==================
स्नेहिल नमस्कार
मित्रों
कामना अधिकतर मेरे पास आती रहती है ,उसे लगता है कि मैं उपदेश न देकर उसे बातों बातों में ऐसी बात कह जाती हूँ जो उसके लिए लाभप्रद होती है | मुझे लगता है हम सबसे ही कुछ न कुछ लेते हैं, सीखते हैं | कोई एक ही नहीं, हमें अच्छी बातें सिखाने वाले अनेक होते हैं | वह बात अलग है कि हम सीखना चाहते हैं अथवा नहीं |
कामना के मन में अपने नाम के अनुसार बहुत अच्छी कामनाएँ हैं | वह सबका हित चाहती है, मैंने उसे कभी किसी के लिए गलत शब्द बोलते हुए नहीं सुना लेकिन यदि उसे किसी की बात चुभ जाती है तो वह इतनी गहरी चुभती है कि उसके भीतर छेद कर जाती है |
"दीदी ! जब हम सबको प्रेम करते हैं तो हमें प्रेम ही मिलना चाहिए न ?" एक दिन उसने मुझसे बातों बातों में पूछा |
"हाँ,बिलकुल---"और मैं चुप हो गई | मैंने उससे यह नहीं पूछा कि तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?
उसका मूड खराब हो गया और वह गुमसुम होकर बैठ गई |
"क्या हुआ कामना ? तुम कुछ बोल ही नहीं रही हो?" जब वह काफ़ी देर तक चुप्पी लगाए बैठी रही, मुझे पूछना ही पड़ा |
पहले वह काफ़ी देर तक कुछ नहीं बोली मैंने उससे फिर वही प्रश्न दुहराया |
"आप मेरी बात का जवाब ही नहीं दे रही हैं तो क्या पूछूं आपसे ?"
"ओह ! तो कामना रानी नाराज़ हो गई हैं अपनी दीदी से ?"मैंने उससे मुस्कुराकर पूछा |
वह बीस वर्ष की हो गई है लेकिन अभी बच्ची सी है | वैसे मेरे सामने तो वह बच्ची है ही, अपनी सोच व हरकतों से वह बच्ची ही बन जाती है |
"फिर से बताओ,तुम क्या कह रही थीं और क्या जानना चाहती थीं ?"
"आपको पूछा तो कि जब हम सबको प्यार करते हैं तो दूसरे हमें प्यार क्यों नहीं कर पाते ?"
"ऐसा तो कोई नहीं है जो तुम्हें प्यार न करे, ऐसा क्यों कह रही हो?"
"हमें तो ऐसा ही लगता है |"उसके चेहरे पर उदासी की परछाई देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा|वह सच में ही एक प्यारी लड़की है फिर उसे ऐसा अहसास क्यों?
"लगने और होने में बहुत फ़र्क होता है बेटा, कभी-कभी हम बिना दूसरों की बात की तह तक जाने बिना ही अपने आप कुछ का कुछ सोच लेते हैं फिर उसका प्रभाव हमारे मनोमस्तिष्क पर पड़ता है और इतना गहरा पड़ता है कि हम अपनी सोच के मद्देनज़र अपना ही मन खराब कर लेते हैं | इससे जीवन में मुश्किलें ही बढ़ती हैं | हम अपने स्वास्थ्य को खराब तो करते ही हैं, अपने रिश्तों को भी खराब कर बैठते हैं | जीवन में कटुता आती है सो अलग और हम एकाकी महसूस करने लगते हैं |
"आज किसी के साथ कुछ हुआ है क्या तुम्हारा?"मैंने उसके अंदर की बात उगलवाने की कोशिश की |
"नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं पर पापा जितनी छूट भाई को देते हैं, हमें क्यों नहीं देते? क्या हम खराब हैं ?"
ओह! तो यह बात है !
"वो भाई से ज्यादा तुम्हारा ध्यान रखते हैं इसीलिए ----"मैंने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा |
"फिर भाई और चिढ़ाता है हमें, मम्मी भी कुछ नहीं बोलतीं |"
"तुम पगली हो, घर में ऐसी छोटी-छोटी बातें तो होती ही रहती हैं, इनका मतलब यह थोड़े ही होता है कि हमें कोई प्यार नहीं करता या हमारी परवाह नहीं करता |"
"तुम भी तो अपने छोटे भई को इतना प्यार करती हो तो वह तुम्हें क्यों नहीं करेगा ? मैंने कहा न कि लगने और होने में बहुत फ़र्क होता है |"
"देखो, हमारे जीवन में विचारों का बहुत महत्व है, जैसा विचार हमारे पास होता है, हमारी वैसी ही भवन बनने लगती है |"
मैंने महसूस किया कामना कुछ सोच में पड़ गई थी |
*हम जैसी भावना रखते हैं और उसी तरह की सोच भी बन जाती है | हमें तो अपने भीतर झाँककर देखना चाहिए | अगर हम किसी से प्यार करते हैं तब वह हमसे नफ़रत कैसे करेगा? भाई तुम्हें चिढ़ाता है बस "
"और मम्मी ,पापा?" कामना के मुँह से फट से निकला |
"वो तुम दोनों को देखकर आनंदित होते हैं ,और कुछ नहीं ---"
मैंने ऐसे बच्चों को ही नहीं प्रौढ़ो को भी देखा है जो छोटी-छोटी बातों में परेशान हो जाते हैं और मन ही मन कुढ़ते रहते हैं ,अपना ही दिमाग परेशान करते हैं |इसी प्रकार उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है |
"यही तो रिश्तों का स्वाद है कामना बेटा, जो हर रोज बदलता रहता है, मीठा, नमकीन या खारा, बस ये इस बात पर निर्भर करता है कि, हम प्रतिदिन अपने रिश्ते में मिला क्या रहे है ?*
कामना अब मुझे देखकर मुस्कराने लगी थी | मुझे लगा वह हल्की हो गई है |
"तो अब रिश्ते में क्या मिलाना है यह सोचना चाहिए ? यही कह रही हैं न आप?"
"बिलकुल, यही तो सारी परेशानी का हल है । मिठास मिलाओ फिर देखो ----"
अब हम दोनों बैठे ज़ोर से हँस रहे थे |
आपकी मित्र
डॉ प्रणव भारती