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मैं ही मैं हूँ आप कुछ भी नहीं

मैं ही मैं करूंगा 

नेताओं की प्राथमिकताएँ और जिम्मेदारियाँ: एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण

"वो पुल कौन उद्घाटित करेगा? वो स्कूल के बच्चों से बात कौन करेगा? वो मंदिर में हजार दिये कौन जलाएगा? वो ट्रेन को झंडी कौन दिखाएगा? वो वैक्सीन किसी नेता के नाम से चलेगी न? वो पेड़ की डंडी पर कौन लेबल लगाएगा? फूल आ गया पहला, कौन तोड़ेगा?" इन सभी सवालों का जवाब है "सिर्फ मैं।"

नेताओं की यह स्थिति हमारे समाज में एक आम दृश्य बन चुकी है। वे हर जगह दिखते हैं, हर कार्यक्रम में, हर उद्घाटन में, हर समारोह में। लेकिन जब जिम्मेदारियों की बात आती है, तो वे अक्सर पीछे हट जाते हैं। "अधिकार सब मेरे हैं, ज़िम्मेदारी सब आपकी" यह उनका नारा बन चुका है।

नेताओं की प्राथमिकताएँ अक्सर उनके व्यक्तिगत लाभ और राजनीतिक फायदे पर केंद्रित होती हैं। वे उद्घाटन समारोहों में भाग लेने, रिबन काटने, और फोटो खिंचवाने में अधिक रुचि रखते हैं। यह सब दिखावे के लिए होता है, ताकि जनता को यह लगे कि वे काम कर रहे हैं। लेकिन वास्तविकता में, वे अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं।

उदाहरण के लिए, जब कोई नया पुल बनता है, तो नेता सबसे पहले उद्घाटन करने के लिए पहुँचते हैं। वे रिबन काटते हैं, भाषण देते हैं, और मीडिया में अपनी तस्वीरें खिंचवाते हैं। लेकिन जब पुल की मरम्मत की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों और इंजीनियरों पर डाल दी जाती है।

इसी तरह, जब कोई नया स्कूल खुलता है, तो नेता बच्चों से मिलने और उनसे बात करने के लिए पहुँचते हैं। वे बच्चों के साथ फोटो खिंचवाते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे शिक्षा के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब स्कूल की सुविधाओं की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन और शिक्षकों पर डाल दी जाती है।

मंदिरों में हजार दिये जलाने का काम भी नेता करते हैं। वे धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे धर्म के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब मंदिर की देखभाल और रखरखाव की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी मंदिर प्रशासन और भक्तों पर डाल दी जाती है।

ट्रेन को झंडी दिखाने का काम भी नेता करते हैं। वे नई ट्रेन सेवाओं का उद्घाटन करते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे परिवहन के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब ट्रेन सेवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी रेलवे प्रशासन और कर्मचारियों पर डाल दी जाती है।

वैक्सीन का नामकरण भी नेताओं के नाम पर होता है। वे वैक्सीन कार्यक्रमों का उद्घाटन करते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे स्वास्थ्य के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब वैक्सीन की उपलब्धता और वितरण की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी स्वास्थ्य प्रशासन और चिकित्सा कर्मचारियों पर डाल दी जाती है।

पेड़ की डंडी पर लेबल लगाने का काम भी नेता करते हैं। वे वृक्षारोपण कार्यक्रमों का उद्घाटन करते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे पर्यावरण के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब पेड़ों की देखभाल और संरक्षण की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी पर्यावरण प्रशासन और नागरिकों पर डाल दी जाती है।

फूल का पहला तोड़ने का काम भी नेता करते हैं। वे बागवानी कार्यक्रमों का उद्घाटन करते हैं, और यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे प्रकृति के प्रति कितने समर्पित हैं। लेकिन जब बागवानी की देखभाल और संरक्षण की बात आती है, तो वे कहीं नजर नहीं आते। यह जिम्मेदारी बागवानी प्रशासन और माली पर डाल दी जाती है।

नेताओं की यह स्थिति हमारे समाज में एक गंभीर समस्या है। वे अपने अधिकारों का उपयोग तो करते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं। यह स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक जनता जागरूक नहीं होगी और नेताओं से उनकी जिम्मेदारियों का पालन करने की मांग नहीं करेगी।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि नेताओं की प्राथमिकताएँ और जिम्मेदारियाँ असंतुलित हैं। वे अपने अधिकारों का उपयोग तो करते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं। यह स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक जनता जागरूक नहीं होगी और नेताओं से उनकी जिम्मेदारियों का पालन करने की मांग नहीं करेगी।