Kukdukoo - 18 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 18

Featured Books
Categories
Share

कुकड़ुकू - भाग 18

अगली सुबह रघु स्कूल जाने के लिए तैयार होकर जैसे ही घर से बाहर आया तो उसने देखा की शिल्पा साइकिल लेकर आंगन मे खड़ी है। “अरे शिल्पा, तू सुबह सुबह यहां कैसे ! कहीं स्कूल का रास्ता तो नही भूल गई?” रघु ने मजाक करते हुए शिल्पा से कहा।

 “अरे मां ने तेरे लिए गाजर का हलवा भेजा है, ये ले।” कहते हुए शिल्पा ने रघु को टिफिन पकड़ा दिया। 

“अरे वाह, सुबह सुबह गाजर का हलवा, चाची मेरा कितना खयाल रखती है। पर यार मैं तो नाश्ता कर चुका हूं। एक काम करता हूं स्कूल ले जाता हूं , लंच टाइम मे खा लूंगा।” इतना कहते हुए रघु ने शिल्पा की तरफ देखा और कहा–“चाची को मेरी तरफ से थैंक्यू बोल देना।” इतना कहकर रघु कुछ सोचने लगा, फिर उसने कहा– “चल तू रहने दे, मैं स्कूल से आकर खुद थैंक्यू बोल दूंगा।” ये सुनते ही शिल्पा साइकिल पर बैठी और स्कूल के लिए निकल गई।

रघु ने भी टिफिन अपने बैग मे रखा और स्कूल के लिए निकल गया। वो घर से लगभग सौ मीटर दूर पहुंचा ही था की उसको पीछे से अपने कंधे पर किसी का हांथ महसूस हुआ। जब रघु ने पीछे मुड़कर देखा तो मंगल इसके पीछे खड़ा होकर मुस्कुरा रहा था।

 “अबे यार मंगल, तूने तो डरा ही दिया था।” रघु ने मंगल से कहा।

 “अबे क्या यार रघु, इतने मे डर गया !” मंगल ने मुस्कुराते हुए कहा। 

“अरे मैं डरता नहीं हूं , वो तो अचानक तूने पीछे से कंधे पर हांथ रखा तो थोड़ा सा घबरा गया था।” रघु ने मंगल से कहा। 

“चल ये सब छोड़ और जल्दी चल, अगर स्कूल पहुंचने मे देरी हो गई तो मैडम अलग से अपनी क्लास ले लेगी।” रघु ने मंगल की बात सुनी तो उसे हंसी आ गई और फिर दोनो तेजी से चलने लगे।

थोड़ी देर बाद रघु और मंगल जैसे ही स्कूल पहुंचे, उन्हों देखा की कुछ शिक्षक, बच्चों के साथ बाहर खड़े थे। शिक्षकों और बच्चो को ऐसे खड़े देख कर मंगल ने रघु से कहा–“अबे रघु, ये सब लोग ऐसे बाहर क्यों खड़े हैं ! कोई अतिथि वगैरा आने वाले हैं क्या?” 

“पता नही यार, हो सकता है कोई आ रहा हो, चल दूसरे बच्चों से पूछते हैं।” रघु ने मंगल से कहा और दोनो थोड़ा आगे बढ़े ही थे की उन्होने देखा एक शिक्षक उनकी तरफ आ रही है।

“अबे रघु , ये मैडम इधर क्यों आ रही है?” मंगल ने घबराते हुए रघु से पूछा।

 “मुझे कैसे पता होगा भाई, मैं भी तो तेरे साथ ही आया हूं।” रघु ने मंगल से कहा। वो दोनो कुछ बोलते उससे पहले ही शिक्षक उनके पास आई और रघु के कंधे पर हांथ रखते हुए कहा– “अरे बेटा, तुम दोनो कितनी देर से आ रहे हो ! हम सब कबसे तुम दोनो का इंतजार कर रहे हैं।” शिक्षक ने उन दोनो से कहा और दोनो को स्कूल के हॉल की तरफ ले जाने लगी।

जैसे ही रघु और मंगल हॉल मे घुसे की उन्होंने देखा की पूरा हॉल सजाया हुआ है। दोनो समझ नही पा रहे थे की आखिर हो क्या रहा है। तभी उन्होंने आगे स्टेज की तरफ देखा तो उनके गांव के सरपंच, शिक्षकों के साथ बैठे हुए थे। “अरे मंगल वहां स्टेज पर देख, सरपंच जी बैठे हुए हैं।” रघु ने स्टेज की तरफ इशारा करते हुए मंगल से कहा।

दोनो बात कर ही रहें थे की सरपंच जी ने हाथ दिखा कर दोनो को अपने पास बुलाया। रघु और मंगल जैसे ही सरपंच जी के पास गए, वैसे ही सरपंच जी ने दो कुर्सी आगे बढ़ाते हुए दोनो को बैठने का इशारा किया। ये सब होता देख, अब रघु और मंगल को थोड़ी घबराहट होने लगी थी।

थोड़ी देर बाद स्कूल के सभी बच्चे हॉल मे आकर बैठ गए। अचानक सरपंच जी खड़े हुए और माईक अपने हाथ मे लेते हुए कहा– “बच्चो आप सबके लिए मेरे पास एक खुशखबरी है। आज आप सबको अपने घर वालो के साथ हमारे गांव मे खाने पर आना है। आप सबको मेरी तरफ से दावत का निमंत्रण है।” सरपंच ने सभी बच्चों की तरफ देखते हुए कहा।

गांव में लोग दावत पर तभी जाते थे जब किसी को शादी हो। आज पहली बार उन्हे ऐसी दावत का निमंत्रण मिला था। फिर से सरपंच जी ने सबका ध्यान अपनी तरफ करते हुए कहा– “आप ही के साथ पढ़ने वाले हमारे गांव के दो बच्चो ने हमारे गांव का नाम रोशन कर दिया है।” सरपंच जी ने कहा और रघु और मंगल को अपने पास बुलाया। दोनो अपनी जगह से खड़े हुए और सरपंच जी के पास जाकर खड़े हो गए। बच्चो यही है वो दोनो जिन्होंने इतने सालो बाद हमारे गांव का नाम रोशन किया है। बच्चो इन दोनो के लिए जोरदार तालियां हो जाए।” कहते हुए सरपंच जी और बाकी सब तालियां बजाने लगे।

 ये सब देखकर मंगल और रघु भावुक हो गए और उन दोनो की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए। “सुनिए सुनिए, मेरी तरफ ध्यान दीजिए। आज इस खुशी के मौके पर आप सबकी जल्दी छुट्टी हो जायेगी।” प्रिंसिपल ने जैसे ही ये घोषणा की, वैसे ही सभी बच्चे तालियां बजाने लगे। जल्दी छुट्टी का सुनकर सभी बच्चो के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी। उसके बाद प्रिंसिपल ने सबको अपने अपने क्लास मे जाने के लिए बोल दिया। सभी बच्चे और शिक्षक अपनी अपनी क्लासों मे चले गए। सरपंच जी ने थोड़ी देर तक प्रिंसिपल से बात की और फिर वहां से रवाना हो गए।

“अरे यार रघु , क्या सच मे तुम दोनो इतना अच्छा फुटबॉल खेलते हो?” क्लास के बच्चे रघु और मंगल से पूछने लगे। “अब यार, हम लोग खुद अपने मुंह से अपनी तारीफ कैसे करें ! अभी तुमने सुना था ना सरपंच जी ने क्या कहा था।” रघु ने उन सबसे कहा।

 “यार अगर पता होता तो हम लोग भी तुम दोनो का मैच देखने जाते, चलो कोई बात नही फिर कभी देख लेंगे, आगे भी तो मेच होंगे ही।” बच्चो ने रघु और मंगल से कहा। “अरे तुम लोगों को उदास होने की जरूरत नही, तीन दिन बाद हमारे गांव मे फुटबॉल टूर्नामेंट होने वाला है, तब हम दोनो को खेलते हुए देख लेना।” मंगल ने उन बच्चो से कहा। 

जैसे ही उन बच्चो ने ये सुना, उन सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई। “वाह यार अब तो देखने को मिलेगा की तुम दोनो कैसा खेलते हो।” एक बच्चे ने मुस्कुराते हुए रघु और मंगल से कहा। “अरे तुम लोग रघु का खेल देखते तो हैरान हो जाते। इसको तो इनाम मे हजार रूपये भी मिले थे।” मंगल ने रघु के कंधे पर हाथ रख कर मुस्कुराते हुए कहा।

Story to be continued......
Next chapter will be coming soon.....