अब आगे,
राजवीर के पिता विनोद जी की बात सुन कर, उन के पिता रघुवीर जी ने अपनी बहु मानसी जी से कहा, "अच्छा तो आज मेरा छोटा पोता अभिमान और पोती तनवी घर पर ही है तो जरा मुझ से भी मिलवा दो क्योंकि पिछले एक हफ्ते से तो मै अपने दोस्त से मिलने उस के घर पर गया था तो बुलाओ उन दोनो को..!"
अपने ससुर रघुनाथ जी की बात सुन कर, अब उन की बहू मानसी जी ने अपना सिर हां मे हिला दिया और फिर वहा से अपने सौतेले छोटे बेटे अभिमान के कमरे की तरफ जाने लगी..!
तो अब राजवीर के दादा रघुवीर जी ने कुछ सोचते हुए अपने इकलौते बेटे विनोद जी से कहा, "और ये राजवीर कहां गया हुआ है वो भी अभय के साथ क्योंकि अभय के दादा ने मुझे बताया कि उस का इकलौता वारिस और पोता अभय मेरे बड़े पोते राजवीर के साथ कही गया हुआ है..!"
तो राजवीर के दादा "रघुवीर सिंघानिया" जी और अभय के दादा "अमर प्रताप सिंह" जी बहुत अच्छे दोस्त हैं और वो भी अपने कॉलेज टाइम के और इन्होंने साथ में ही कंपनी की शुरुआत करी थी..!
जो आज भी बिजनेस फील्ड में अपने अपने अलग ही मुकाम पर पहुंच चुकी हैं और इन दोनो का एक और दोस्त था जिस की कार एक्सीडेंट मे उस के दुश्मनों द्वारा मौत हो चुकी थी, पर उस का भी एक इकलौता वारिस यानी उस का पोता अब उन की कम्पनी को संभाल रहा था..!
जैसे राजवीर के दादा "रघुवीर सिंघानिया" जी, अभय के दादा "अमर प्रताप सिंह" जी और एक और दोस्त जो अब इस दुनिया में नही रहे वो तीनो अपने समय के लेकर आज तक अच्छे दोस्त हैं..!
ठीक वैसे ही इन तीनों के पोते भी बहुत अच्छे दोस्त हैं और साथ में ही अपने दादा जी द्वारा चलाई गई कंपनियों को संभाल रहे है और साथ में अपनी अपनी और भी कंपनियों को संभाल रहे हैं..!
अपने पिता रघुवीर जी की बात सुन कर, अब उन के इकलौते बेटे विनोद जी ने अपने पिता रघुवीर जी से कहा, "पापा, वो राजवीर अपनी किसी कॉन्ट्रैक्शन साइड मीटिंग के लिए बनारस गया हुआ है पर मुझे तो इतना ही पता हैं कि वो काम 1 दिन का ही था और अब तो दो दिन होने को आए हैं और ये लड़का अभी तक नही आया है पता नही अब ये क्या करने लग गया होगा..!"
अपने इकलौते बेटे विनोद जी की बात सुन कर, उन के पिता रघुवीर जी ने अपने इकलौते बेटे विनोद जी से कहा, "अच्छा, तो फिर कोई जरूरी काम आ गया होगा क्योंकि वो तो अपने काम के अलावा और किसी चीज से कोई मतलब ही कहा रखता है..!"
अपने पिता रघुवीर जी की बात सुन कर, अब राजवीर के पिता विनोद जी ने अपने पिता रघुवीर जी से कुछ नही बस अपने हाथ में पकड़ी हुई चाय का कप जो उन्होंने अभी पी भी नही थी और अपना अखबार अपने पिता रघुवीर जी के सामने कर दिया..!
वही राजवीर के दादा रघुवीर जी, अपने बेटे विनोद जी के हाथ से चाय का कप ले लिया और अपनी फेवरेट किंग साइज सोफे पर किसी राजा की तरह बैठ गए..!
और अपने दूसरे हाथ में अखबार लेकर पढ़ने लगे, वही उन के बेटे विनोद जी साइड में रखे हुए सोफे पर बैठ गए और अपने फोन मे कुछ देखने लगे..!
अब तनवी की सगी मां मानसी जी, अब अपने सौतेले छोटे बेटे अभिमान के कमरे के दरवाजे तक पहुंच चुकी थी और साथ में उन के हाथ में एक ट्रे भी थी, जिस मे उन की सगी बेटी तनवी के लिए ऑरेंज जूस और सौतेले छोटे बेटे अभिमान के लिए कॉफी रखी हुई थी..!
वैसे तो सिंघानिया परिवार में नोकारो की कमी नहीं थी पर तनवी की सगी मां मानसी जी को अपने परिवार के लिए खुद ही खाना बनाना और उन की पसंद की चीज़े ज्यादा अच्छे से बनाना अच्छा लगता था और साथ में वो घर के लोगो के लिए खुद से ही सारा काम करना पसंद करती थी..!
अब वो, अपने सौतेले छोटे बेटे अभिमान के कमरे का दरवाजा खटखटा रही थी तो कमरे में अन्दर बैठे हुए उन की सगी बेटी तनवी और उन के सौतेले छोटे बेटे अभिमान दोनो ने एक साथ चिल्लाते हुए, अपनी सगी और सौतेली मां मानसी जी से कहा, "मां, अभी थोड़ी देर बाद आना और अभी हम कुछ काम कर रहे हैं..!"
अपनी सगी बेटी तनवी और सौतेले छोटे बेटे अभिमान की बात सुन कर, अब तनवी की सगी मां मानसी जी ने उन दोनो से कहा, "जल्दी से दरवाजा खोल दो, क्योंकि तुम्हारे दादा जी तुम्हे सिंघानिया हॉल में बुला रहे हैं तो अब जल्दी से नीचे आ जाओ, नही तो अगर वो ऊपर आ गए न तो तुम दोनो अच्छे से जानते हो कि तुम्हे अपने दादा जी के गुस्से से बचाने के लिए खुद राजवीर भी घर पर मौजूद नही है..!"
अब तनवी की सगी मां मानसी जी अपनी बात कह कर वहा से चली गई और वही जब तनवी और अभिमान ने अपनी सगी और सौतेली मां मानसी जी की बात सुनी तो दोनो एक दूसरे को देख रहे थे..!
और साथ में तनवी ने अपने सौतेले छोटे भाई अभिमान से कहा, "भाई, जल्दी से इस सब को छुपा दो नही तो दादा जी के गुस्से से हम दोनो को कोई नही बचा सकता है..!"
To be Continued......
हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।