Gaali dene wali ladki - 1 in Hindi Love Stories by piku books and stories PDF | गाली देने वाली लड़की - भाग 1

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गाली देने वाली लड़की - भाग 1

कितनी भी योजनाएं बना लो, किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।' दीवा ने नई सोसाइटी के वेटिंग एरिया में यह लाइन पढ़ी तो वह मन ही मन गाली देते हुए आगे बढ़ गई। जाहिर है, नए जमाने की इस लड़की को किस्मत से ज्यादा अपनी प्लानिंग पर भरोसा था।

उसने न जाने कितने लड़कों को डेट करने, कितनों के साथ लंबा वक्त गुजारने, कितनों को रिजेक्ट करने के बाद अपने मिस्टर स्पेशल को चूज किया था। लेकिन वो खुश थी कि उसकी पसंद अद्वय 'ऑलमोस्ट मिस्टर परफेक्ट' है। भले ही उसे ढूंढने तक दीवा के बालों में चांदी के कुछ तार भी चमकने लगे थे।

'ऑलमोस्ट मिस्टर परफेक्ट' इसलिए कि अद्वय में मेल ईगो नहीं है। उसकी एक 'हां' के लिए वह पूरे दिन एक पैर पर खड़ा रह सकता था। जॉइंट फैमिली में रहने के लिए कंप्रोमाइज करने का कोई इश्यू नहीं। कमाता भी ठीक है। ओपन माइंडेड है। लड़की उम्र में लड़का से बड़ी है, ये बात पूरी दुनिया ने अद्वय को समझाई, पर उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। दीवा भी आजाद ख्याल लड़की थी, जो अपने पैरों पर खड़े होने के लिए घर से झगड़कर मेट्रो सिटी में आकर बस गई थी। उसे अद्वय में अपना मिस्टर परफेक्ट दिखा था।

लेकिन ऐसा क्यों था कि शादी के एक महीने के अंदर ही दीवा का मन इस रिश्ते से भर गया। अब उसे अद्वय की छोटी-छोटी बातों पर कोफ्त होती। इतनी कोफ्त कि एक कमरे में और एक ही बिस्तर पर रहना भी मुश्किल लगने लगा। रोज करवट लेकर लेटना मुश्किल था तो अब दीवा ने अपनी ऑफिस टाइमिंग ही चेंज करवा ली थी।

शुरुआत इस बात से हुई कि घर का कौन सा काम कौन करेगा। ऐसा नहीं था कि रूम पार्टनर के साथ रहने वाले अद्वय ने कभी घर का काम नहीं किया। ग्रॉसरी लाने, खाना बनाने, साफ-सफाई से लेकर कपड़े धोने तक के सारे काम उसे आते थे। लेकिन शादी के बाद पता नहीं उसका कौन सा स्विच दबा कि वह इन कामों से मुंह सा मोड़ने लगा। हद तो तब हुई जब महीने भर तक अद्वय के दोस्तों का घर आकर आना-जाना खत्म नहीं हुआ।

दीवा को सोशल गैदरिंग से दिक्कत नहीं थी, लेकिन उसे चाहिए था कि एक शादीशुदा घर में लोग थोड़ा तमीज से पेश आएं। ये नहीं कि किसी भी कमरे में सिगरेट पी लो, बेड पर सोफे पर सॉक्स पहने हुए पैरों से बैठ जाओ। अपने मन से टीवी खोल लो, फिर उसे देखना छोड़कर कहीं और बैठ जाओ। वह इन छोटी-छोटी बातों पर अद्वय को समझाती कि अपने दोस्तों को तुमको ही बताना होगा कि थोड़ा ठीक से पेश आएं। अद्वय इस बात पर उखड़ जाता।

एक दो बार दीवा के मुंह से गाली निकल गई तो बात ज्यादा बिगड़ गई। हारकर दीवा ने अद्वय से कुछ भी कहना छोड़ दिया। वह अद्वय के दोस्तों के जाने के बाद चुपचाप सारा सामान सही जगह पर रखती। सोफा कवर और बेडशीट चेंज करती। असल में उसे साफ- सफाई और अपनी चीजों को सलीके से रखने की OCD जैसी जिद थी। एक दिन अद्वय ने इस बात के लिए भी उसे टोका तो उसने कहा कि हफ्ते भर बाद बेडशीट और सोफा कवर तो वैसे भी साफ होने ही हैं। लेकिन जब अद्वय ने इसे छुआछूत से जोड़ दिया। यह हद पार हो चुकी थी। दीवा के ऐसे ख्यालात कभी नहीं थे, यह बात अद्वय भी अच्छे से समझता था। लेकिन शायद उसने बहस में जीतने के लिए यह ब्रह्मास्त्र छोड़ा था, जिससे उनका रिश्ता लहूलुहान हो चुका था, जिसे अब शायद कोई संजीवनी ही बचा सकती थी।

दोनों ऑफिस से थके-हारे लौटते, लेकिन खाना, बर्तन, बिस्तर, डस्टिंग, जरूरी सामान की लिस्ट बनाना और लाना सारे काम दीवा के सिर आ पड़े थे। ऐसा नहीं था कि वह अकेले यह काम नहीं कर सकती थी। लेकिन उसने जिस शादी के लिए इतना इंतजार किया, जिस पार्टनर के लिए इतने सपने देखे, उसका धुंआ निकलता देख उससे रहा नहीं जा रहा था। वह पता नहीं क्या करना चाहती थी, पता नहीं कहां मुंह छिपाना चाहती थी। उसे बार-बार लगता कि यही शादीशुदा जिंदगी होती है तो इस बंधन में बंधना क्यों जरूरी था या फिर नाहक इसे तलाशने में इतना टाइम, इतनी एनर्जी क्यों वेस्ट की।