही बबिता को फोन किया... एक रिंग के बाद ही बबिता ने फोन उठाया और फोन उठाते ही बोलीं- हैलो... मैत्री बेटा आराम से पंहुच गयीं...??

मैत्री ने जवाब दिया- नमस्ते मम्मी जी.. जी मै पंहुच गयी...

बबिता ने कहा- चलो अच्छी बात है... तुम्हारा फोन नही आया तो मुझे चिंता हो रही थी... मै तुम्हारे फोन का ही इंतजार कर रही थी... 

मैत्री ने कहा- जी मम्मी जी... वो असल मे सबसे मिलकर बाते होने लगीं इसलिये देर हो गयी कॉल करने मे... 

बबिता ने कहा - कोई बात नही बेटा इतने दिनो बाद मिली हो ना इसलिये... और मम्मी पापा ठीक हैं? 

मैत्री ने कहा- जी मम्मी जी सब ठीक हैं... और आपको पता है राजेश भइया और बाकी सब लोग पापा मम्मी को अपने साथ अपने घर ले आये... ये सोचकर कि मेरे जाने के बाद वो अकेले ना रहें बल्कि पूरे परिवार के साथ रहें... 

मैत्री की बात सुनकर बबिता एकदम से खुश होते हुये बोलीं- अरे वाह... ये तो बहुत ही अच्छी और खुशी की बात है.... सब साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा.... 

मैत्री ने कहा- हांजी.. अब मुझे भी चिंता नही रहेगी.. मुझे भी सुकून रहेगा कि मम्मी पापा सबके बीच मे हैं.... 

बबिता ने कहा- बिल्कुल सही बात है बेटा... चलो ठीक है हमारी बाते तो होती रहेंगी... तुम आराम से रहो... मम्मी पापा और बाकी सबसे मेरा नमस्ते कहना... 

मैत्री ने कहा- जी मम्मी जी... आप सब अपना ध्यान रखियेगा... 

बबिता ने कहा- हां बेटा... तुम भी अपना ध्यान रखना और हमेशा खुश रहो.... 

इसके बाद रात को खाना खाने के बाद जहां एक तरफ सरोज, सुनीता, नेहा और सुरभि... मैत्री को घेरकर बैठ गयीं और उससे अपने नये घर यानि ससुराल मे बीते चार दिनो की बाते पूछने लगीं वहीं दूसरी तरफ मैत्री का ध्यान जतिन की तरफ था.... शादी के बाद से लेकर अबतक सिर्फ चार ही दिनो मे जतिन की प्यार भरी बातों, शैतानियो और प्यार ने मैत्री के दिल पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी थी.... वो जतिन से बात करना चाहती थी लेकिन एक हिचक जो उसके मन मे थी उसकी वजह से ना तो वो जतिन को फोन कर पा रही थी और ना ही किसी पर जाहिर कर पा रही थी कि उसका मन जतिन से बात करने के लिये बेचैन है.... दूसरी तरफ जतिन का भी कुछ ऐसा ही हाल था... चार दिनो तक मैत्री के साथ एक ही कमरे मे रहने की जैसे आदत सी हो गयी थी जतिन को... उसे भी मैत्री की बहुत याद आ रही थी पर वो किसी पर जाहिर नही कर रहा था और वो नॉर्मल है ये दिखाने की कोशिश कर रहा था... खाना खाने के बाद जतिन अपने कमरे मे जा चुका था.... जतिन कभी बिस्तर पर लेटता कभी बिस्तर के उस तरफ देखता जहां मैत्री सोती थी... और बड़े ही प्यार से मैत्री के तकिये को सहलाता... कभी बिस्तर से उठकर कमरे मे ही इधर उधर टहलने लगता... जतिन का मन कर रहा था कि वो मैत्री को फोन करे और उससे बात करे.... वो बार बार अपना फोन उठाता... फोनबुक खोलता मैत्री का नंबर ढूंढता और फिर फोनबुक बंद कर देता... जतिन कभी सोचता कि मैत्री को कॉल कर लेता हूं आखिर बीवी है मेरी.... फिर कभी सोचता कि "यार मैत्री को गये हुये देर ही कितनी हुयी है अभी, वो सबके साथ बैठी होगी या हो सकता है सो गयी हो, ऐसे मे उसे डिस्टर्ब करना ठीक नही है वैसे भी मम्मी से तो बात हो ही चुकी है उसकी" ये सोचकर अपना मन मार कर वापस से अपने बिस्तर पर जाकर लेट जाता... 

कहते हैं ना कि जब आपको किसी की बहुत जादा याद आये तो समझ लेना चाहिये कि दुनिया के किसी कोने मे बैठा वो शख्स भी आपको बहुत याद कर रहा है... बस यही हो रहा था जतिन और मैत्री के साथ... दोनो एक दूसरे से बात करना चाहते थे.... दोनो एक दूसरे को याद कर रहे थे.... दोनो के बीच मे ना कोई ईगो थी इस बात की कि मै क्यो कॉल करूं.. फिर भी वो दोनो एक दूसरे को "कहीं डिस्टर्ब ना हो जाये" सोचकर कॉल नही कर रहे थे... जहां जतिन एक तरफ अपने बिस्तर पर लेटा करवटें बदल रहा था वहीं मैत्री सबके साथ बैठी ये सोचते हुये सबसे बात कर रही थी कि "जतिन जी ने कॉल क्यो नही किया, कहीं ऐसा तो नही कि वो मुझसे प्यार नही करते हों और मै ही उनके अच्छे व्यवहार को प्यार समझ बैठी हूं... नही नही मै भी क्या फालतू बाते सोच रही हूं... वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं... हां पक्का वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं इसीलिये तो मेरी भावनाओ का इतना सम्मान करते हैं... हां वो मुझसे सच्चा प्यार करते हैं.... पर वो कॉल क्यो नही कर रहे यार"

मन मे हो रहे भारी कौतूहल के बीच मैत्री घर मे सबको बता रही थी कि कैसे जब उसने ज्योति को ज्वैलरी गिफ्ट करी तब उसे देखकर जतिन कितना खुश हुआ... कैसे खीर बनाने पर जतिन ने उसके साथ मजाक किया और कैसे वो उसकी हर छोटी छोटी बात का ध्यान रखता है.... मैत्री की बाते सुनकर सब बहुत खुश हो रहे थे... खासतौर पर उसकी मम्मी सरोज तो उसे खुश होकर एकटक बस देखे जा रही थीं और मैत्री भी बस "जतिन जी ने ये कहा, जतिन जी ने वो किया... जतिन जी इतने बजे सो के उठते हैं... जतिन जी ये जतिन जी वो..." जतिन के प्यार मे डूबी मैत्री बस जतिन जतिन जतिन जतिन किये जा रही थी.... 

क्रमशः