अमावस्या की रात बच्चा और...
रात का सन्नाटा था। चारों ओर घना अंधेरा पसरा हुआ था, और हवाओं में एक अजीब-सी ठंडक थी। उस रात, गांव के बाहर के जंगल के पास रहने वाला हर कोई घरों में दुबक कर बैठा था, क्योंकि वह रात अमावस्या की थी और उस दिन गांव में कुछ अशुभ होने की संभावना अधिक मानी जाती थी।
लेकिन रघु, जो गांव के बाहरी छोर पर अकेले रहता था, इन बातों पर यकीन नहीं करता था। उसने निश्चय किया कि वह इस अंधविश्वास को तोड़ेगा। वह अपने छोटे से घर में बैठा था और तभी उसने खिड़की के बाहर कुछ हलचल महसूस की। उसकी आंखें जंगल की ओर जा टिकीं, जहां से एक धुंधली परछाई धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी।
रघु ने सोचा कि शायद यह उसका भ्रम हो, लेकिन जैसे-जैसे वह परछाई करीब आई, उसने देखा कि वह एक बच्चे की आकृति थी। वह और भी हैरान हो गया। बच्चे के कपड़े पुराने और फटे हुए थे, और उसके बाल बिखरे हुए थे। उसकी ऑंखें शून्य में टिकी हुई थीं, और उसका चेहरा बेहद सफ़ेद था, जैसे उसकी जान निकल चुकी हो।
रघु ने आवाज़ लगाई, "कौन हो तुम? इस व़क्त यहॉं क्या कर रहे हो?"
बच्चा बिना कुछ कहे उसकी ओर बढ़ता रहा। रघु की आवाज़ अब कांपने लगी, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर दरवाज़ा खोला। बच्चा अब बिल्कुल सामने था। उसकी ऑंखों से ऑंसू बह रहे थे, और उसने अपनी ठंडी, कंपकपाती आवाज़ में कहा, "मुझे घर चाहिए, क्या तुम मुझे अंदर आने दोगे?"
रघु की रूह कॉंप गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या है—एक बच्चा या कुछ और। लेकिन उसकी दया ने उसे बच्चे को अंदर आने देने पर मज़बूर कर दिया। उसने दरवाज़ा खोला और बच्चा उसके घर में दाख़िल हुआ। जैसे ही बच्चा अंदर आया, घर की सारी बत्तियॉं खुद-ब-खुद बुझ गईं, और एक ठंडा हवा का झोंका घर के अंदर घुस गया।
बच्चा धीरे-धीरे घर के अंदर घूमने लगा, और उसके क़दमों से फ़र्श पर एक अजीब-सी गूंज उठ रही थी। रघु अब तक पूरी तरह डर चुका था, लेकिन वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। बच्चा धीरे-धीरे दीवारों की ओर बढ़ने लगा, और उसकी उंगलियां दीवारों पर खून के निशान छोड़ रही थीं। रघु ने देखा कि दीवारों पर बच्चों के छोटे-छोटे हाथों के निशान उभरने लगे, जैसे किसी ने वहां से भागने की कोशिश की हो।
रघु ने हिम्मत जुटाकर बच्चे से पूछा, "तुम कौन हो? और यह सब क्या हो रहा है?"
बच्चे ने उसकी तरफ पलटकर देखा। उसकी आंखों में दर्द और नफरत का अजीब मिश्रण था। उसने धीरे से कहा, "मेरा नाम चिराग था। मैं इसी गांव का था। सालों पहले, मुझे और मेरे दोस्तों को इस जंगल में लाया गया था। वहां हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ कि हम कभी वापस नहीं जा सके। अब हम यहीं बंधे हुए हैं, और हर अमावस्या की रात हम उन लोगों को ढूंढते हैं जिन्होंने हमारे साथ ऐसा किया था।"
रघु को समझ में आ गया कि ये आत्मा बदला चाहती है। लेकिन वह भी उसी गांव का था, और उसे किसी का कोई पता नहीं था। रघु ने डरते हुए कहा, "मैं तुम्हें कुछ नहीं कर सकता। मैं तो बस यहां रहता हूँ, मुझे छोड़ दो।"
बच्चे की आंखों में अचानक से एक खौफनाक चमक आई। उसने धीरे-धीरे कहा, "तुम हमारे बीच रह रहे हो, तुम्हें भी वही भुगतना होगा।" और उसी पल, रघु को एक ज़ोरदार चीख सुनाई दी। चारों ओर से बच्चे की आत्माओं ने उसे घेर लिया, और उनके चेहरे पर घृणा और दर्द था।
रघु ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके कदम ज़मीन से चिपक गए। बच्चे अब उसकी तरफ बढ़ रहे थे, और रघु को लगा कि उसकी सांसें थम रही हैं। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, और उसके कानों में बच्चों की दर्दनाक चीखें गूंजने लगीं। धीरे-धीरे, रघु की आत्मा भी उन बच्चों के साथ मिल गई, और वह भी उसी अमावस्या की रात की परछाई बन गया।
अब हर अमावस्या की रात, गांव वाले रघु की चीखें सुनते हैं, जो उन बच्चों की आत्माओं के बीच भटकता रहता है। उस रात के बाद से, कोई भी उस जंगल की ओर जाने की हिम्मत नहीं करता, और रघु का घर हमेशा के लिए वीरान हो गया।