सुबह का समय,
सिद्धांत का घर,
लक्ष्मी सिद्धांत को मारने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ी तो वो तुरंत मिसेज माथुर के पीछे छिप गया । लक्ष्मी वहां गई तो वो दूसरी ओर चला गया । लक्ष्मी ने वहां जाना चाहा लेकिन वो अपने बालों से परेशान हो गई ।
सिद्धांत ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, " पहले जाकर रेडी होइए, फिर समझाइएगा हमें ! "
फिर वो बाहर चला गया तो मिसेज माथुर भी बाहर आ गईं । सिद्धांत ने उनके पैर छूकर कहा, " अच्छा माता श्री, हम चलते हैं । "
मिसेज माथुर ने उसके वालों में हाथ फिरा कर कहा, " हम्म ! आराम से, बचा कर जाना और समय से घर आना । "
सिद्धांत ने अपनी बाइक पर बैठ कर कहा, " ओ के, बाय माता श्री ! "
मिसेज माथुर ने कहा, " बाय ! "
तो सिद्धांत ने अपनी बाइक आगे बढ़ा ली । वो अपने घर से निकल कर जिम पहुंच गया और फिर वही रोज का सिलसिला लेकिन आज सिद्धांत सात बज कर तीस मिनट पर ही वहां से निकल गया क्योंकि आज उसे मार्शल आर्ट्स क्लासेज के लिए भी जाना था ।
वहीं घर पर,
शांतनु दूसरी बाइक लेकर घर से निकल गया और लक्ष्मी अपनी साइकिल लेकर क्योंकि उसका स्कूल पास में ही था ।
सुबह के दस बजे,
सिद्धांत मार्शल आर्ट्स स्कूल से बाहर निकला और वापस घर आ गया क्योंकि उसके प्रैक्टिकल्स खत्म हो चुके थें । वो घर आया तो मिसेज माथुर पौधों को पानी दे रही थीं ।
सिद्धांत ने उनके हाथों से पाइप लेते हुए सवाल किया, " आपने नाश्ता किया ! "
मिसेज माथुर ने कहा, " नहीं ! " तो सिद्धांत ने पौधों को पानी डालते हुए ही कहा, " चुपचाप जाकर नाश्ता कीजिए पहले ! "
मिसेज माथुर ने मुंह बना कर कहा, " अरे जा रहे हैं । इतना डांटते क्यों हो ! "
सिद्धांत ने अपना काम करते हुए कहा, " क्योंकि हम दुनिया में पहली ऐसी संतान होंगे जिसे अपनी मां को रोज खाना खाने के लिए फोर्स करना पड़ता है । "
मिसेज माथुर ने कहा, " अरे इसके बाद खाने ही जा रहे थें । "
सिद्धांत ने कहा, " हमारे ना रहने पर जो मर्जी वो किया कीजिए बाकी समय नहीं । जाइए , नाश्ता करिए । "
मिसेज माथुर ने कहा, " ठीक है । " और अंदर जाने लगीं तभी अचानक से सिद्धांत ने कहा, " वैसे आप टहली कितना हैं आज ! "
ये बोल कर उसने जाकर मिसेज माथुर का हाथ पकड़ लिया और उनकी घड़ी का हेल्थ मीटर चेक करने लगा और उसे चेक करते ही उसने कहा, " तीन हजार, इतना कम ! जल्दी से नाश्ता कीजिए और फिर टहलिए । "
मिसेज माथुर ने मुंह बना कर कहा, " फिर शुरू हो गया तुम्हारा ! "
सिद्धांत ने कहा, " आप खुद ही ये सब कर लेती, तो हमें कुछ कहने या करने की जरूरत ही नहीं पड़ती । अब जाइए और नाश्ता करिए । "
मिसेज माथुर अंदर चली गईं । लगभग दस मिनट बाद सिद्धांत अंदर गया तो मिसेज माथुर नाश्ता कर चुकी थीं ।
सिद्धांत ने उनके हाथों से बर्तन लेते हुए कहा, " बस, बस, हो गया । जाइए, टहलिए ! "
मिसेज माथुर ने कहा, " खाने के बाद ! "
सिद्धांत ने कहा, " हां खाने के बाद ! चलिए, उठिए । "
दस मिनट बाद मिसेज माथुर ने कहा, " अब तो हो गया न, बहुत चल लिए हैं हम ! "
सिद्धांत ने घर की सफाई करते हुए कहा, " हां, हां, हमें पता है कितना चली हैं आप ! टहलते रहिए । "
बीस मिनट बाद सिद्धांत ने खुद ही कहा, " अब आप आ सकती हैं । "
मिसेज माथुर अंदर आई तो घर का सारा काम हो गया था । उन्होंने ने सिद्धांत से कहा, " तुम मान नहीं सकते हो न ! "
सिद्धांत ने कहा, " आप जानती हैं न माता श्री, अगर हम खुद को बिजी नहीं रखेंगे तो हमारे दिमाग में क्या - क्या खुराफात चलती रहेगी । "
मिसेज माथुर ने कहा, " ठीक है, अब तो हो गया न तुम्हारे मन का ! अब जाओ, आराम करो । कुछ देर में लाइब्रेरी भी जाना है न ! "
सिद्धांत ने कहा, " हम्म ! " और कमरे में चला गया ।
वर्तमान समय,
ये सब सोचते हुए यश ने अपने मन में खुद से ही कहा, " वो भी क्या दिन थे । लाइफ में कितनी भी प्रॉब्लम हो लेकिन सिड मुस्करा कर सारी प्रॉब्लम्स फेस कर लेता था ।
लाइफ सेट थी उसकी । ना किसी से दोस्ती ना दुश्मनी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । "
इसी के साथ वो फिर से पुरानी यादों में खो गया ।
फ्लैशबैक
नवंबर का महीना था और सिद्धांत अपने डेली रुटिन के हिसाब से रात के नौ बज कर तीस मिनट के आस पास डांस स्कूल से बाहर निकला ।
वो बाहर निकल कर अपनी बाइक पर बैठ गया । उसने अपना हेलमेट पहना और आगे बढ़ गया ।
वो कुछ ही दूर गया था कि तभी एक वैन उसके बगल से गुजरी जिसमें से किसी लड़की की आवाज आई, " बचाओ, प्लीज सेव... " इसके आगे उसकी आवाज बंद हो गई ।
वो आवाज थी भी घुटी हुई और उसे सुन कर सिद्धांत को इस बात का अंदाजा तो हो गया था कि वो लड़की कितनी डरी हुई थी ।
उस आवाज को सुनते ही सिद्धांत के आंखों के सामने कुछ पुरानी यादें घूम गईं लेकिन अगले ही पल उसने उन यादों को अपने दिमाग से निकाल फेंका वरना उसका बहुत बुरा एक्सीडेंट हो सकता था ।
वो जैसे ही होश में आया, उसने अपनी बाइक घुमा कर उस वैन के पीछे लगा दी ।
क्योंकि उस वैन की स्पीड ज्यादा थी और सिद्धांत को रिएक्ट करने में भी कुछ समय लग गया था इसलिए उसे थोड़ा समय लगा लेकिन जल्द ही उसने अपनी बाइक उस वैन के सामने लाकर रोक दी ।
उस वैन में आठ आदमी थे जो एक लड़की को किडनैप करके ले जा रहे थे ।
ड्राइवर ने वैन को रोका तो लड़की को पकड़े हुए एक आदमी ने कहा, " ए, देख तो कौन है जो अपनी मौत को ढूंढते हुए यहां आ पहुंचा है ! "
ड्राइवर उसकी बात मान कर बाहर आया तब तक सिद्धांत ने भी बाइक से उतर कर अपना हेलमेट उतार दिया था ।
उसे देख कर ड्राइवर ने कहा, " क्यों बे, ज्यादा हीरो बनने का शौक चढ़ा है क्या ! "
सिद्धांत ने अपनी बाहें सीट पर फैला कर बाइक पर साइड की ओर बैठते हुए कहा, " हम हीरो हैं या नहीं वो तो पता नहीं, पर ये जरूर कन्फर्म है कि तुम सब विलन्स हो और जब तुमने हमें हीरो बोल ही दिया है तो हम हिरोइन को बचाए बिना, तुम लोगों को इतनी आसानी से तो जाने नहीं देंगे । "
उस ड्राइवर ने कहा, " ओ हो, तो हीरो हिरोइन को लेने आया है । "
सिद्धांत ने आराम से कहा, " वो तेरे मतलब की बात नहीं है । तेरे मतलब की बात ये है कि अब तू और तेरे ये चमचे हमसे बचोगे कैसे । "
बाकी के आदमियों ने वैन के सामने आते हुए कहा, " वो अभी पता चल पाएगा कि किसे किससे बचने की जरूरत है । " उन सभी के हाथों में हॉकी स्टिक्स थीं ।
सिद्धांत ने कहा, " अच्छा ! चल, आज देख ही लेते हैं! "
इतने में अंदर बैठे हुए दो आदमियों में से एक ने कहा, " अबे, वो तुम लोगों का जिगरी यार है क्या, जो उससे बातें कर रहे हो ! सीधे मारो न ! "
ये सुनते सिद्धांत ने अपनी घड़ी और गले से रुद्राक्ष निकाल कर अपने बैग में डाल दी और सामने खड़े सारे आदमी उसकी ओर दौड़ पड़ें । उन्हें अपनी ओर आता देख कर भी सिद्धांत आराम से बैठा हुआ था ।
जैसे ही पहले आदमी ने उस तक पहुंच कर उस पर हॉकी स्टिक चलाई तो सिद्धांत झुक गया जिससे उसका वार खाली चला गया ।
वहीं दूसरा आदमी उसे मारने को हुआ तो सिद्धांत ने खड़े होते हुए एक हाथ से उसकी हॉकी पकड़ ली और दूसरे हाथ से उसके पेट में मुक्का मार दिया ।
तीसरा आदमी अभी उस तक पहुंचा ही था कि सिद्धांत ने उसके सीने पर एक किक मार दिया । उस आदमी को एक झटका सा लगा और हॉकी उसके हाथ से छूट कर आगे की ओर उछल गई जिसे सिद्धांत ने तुरंत पकड़ लिया ।
बस फिर क्या था एक एक को अच्छे से धो दिया सिद्धांत ने , वो भी उन्हीं के हथियार से । अंत में सिर्फ दो आदमी बचे थे जो वैन के अंदर लड़की को पकड़ कर बैठे हुए थें ।
सिद्धांत जैसे ही वैन की ओर बढ़ा वैसे ही वो दोनों भी बाहर आ गए क्योंकि वो लड़की पहले ही बेहोश ही चुकी थी ।
उन दोनों में से एक आदमी के हाथ में चाकू था तो दूसरे के हाथ में गन थी । वो दोनों अपने हथियार आगे किए हुए सिद्धांत की ओर बढ़ने लगे । सिद्धांत भी उनकी और बढ़ रहा था ।
वो दोनों जैसे ही उसके पास पहुंचें, वैसे ही गन लिए हुए उस आदमी ने उसे सीधे सिद्धांत के सिर पर सटा दिया लेकिन सिद्धांत के आंखों में डर का एक कतरा भी नजर नहीं आ रहा था ।
बल्कि उसकी आँखें मुस्करा रही थीं जिसे देख कर उस आदमी ने कहा, " क्यों बे लड़के, तुझे डर नहीं लग रहा है ! "
सिद्धांत ने व्यंग वाली हँसी के साथ कहा, " डर, और वो भी इन खिलौनों से ! "
उस आदमी ने अपनी गन लहराते हुए कहा, " ये तुझे खिलौना लग रहा है ! "
जैसे ही उसकी गन इधर उधर हुई वैसे ही सिद्धांत ने उसके हाथ पर मार कर उसकी गन को अपने कब्जे में कर लिया । ऐसा होते ही वो दोनों आदमी हल्के बक्के होकर सिद्धांत को देखने लगे ।
वहीं सिद्धांत ने उस गन को नचाते हुए उस आदमी के बातों का जवाब दिया, " अब तक तो नहीं, पर अब जरूर लग रहा है । "
फिर उसने अचानक से वो गन उन दोनों की ओर प्वाइंट करके कहा, " अब बोलो क्या करें, पहले किसका भेजा उड़ाएं ? "
उस गन को खुद पर पॉइंटेड देख कर उन दोनों की हालत खराब हो गई । गन वाले आदमी ने हकलाते हुए कहा, " बच्चे ! ये खे, खेलने वाली चीज नहीं है । "
सिद्धांत ने वो गन पीछे लेते हुए कहा, " ओ रियली ! फिर चलो खेलने वाला काम ही करते हैं । "
उन आदमियों ने नासमझी से कहा, " क्या मतलब ? "
सिद्धांत ने उस गन की सारी गोलियां निकाल कर फेंक दीं । फिर उसने वापस से वो गन घुमाते हुए उन दोनों की ओर देख कर कहा, " अब हो गई, ये खेलने वाली बंदूक । "
इस बार चाकू लिये हुए आदमी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, " ये तो तूने गलती कर दी मुन्ना ! तेरे पास गन थी और तूने उसे ऐसे ही जाने दिया । "
फिर उसने अचानक से आगे बढ़ कर सिद्धांत के गले पर चाकू रख कर कहा, " पर अब, इसका क्या करेगा ? "
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क्या हुआ था अतीत में ?
कौन थी वो लड़की ?
क्या सिद्धांत उसे बचा पाएगा ?
या खुद भी इनका शिकार हो जाएगा ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
बियोंड वर्ड्स : अ लव बॉर्न इन साइलेंस
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लेखक : देव श्रीवास्तव