private story in a public que in Hindi Comedy stories by Review wala books and stories PDF | सरकारी क्यु मे लिखी गई प्राइवेट कहानी या कविता

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सरकारी क्यु मे लिखी गई प्राइवेट कहानी या कविता

( दादर के उस सरकारी ऑफिस में पहुँच के मैंने कल्पना की कि अगर मेरी पत्नी उसी सीट पर बैठी हो जिस पर वो  सुंदर स्टाफ बैठ कर मुझे क्यू मे प्रतिक्षा करवा रही है  पूरे आधे घण्टे से, तो मैं क्या कविता या कहानी लिखता उन पर?यह एक कल्पना है! अधिक टेंशन न लेते हुए आगे बढ़ते हैं.. और इसे एक कहानी/कविता के रूप में विस्तार से लिखते हैं:

दादर के सरकारी ऑफिस में भीड़भाड़ और शोरगुल के बीच, मैं अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। आधे घंटे से अधिक समय बीत चुका था और मेरी नजरें बार-बार उस सुंदर स्टाफ पर जा रही थीं, जो अपनी सीट पर बैठी थी और फाइलों में व्यस्त थी। तभी मेरे मन में एक ख्याल आया - अगर मेरी पत्नी उसी सीट पर बैठी होती, तो मैं क्या लिखता?
पहला ऑप्शन.. 

कहानी का शीर्षक "सरकारी ऑफिस की कल्पना"

मैंने अपनी आँखें बंद की और कल्पना की। मेरी पत्नी, जो हमेशा मेरी प्रेरणा रही है, उसी सीट पर बैठी है। उसकी मुस्कान, उसकी आँखों की चमक, और उसकी कार्यशैली ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। वह फाइलों में व्यस्त है, लेकिन उसकी नजरें बार-बार मेरी ओर उठती हैं। उसकी मुस्कान में एक विशेष आकर्षण है, जो मुझे अपनी ओर खींचता है।
क्या कहूं, अधिक सोच ही नहीं सकता क्या करूँ? अगले ऑप्शन पर आता हूं.. 
दूसरा ऑप्शन... 

मैंने सोचा, अगर वह यहाँ होती, तो मैं उसके बारे में एक कविता लिखता:

कविता: "सरकारी ऑफिस की रानी"

सरकारी ऑफिस की भीड़ में,
बैठी है मेरी रानी।
उसकी मुस्कान में है जादू,
उसकी आँखों में है कहानी।

फाइलों में व्यस्त है वह,
पर नजरें मेरी ओर उठती हैं।
उसकी मुस्कान में है आकर्षण,
जो मुझे अपनी ओर खींचती है।

उसकी कार्यशैली में है निपुणता,
उसकी बातों में है मिठास।
सरकारी ऑफिस की इस भीड़ में,
वह है मेरी प्रेरणा, मेरी आस।

इस तरह, सरकारी ऑफिस की भीड़ में भी, मेरी कल्पना ने मुझे एक नई कविता लिखने की प्रेरणा दी, ओह पर मज़ा नहीं आ रहा.. 

अब आता हूं तीसरे ऑप्शन पर.. 

 वैसे आपस की बात है,कुछ तथ्य,कुछ कल्पना,तो आप भी आनन्द लें उसका पर कहीं आप उन स्टाफ को जाकर सुना मत देना! वैसे भी सरकारी लोगों से दूरी रखना ठीक ही है)

(मेरे विचार और यह कहानी कहीं कहीं मिक्स हो गई है,आप आगे ठीक से ही पढ़ना)

कयामत ढाती हैंआपकी ज़ुल्फें
    पर ज़रा बढ़ गई हैं 
(दो पेज वाले मेमो की तरह  ?)
      कटवा लीजिये न !
वो आपने पर्फुम् जो लगाया है ज़रा ठीक नही लग रहा ,पता नहीं क्यों?
     क्या हर सोमवार को यही लगाते हैं आप?
और बुरा न मानिये,
     क्या धोबी से आपका झगडा हो गया था?
( हो भी सकता है या आया ही न हो इस कोरोना काल मे!)
     वो आपकी साडी पर सिलवटें अच्छी नही लग रही !
      और आपके सैंडल/ चप्पल तो दिख नही रहे
पर लगता है काफी घिस गए हैं
     आज पति जी से जाते ही फरमाईश् कर डालिए !
या नीचे ही एक मस्त स्टोर देखा था मैंने ,
     वहाँ से ले लीजियेगा !
(ओह, माफ कीजिये,मैं भूल ही गया था कि
      डी ए की तीन किश्तों पे रोक लगी है न)
चलिए जब arear मिले तभी ले लीजियेगा.. क्या किया जाए, मजबूरी है.. 
     और क्या लिखूँ?
वो पल्लू बड़ा अच्छा लग रहा है आपके ऊपर
     पर बार बार आप उसे झटक मत दीजिये 
कितनी मस्त है वो प्रिंट
(  तीस मिनट बाद )
      (अब जब मेरा नम्बर आ गया है तो).....
मैं खुद से  कहता हूँ 
"उन निगाहों को हटा लीजिये
      मेरे चेहरे से
          ( स्पाई करती लगती हैं)"
" जी आपका क्या है,जल्दी बताईये,लाइन लम्बी है?"
" नहीं जी पूरा टैक्स भरा था,वो तो मैं ज्यादा..."
" यह तो बिजली दफतर है,पता नहीं आपको?"
" माफ कीजिये न,ज्यादा बिजली बिल की इंक्युरी करने को ही आया था,बता दीजिये ?"
" फॉर्म मे pan या आधार लगाए,वहाँ बैठिये,नेक्स्ट?"
" नहीं इसमें pan की क्या जरूरत है,आधार है पर लाया नही हूँ,सब चाहिए क्या?
" वो तो देना ही होगा न रूल है "
" लाया नहीं,क्या करें!"
" आप मेल कर दीजिये या कल आ जाएं!" 
" कल आता हूँ फिर "
" जैसी आपको मर्ज़ी!"
( अब उन मोहतर्मा को मैं क्यों बताऊँ कि कल आ कर क्यु  में लग कर एक और रचना लिखना चाहता हूँ उन पर!")