I can see you - 5 in Hindi Women Focused by Aisha Diwan Naaz books and stories PDF | आई कैन सी यू - 5

Featured Books
Categories
Share

आई कैन सी यू - 5

डायरेक्टर सर के जाने के बाद मुझे एक और धक्का सा लगा जब मैं ने उसी औरत को आते देखा। इस समय वह औरत उनके दस कदम दूरी पर चल रही थी। उसे तो वर्षा देख नहीं सकती थी इस लिए वो डायरेक्टर सर के चले जाने के बाद चैन की सांस ले रही थी। लेकिन मैं सफेद साड़ी वाली औरत को देख सकती थी। उसी तरह नज़रे तीर की तरह डायरेक्टर सर पर गड़ाए हुए चल रही थी। जब वो मेरे करीब से गुजरी तो मुझे उसके गुजरने का आभास नहीं हुआ। मैं ऐसा जाता रही थी के मैं ने उसे नही देखा। मैं नहीं चाहती थी के हमारी नज़रे आपस में टकराए और उसे समझ आ जाए की मैं ने उसे देखा। उन दोनों के चले जाने के बाद मैं ने झट से मोबाईल निकाला और इस कॉलेज के डायरेक्टर को सर्च किया। मुझे उनके तस्वीर के साथ उनके बारे में कुछ जानकारी मिली। उनका नाम डॉक्टर रोवन पार्कर है और उन्होंने इकोनॉमी से पीएचडी कर रखी है। 
मैं उनके बारे में बहुत कंफ्यूज हो गई इतनी कंफ्यूज तो मैं कभी अपने ज़िंदगी को लेकर भी नहीं हुई थी। मुझे यह नहीं समझ में आ रहा था के वो औरत आखिर कौन है? क्या वो उनकी पत्नियों में से एक है? लेकिन जहां तक मैं जानती हुं के मरने के बाद जिनका अंतिम संस्कार नहीं होता उनकी आत्माएं भटकती है। क्या उनकी पत्नियों में से किसी एक का अंतिम संस्कार नहीं हुआ था या कोई और ही बात है जो इन दोनों अफवाहों से अलग है।

जो भी था मेरे कैलकुलेशन के हिसाब से डायरेक्टर सर के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता था के वो कातिल है या श्रापित। जब मेरा दिमाग बिलकुल उलझ गया तब मैं ने सब को नज़र अंदाज़ कर के अपने आप से कहा :" पता नहीं मैं क्यों इतना सोच रही हूं! उनकी ज़िंदगी उनका मसला इसमें मैं अपना दिमाग क्यों खराब करूं?.... वैसे भी मैं सिर्फ भूतों को देख सकती हूं उनसे लड़ नहीं सकती और जो भूतनी उनके पीछे पीछे घूमती है वो उनकी प्रोब्लम है मेरी नही!....मुझे बस यहां पढ़ाई करनी है।"

मैं ने वर्षा से अब वापस चलने को कहा। शाम हो चुकी थी। सूरज ढलने लगा था। हमारे सर के ऊपर से ढेर सारी छोटी छोटी चिड़ियां झुंड बना कर उड़ते हुए जा रही थी। मैं ऊपर की ओर सर उठा कर उन चिड़ियों को देख ही रही थी के लॉज के बिल्डिंग के ऊपर मैं ने किसी को छत की रेलिंग पर पैर लटकाए हुए बैठा देखा। मैं ने देखा के वो एक भूत था क्यों के उसका रंग मटमैला था और ज़रूरत से ज़्यादा लंबे हाथ पैर थे। जैसे कोई बगुला हो। मैं ने वर्षा से जल्दी अंदर आने के लिए कहा। मैं ने अक्सर देखा है जब सूरज बिलकुल डूबने ही वाला होता है तब ये भूत न जाने कहां कहां से निकल कर आ जाते हैं और इधर उधर भटकने लगते हैं। इस लिए बड़े बुज़ुर्ग शाम के समय बाहर निकलने से मना करते थे। शाम के इस समय उनके लिए सब से अच्छा समय होता होगा। जिसमे वे शक्तिशाली होते हैं इस लिए हमे इस समय ज़्यादा हीरो पंथी नहीं करनी चाहिए और घर पर ही रहना चाहिए क्यों के हमे ये भूलना नहीं चाहिए के उनके लिए हम इंसान ही मनोरंजन का जरिया हैं और उनका मनोरंजन इंसान को कभी कभी मौत के मुंह तक भी ले जा सकता है। 

रात को हम दोनों ने साथ में खाना बना कर खाया। वर्षा कल कॉलेज जाने के लिए बहुत एक्साइटेड थी। उसे तो ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी और मैं तो ऐसे भी कभी जल्दी नही सो पाती मेरी नींद चिड़ियों की तरह हल्की है। एक हल्की सी आहट पर भी जाग पड़ती हूं। मैं नहीं चाहती थी के डायरेक्टर और उनकी भूतनी के बारे में और कुछ भी सोचूं लेकिन बार बार मेरे दिमाग में सिर्फ वोही औरत घूम रही थी और डायरेक्टर सर की कहानी जो किसी फिल्म  की तरह मेरे आंखों में चल रही थी। मेरी कल्पना शक्ति उनकी दो पत्नियों की मौत को कल्पना कर कर के मुझे बार बार दिखा रही थी जिस से मेरा मन अब चिड़चिड़ा होने लगा था। 
आधी रात हो गई लेकिन मुझे नींद नहीं आई। मैं ने सर उठा कर वर्षा को देखा जो कुछ दूरी पर अपने बिस्तर पर सो रही थी। धीरे धीरे मुझे उसके खर्राटे की आवाज़ें आने लगी। मैं ने एक सर्द आह भरते हुए अपने आप में कहा :" काश इसकी तरह मैं भी आराम की नींद सो पाती! न जाने ऊपर वाले ने क्या सोच कर मुझे अदृश्य चीज़ों को देखने की बेकार शक्ति दी है।"

कई दफा करवटें बदलने के बाद मुझे अचानक किसी के दौड़ने भागने की आवाज़ें आने लगी। जो हमारे हॉल में से आ रही थी। एक तो मैं पहले से ही नींद न आने की वजह से और डायरेक्टर की श्रापित कहानी से परेशान थी ऊपर से जिस बात का मुझे अंदाज़ा था वोही होने लगा। मुझे गुस्सा आने लगा दिल कर रहा था के अभी जाऊं और बाहर जो भी है उसे दौड़ा दौड़ा कर मारूं, मैं ने आवाज़ों को नज़र अंदाज़ करने की कोशिश की लेकिन कुछ ही देर में मेरा सब्र जवाब दे गया। मैं अपने बिस्तर से उठी और धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर की ओर झांक कर देखा। मैं ने देखा के दो भूत थे एक लड़का एक लड़की। वे दोनो बार बार लाइट बल्ब ऑन करते और ऑफ करते, जैसे ही ऑन करते दौड़ कर कहीं छुप जाते फिर आकर ऑफ कर देते। वे दोनों कद से नाटे और मोटे थे। उनके बदन पर अजीब किस्म के दाने निकले हुए थे जो देखने में बहुत घिनौना लग रहा था। आंखों की पुतलियां सफेद थी जिस कारण ऐसा लगता था के आंखे ना हो बल्के सफेद पत्थर हो। उनके कपड़े किसी जानवर की खाल जैसी थी जो गंदी बदबू दार लग रही थी। 
मेरा दिल कर रहा था के उन पर ज़ोर से चिल्लाऊं लेकिन बाकी कमरों की लड़कियां कही जाग न जाए इस लिए मैं ने कोने में रखा एक वाइपर उठाया और वहां गई जहां बिजली का बोर्ड लगा था। मुझे वहां डंडा लेकर खड़ा देख वे दोनों दूर से झांकने लगे। उन्हें नहीं मालूम था के मैं उन्हे देख सकती हूं। मैं ने गुस्से भरी नज़रों से उन्हें देखा और हाथ के इशारे से पास बुलाया। 
मुझे देख कर उन दोनों की आंखें ऐसे बड़ी बड़ी हो गई जैसे चहरे से निकल कर ज़मीन पर गिर पड़ेगी। जब वे लोग मेरे पास नहीं आए तो मैं वाइपर उठा कर उनके पिछे दौड़ी। उन्हें अब तक पूरी तरह यकीन नहीं था के मैं उन्हें मारने के लिए आ रही हूं। जब मैं ने तेज़ी से उनके पास जा कर वाइपर को पूरी ताक़त से हवा में घुमाया तो वे दोनों घबराए हुए बड़ा सा अजगर जैसा मुंह खोल कर गायब हो गए। 
मैं कुछ देर भूत विनाशक बन कर बड़ी बड़ी सांसे लेते हुए वोही खड़ी रही। जब देखा के अब वे दोनों नहीं आए तो मैं वापस अपने कमरे में आ गई। इसके बाद से मुझे कोई आवाज़ नहीं आई और शायद दो बजे तक मुझे नींद आ गई थी।

सुबह हम दोनों पराठे का नाश्ता कर के कॉलेज चले गए। वर्षा ने कहा के मुझे मेरे क्लास रूम तक छोड़ आओ तो मैं उसके साथ उसके क्लास रूम तक गई। मैं अपने क्लास में आई वहां रूमी मेरा इंतज़ार कर रही थी। क्लास में बैठे बैठे मैं यही सोच रही थी के अगर आज मैं ने उस सफेद साड़ी वाली औरत को देखा तो मैं उसे ज़रूर टोक दूंगी। मुझे चैन नहीं पड़ेगी जब तक मैं उसकी सच्चाई न जान लूं। मैं निडर थी क्यों के भूत मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। न मुझ पर जादू कर सकते हैं ना मेरे अंदर प्रवेश कर सकते हैं। 

(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)