यशोधरा का नाम सुनते ही दिग्विजय घबराया लेकिन फिर संभलते हुए उसने कहा, "अरे अभी से यह सब मत सोचो। जितने दिन यह सुख मिले उतने दिन तो भोगो। बाद की बातें बाद में देखेंगे।"
कुछ समय इसी तरह बीतने के बाद दिग्विजय ने कहा, "अनन्या अब तुम अपने कमरे में जाओ।"
दिग्विजय के होठों का एक बार फिर से चुंबन लेकर अनन्या वहाँ से अपने कमरे में जाने लगी। जाते समय उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
वह सोच रही थी हवेली की रानी बनने की यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सीढ़ी उसने चढ़ ली है। अब अगली सीढ़ी पर जो बाधाएँ आएंगी, उनसे निपटना होगा। सबसे बड़ी बाधा तो यह बच्चे हैं जो दिग्विजय की जान हैं। दूसरी बाधा उसके बूढ़े माँ-बाप जिन पर वह जान छिड़कता है और तीसरी बाधा उसकी सौतन यशोधरा है। जिसका सबसे बड़ा हक़ तो उसने आज की पहली रात में ही छीन लिया है, जिस पर केवल यशोधरा का हक़ था परंतु आज उसका है। अब तो यशोधरा दिग्विजय की बोरिंग लिस्ट में आ गई है।
अब हर रात उनके लिए जोश से भरी हुई सुहाग रात होगी। अनन्या सोच रही थी कि वह दिग्विजय को खुश करने में अपनी पूरी ताकत लगा देगी क्योंकि उसका असली प्यार तो वह हवेली है जिसे वह दिग्विजय से हासिल करना चाहती है। हवेली मिल जाने के बाद तो वह दिग्विजय को भी नहीं पहचानेगी, क्योंकि उसका सच्चा प्यार तो कोई और ही है। वह जानती थी कि हवेली को अपने नाम करवाना इतना आसान नहीं है। उसे ऐड़ी से चोटी का ज़ोर लगाना पड़ेगा और यह काम जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी पूरा कर लेना चाहिए।
इधर अनन्या के मन में हवेली अपने नाम करने की उधेड़बुन चलती रहती उधर दिग्विजय का मन उससे मिलने के लिए बेकरार रहता। अब तो वे दोनों रोज़ रात का इंतज़ार करने लगे। अनन्या का सबसे प्रमुख काम था बच्चों को जल्दी ही पढ़ा लिखा कर सुलाना और दिग्विजय के माता-पिता को भी जल्दी उनके कमरे में भेज देना। वह बड़े ही प्यार से उन्हें खाना खिला देती और उनके कमरे में ज़रूरत की हर चीज रख देती ताकि उन्हें बाहर आने की आवश्यकता ही ना हो।
उसके बाद रात के चढ़ते ही अंधकार में दोनों की रंगरेलियाँ शुरू हो जातीं। भानु प्रताप और परम्परा दोनों ही अनन्या से बहुत खुश थे। वह भोले उसकी चालबाजी से बिल्कुल अनजान थे। वे तो सोचते थे कि अनन्या उनका कितना ख़्याल रख रही है। इस तरह 15 दिन बीत गए।
जब भी यशोधरा का मायके से फ़ोन आता, उसे यही ख़बर मिलती कि यहाँ सब कुछ बिल्कुल ठीक चल रहा है।
यशोधरा के पिता की तबीयत तो बिगड़ती ही जा रही थी इसलिए उसका जल्दी वापस आना मुश्किल था। अनन्या इसी समय का भरपूर फायदा उठा रही थी। देखते-देखते दो माह बीत गए।
अब तक तो अनन्या ने दिग्विजय को अपना दीवाना बना लिया था। वह हर रात उसे शराब पिलाती और उसे दिखाने के लिए ख़ुद भी दो घूँट पी लेती जबकि दिग्विजय ने इससे पहले कभी शराब को छुआ तक नहीं था। शराब की हल्की-हल्की खुमारी में वे दोनों पूरी रात गर्म जोशी में बिता देते। दिग्विजय को शराब पिला कर अनन्या उसे नशे का आदी बना देना चाहती थी ताकि शराब के नशे में वह हवेली अपने नाम करवा सके।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः