Swayamvadhu - 14 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 14

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स्वयंवधू - 14

उस दिन सुबह...
सब कुछ सामान्य था। हम उस समय गायब होने और राज द्वारा उसकी कलाई पर छोड़े गए निशानों के से सवालों से बचने में कामयाब रहे।
"मैं फिसल गयी और उन्होंने मुझे गिरने से बचाने की कोशिश की और ऐसा ही गया...", उसके इस बहाने पर सब आँख मूंदकर भरोसा कर सकते थे,
"तुम बहुत उपद्रवी हो गई हो!", उसके बड़े भाई ने उसे उसके लापरवाह व्यवहार के लिए खूब डांटा।
आज सुबह से मेरा सब कुछ बिखरने लगा!
हम इस हद तक लड़े कि उसे ठगा हुआ महसूस हुआ, उसने मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की। हुआ ये कि, उसने गलती से मेरे शरीर पर निशान और घाव देख लिए जिन्हें मैं हर किसी से छुपा रहा था। मुझे जिस क्षेत्र में काम करने पर मजबूर किया गया वहाँ ये आम बात थी।
मुझे लगा वह थकी हुई सो रही होगी इसलिए मैं बेपरवाह हो गया और अपनी शर्ट के बिना काम कर रहा था और वहाँ वो नाश्ता लेकर आई जिसे मैंने ही उन्हें ऊपर लाने के लिए कहा था। वह उस सुनहरे पँख के साथ कमरे में दाखिल हुई जिसे विजेता को पूरी प्रतियोगिता के दौरान पहनना था। 
उसने मुझे कुछ पुराने घावों और कुछ ठीक होने वाले घावों से ढका हुआ देखा।
"ये क्या?...", वृषाली ने घबराकर पूछा,
और उस शक्ति का धन्यवाद, मैं उससे झूठ नहीं बोल सका। मैंने अनिच्छा से सच कहा, "हाह! ये वाले उस दिन का है जब सरयू पर हमला हुआ था। उसी रात अस्पताल से वापस आते हुए...", धैर्य से, "-वापसी में 20 ड्र-डीलर ने हम पर अचानक हमला कर दिया, वो हमें ख़त्म करना चाहते थे पर हम (उन्हें खत्म कर) बच निकले।", मैंने कहा,
आश्चर्य से ज़्यादा वो उदास थी, "ज़रूर दर्द दिया होगा ना?",
"क्या?!", मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी।
"...आपने इस बारे में किसी को क्यों नहीं बताया? ...बहुत दर्द हुआ होगा ना?", वह मेरे लिए क्यों चिंतित थी?
(अब राज को पता है कि वह कोई ऐसी है जिसका इस्तेमाल वह मेरे खिलाफ कर सकता है।)
मुझे कमरे के बाहर किसी का आभास हुआ।
"ऐसा नहीं है कि हम शुरूआत से इतने करीब है कि तुम्हारे सामने अपना जीवन परोस दूँ?", मैं कठोर था, (मुझे खेद है लेकिन मुझे ऐसा करना पड़ा ताकि हम करीब ना दिखें।)
इसके साथ ही हमारे बीच पहले जो समझौता हुआ था वह समाप्त हो गया।
वह एक मिनट तक चुप रही और फिर अपनी कांपती आवाज़ में बोली, "मुझे खेद है कि मैं अपने हद से आगे निकल गयी। मुझे अपनी जगह पता होनी चाहिए थी, मुझे खेद है पर इसे मेरी आखरी गलती समझना और मेरे परिवार को कुछ मत करना, प्लीज़।", और वह चली गई।
जब तक मैं घर पर था तब तक उसने कभी मेरी तरफ देखा नहीं। यहाँ तक कि जब उसने मेरे कपड़े निकाले, मेरी फ़ाइल और मेरा दोपहर का खाना तैयार कर ले आई- इतने सारे बातचीत के बाद भी उसने अपनी आँखे नीची रखी। दुख कैसा? जबकि यह अच्छी बात है कि वह नुकसान से कोसों दूर रहेगी। 

दिन का वक्त-
ब्रर्रररर...
"नमस्कार पड़ोसी साहब!", (वही मतलबी आवाज़!) सामने से दीप सागर की आवाज़ आई, वह दूसरों के लिए बुरी खबर है। वह एक रियल एस्टेट एजेंट था। पैसे और लोगों के साथ खेलना उसका शौक।
उनके परिवार ने एक बार मेरे दादाजी की मदद की थी जब वह दिवालिया होने के कगार पर थे। इस वजह से हमें अभी भी उनके साथ अच्छा रिश्ता रखना था। उसकी दादी, अमम्मा की सबसे अच्छी दोस्त थीं। उनके रिश्तों का मान मैंने अब भी रखा था पर ये आदमी उस परिवार का उल्ट चित्रपट था।
"हैलो, कोई है?", उसने फिर कहा,
"ह्म्म्म्म! कारण?", मैं सीधा मुद्दे पर आया,
उसकी तथाकथित छुट्टियाँ अभी ख़त्म हुई थीं और वह पहेली को वापस ले जाना चाहता था। वह इस रात आ रहा था, मुझे बस यह सुनिश्चित करना था कि वह किसीकी भी झलक ना पा सके और पहेली को उसके मालिक को वापस सौंप दे।
"रात आठ बजे सरयू-(!)", मैं कह रहा था तभी,
"सर, मीटिंग का वक्त हो गया है।", विषय आया,
"लगता है कि आप व्यस्त हैं। फिर में सरयू से मिल पहेली को ले जाऊँगा।", बीप, फ़ोन कट गया।
"हम्म...", मैं बिना कुछ और सोचे मीटिंग में चला गया।
मैं इस आदमी के आगमन के बारे में घर पर किसी को सूचित करना भूल गया। मैं भी उसके आने के बारे में भूल गया और हमेशा की तरह घर जाने के लिए निकला। रास्ते में वृषाली के लिए माफी माँगने के लिए केक खरीदकर घर चला गया...जैसे ही मैं घर पहुँचा तो मैंने देखा कि सरयू ने उस आदमी को बाँध रखा था, फिर मैंने देखा वृषाली के फटे हुए कपड़े, हाथ, मुँह और गर्दन पर गला घोंटकर मारने के निशान थे, और उसका स्तन पूरा खून से भीगा हुआ था। सीढ़ियों पर वृषाली के फटे कपड़े बिखरे हुए थे। वह ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रही थी। दिव्या और साक्षी उसे शांत करने की कोशिश कर रहे थे। वह पसीने, आँसुओं और खून से लथपथ थी।
नज़ारा देखकर मुझे समझ आ गया कि क्या हुआ था।

"मेरे वापस आने तक उसे स्टोर रूम में बँद कर आँखों पर पट्टी बाँधकर उसकी खातिरदारी करो!", मैं गुस्से से आगबबूला हो रहा था कि वह उसका अनादर कैसे कर सकता था! मेरे आदमी उसे ले गये।
दूसरे ही दिन फिर से उसे वैसे देख, मेरा सिर भन्ना गया। मैं वृषाली की ओर बढ़ा, मैंने अपना कोट उतार दिया और उसे ढकने की कोशिश की लेकिन वह अचानक आक्रामक हो गई और कोट एक तरफ फेंक दिया। मैं उलझन में था, वह चिल्लाने लगी, वह इसके लिए मुझे दोषी ठहरा रही थी।
"तुमने-तुमने मेरा अपहरण किया...तुमने मेरा अपहरण करके मेरा विश्वास जीता और फिर राक्षस! तुमने मुझे बेच दिया?",
( क्या!?!)
वह गुस्से में ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रही थी।
"...आप ऐसा कैसे कर सकते हो?! अब जब मैं कल के बारे में सोचती हूँ तो वह भी महज एक संयोग नहीं था। यह आपकी योजना थी! पहले मुझ जैसी को फासना और फिर लोगो के सामने फेक देना।", उसकी चिल्लाने कि आवाज़ उसके रोने कि आवाज़ से मिल गई, वह अचानक बड़बड़ाने लगी, "इसके लायक बनने के लिए मैंने क्या किया?", फिर चिल्लाई, "मुझे उसी दिन मर जाना चाहिए था! ...तभी मर जाना चाहिए था!... किसी को मेरी परवाह नहीं थी, मुझे मर जाना चाहिए था!",
उसने मुझे फिर से धक्का दिया और हमारे पास जो कांच का फूलदान था, उसे उठा लिया और उस कांच का फूलदान को तोड़ अपने गले और फेफड़ों को काट आत्महत्या करने की कोशिश की। मैंने तुरंत उसके हाथों से फूलदान छीनना चाहा लेकिन वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी, अंततः उसे रोकने के लिए मैंने उसके गालों पर थप्पड़ मारना पड़ा और लड़खड़ाकर सोफ़े पर गिर गयी।
वह उस समय फूट-फूटकर रो रही थी। उस समय मेरा खून मुझपर हावी हो गया था। मैंने समीर की तरह काम किया, मैंने उसके गालों को आक्रामक तरीके से पकड़ा और आक्रामक तरीके से कहा, "क्या तुम महसूस करना चाहती हो कि असली अपहरण कैसा होता है? वृषाली राय?", वह डर के मारे काँप रही थी लेकिन उसकी आँखों में डर का कोई निशान नहीं दिख रहा था।
"मेरे परिवार से- दू- अप-? मम!", मैंने अपना टाई लिया और उसका मुँह बाँध दिया क्योंकि वह चोटिल होने के बाद भी चीख रही थी। वह भागने की कोशिश कर रही थी और अपने नाखूनों से मेरे कंधे को नोंच रही थी। फिर मैंने अपनी बेल्ट निकाली और उसके हाथ बाँध दिए और सोफे पर पड़ी पहेली के पट्टे से उसके पैर भी बाँध दिया। वह बहुत दयनीय लग रही थी। गाल लाल हो गये, मुँह, हाथ-पैर बँधे हुए थे और कपड़े कि जगह पसीने, आँसुओं, खून और घावों ने ले ली...दूसरो के दया पर...
उसे, फेंके हुए कोट से ही ढाककर उसके बिस्तर पर फेंककर अंधेरे कमरे में बँद कर दिया, "पड़े रहो यहाँ पर!"

बाहर मैंने संघर्ष के निशान देखे। खून के धब्बे सीढ़ियों पर थे। बालकनी के रास्ते पर काँच के टुकड़े और खून थे। मैं नीचे गया।
मैं महसूस कर सकता था कि हर किसी की नजरें मुझ पर थीं। कयाल निर्दोष होने की कोशिश कर रही थी, "सब अपने कमरे में जाओ!",
मैं सीधा स्टोर रूम में की तरफ गया।

सरयू वहाँ से बाहर निकल रहा था।
"ख़ून उसी का था ना?", मैंने सरयू से पूछा,
"हाँ, पर वृषाली के साथ तुमने क्या किया?", सरयू ने धीमी पर गुस्से में पूछा,
"उसने क्या कहा?", मैंने उसे नज़रंदाज़ करने की कोशिश की,
उसने चिल्लाकर पूछा, "तुमने मेरी बहन के साथ क्या किया?",
मैं फट पड़ा, "किसकी कौन सी बहन? किसकी बहन? वो जिसने तुम्हें एक दो हफ्ते पहले ही 'भैय्या' कहा था? तुम नहीं भूल सकते उसे यहाँ लाने का एक ही कारण था और सब सेट होने के बाद कौन किसका भाई और कौन किसकी बहन?",
उसके कंधे पर हाथ रखकर, "तुम्हें आराम कि ज़रूरत है।",
अंदर, "आह!", धड़ाम! थप्प! "बस! और नहीं...", ठोंकना!

मैंने अपना टैबलेट लिया, मैंने वह सब कुछ देखा जो घटित हुआ था।
मैंने देखा, दोपहर को सरयू, साक्षी के साथ अपने चेक-अप के लिए जा रहा था। दिव्या भी आज सुबह आर्य से मिलने गई थी। प्रांजली, सरयू की जासूसी कर रही थी। अंजली और प्रज्ञा भी अपने निजी काम से बाहर थीं। उस समय केवल वृषाली, कायल और सहायक ही बचे थे।

वह शाम 7 बजे बाल्कनी में पहेली के साथ खेल रही थी।
7:15 बजे दीप सागर आया, उसकी मुलाकात मेरे एक सहायक से हुई।
वह ऊपर गया, कैमरा 2 में, वो ऊपर गया पर वृषाली से नहीं मिला, कायल से मिला और उसने उसे नीचे भेजा और कैमरे की तरफ देखकर मुस्कुराई। वो नीचे गई और सागर से मिली और उससे वृषाली का रेप करवाने की साजिश रच रही थी। उसने उसके हाथ में कुछ पकड़ाया भी था। पूरा वक्त वो कैमरा की तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी जैसे मानो मुझे चेतावनी दे रही थी। उसने सभी सहायकों को मुख्य घर से बाहर जाने को कहा और संतुष्ट होकर अपने कमरे में वापस चली गई। उसके बाद सागर अपने कामुक स्वभाव के साथ ऊपर चला गया। वहाँ उसकी आहट से पहेली आक्रामक हो गई और अपने ही मालिक पर हमला कर दिया। वृषाली जो उस समय बाहर की ओर मुँह कर खड़ी थी, मुड़ी और उसने उस पर हमला किया। उसे बीन बैग पर फेंका और पहेली को बालकनी से बाहर फेंक दिया। उसके बिल्ली होने के लिए धन्यवाद, सुरक्षित बच निकली।
जबकि वृषाली भाग्यशाली नहीं रही, वह मेरे सामने इस राक्षस द्वारा पकड़ी गई थी! उसने उसे कुछ खिलाने की कोशिश की लेकिन उसने उसे उगल दिया। उसने उसे धक्का देकर भागने कि कोशिश की लेकिन उसने उसे इकदम से पकड़ा और मेरे कमरे के ठीक सामने ज़मीन पर पटक दिया, "ना-!!" वह दर्द से रोई,
उसने फिर से उसे वह दवा खिलाने की कोशिश की, लेकिन एंगल के कारण मैं यह पता नहीं लगा सका कि उसने वह दवा निगली या नहीं। उसने उसे दोबारा दबाया। वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे वह अपनी आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल कर सके। उसने उसे बाल से उठाया और घसीटता हुआ बीन बैग पर फेक उसका गला दबाने की की कोशिश की। इससे वो ढीली पड़ गयी। उसने फिर उसके कपड़े को सर्ररर से फाड़ा और उसके स्तन पर हाथ फेरा और उसे चाटने की कोशिश की। वृषाली छटपटा रही थी। वह रो रही थी! गिड़गिड़ा रही थी कि उसे जाने दे। तभी उसने उसके गालों में ज़ोर से मुक्का मारा। थोड़े वक्त और संघर्ष के बाद उसे वार करने का मौका मिला तब उसने अचानक उसकी गर्दन पर ज़ोर से मुक्के जड़ दिए, जिससे उसकी पकड़ ढीली हो गई। उसने फिर उसे धक्का दिया लेकिन इस बार भागते समय उसने फूलदान उठाया और उसके सिर पर दे मारा जिससे सीढ़ियों पर हर जगह खून बिखर गया और उसे लेकर सीढ़ियों से गिर गया, वह उसके ऊपर था, उसकी साँसें उखड़ने लगीं।

ठीक उसी समय 7:55, सभी लोग वापस आ रहे थे। सरयू, साक्षी और दिव्या अंदर आये और सागर के नीचे वृषाली को देखा, वे खून से लथपथ थे, जैसे ही उन तीनों ने वह दृश्य देखा, वे उसकी ओर दौड़े।
सरयू ने पहले सुनिश्चित किया कि वह मरा तो नहीं। फिर सुनिश्चित किया कि वह कठोरता से बँधा हुआ हो। लड़कियों ने वृषाली को उठने में मदद की, उस समय बाकी लोग भी वापस आने लगे। उसी वक्त मैं भी पहुँचा। (और मैंने उसके साथ मारपीट की।) अपना सिर पकड़कर।
मैंने देखा सरयू फस्ट एड्स किट लेकर उसके कमरे में गया। (वह पहले अपनी बहन के कमरे में गया?)
टैबलेट एक तरफ फेंक, "बात करने के लिए तैयार?",
वो दर्द से करहा रहा था, "आह! हा--",
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम दर्द में हो या नहीं या तुम मर रहे हो। मैंने तुम्हें आगे ना बढ़ने की चेतावनी दी थी लेकिन तुमने मेरी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया और अब परिणाम भुगतो! तो तुम बोलने के लिए तैयार हो या जब मैं तुम्हारी आँखें या हाथ-पैर फाड़ दूँगा तब बोलोगे?!",
वह डर से काँप उठा और दया की भीख माँगने लगा।
"तुमने उस पर दया नहीं की थी!? उसके साथ तुमने बलात्कार करने की कोशिश की! क्या तुम्हें अंदाज़ा है कि वह एक ही समय में कितनी बार मरी होगी?!"
(जब मुझे अपने सीने में असहजता महसूस होने लगी तो मुझे तुरंत घर चले जाना चाहिए था।)
"मैं...मैं बोलने के लिए तैयार हूँ... वह कायल मैम ही थीं- थी, जिन्होंने मुझे अनुमति दी और डेट ड्रग दिया था...आह-", मैंने उसकी पिटाई बँद करवाई,
"पूरा सच नहीं तो-", मेरे इतना कहते ही वो गिड़गिड़ाते हुए सब उगलने को तैयार हो गया,
"म-मेरे यहाँ आने के पहले मेरा ब्रेकअप हो गया था जिससे मैं चिढ़ा पड़ा था और जब कायल मैम ने मुझसे मज़े कि बात कही- हाह- कही तो मैं अ-अपनी वासना पर काबू नहीं रख सका -हाह- और मुझसे ये गल...गलती हो गई। मुझे जाने दीजिए प्लीज!",
"क्या उसने वह खाया?", मैंने जूते से उसके हाथ को कुचलते हुए पूछा,
"आह! ह-हाँ! नहीं-मुझे नहीं पता- हाह! मैं अंधा हो गया था।",
"इसकी खातिरदारी कर इसे इसके ससुराल छोड़ दो।", जब वह दया की गुहार लगा रहा था तो मैं बाहर जाने लगा।
धम! धड़ाम! चिल्लाने के शोर से बीच,
"नहीं, वृषा, याद है जब तुम्हारा परिवार लगभग दिवालिया हो गया था तब मेरे दादा-दादी ने तुम्हारे परिवार की मदद की थी। याद करो और कैसे मेरे पिता ने तुम्हारा अपहरण होने से कैसे बचाया? इतने अहसान के बदले तुम्हें मुझे छोड़ देना चाहिए!",
"ऐसा क्या?",
"हाँ! मुझे छोड़ दो!", वह मुझे अहसान तले दबाना चाहता था,
"इसी कारण तुम जिंदा जेल जा रहे हो। मैंने तुम्हारी जान बख्शी और इस हादसे के बारे में कोई नहीं जानेगा हिसाब बराबर! और अपना घोटाले याद रखना!",
"न-नहीं- मैं! आहह!", वह गला फाड़कर चिल्ला रहा था।

*- वृषा के लॉकेट का रंग हरा हो गया।

मैं ऊपर गया। मैं चाहता था कि मैं अपने व्यवहार के लिए वृषाली से माफी माँगू लेकिन मैं उसका सामना करने कि हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
वहाँ दिव्या मेरा नाम ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए आई। वह मेरी ओर दौड़ती हुई आई और मुझे मुक्का मारने कि कोशिश की।
"आप उसके साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं, जो यहाँ पीड़ित है?!!", वह खुद से बिल्कुल अलग थी,
"...", मैं चुप रहा क्योंकि मैंने ही स्थिति को गलत तरीके से संभाला था।
"वह वही थी जिसे यहाँ आघात सहना पड़ा। उसे ही कष्ट क्यों सहना पड़ा?", वह गुस्से में भड़क रही थी,
"आप उसे सुरक्षित रखने के लिए यहाँ लाए थे ना?... लाए थे ना? लेकिन इसके बजाय आपने क्या किया?
आपने उसका अपहरण किया, उसके परिवार को बंधक बनाकर उसे धमकाया, उसे उसके सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकलने पर मजबूर किया। भले ही आप जानते हों कि वह अत्यधिक अंतर्मुखी है और उसे एन्ज़ायटी है फिर भी वो अपना सब कुछ दे रही है। यहाँ हम सभी ने भी देखा कि वो कितना कुछ झेल रही है, कर रही है।
वह आपके साथ सहज हो रही थी। जब भी वह परेशानी में होती थी तो वह हमेशा आपकी ओर आशा भरी नज़रों से देखती लेकिन... लेकिन आपने उसे क्या दिया? धोखा! रेप!",
वह रुकी और पूछा, "वह 'फिर से' जैसा कुछ कह रही थी। क्या कल ऐसा कुछ हुआ था? उसने आपका कोट पहना हुआ था और उसकी कलाई पर पकड़ने के निशान भी थे। उसका बहाना बहुत बेकार था- फिसलना? 
...मत कहना कि उसके साथ ऐसा दूसरी बार हुआ है?",
वह इस सब के लिए मुझे दोषी ठहरा रही थी। वह सही थी, "मैं उसकी आँखों में देख सकती थी कि वह आप पर कितना भरोसा करती है और कठिन परिस्थितियों में कैसे उसकी नज़रे आपको ढूँढती है! वह आप पर विश्वास करती है! दोस्त बनने कि बकवास! आपको अपने साथी के रूप में पाना उसकी सबसे बड़ी बदकिस्मती है! बेचारी उसे पता नहीं उसके साथ कैसा खिलवाड़ किया जा रहा है।
वह सोचती है कि वह मोटी और बदसूरत है, लेकिन एक दोस्त के रूप में क्या आपने कभी उससे कहा है कि वह बदसूरत और मोटी नहीं है, यह सिर्फ उसके कपड़े पहनने का तरीका है? नहीं, कभी नहीं! मैं महँगे बांड पेपर पर लिखकर दे सकती हूँ! वह कायल और साक्षी की तरह सेक्सी और आकर्षक नहीं है क्योंकि वह प्यारी और मासूम है। यह उसका आकर्षण है! आपने बताया? उसकी पंखुड़ी जैसी आँखे कितनी प्यारी है? उसकी नियति के रूप में क्या आपने कभी उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कुछ किया है? नहीं! आपने सिर्फ अपने तथाकथित बिजलानी फ़ूडज़ के लिए उसकी बुद्धि का उपयोग किया! आपके इस ड्रग एडिक्ट कंपनी को धिक्कार है! जिसने हर किसी की जिंदगी को बर्बाद करने के अलावा कुछ नहीं किया! आपकी भी और अब उसकी भी!",
"दिव्या मुझे लगता है तुम्हें शांत होने की ज़रूरत है।", साक्षी उसे शांत करने आई लेकिन,
"क्या शांत साक्षी? उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि वह सुरक्षित रहे लेकिन क्या हुआ उसके कमरे में कैमरा मिला। हर कोई उसका अपमान कर चला जाना। उसे नौकरानी के रूप में काम करने के लिए मज़बूर करना। उसके साथ लगातार दो बार बलात्कार करने कि कोशिश की गयी! क्या तुम्हें लगता है कि तुम खुद को शांत रख सकती हो? इस प्रकार के नरक से गुज़रने के लिए वह केवल तेईस साल की है, जिसका इससे कोई लेना-देना नहीं है।", वह चिल्लाते-चिल्लाते थक गई थी लेकिन फिर भी मुझे उसकी देखभाल ठीक से ना करने के लिए मुझे कोसती रही।
मुझे थोड़ी ख़ुशी हुई कि उसकी दोस्ती अच्छे लोगों से हुई जो उसके लिए हर किसी के लिए लड़ने को तैयार थे।
"क्या बस इतना ही कहने वाले थी? अगर हो गया तो जाओ।", मैंने उसे जाने के लिए कहा, वह अभी भी मेरा सामना करने की कोशिश कर रही थी, साक्षी उसे अपने साथ अंदर ले गई और बाकी लोग अपने कमरे में वापस जाने लगे।
सरयू मेरे पास आया।
"सभी को उनके कमरे में रात का खाना परोसा जाना चाहिए।", मैंने उससे कहा,
"ठीक है।", उसने जाने के बजाए कहा, "अगर पछतावा हो रहा है तो जाकर माफी माँग लो। वो तुम्हें माफ कर देगी।",
"...", मुझमें उसका सामना करने की हिम्मत नहीं थी।
"क्या? मत कहना कि तुम उससे मिलने से डरते हो?-", मेरा चेहरा सारी कहानी कह रहा था, वह मुस्कुराया और आगे बढ़ गया।
मैं बालकनी में गया और बीन बैग पर बैठ गया, जहाँ कुछ समय पहले उसके साथ ज़बरदस्ती करने का कोशिश की गई थी। तारों से भरे आकाश को देखने के लिए यह उसकी पसंदीदा जगह थी। मैंने उसे नीचे दबाने के निशान देखे। यह विनाशकारी था।
मैं 3 बजे तक रुका वृषाली के कमरे के बाहर गया, कपड़े के फटे टुकड़े अब भी फर्श पर बिखरे हुए थे। मैंने बड़ी हिम्मत कर दरवाज़ा खटखटाया पर कोई जवाब नहीं आया। सामने से कोई आवाज़ नहीं आने पर मैंने मान लिया कि वह मुझे अनदेखा कर रही थी या सो रही थी? मैंने उससे कल माफी माँगने के बारे में सोचा।

सुबह मैंने फिर उसका दरवाज़ा खटखटाया, उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने देखा कि जो कोई भी दरवाज़ा खटखटाता, वह कभी जवाब नहीं देती।
8 बजे थे, अब बहुत देर हो गई थी। मैंने देखा कि मेरा लॉकेट हरा हो गया। इस परिवार में हरा रंग यह दर्शाता है कि हमारी नियती की चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। मैंने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की वह बंद था। मेरे पास दरवाज़ा तोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैं दरवाज़ा तोड़ कर अंदर गया और देखा वृषाली वहाँ फर्श पर गिरी हुई थी।
मैं उसे वहाँ बेजान पड़े देख कर हिल गया। मैं उसके पास गया और उसे देखा, वह ठंडी, बेजान थी। मैं उसे कितना भी बुलाऊँ या हिलाऊँ, वह बिल्कुल भी प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। वह अभी भी कल के फटे कपड़ों में थी। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाकर ढक दिया और राधिका को तुरंत आने के लिए कहा।
मैंने सरयू को फोन किया और कहा, "अभी के अभी हीटर और हॉट पैड लाओ!",
जबतक वह आ रही थी तब तक मैं किसी तरह उसके शरीर का तापमान सामान्य करने में कामयाब रहा। राधिका अंदर आई और मैं उसे सब कुछ बताकर कमरे से बाहर चला गया। मैं बमुश्किल अपनी भावनाओं पर काबू पा सका। (मैं इतना चिंतित क्यों हूँ?)
"यह समझ नहीं आ रहा कि यह भावना क्या है?", सरयू फिर वही सब बकवास मेरे दिमाग में डालने आया,
"देखो सरयू तुम, आर्य और दिव्या जो भी कहो, उसे जा-", राधिका बहार आई,
"क्या हुआ?", मैंने पूछा,
उसने कहा, "मैंने कुछ परीक्षण किए हैं...मेरा प्रशिक्षु जल्द ही किसी भी समय रिपोर्ट लाता होगा। फिलहाल के लिए सर मैं इतना कह सकती हूँ कि वह वह बहुत लंबे समय तक ठंड के संपर्क में रहने के कारण उसे बुखार हो गया, यह अच्छा था कि आपने उसे गर्म कर दिया था, लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा, मौसम वास्तव में बहुत ठंडा है और हीटर का उपयोग करने की इतना अच्छा नहीं की रहेगा।", वह हमें डरा रही थी,
"तो हमें क्या करना चाहिए?", सरयू ने पूछा,
"मैम...मुझे रिपोर्ट मिल गई! इसमें कहा गया है कि उसे नशीली दवा दी गई थी जिससे वह बेहोश तो नहीं होगी पर उसके शरीर के सारे अंग काम करना बंद कर देंगे।", उसके सहायक ने कहा,
"काम करना बंद कर देंगे?", सबने हैरानी से कहा,
"ओह, इसका इस्तेमाल लोगो को नीचे से ठगने के लिए किए जाता है। इससे दुष्प्रभाव हो सकता हैं।", डॉक्टर ने कहा,
('दुष्प्रभाव'?)
"क्या वह ठीक हो जाएगी?", दिव्या ने पूछा,
"बेशक। मैंने पहले ही सर पर विभिन्न प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल देखा है। यह बिल्कुल सामान्य ड्रग्स है। इसने उपयोगकर्ता को सभी चीजें याद रखने के लिए मज़बूर करता है, लेकिन उसके पूरे शरीर को पक्षाघात या नींद पक्षाघात की तरह सुन्न कर देता है। यही कारण होगा वो गिरने के बाद उठ नहीं पाई और आपने कहा उसके साथ...", राधिका कह रही थी,
"तो आपका अगला कदम क्या है?", कायल हमारा मज़ाक उड़ाने आई, "बस जाओ और उसे एक बच्चे की तरह लाड़ करो? 'ओह मेरी प्यारी वृषाली क्या तुम ठीक हो?' बस बड़े हो जाओ यह जीवन का हिस्सा है!",
वहाँ मैंने पहली बार साक्षी को गुस्सा होते देखा, "ठीक है हम करेंगे, क्योंकि हर कोई तुम्हारी तरह वैश्या नहीं है जो किसी का भी चूस ले।",
(यह गजब था! इन अमीर लोगों के पास बोलते समय फ़िल्टर नहीं होता क्या?), राधिका के सहायक के मन के विचार।
कायल लड़ने के लिए तैयार थी।
"माफ कीजिएगा पर मेरे मरीज को आराम की ज़रूरत है। अगर आप नहीं चाहती आपकी अभद्रता बाहर जाए तो कृपया यहाँ से जाइए।", राधिका ने कहा,
कायल रुकना नहीं चाहती थी। उसका सहायक और मैनेजर उसे तानकर वहाँ से ले गए।

"तो अब वृषाली के बारे में क्या?", दिव्या ने पूछा,
"मैं उसके दर्द को कम करने के लिए उसे इंजेक्शन और कुछ अन्य दवाएँ दूँगी। वह ठीक हो जाएगी लेकिन अगर उसकी नियति चाहे तो वह तेज़ी से ठीक हो सकती है। अगर वो चाहे तो...", सबकी नज़रे मुझपर थी,
द-दबाव डालने पर मैंने कहा, "जो भी आवश्यक होगा मैं करूँगा।", 
उसने जो प्रक्रिया अपनाई उससे हमें पुष्टि हुई कि यह बलात्कार का असफल प्रयास था। उसके शरीर पर अभी भी उस आदमी द्वारा छोड़े गए निशान थे। सब कुछ हो जाने के बाद, हर कोई वहाँ से चला गया ताकि वह अच्छे से आराम कर सके।
राधिका मेरे साथ वृषाली के जागने का इंतजार कर रही थी।
"उसका गला बेरहमी से घोंटा गया था। उसे ठीक होने में एक-दो हफ्ते लगेंगे।"
मैंने उसके गर्दन, हाथ और पैर पर नज़रे दौड़ाई, उस पर बाँधने की वजह से नीले निशान थे और हल्के चोंटे थी। उसके चेहरे पर मुक्के के निशान थे और मुँह भी थोड़ा छिल गया था। राधिका का कहना था कि उसके शरीर में खरोंच के निशान थे। उसे इसे खोलने के लिए संघर्ष करना पड़ा होगा.. मैं जानता था कि कुछ देर बाद ही सरयू ने उसे खोल दिया होगा।
वह शांति से सो रही थी, हम तापमान को कम करने के लिए ठंडे तौलिये का उपयोग नहीं कर सकते, यदि हम इसका उपयोग करते हैं तो वह ठंड़ से काँपने लगती थी।
"म्म...मम्मा...", वह नींद में अपने माता-पिता को बुलाती रही।
कुछ ही देर बाद उसे होश आया। उनके चेहरे पर दर्द देखा जा सकता था। राधिका ने उसकी जाँच की और पुष्टि की कि उसे अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं थी। मुझे चैन आया। उसने मेरी ओर देखा और अपना चेहरा घुमा लिया। यह कड़वा था लेकिन मैं इसका हकदार था। राधिका ने उसे खाने के लिए कहा लेकिन वह मना करती रही। वह ज़रा सी स्पर्श से चौंक रही थी। अंततः राधिका उसपर दबाव ना डालकर उसे आराम करने को कहा। हम बाहर चले गए। सरयू के बहुत कहने पर उसने थोड़ा कुछ खाया, फिर छोड़ दिया।

दो तीन दिन बीते...
वह लगभग पूरी तरह ठीक हो गई थी सिवाय उसके गले के। इन दिनों के बीच हमारी मुलाकात का समय केवल तब होता था जब उसे आधी रात को दवाएँ लेनी होती थीं। कारण- मैं उसके ठीक बगल मेरा कमरा था। यह दवा उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए थी।
इसके बाद भोज की मेजबानी की क्षमता को देखने के बजाय सोशल मीडिया के प्रभाव से यह गायन प्रतियोगिता की ओर रुख हो गया। लोकप्रियता देखकर हर एक राउंड जनता के चुनाव पर छोड़ दिया गया था। मैं प्रतिस्पर्धा के प्रवाह को नहीं रोक सकता क्योंकि सोशल मीडिया पर साझा की गई हर चीज़ के साथ बिजलानी फ़ूडज़ के शेयर ऊँचे होते जा रहे थे। जब तक कायल को मदद नहीं मिलती, तब तक उसमें मेरे खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं।
"और बतकिस्मती से उसके पास वो मदद है। बस इसे उसके प्रिय पेय में मिलाना सुनिश्चित करना और जादू देखना।", अधीर ने कहा,
-अधीर अपराध में समीर बिजलानी का दाहिना हाथ था।
"उसका गला वैसे ही घुटा हुआ है। उसके साथ ये ज़्यादा नहीं हो जाएगा?", कायल ने पूछा,
अधीर ने उसके मुँह पर दवा कि शीशि फेंककर कहा, "मुझे याद नहीं कि मैंने तुम्हें प्रश्न करने की अनुमति दी थी?",

सभी ने वृषाली से जल्दी अभ्यास शुरू कर दिया। वृषाली के लिए, वो तैयारी के लिए तैयार नहीं थी। उसे उसका गाना दिया गया था लेकिन वह रोमांटिक नहीं था...एक अनुचित गीत की तरह जो... जैसे अपना शरीर बेचना चाह रही हो... इतना ही! इसलिए मैंने नए फोन से एक फर्जी अकाउंट बनाया और कायल को टैग करते हुए उसके लिए गाने चुनने के लिए ए.आई का उपयोग करने का सुझाव दिया। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह वायरल हो गया और अब सबके गाने का चयन ऐसे ही हो रहा था।
दिव्या को एक रैप गाना मिला, जो उसकी पसंद के अनुरूप था, "याय!", उसकी खुशी भरी चीख।
साक्षी को सॉफ्ट गाना मिला, जबकि कायल को बीट सॉन्ग मिला।
अंजली को वन-ब्रेथ गाना मिला, प्रांजली को लोक गीत, प्रतिज्ञा को सुरक्षित क्षेत्र मिला इसका मतलब था कि उसे बिल्कुल भी गाना की ज़रूरत नहीं।
(वाह! क्या किस्मत है। मुझे भी ऐसी ही किस्मत चाहिए। मैं भी नहीं गा सकती।) उसने बटन क्लिक किया, एक क्षण बाद यह गणना करने लगा, (!), उसे शैली नहीं बल्कि गाना ही मिला और यह xxx गाना था जिसमें अधिक अश्लीलता थी। वह तबाह हो गई थी।
जब वह खाँसी, सर्दी और दर्द से जूझ रही थी, सभी ने अपनी तैयारी शुरू कर दी। दो दिन के बाद केवल एक सप्ताह बचा था। उसने अपनी कर्कश आवाज़ के साथ अभ्यास करने का प्रयास किया। उसे सलाह दी गई कि वह अपने गले पर दबाव ना डाले। उस दवा के दुष्प्रभाव के रूप में उसके गले को नुकसान हो सकता था। दिव्या, साक्षी उर पहेली भी उसके लिए ओवरप्रोटेक्टिव हो गई थीं। वह बहुत अच्छी तरह से ठीक हो रही थी लेकिन एक चीज़ बदल गई थी। वह मुझसे बच रही थी। उसने सबके साथ खाना बँद कर दिया और सरयू, दिव्या और साक्षी के अलावा किसी से बिल्कुल भी बातचीत नहीं करती और उनसे भी हद से ज़्यादा बातचीत नहीं करती। उसने खुद को सबसे अलग कर लिया, उसने सिर्फ पहेली के लिए फिर खाना शुरू किया जब पहेली ने उसके सामने रोकर अपना खाना डाला तब उसने पहेली से रोकर माफी माँगकर खाना शुरू किया।
वह गाने के लिए तैयार थी लेकिन यह अनुचित गाना गाने में उसे काफी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसने सरयू से बुनियादी शिक्षा प्राप्त की। सरयू को बचपन से ही बटलर बनना सिखाया गया था। उसने इसे पाँच दिनों तक सीखा और यह अभ्यास का आखिरी दिन था। अभ्यास के अंतिम दिन के रूप में सभी को एक साथ इकट्ठा होना था और अभ्यास करना था कि वे किस पैटर्न में प्रदर्शन करेंगे। उनके कपड़े, मेकअप, बाल और उनके द्वारा प्रस्तुत संगीत वाद्ययंत्र, कलाकार, सब कुछ।
वे कड़ी मेहनत कर रहे थे और विश्राम का समय हो गया था। हर कोई अपना कौशल दिखा रहा था और ब्रेक के बाद दो लोंगो के बाद वृषाली की बारी थी।
अब गाने कि पारी प्रतिज्ञा की थी। वृषाली ने पानी पिया, प्रतिज्ञा गाने बैठ गई। उसने गाना शुरू किया। उसकी हर एक सुर सही लग रहे थे तभी लगातार खाँसने की आवाज़ आई। सबने उसकी तरफ देखा। सभी को लगा कि वह घबरा गई थी लेकिन उसका खाँसना बँद नहीं हुआ। सबको उसकी चिंता हो रही थी तभी उसके मुँह से खून टपकने लगा। वह वहाँ से भागने के लिए उठ खड़ी हुई। उसे खून की उल्टी हो रही थी और लड़खड़ा गई। वह होश खोने लगी गिरने से पहले मैंने उसे पकड़ लिया। मैं सीधे तौर पर नहीं सोच रहा था, मैं बस उसे अस्पताल ले गया और वार्ड के बाहर उसके उल्टी के खून से लथपथ चिंतित होकर इंतज़ार करने लगा। पीछे-पीछे सरयू, दिव्या और साक्षी भी दौड़ते हुए आये।
वृषाली का इलाज दो घंटे तक चला। राधिका भारी कंधे के साथ बाहर आई। उसके चेहरे पर थकान और चिंता साफ दिख रही थी। वह मेरे सामने खड़ी हो गई और मुझे घूरकर देखने लगी।
(अब क्या?...)