Ardhangini - 47 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 47

Featured Books
  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

Categories
Share

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 47

हंसी खुशी के माहौल मे सब लोग ड्राइंगरूम मे बैठे मैत्री के हाथ की बनी स्वादिष्ट खीर खा ही रहे थे कि तभी जतिन के फोन पर किसी का फोन आया... जतिन ने बगल मे ही रखे अपने फोन को पलट के देखा तो पाया कि फोन मैत्री के पापा और उसके ससुर जगदीश प्रसाद का है... "बाउ जी का कॉल है" कहते हुये जतिन ने मैत्री की तरफ देखा और फोन रिसीव करके बोला- नमस्ते बाउ जी....


जगदीश प्रसाद ने कहा- नमस्ते जतिन बेटा, क्या हालचाल हैं वहां सबके...? 


जतिन ने बड़ी ही सौम्यता से जवाब दिया- यहां सब ठीक हैं बाउ जी आप बताइये वहां सब कैसे हैं... और आपकी तबियत कैसी है...


जगदीश प्रसाद ने कहा- तबियत काफी ठीक है बेटा... असल मे मैत्री के वहां कानपुर जाने के बाद उससे ठीक से बात नही हो पायी थी तो मैने उसके फोन पर कॉल किया था पर वो उठा ही नही रही है, तो मैने सोचा कि आपके फोन पर कॉल कर लेता हूं.... बेटा डिस्टर्ब तो नही किया ना...


"अरे नही बाउ जी इसमे डिस्टर्ब करने वाली क्या बात है, मैत्री अगर आपकी बेटी हैै तो मै भी तो आपका बेटा हूं ना" जतिन ने कहा...


जगदीश प्रसाद खुश होते हुये बोले- हां बेटा... ये बिल्कुल सही बात है...

जतिन ने मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद की मनस्थिति समझते हुये उनसे कहा- ये लीजिये बाउ जी मैत्री से बात कर लीजिये हम सब साथ ही बैठे हैं....


इधर मैत्री भी समझ गयी थी कि फोन उसके पापा का है तो वो भी बेचैन सी हुयी जा रही थी उनसे बात करने के लिये... जतिन ने जैसे ही फोन मैत्री की तरफ बढ़ाया उसने झट से जतिन का फोन पकड़ लिया और भावुक सी हुयी वो अपने पापा से बोली- हैलो पापा... कैसे हैं आप...

मैत्री की आवाज सुनकर जगदीश प्रसाद भी भावुक हो गये, उनकी आवाज कांपने लगी और कांपती हुयी आवाज मे वो बोले- मै ठीक हूं बेटा... तू कैसी है मेरी गुड़िया... 


मैत्री अपने पापा जगदीश प्रसाद की आवाज सुनकर समझ गयी कि वो भावुक हो रहे हैं और इधर मैत्री के हाव भाव देखकर उसकी सास बबिता भी समझ गयीं कि मैत्री अपने पापा से बात करते हुये भावुक हो रही है... मैत्री को भावुक होता देख बबिता ने कहा- मैत्री बेटा अंदर कमरे मे जाकर आराम से बात करलो...


बबिता के कहने पर मैत्री अपने कान मे फोन लगाये लगाये अपनी जगह से उठी और अपने कमरे मे चली गयी.... 


कमरे मे जाकर मैत्री ने अपने पापा जगदीश प्रसाद से कहा- मै बिल्कुल ठीक हूं पापा पर आपकी आवाज क्यो भारी भारी सी हो रही है... 


मैत्री की ये बात सुनकर जगदीश प्रसाद और जादा भावुक हो गये और अपने आंसू नही रोक पाये... अपने आंसू पोंछते हुये वो बोले- बेटा इतने महीनो मे ये पहला ऐसा मौका है जब तुझे लगातार दो दिन तक नही देखा है, तेरी बहुत याद आ रही थी बस इसलिये तेरी आवाज सुनकर थोड़ा सा गला भर आया, बेटा तू खुश तो है ना... यहां तो कोई दिक्कत नही हो रही ना तुझे... 


अपने पापा की आवाज और बाते सुनकर मैत्री की आंखो मे भी आंसू आ गये और अपने आंसू पोंछते हुये वो बोली - नही पापा यहां सब बहुत अच्छे हैं, सबके मन मे एक दूसरे के लिये इतना प्यार है कि कोई किसी पर किसी तरह का गुस्सा करता ही नही है, कोई नॉर्मली भी किसी से तेज आवाज मे बात नही करता, सब मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.... खासतौर पर मम्मी जी मेरा बहुत साथ देती हैं... दो दिन मे ही ऐसा लगता है जैसे मै यहां बरसों से हूं... 


मैत्री की बाते सुनकर जगदीश प्रसाद अपनी तकलीफ भूल गये और उन्हे बहुत सुकून मिला.... और वो मैत्री से बोले- बस यही सुनने के लिये मेरे कान तरस गये थे कि मेरी बेटी के जीवन मे खुशियां आ गयी हैं... 


अपने पापा की बात सुनकर मैत्री ने सुबकते हुये कहा- पापा मेरा आपसे और मम्मी से मिलने का बहुत मन हो रहा है... प्लीज मुझे एक दो दिन के लिये ही सही पर अपने पास बुला लीजिये... 


जगदीश प्रसाद ने कहा- हां बेटा चौथी पर राजेश आयेगा तुझे लेने, तू एक काम कर मेरी बात अभी बहन जी से करवा मै उनसे बात कर लेता हूं... 


अपने पापा के कहने पर मैत्री अपने कमरे से बाहर आयी और फोन बबिता को देते हुये बोली- मम्मी जी पापा आपसे बात करना चाहते हैं... 


मैत्री की बात सुनकर जतिन के पापा विजय बीच मे ही बोल पड़े - अरे भाई साहब हैं... लाओ मुझे फोन दो मै बात करता हूं... 


ऐसा कहकर विजय ने मैत्री के हाथ से फोन ले लिया और बड़े ही हर्षित तरीके से बोले- नमस्कार भाईसाहब... कैसी तबियत है आपकी.... 


जगदीश प्रसाद भी एकदम से अपने समधी विजय की आवाज सुनकर खुश होते हुये बोले- मेरी तबियत बिल्कुल ठीक है भाई साहब.... आप सब कैसे हैं? 


विजय ने खुश होते हुये कहा- भई हम तो मैत्री बिटिया के शुभ कदम हमारे घर मे पड़ने के बाद से ही बहुत खुश हैं, हमारे तो घर का माहौल ही बदल गया.... बहुत प्यारी सी रौनक आ गयी है हमारे घर मे तो... और आज मैत्री बिटिया ने इतनी स्वादिष्ट खीर बनायी कि मै तो चम्मच चाटता रह गया.... साक्षात् अन्नपूर्णा है मैत्री... 


ससुराल पक्ष के एक अहम सदस्य यानि मैत्री के ससुर जी के मुंह से मैत्री की इतनी तारीफ सुनकर जगदीश प्रसाद मन ही मन फूले नही समा रहे थे, जो जगदीश प्रसाद थोड़ी देर पहले तक बहुत जादा भावुक थे और ऐसा लग रहा था मानो अभी रोये के तभी रोये... वो बेहद खुश थे.... और इसी खुशी मे सराबोर होकर वो बोले- भाईसाहब आप सब का प्यार और आशीर्वाद ऐसे ही मेरी गुड़िया पर बना रहे और वो ऐसे ही सबकी उम्मीदो पर खरी उतरती रहे..... बाकि एक पिता को और क्या चाहिये.... 


जगदीश प्रसाद की बात सुनकर विजय बोले- बिल्कुल भाईसाहब.... सब अच्छा ही होगा अब, अच्छा ये बताइये कि बहन जी कहां हैं?? 


जगदीश प्रसाद ने कहा- यहीं हैं और सबसे बात करने के लिये परेशान हो रही हैं... 


जगदीश प्रसाद की बात सुनकर विजय हंसने लगे और बोले- जरा बहन जी को फोन दीजिये... 


विजय के कहने पर जगदीश प्रसाद ने अपनी पत्नी सरोज को फोन दे दिया... उनके फोन पे आने पर विजय ने कहा- नमस्ते बहन जी... कैसी हैं आप... 


सरोज ने कहा- मै ठीक हूं भाईसाहब.... 


इससे पहले कि सरोज कुछ बोल पातीं विजय ने कहा- बहन जी ये लीजिये बबिता से बात कर लीजिये.... 


फोन हाथ मे लेने पर बबिता ने सरोज से कहा- नमस्ते बहन जी.... 

सरोज ने भी बबिता से नमस्ते करी और कहा- बहन जी वो हम सोच रहे थे कि मैत्री को पग फेरे के लिये चौथी पर विदा करा लेते अगर आप लोगो की अनुमति हो तो... 


बबिता ने कहा- अरे बहन जी इसमे अनुमति की क्या जरूरत आप तो आदेश करिये, मैत्री तो मैत्री जतिन भी अब आपका बेटा है... और मै भी यही सोच रही थी कि चौथी पर मैत्री को आप सबके पास भेज दूं क्योकि उसके दो दिन बाद पंचक लग जायेंगे तो फिर वो सात आठ दिन यहां से नही जा पायेगी, आप चौथी पर विदा करा लीजिये... अभी दो दिन रह लेगी मैत्री वहां पर बाकि बाद मे अच्छा सा मुहुर्त देखकर यहां से हम भेज देंगे तो आराम से पंद्रह बीस दिन एक महीना रह लेगी आप सबके पास.... 


जो बात सरोज कहना चाह रही थीं बिल्कुल वही बात बबिता के मुंह से सुनकर सरोज खुश हो गयीं और खुश होते हुये बोलीं- हां बहन जी बिल्कुल सही कह रही हैं आप... चौथी पर राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि चारो लोग मैत्री को लेने आयेंगे, इसी बहाने सब आप सब से मिल भी लेंगे....


बबिता ने कहा- अरे वाह... यो तो बहुत अच्छी बात है कि चारो लोग आयेंगे और बहन जी उनसे कह दीजियेगा कि थोड़ा टाइम लेकर आयें... उन्हे हम लंच के बाद ही जाने देंगे... 


इसके बाद आपसी सहमति से ये तय हो गया कि आज से दो दिन बाद यानि चौथी के दिन मैत्री पगफेरे के लिये दो दिन के लिये अपने मायके जायेगी.... 


क्रमशः