"अब मैं बस्ती में जाकर चीख-चीखकर लोगों सें बताऊंगा कि हरेन ने तुम्हें कैद कर रखा है।' सुभ्रत जोशीले लहजे में बोला था - "हरेन का तिलिस्म टूटकर रहेगा और मैं तुम्हें अपनी जीवन साथी बना लूंगा।"
अब आगे.....प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग ०९
"नहीं... नहीं...सुभ्रत ऐसा न करना ।" वो अचानक बौखला गई थी।
"तुम्हीं ने बताया था न...?" सुभ्रत विजयी दम्भ से बोला- "जिस दिन नागोनी के हर वासी को मालूम हो गया कि हरेन ने तुम्हें कैद कर रखा है, तो तुम्हें इस कैद से छुटकारा मिल जाएगा।"
"हां। यह सच है।" बो सुभ्रत के गले मैं बाहें डालते हुए बोली- "मगर हरेन तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा। वो वहुत बड़ा शैतान है। मैं अपनी यातना से छुटकारे के साथ-साथ तुम्हारी जिंदगी भी चाहती हूं। मैं हर तरह तुम्हारी हिफाजत करूंगी।"
सुभ्रत को याद आया कि हरेन ने भी उसे जाते-जाते कुछ इसी तरह की धमकी दी थी सुबह-सवेरे । फिर सुभ्रत ने अपनी बाहें मधुलिका की पतली-सी नाजुक कमर में डाल दी थीं। वो जरा-सा कसमसाई थी और सुभ्रत ने उसे अपने करीब खींच लिया था।
"तुम अच्छे चित्रकार हो न सुभ्रत?" वो अपने फूल से बदन का पूरा बोझ सुभ्रत पर डालते हुए बोली थी ।
"सिर्फ एक चित्रकार ही नहीं बल्कि कलाकार हूं।" सुभ्रत उसके बालों की महक में नाक घुसेड़ता हुआ बोला था।
"तुमने पहला चित्र किसका बनाया था?" उसने धीमी आवाज में पूछा था।
"सरदार तेम्बू की बेटी कस्तूरी का था। " सुभ्रत चहककर बोला था।
"क्या वो तुम्हें बहुत पसंद है?" इस बार उसका स्वर खोखला था ।
"पसंद और प्यार में वहुत फर्क है मधुलिका । " सुभ्रत एकदम भाबुक हो गया था, "कस्तूरी के साथ मैंने बचपन में रेत के घरोंदे बनाए थे। हम बरसो एक-दुसरे के साथ खेले हैं और यही मेरी पसंद हैं।
फिर हर जवान मर्द को हर जवान और खूबसूरत लड़की पसंद आती है। मगर उसे मोहब्बत नहीं कहा जा सकता। तुम यह सुन लो कि मुझे मोहब्बत सिर्फ तुमसे है। अगर तुमने ठुकरा भी दिया तो भी सारी जिंदगी तुम्हारी पूजा करता रहूंगा।
मुझे इस बात की परवाह नहीं होगी कि बदले में तुम मेरे साथ क्या व्यवहार करती हो।"
"मेरे सिर से एक बहुत बड़ा बोझ हट गया।" वो पहली बार शोखी से हंस पड़ी थी, "मुझे डर था कि मेरे और कस्तूरी के दरम्यान तुम कहीं कशमकश में न पड़ जाओ।"
"क्या हरेन तुम्हें सुबह से नहीं मिला?" सुभ्रत ने उसके लबादे के बंधनों से खेलते हुए पूछा था।
"एक बार खेमें आया था, फिर कुछ कहे बगैर लौट गया था । "
"और उसे इस दूसरी हमारी मुलाकात के बारे में पता चल गया तो?"
"चल जाए पता! मुझे आखिर एक बार तो यह खतरा मोल लेना ही था ।" उसने सुभ्रत की तरफ देखकर कहा था और सकपकाकर नजरें झुका ली।
सुभ्रत की निगाह में छुपा हुआ संदेश उसकी लज्जा का कारण बन गया था। सुभ्रत के दिमाग में इस वक्त समय और माहौल का अहसास मिट गया था। उसके सामने इस वक्त सिर्फ मधुलिका का हसीन और सुडौल वजूद था और वो उसके जरिये जिंदगी में पहली बार खुशियों की एक नई दुनिया की रचना कर रहा था।
वक्त जहां का तहां थम गया था। सुभ्रत को वो पल-छिन सदियों लम्बे महसूस होने लगे थे। ऐसा लगता था जैसे वो और मधुलिका जन्म-जन्म से एक हों। लेकिन वो पल-छिन स्थाई न रह सके थे। दुनिया के दस्तूर यहां भी इस आनंद भरे माहौल पर हावी हो गये थे और रंगीन सपनों की यह स्थिति खत्म हो गई थी।
न जाने कितनी देर सुभ्रत यों ही आंखें मूंदे उस रंगी आनंद भरे समय की याद में खोया आंखें मूंदे पड़ा रहा था जो आनंद उसे जीवन में पहली बार प्राप्त हुआ था।
फिर एक तेज मर्दाना गुर्राहट सुनकर चौंक पड़ा था। उसने हड़बड़ाकर आंखें खोली, तो उसकी नजर तेम्बू सरदार और बूढ़े हरेन के खतरनाक चेहरों पर पड़ी थी। सुभ्रत ने फौरन ही बौखलाकर अपने कपड़े पहने थे और अपराध-बोध के बजाय खुद को किस्मत के सहारे छोड़कर सरदार तेम्बू की आंखों में आंखें डाल दी थीं।
बो जबड़े भींचे सुभ्रत की तरफ देख रहा था। उसके कटे-फटे चेहरे के नुक्श गुस्से से और ज्यादा बिगड़ चुके थे और आंखों में खून उतरा हुआ था।
"तेरी यह मजाल गंदे कीड़े कि तू सरदार तेम्बू के गिरेबान पर हाथ डालने से भी बाज न आया ।" तेम्बू तैश भरे लहजे में गुर्राया था।
सुभ्रत की निगाहें पूरी मुस्तैदी से तेम्बू पर जमी हुई थी। वो अपनी लापरवाही से उसे कोई मौका नहीं देना चाहता था और बिना वजह उसे भड़काना भी नहीं चाहता था इसलिए नर्म लहजे में बोला- "सरदार, मैं जानता हूं कि तुम्हें किसने बहकाया है। मैं जानता हूं कि बस्ती में लाई जाने वाली हर अजनबी लड़की पर सबसे पहला हक तुम्हारा होता है। मगर एकान्त में उसके करीब मैं अपने आप पर काबू न रख सका था।"
"अजनबी लड़की...?" वो जमीन पर पैर पटक कर इतनी जोर से दहाड़ा था कि खजूर के पेड़ों पर बैठे रोगिस्तानी पक्षी खौफभरी आवाजें निकालते हुए उड़ गए थे।
"हां हरेन बाबा उसे जानते हैं, मगर तुम्हारे लिए वो अजनबी लड़की ही है।" सुभ्रत ने हैरत से कहा।
"अंधा समझता है मुझे?" वो गुस्से में आपे से बाहर हो गया । "क्या तेम्बू अब अपनी कस्तूरी को भी नहीं पहचान सकता?" कहते हुए वो अपने बाल नोंचने लगा था।
कस्तूरी का नाम सुनते ही सुभ्रत को यों महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके सिर पर भी लट्ठ दे मारा हो। उसने बौखलाकर मधुलिका की तरफ देखा, मगर उसका कहीं पता नहीं था, न ही उसका ताज या लबादा वहां मौजूद था। उसकी जगह रेतीली जमीन पर कस्तूरी अर्ध-नग्न बेसुध पड़ी हुई थी। उसके चेहरे पर ऐसी सन्तुष्टि थी जैसे कोई बिल्ली ढेरों मलाई चाटकर चैन की नींद सो रही हो और अभी तक उस मीठी कल्पना में हो।
इस रहस्योद्घाटन पर सुभ्रत के होश उड़ गए थे। क्या गुजरे हुए पल-छिन उसकी नजर का फरेब थे कि वो जिसे मधुलिका समझता रहा था, वो असल में कस्तूरी थी? लेकिन फरेवे नजर कैसा, उसे यकीन था कि बो तो मधुलिका ही थी। उसने खुद स्वीकार किया था, अपनी दिल दहला देने वाली दास्तान सुनाई थी, मोहब्बत के वादे इरादे किए थे फिर यह कस्तूरी कहां से आ गई।
क्रमशः.......प्रेमी आत्मा मरीचिका - भाग 10
लेखक - सतीश ठाकुर