हां, उसने अपने घर से दीवा के लिए टिफिन भिजवाना शुरू कर दिया। एक शाम दीवा ऑफिस से जल्दी निकलकर बिना बताए रितेश के फ्लैट पर पहुंच गई। अंदर से कुछ आवाजें आती सुनकर वह लौटने को हुई लेकिन फिर उसे ख्याल आया कि अभी घर गई तो अद्वय की शक्ल देखनी पड़ेगी तो उसने डोरबेल बजा ही दी।
दरवाजा एक खूबसूरत लड़की ने खोला, जिसकी आंखों
में दीवा के लिए कई सवाल थे। दीवा ने कहा कि उसे
रितेश से मिलना है। उस लड़की ने अंदर जाकर रितेश
को भेजा। रितेश को गले में गिटार डाले कैजुअल कपड़ों
में देख दीवा की हंसी छूट गई। लेकिन उसने नोटिस
किया कि फॉरमल्स में रितेश बिल्कुल अलग इंसान
लगता है। बिखरे बालों में वह वाकई रॉकस्टार लग रहा
था।
रितेश ने उसे अंदर बुलाते हुए कहा कि ये वैष्णवी है, मेरी म्यूजिक पार्टनर। बगल वाले अपार्टमेंट में ही रहती है। हम एक गाने की रिहर्सल कर रहे थे। तुम बताओ कैसे आना हुआ।
दीवा बोली कि यार मैं भयंकर बोर हो रही थी, इसलिए तुमसे मिलने चली आई। रितेश ने तीनों के लिए चाय चढ़ाई और तब तक बर्तन साफ कर पोहा भी बना लिया।
पोहा खाते हुए दीवा ने कहा कि यार तुम्हारी कॉफी बहुत मिस कर रही हूं आजकल। रितेश हंसते हुए बोला कि अभी चाय पी लो। कुछ देर में कॉफी भी बनाऊंगा। हम लोग मूवी देखने जा रहे हैं, तुम चलोगी?
दीवा का मन तो था, लेकिन उसने इनकार कर दिया और एक घंटे बाद यूं ही टहलते हुए घर लौट आई। अद्वय ऑफिस जा चुका था। दीवा ने रितेश को मैसज करके पूछा कि मूवी कैसी थी? उसका जवाब आया- फर्स्ट क्लास। न जाने क्या सोचकर दीवा ने मैसेज भेजा- मेरे साथ देखने चलोगे? फिर उसने वह मैसेज डिलीट भी कर दिया। लेकिन उसे नहीं पता था कि रितेश उस मैसेज को नोटिफिकेशन में ही पढ़ चुका था। मैसेज डिलीट देख रितेश ने चैन की सांस ली कि वह इस मुश्किल सवाल का जवाब देने से बच गया।
अब होता यह कि दीवा अपना काम निपटाकर रोज घर जाने से पहले रितेश के घर पर पहुंच जाती। वैष्णवी ने कुछ दिन दीवा का यह पैटर्न देखा तो उसने रितेश के घर आने की टाइमिंग चेंज कर ली। न जाने क्यों उसे दीवा की नजरों में अपने लिए दोस्त की दोस्त वाली फीलिंग कम और अपनी दुश्मन वाली फीलिंग ज्यादा दिखी।
दीवा रोज शाम को रितेश के घर पर आकर ऑफिस
पॉलिटिक्स की बातें करती और रितेश को ऑफिस के
लिए तैयार होते, घर को करीने से सजाते, अपना टिफिन
बनाते, पैक करते, कॉफी बनाते और ऑफिस की मेल्स
चेक करते देखती रहती। यह नजारा उसकी आंखों से
ज्यादा उसके दिमाग को सुकून देता था। लेकिन घर
पर अद्वय ने कभी ये काम खुद नहीं किए थे। रितेश के
घर पर भी मेड आती थी, लेकिन उसे अपने ज्यादातर
काम खुद करने पसंद थे। इसके बाद रितेश दीवा को
उसके घर ड्रॉप करते हुए ऑफिस निकल जाता। दीवा
को इंतजार था कि कब अद्वय डे शिफ्ट में आए और वह
नाइट शिफ्ट में रितेश के साथ आए।
एक शाम दीवा को रितेश का वॉशरूम यूज करना पड़ा। उसने रितेश से इसके लिए परमिशन ली तो उसने पहले दीवा के लिए वॉशरूम सैनिटाइज किया तब उसे भेजा। दीवा को उसका यह जेस्चर उसकी दूसरी आदतों की तरह काफी पसंद आया।
इधर, दीवा के रोज लेट घर आने से परेशान अद्वय ने एक शाम को ऑफिस जाते समय उससे बोला कि अगर तुमको मेरे घर में आने का मन नहीं करता तो तुम अलग भी रह सकती हो। रिश्तों की नाजुक डोर इस भारी भरकम लाइन का बोझ न सह सकी। दीवा ने सिर्फ इतना कहा- ठीक है।
अद्वय के ऑफिस जाने के बाद उसने रात में अपना सारा सामान समेट और रितेश को कॉल करके कहा कि सुबह शिफ्ट खत्म होने पर ऑफिस से सीधे मेरे घर आ जाना। हड़बड़ी में आए रितेश ने उसका सामान बंधा देखा तो समझ गया कि शायद फिर दोनों में लड़ाई हो गई। उसे लगा कि दीवा ने शायद उसे रेलवे स्टेशन जाने के लिए बुलाया है। लेकिन दीवा के मन में कुछ और ही चल रहा था। उसने ज्यादा पूछताछ करना ठीक न समझा, जब तक कि दीवा उसे खुद कुछ न बताना चाहे।