निकी चिड़िया अपने घोंसले में लौटी तो बहुत खुश थी। उसे कहीं से लाल, हरे, पीले और नीले रंग के ऊन के टुकड़े मिले थे। उसने उन टुकड़ों को आपस में गूंथकर एक बहुत सुंदर राखी तैयार की। यह राखी उसके मुंहबोले भाई राजा कबूतर के हाथ पर कितनी सुंदर लगेगी, मन ही मन निकी बहुत खुश थी। तभी सामने के पेड़ से सुरीली कोयल ने आवाज लगाई, 'निकी क्या बात है, बहुत खुश लग रही हो?'
'देखो मैंने राजा के लिए राखी बनाई है' निकी ने उसे राखी दिखाते हुए कहा। 'अरे वाह, यह तो बहुत सुंदर है, लेकिन तुम उसे राखी बांध नहीं पाओगी'। निकी चौंक उठी, बोली, 'क्यों?'
'तुम्हें नहीं पता राजा कहीं चला गया है?' सुरीली ने बताया तो निकी को यकीन नहीं हुआ। वह बोली, 'राजा मुझे बिना बताए कहीं नहीं जा सकता।' 'तुम्हें मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा तो जाकर उसके मित्रों से पूछ लो'। यह सुनते ही निकी तुरंत राजा के मित्र नीटू तोते के घर की ओर उड़ चली। रास्ते में उसे ब्लैकी कौवा मिला। उसने उससे पूछा-'ब्लैकी, क्या तुम्हें राजा का कुछ पता है?' 'वह कहीं चला गया है?' ब्लैकी ने बताया। अनमनी-सी निकी नीटू तोते के पास पहुंची, बोली- 'नीटू, क्या तुम्हें पता है राजा कहां गया है?'
बीटू के मना करने पर निकी की आंखों में आंसू आ गए। पूरी रात वह सो नहीं सकी। उसे दो वर्ष पहले की घटना याद आ गई। एक दिन भूख से व्याकुल निकी एक पेड़ की डाली पर बैठी थी। तभी उसे सामने पीपल के पेड़ के नीचे चावल और बाजरे के दाने बिखरे दिखाई दिए। निकी तेजी से उनकी ओर लपकी। अभी वह दानों तक पहुंची भी नहीं धी कि तभी एक कबूतर ने उस पर झपट्टा मारा और उसे दबोचकर सामने आम के पेड़ की ऊंची डाल पर बैठा दिया। निकी गुस्से में बोली, 'तुमने मुझे खाने क्यों नहीं दिया?' 'वह देखो' कबूतर ने पेड़ के नीचे इशारा करते हुए कहा। निकी ने देखा, पीपल के पेड़ के नीचे कुछ पक्षी शिकारी के बिछाए जाल में फंस गए थे। 'ओह, तुमने आज मेरी जान बचा ली, क्या नाम है तुम्हारा?' 'मेरा नाम राजा है' कबूतर ने कहा 'राजा, आज से तुम मेरे भाई हो,' तब से ही विकी राजा को राखी बांधने लगी थी। वह सोचने लगी, इस बार क्या वह राखी नहीं बांध पाएगी?
अगले दिन रक्षाबंधन था। सवेरे ही निकी राखी लेकर राजा के घर जा पहुंची। उसने सोचा जब भी राजा आएगा, वह उसे राखी बांधेगी। तभी उसे राजा के घर के अंदर से नीटू तोते की आवाज सुनाई दी। वह कह रहा था, 'तुम निकी से मिलना क्यों नहीं चाहते?'
राजा बोला, 'नीटू निकी को देने के लिए मेरे पास कोई उपहार नहीं है।' 'ओह, तो यह बात है।' निकी को सारी बात समझ में आ गई। यह राजा के घर के अंदर जा पहुंची। राजा उसे देखकर सकपका गया। 'राजा, क्या तुम समझते हो कि मैं उपहार के लालच में तुम्हें राखी बांधती हूं? बहन भाई के स्नेह के बीच यह उपहार कहां से आ गया? तुमने मेरे प्राणों की रक्षा की है, इससे बड़ा उपहार क्या होगा?'
'मुझे माफ कर दो निकी' कहते हुए राजा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। निकी ने झट उस पर राखी बांध दी। स्नेह से दोनों के मन भीग उठे।