Shadow Of The Packs - 17 in Hindi Fiction Stories by Vijay Sanga books and stories PDF | Shadow Of The Packs - 17

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Shadow Of The Packs - 17

विक्रांत से बात करने के कुछ ही देर बाद पृथ्वीराज के पास किसी का फोन आया। पृथ्वीराज ने जब फोन पर देखा तो वो उनके पिता शिवराज सिंघाल का फोन था। शिवराज सिंघाल भेड़ियों के मुखिया भी थे। “हेलो...! जी पापा, जैसा आपने कहा था , मैने विक्रांत से बात कर ली है। वो जल्द ही यहां आ जायेगा।” पृथ्वीराज ने अपने पापा शिवराज से कहा। 

“मैने तुम्हे उस बात के लिए फोन नही किया है। मैं तुमसे ये पूछना चाहता था की हमारी तैयारी कहां तक पहुंची?” शिवराज ने पृथ्वीराज से पूछा।

 “पापा मैने हमारे सभी लोगों तक खबर भिजवा दिया है। कुछ लोग तो यहां आ भी चुके हैं, और बाकी लोग जल्द ही यहां आ जायेंगे।” पृथ्वीराज ने कहा।

 “ठीक है, और कबीर की क्या खबर है ? वो कहां है?” शिवराज ने पूछा।

 “पापा वो अभी उत्तराखंड में ही है। मैने उससे बात कर ली है। वो हो सके तो विक्रांत के साथ ही आ जायेगा।” पृथ्वीराज ने कहा।

 “विक्रांत के साथ! जो कबीर ने विक्रांत के साथियों के साथ किया उसके बाद तुम्हे लगता है की विक्रांत उससे मिलना भी चाहेगा?” शिवराज ने पृथ्वीराज से पूछा।

 “पापा है तो दोनो भाई ही, और कबीर का तो आपको पता है की वो कितना चालाक है! कुछ ना कुछ करके वो विक्रांत को मना ही लेगा।” पृथ्वीराज ने कहा।

 “उन दोनो को बोलो की मैं उन दोनो से जल्द से जल्द मिलना चाहता हूं।” शिवराज ने पृथ्वीराज से कहा। 

“जी पापा... मैं उन्हे बोल दूंगा।” पृथ्वीराज ने कहा। इसके बाद शिवराज ने फोन काट दिया।

पृथ्वीराज ने अपने पिता शिवराज से बात करने के बाद कबीर को फोन लगा दिया। “हेलो कबीर...! कहां हो तुम?” पृथ्वीराज ने कबीर से पूछा।

 “पापा में यहीं उत्तराखंड में हूं।” कबीर ने अपने पापा से कहा।

 “तुम दोनो भाइयों को तुम्हारे दादाजी ने बुलाया है। तुम दोनो जल्द से जल्द यहां आओ।” पृथ्वीराज ने कबीर से कहा। 

“पापा मैं तो आ जाऊंगा पर विक्रांत का क्या! क्या वो मेरे साथ आएगा?” कबीर ने पूछा। 

“मैने विक्रांत से बात कर ली है। वो भी जल्द आ जायेगा। पर दादाजी ने तुम दोनो को साथ में बुलाया है। अब तुम्हे सोचना है की तुम विक्रांत को अपने साथ कैसे लाओगे! तुमने जो उसके दोस्तो के साथ किया है उसके बाद मुझे नहीं लगता की वो तुम्हारे साथ आने के लिए इतनी आसानी से मानेगा!” पृथ्वीराज ने कहा। पृथ्वीराज इस चिंता मे थे की अगर दोनो भाई ऐसे ही रहे तो वो एक दूसरे के साथ कभी नही रह पाएंगे।

 “पापा आप तो मुझे जानते ही हो। मैं विक्रांत को अपने साथ लाने का कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लूंगा।” कबीर ने अपने पापा को विश्वास दिलाते हुए कहा।

 “ठीक है, जो भी करना है जल्दी करो। वैसे भी हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। कभी भी जंग छिड़ सकती है।” पृथ्वीराज ने कबीर को समझाते हुए कहा और फिर फोन काट दिया।

दूसरी तरफ शाम के समय विक्रांत खाना बना रहा होता है की तभी अचानक दरवाजे के खटखटाने की तेज आवाज आती है। जब वो दरवाजा खोलकर देखता है तो उसके सामने कबीर खड़ा होता है। विक्रांत कबीर को देखते ही झट से उसकी गर्दन पकड़ लेता है। पर कबीर विक्रांत से ज्यादा ताकतवर था इसलिए उसने पलटकर विक्रांत की गर्दन पकड़ लेता है।

 “भाई तुम मुझसे नही जीत सकते। वैसे भी मैं यहां लड़ने नही आया हूं। मैं बस ये बताने के लिए आया हूं की दादाजी ने हम दोनो को साथ में मिलने के लिए बुलाया है।” कबीर ने विक्रांत से कहा और गर्दन छोड़ दी।

 “मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना।” विक्रांत ने गुस्से मे कहा। 

“भाई तुम्हारा मुझ पर गुस्सा होना मैं समझ सकता हूं, पर एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देख, एक तरह से मैंने तुम्हार ही काम आसान किया है। वैसे भी तुम इंसान के साथ तो पूरी जिंदगी नही बीता सकते। अब जबकि वो भी भेड़िया बन चुकी है, तुम दोनो हमेशा साथ मे रह सकते हो।” कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा।

 “मैने तुमसे तुम्हारी राय नहीं मांगी है। तुमने जो किया वो बहुत गलत किया। मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगा।” विक्रांत ने गुस्से गुस्से मे कहा।

विक्रांत का गुस्सा शांत होने का नाम ही नही ले रहा था। पर कबीर ने कुछ ऐसा कहा जिससे विक्रांत का गुस्सा शांत हो गया। “भाई...! अगर तुम चाहो तो इसे फिर से इंसान बना सकते हो।” कबीर ने सुप्रिया की तरफ इशारा करते हुए कहा। 

“ऐसा सच मे हो सकता है क्या ? या ये तुम्हारी कोई नयी चाल है?” विक्रांत ने शक की नजर से कबीर को देखते हुए पूछा।

 “भाई इसमें मेरी कोई चाल नही है। पापा ने मुझे एक बार इस बारे में बताया था की ऐसा हो सकता है। दादाजी इसका तरीका जानते हैं।” कबीर ने विक्रांत को समझाते हुए कहा। 

“अगर सच मे ऐसा कोई तरीका है, तो पापा ने मुझे क्यों नही बताया? मुझे तो यही लग रहा था की किसी मानव भेड़िये को दुबारा इंसान मे बदलना मुमकिन नहीं है!” विक्रांत ने गहराई से सोचते हुए कहा।

विक्रांत और कबीर बात कर ही रहे होते हैं की तभी सुप्रिया नींद से जाग जाती है। “विक्रांत ये कौन है?” सुप्रिया कबीर की तरफ देख कर विक्रांत से पूछती है।

 “ये मेरा भाई कबीर है।” विक्रांत ने सुप्रिया से कहा। ये सुनते ही सुप्रिया को गुस्सा आने लगा। तुम...? तुम्हारी ही वजह से मेरे साथ ऐसा हुआ है। मुझे वापस इंसान बनाओ, नही तो मैं तुम्हे छोड़ूंगी नही।” सुप्रिया गुस्से मे कहती है। 

सुप्रिया का गुस्सा देखकर विक्रांत ने उसे पकड़ लिया और शांत होने को कहने लगा। “सुप्रिया तुम शांत हो जाओ। तुम्हे वापस इंसान बनाने का तरीका है मेरे दादा जी के पास। मैं तुम्हे उनके पास ले जाऊंगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा।” विक्रांत ने सुप्रिया को समझाते हुए कहा।

इसके बाद विक्रांत अपने भाई कबीर को खींचकर एक कोने मे ले गया और पूछा–“कबीर तू सच बता... सचमें सुप्रिया को ठीक करने का कोई तरीका है! या तू दादाजी का नाम लेकर कोई और चाल चल रहा ha?”

 विक्रांत की ये बात सुनकर कबीर ने विक्रांत का गला पकड़ लिया। “तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की! तू मुझ पर यकीन कर या ना कर ये तुझ पर है। पर एक बात याद रखना, मै कभी भी दादाजी के नाम से झूठ नही बोलता।” कबीर के बोलने के तरीके से विक्रांत समझ गया की कबीर सच बोल रहा है। 

“चल ठीक है... मै तेरी ये बात मान लेता हूं। मुझे यकीन है की तू दादाजी के नाम से झूठ नही बोल सकता।” विक्रांत ने कबीर से कहा।

Story to be continued....
Next chapter will be coming soon.......