ताश का आशियाना - भाग 44 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | ताश का आशियाना - भाग 44

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ताश का आशियाना - भाग 44

2 महीने से भी ऊपर का समय बीत चुका था।
नारायण जी के हाल पूछे जाने अनुसार सिद्धार्थ किसी भी बात में रुचि नहीं दिखाता।

लेकिन मेडिटेशन, उसमे अलग बात थी।

सिद्धार्थ का झुकाव अध्यात्म और उससे जुड़े बातों में ज्यादा था।
बहुत बार सिद्धार्थ को आध्यात्म सेशन अटेंड करते हुए पाया गया था।
मन लगाकर वह सब सुनता और इतना ही नहीं उसे आत्मसात करने की भी कोशिश करता।
उसकी हालत इस बात से ठीक नहीं होती लेकिन अब वह थोड़ा नॉर्मल दिखने लगा था।

सिद्धार्थ धीरे-धीरे डायरी लिखने लगा था।
जो चक्रव्यूह, आंखें उसने बनाई थी वह धीरे-धीरे शब्दों का जाल बुनने लगी थी।
लेकिन उस में कभी भी परिवार का जिक्र नहीं होता।

वहां के लोगो का शेड्यूल काफी फिक्स था 4:00 बजे सारे लोग चाय का मजा उठाने गार्डन में पालथी मार कर बैठ जाते।

सिद्धार्थ भी बैठता उनके साथ, मेडिटेशन और आध्यात्म का यह असर था कि वह लोगों की स्मॉल टॉक का जवाब दे पाता था बीच–बीच में।

परंतु अकेलेपन की वहां कोई बातें नहीं करता और ना ही किसी को अकेलापन महसूस होता।
क्योंकि वहां एक ही अवस्था (फेज) से सारे लोग गुजर रहे थे।

ऐसा नहीं था कि वहां के लोग खुद को अकेला नहीं मानते हो लेकिन सोचने का समय गोलियां और शेड्यूल में कहीं गुम हो जाता।

नारायण जी अब जब भी कभी फोन करते तो उन्हें सिद्धार्थ की अच्छी खबर ही मिलती। वह मेडिटेशन और बाकी एक्टिविटीज में ज्यादा प्रोग्रेस करने लगा था।
सिद्धार्थ खुद के विचार डायरी में लिख अपने मन को हलका भी कर लेता।
भगवान शिव की ही कृपा थी कि, डायरी के बारे में अब तक किसी को नहीं पता चला था।

और इन्ही सब रुकी हुए तामझाम के बीच एक लड़की वहां आई नाम, सेजल।
सेजल चाइल्ड ट्रॉमा का शिकार थी।
14 –15 वर्षीय सेजल काफी मासूम थी। जब वह रिहैबिलिटेशन सेंटर में आई तो उसके चेहरे पर दर साफ-साफ दिखाई दे रहा था।
उसके माता-पिता के बीच में काफी अनबन थी और वह इतनी घमासान हो गई की उसके पिता ने उसके मां को जान से मार दिया।
लेकिन इस बात का आक्रोश इतना उस लड़की में भर गया कि, उस लड़की ने उसके पिता की ही हत्या कर दी।


बहुत बार हमें यही सलाह दी जाती है कि, अगर कभी रिश्ता ठीक नहीं है तो बच्चा पैदा कर लो, सब ठीक हो जाएगा। लेकिन उसके बाद भी अगर एक रिश्ता ठीक नहीं हुआ तो उस बच्चे का क्या होगा यह कोई नहीं बताता।
सेजल के हालत से 


सेजल के रिपोर्ट अनुसार वह "पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर" का शिकार थी।
आप बहुत से लोग सोच रहे होंगे जहां 6 महीने रहने का खर्चा ही 2 लाख से ऊपर होता होगा वहां एक अनाथ बच्ची का क्या काम?
रिहैबिलिटेशन सेंटर ना सिर्फ पैसे लेकर लोगों को ठीक करता बल्कि वह चैरिटी के लिए भी अग्रेसर था।
डॉक्टर की पहुंच हेल्थ मिनिस्ट्री तक थी।
उसी का परिणाम यह था कि जब सेजल ने खुद ही के पिता को मार डाला था तो रिहैबिलिटेशन सेंटर उसे डाल दिया गया था।
कारण यह था कि बहुत छोटी भी थी और पीटीएसडी जैसे बीमारी का शिकार भी।
सेजल किसी के लिए बेचारी थी, किसी के लिए मर्डरर, किसी के लिए सिर्फ एक बच्ची।
हर एक का एक अलग-अलग पर्सपेक्टिव (दृष्टिकोण) था उसके बारे में।
किसी के लिए वह कुछ भी हो सिद्धार्थ के लिए वह छोटी मासूम बच्ची थी जो कहीं खो गई थी इस भीड़ में उसी की तरह....
सिद्धार्थ जिस जगह था, उस जगह का वक्त और दौड़ती भागती जिंदगी से कोई लेना देना नहीं था।
ना ही कोई सेल फोन, ना ही कोई प्रायोरिटी चार्ट्स, ना ही कोई मोटिवेशनल प्रोपेगेंडा : जिन्हें जीना आता हो या नहीं आता हो पता नहीं, पर वह हमें जीने का ज्ञान बांटते जाते हैं।
क्या था फिर वहां?
तनहाई, खामोशी, एक जैसी चलने वाली जिंदगी और खुद की जिंदगी के साथ किया गया समझौता।
और जब यह सब कुछ जीवन में हो तो अपने–आपको दूसरों के प्रति सहानुभूति हो ही जाती है और खुद के अंदर झांकने का समय भी।
सिद्धार्थ को भी सेजल से सहानुभूति हो गई थी।

Dear diary
मेडिटेशन, गोलियां, रुकी हुई जिंदगी, सेजल...
यह मेरी जिंदगी के कुछ प्रायोरिटीज (प्राथमिकताएं) बन चुकी है।



दूसरी तरफ....
तुषार को एक अच्छी जॉब लग गई थी। जो कि उसका एजुकेशन मीडिया स्ट्रीम से हुआ था।
वह एक असिस्टेंट लेक्चरर के पद पर आर्ट कॉलेज में नियुक्त हुआ था।
लाइफ मजे से तो नहीं जा रही थी पर ठीक जा रही थी।
महीने तेजी से भाग रहे थे, समय बदल रहा था, मिजाज बदल रहे थे।
तुषार को सिद्धार्थ के माता-पिता ने पूरी तरह से अपना लिया था।
कैरियर सेट ही था...
और प्रेम जीवन.... वह एक–आधे महीने पहले आए फोन में ही खत्म हो गया था, फोन प्रतीक्षा का था।

फोन में बहुत कम ही शब्द बोले गए, "मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ तुषार। (A heavy pause) मैंने पापा के बताए हुए लड़के से शादी करने का फैसला कर लिया है।"
तुषार कुछ भी नहीं बोल पाया सिर्फ जवाब उसने 'हूं' में दिया।
वह क्या ही बोलता? क्या ही सुनाता?

मुझे तो लगता है कभी-कभी लड़कियां इसीलिए आगे बढ़ पाती है क्योंकि वह सब बोल देती है और लड़के बस चुप रह जाते हैं उस वक्त पर।

शायद यही तक था उनका सफर।
तुषार को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर इस बात पर आगे क्या बोले।
प्रतीक्षा को इस बात की सिंपैथी दें कि तुम आगे बढ़ नहीं पाई या इस बात का हौसला दे कि, सब ठीक हो जाएगा।
अगर वह प्रतीक्षा को हौसला दे भी दे तो उसे कौन हौसला देगा उसे कौन संभालेगा।

कभी-कभी कुछ लड़ाईया खुद को ही लड़नी पड़ती है।
प्रतीक्षा के लिए जो भी डिसीजन लिया गया था वह ठीक ही है।

दोनों कुछ भी नहीं बोले बस एक दूसरे की सांसों को अपनी सांसो में घोलने का काम कर रहे थे।
तुषार के मन में सिर्फ यही था कि काश वह यह बोल पाता, "प्रतीक्षा थाम लो ना मेरा हाथ! मत करो अपने माता–पिता के पसंद से शादी।"
लेकिन जमाना गवाह है, लड़कियों को हमेशा से ही परिवार की इज्जत प्यारी होती है।
ऐसा नहीं था की तुषार डरपोक था लेकिन
प्रतीक्षा ने इस बात का खुलासा बहुत पहले ही कर दिया था।
जब तुषार ने अपना प्रपोजर उसके सामने एक दिन रखा, "तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"
लेकिन उसने सिर्फ इतना ही कहा कि, "यह रिश्ता तभी आगे बढ़ पाएगा जब मेरा सिलेक्शन हो जाएगा नहीं तो मैं अपने मां-बाप के खिलाफ नहीं जा सकती।"
तुषार उसी दिन समझ गया था कि उसका प्यार बस डूबती नाव में बैठा मुसाफिर है, जिसे समय रहते किनारा मिला तो ही वह बच पाएगा।
लेकिन आखिरकार इस कहानी में मुसाफिर को किनारा मिला ही नहीं।
प्रतीक्षा और तुषार की प्रेम कहानी की नाव डूब गई आखिरकार।


कुछ महीने बाद रिहैबिलिटेशन सेंटर:
Dear diary,

                 सेजल किसी से बात नहीं करती बहुत से लोगों ने मुझसे बात करने की कोशिश की। मैं भी तो बातें करता लेकिन दो शब्द के बाद शायद ही कोई शब्द मेरे दिमाग में आए हो।
लेकिन सेजल में जो खामोशी थी वह मुझे खुद उससे बातें करने पर मजबूर कर देती थी।
नर्स भी उसके तरफ तभी ध्यान देते जब डॉक्टर होते यह बात मैंने कहीं दफा नोटिस की थी।
क्या होगा आगे इसका अंदाजा नहीं मुझे....
शायद गोलियां बोल रही है।
Good night!