Loving Soul Marichika - 10 in Hindi Horror Stories by Satish Thakur books and stories PDF | प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 10

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प्रेमी-आत्मा मरीचिका - 10

उसने खुद स्वीकार किया था, अपनी दिल दहला देने वाली दास्तान सुनाई थी, मोहब्बत के वादे इरादे किए थे फिर यह कस्तूरी कहां से आ गई।

अब आगे ............प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग १० 

"लानत हो मेरे मुकद्दर पर!" सरदार तेम्बू जुनून में अपना मुंह पीटता हुआ बोला था -"तूने मेरी लड़की की आबरू को दागदार किया है। मगर मैं खुद तुझ पर हाथ नहीं उठा सकता।" तेम्बू के इन शब्दों ने सुभ्रत को वस्तुस्थिति का अहसास दिला दिया। वर्ना वो तो घबराहट में कस्तूरी के साथ किसी भी शारीरिक सम्बन्ध से इंकार करने वाला था।

यहां के रिवाज के अनुसार नागोनी में अगर कोई आदमी अगर कुछ रस्मों और पवित्र अग्नि कुण्ड के सामने शपथ लिए बगैर हमबिस्तर हो जाए, तो उस शख्स को कोई भी नहीं छू सकता था।

चांद की आखिरी रात को बाहर से पकड़कर लाई गईं औरतें उस शख्त के हाथ-पैर बांधकर उसे एक अलाव से इतनी ऊंचाई पर उल्टा टांग देती थीं कि अलाव की लपटें उसके बालों को न छु सकें।

फिर एक रेगिस्तानी, विशेष प्रकार की बूटी डालकर उस अलाव को जला दिया जाता था। यह स्थिति तब तक बनी रहती थी, जव तक कि उल्टे लटक रहे शख्स के प्राण पखेरू उसके नश्वर शरीर को छोड़कर उड़ नहीं जाते थे।

सुभ्रत को मालूम था कि अब आखिरी चांद की रात तक बस्ती के लोग उसे मनहूस समझते हुए उसके करीब न भटकेंगे और न उसको यातनाएं दी जाएंगी। जबकि मधुलिका को यहां उस हालत में देखकर उसे फौरन क़त्ल कर दिया जाता, क्योंकि वो बस्ती की वासी नही थी।

अब जहां सुभ्रत को लम्बी मोहलत मिल जाने की खुशी थी, वहीं यह उलझन भी उसे सता रही थी कि आखिर मधुलिका और कस्तूरी का हेर-फेर क्या था? उसे पूरा यकीन था कि उसने वो सारा वक्त मधुलिका की जुल्फों के साये में ही गुजारा था, जबकि उस वक्त कस्तूरी वहां ऐसी अर्धनग्न हालत में पड़ी हुई थी, जैसे वो सारा रंगीन वक्त उसने कस्तूरी के साथ ही गुजारा हो ।

हरेन जब वहां पहुंचा था, बार-बार हवा में मुंह उठकर सब दिशाओं में कुछ सूंघने की कोशिश कर रहा था। वो गहरी गहरी सांसें लिए जा रहा था, जैसे कोई खास बू सूंघने की कोशिश कर रहा हो।

"मैं समझ गया... मैं समझ गया ।" अचानक हरेन बेताबी से बड़बड़ाया। फिर बुलंद आवाज में सरदार तेम्बू से बोला- "सरदार, तेरी कस्तूरी का कुछ नहीं बिगड़ा, यहां एक और लड़की थी, जिसके साथ इस कमीने ने मुंह काला किया है।"

"हरेन, मैं तेरी इज्जत करता हूं।" तेम्बू कड़वे स्वर में बोला ।

"कसम है सरदार...।" हरेन ने बड़े जोर-शोर से अपनी बात दोहरानी चाही थी, मगर सुभ्रत ने तेजी से उसकी बात काट दी थी।

"यह झूठ है सरदार, यह तेरे हाथों मुझे मरवाकर तुझ पर और तेरी बस्ती पर मुसीबत लाएगा। कस्तूरी अपनी मर्जी से मेरे साथ यहां आई थी। फिर उसकी कामनाएं मेरे खौफ पर हावी हो गई थीं और... मैंने उसे रौंद डाला। उसने खुद ही मुझे इसके लिए उकसाया था ।"

"कस्तूरी... कमीनी...।" तेम्बू ने बढ़कर बड़ी बेदर्दी से कस्तूरी को एक ठोकर मारी। कस्तूरी उन तीनों के शोर से भी जाग नहीं सकी थी। ऐसा लगता था कि वो बेहोश है। ठोकर पड़ते ही कस्तूरी हड़बड़ाई थी और उठ बैठी थी। सबसे पहले उसने सुभ्रत को देखा और उसके गले से लिपट गई।

"ओह सुभ्रत... मैं तो समझ रही थी कि मैं सपनों में आनंद उठा रही हूँ। लेकिन यह तो सच है... बिल्कुल सच ।"

"कस्तूरी...कस्तूरी... सरदार आ चुका हैं।" सुभ्रत ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा ।

 कस्तूरी ने जैसे ही सरदार तेम्बू को देखा और हरेन को देखा, वह बौखलाकर अपनी नग्नता छुपाने की कोशिश करने लगी। बूढ़ा हरेन होंठ भींचे सुभ्रत को घूर रहा था ।

"कस्तूरी झूठ बोल रही है सरदार।" हरेन सख्त आवाज में बोला - "तू आगे बढ़कर सुभ्रत की गर्दन तोड़ दे।"

तेम्बू उसकी बात पर ध्यान न देकर अपनी बेटी कस्तूरी को देखता रहा था जो शर्म से सिकुड़ी, सहमी अपने कपड़े पहन रही थी।

"अगर तेरा ज्ञान सच्चा है, तो तू सरदार को बता कि यहां कौन-सी लड़की थी?" सुभ्रत ने जहरीले स्वर में हरेन से कहा, क्योंकि वो अच्छी तरह जानता था कि हरेन किसी भी कीमत पर मधुलिका का राज नहीं खोलेगा।

अचानक तेम्बू अपनी बेटी की तरफ बढ़ा और उसके मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया, "तुने मेरे सपने चकनाचूर कर दिए कमीनी... बस्ती में तेरी बोली साठ तोले से भी ऊपर की जाने वाली थी। लेकिन अब कोई तुझे दो तोले भी नहीं चाहेगा। जा मैं तुझे निकालता हूं अपने परिवार में से। अब तेरे साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा। वही लावारिस औरतों वाली चौपाल तेरा मुकद्दर है  जहां बस्ती के सब मर्द तुझे अपना खिलोना बनाएंगे। "

"बाबा... अपना फैसला वापस ले लो।" कस्तूरी बिलख पड़ी, "सुभ्रत कर लेगा मुझसे ब्याह...।"

"नहीं।" सरदार तेम्बू इतनी जोर से दहाड़ा कि उसकी आवाज फट गई - "यह मनहूस जहरीले धुएं से मारा जाएगा। यह तुझे नहीं ब्याह सकता ।"

कस्तूरी बाप के पैरों से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी और तेम्बू उसके बाल नोंच-नोंचकर उसे दूर घसीटने की कोशिश करने लगा। स्थिति का यह मोड़ बहुत ही अनापेक्षित और नाजुक था।

सुभ्रत को मालूम था कि हरेन सच कह रहा है। उसने मस्ती भरे क्षण मधुलिका के साथ ही गुजारे थे, जबकि कस्तूरी बड़े रहस्यमय ढंग से वहां पहुची थी । कैसे? यह सुभ्रत नहीं जानता था । उसने सिर्फ कुछ दिन और जिंदा रहने के लिए उसे भी अपने पाप में लिप्त कर लिया था। जिसकी सजा के तौर पर उसका बाप उसे बस्ती के विधवा-घर में फेंकने जा रहा था।

"सरदार... मैं इसके लिए पांच तोला सोना देता हूं।" सुभ्रत ने अपनी मुंहबोली दिवंगत मां की पूंजी का हिसाब लगाकर पूछा। "तू इसे दासी बनाएगा?"

तेम्बू ने हैरत से कहा "हां।"

सुभ्रत ने गहरी सांस लेकर कहा - "दस्तूर के मुताबिक मुझे मनहूस घोषित कर दिया गया है और मुझसे शादी का हक छीन लिया गया है। मगर मैं तुझे पांच तोला सोना फिर भी दे सकता हूं।"

"पागल है तू...।" सरदार बड़बड़ाया- "मगर ठीक ही है। तेरा कौन-सा वारिस है, जिसके लिए तू सोना छोड़ जाए ।"

सुभ्रत खामोश ही रहा। सरदार फिर बोला- "महीने की आखिरी रात को तेरी जिंदगी का साज खामोश हो जाएगा और फिर कस्तूरी को चौपाल में पहुंचा दिया जाएगा, क्योंकि जिन दासियों के मालिक मर जाते हैं, वो भी लावारिस ही कहलाती है।" तेम्बू ने जमीन पर पड़ी हुई कस्तूरी की तरफ देखते हुए कहा।

कस्तूरी जमीन पर रेत में मुंह औंधा किए रोये जा रही थी ।

 

क्रमशः .........प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग 11 

लेखक- सतीश ठाकुर