shankar puntambekar ka smaran in Hindi Book Reviews by Yashvant Kothari books and stories PDF | शंकर पुणताम्बेकर का स्मरण यशवंत कोठारी

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शंकर पुणताम्बेकर का स्मरण यशवंत कोठारी

 शंकर पुणताम्बेकर का स्मरण  

यशवंत कोठारी

यह वर्ष शंकर पुणताम्बेकर  जी का जन्म शताब्दी वर्ष है .उनके लेखन पर विचार के लिए यह लघु आलेख प्रस्तुत है .

२१ मई १९२५ को कुम्भराज गाँव जिला  गुना (म.प्र.)में उनका जन्म हुआ .उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा विदिशा में लेने के बाद पुणे यूनिवर्सिटी से पीएच.डी.ली.लम्बे समय तक वे जलगाँव में एक कालेज में हिंदी के प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष रहे . कई छात्रों   ने उनके सान्निध्य  में शोध कार्य किये .उनको कई पुरस्कार सम्मान मिले.उन्होंने व्यंग्य,लघुकथा , व्यंग्य अमर कोश ,आदि का सृजन किया .उन्होंने व्यंग्य आलोचना के क्षेत्र में  नए आयाम स्थापित किये .

जयपुर आने पर उनके व मेरे प्रकाशक पंचशील प्रकाशन  की दुकान पर उनसे मिलना भी हुआ.

उन दिनों मैं नया नया लेखन  के क्षेत्र  में  उतरा था उन्होंने हरिशंकर परसाई के लेखन के उदाहरणों के साथ मुझे व्यंग्य लेखन के बारे में बताया-

”वह ईमानदार नेता है इसमें व्यंग्य नहीं है लेकिन यदि इसे इस तरह लिखा जाय की वह इमानदार भी है  और नेता भी तो व्यंग्य की स्पिरिट उभर कर आ जाती है.’’उन्होंने और भी कई उदहारण दिए .बाद में उनसे पत्र व्यवहार  भी हुआ .उनकी निम्न पुस्तकों का रसास्वादन मैंने भी किया .

१-केक्टस के कांटे

२-व्यंग्य -अमर  कोश

३-  एक मंत्री स्वर्ग लोक में 

४-जहाँ देवता मरते हैं

५-आखरमार

६-गुलेल

७-कलंक रेखा
शंकर जी ने व्यंग्य –समीक्षा के क्षेत्र में भी अद्भुत काम किया .उनके अनुसार वक्रोक्तियुक्त अभिव्यक्ति व्यंग्य को सशक्त बनाती हैं . शंकर पुणतांबेकर अपने समय के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार रहे हैं। मराठी और हिन्दी, दोनों भाषाओं के साहित्य पर उनकी पकड़ गहरी रही है। खासकर व्यंग्य की विधा में उनका लेखन अतुलनीय माना जाता है। उनकी लघुकथाओं में भी कई बार व्यंग्य की धारा देखने को मिल जाती है।  शंकर पुणतांबेकर की लिखी एक लघुकथा है ‘आम आदमी’ ‘’ जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को दिखाती है.उनके अनुसार व्यंग्य हमारी रुढिवादिता पर चोट करता है ,हमें सुधरने का  मौका देता है.रास्ता दिखाता है .

 
इस पीढ़ी  के काम की तुलना नई पीढ़ी  से ,खुद करे ,पहली या दूसरी किताब आते आते व्यंग्यकार अपनी चमक खोने लगता है.सेल्फ- पब्लिशिंग से सेल्फ -सम्मानित होने  तक का सफ़र जल्दी ही निपट जाता है.अपने पैसे से किताब छपवा ली.अपने पैसे से लोकार्पण करवाया.अपने पैसे से सम्मानित पुरस्कृत हुए और खेल खतम .

एक ही प्रकार की रचनाओं की भरमार है.लिखने छपने की  वो आज़ादी नहीं जो पुरानी  पीढ़ी को मिली,यही मूल फर्क मुझे लगता है.अख़बार में छपना ही लक्ष्य हो गया लगता है,मैं भी यहीं करता हूँ.संपादन के नाम पर सेंसर है ,प्रभारी संपादक अपनी नौकरी बचा कर  कालम छापता है.राजनेतिक व्यंग्य लगभग नहीं छप रहे हैं,विचारधारा  पर लिखने के खतरे उठाना संभव नहीं.

व्यंग्य उपन्यास व्यंग्य कहानी व्यंग्य कविता पर भी उन्होंने काफी काम किया है .सुरेश माहेश्वरी जी ने उनके लेखन को रेखांकित किया हैं .शंकर जी ने व्यंग्य के स्वरुप की गहरी मीमांसा की है. नयी पीढ़ी के व्यंग्यकार शायद उन की बातों से असहमत हो लेकिन बालेन्दु शेखर तिवारी व शंकर पुणताम्बेकर का व्यंग्य आलोचना के क्षेत्र में किया  गया काम मील का पत्थर  है. बड़े शहरों में  रहने वाले बड़े आलोचक व बड़े लेखक -संपादक छोटे कस्बों के लोगों को उपेक्षित रखते हैं उनके समूह का लेखक आलोचक ही श्रेष्ट है .लेकिन पुणताम्बेकर के  अनुसार अखबारी मांग पर लिखा गया व्यंग्य गहराई तक नहीं जाता है .उनके अनुसार व्यंग्य की शैलिगत विवेचना की बहुत  जरूरत है.आलोचना के नाम पर लेखक  के वक्तव्य को आधार बना कर उसकी रचना के टुकड़े या पञ्च लिख देने से व्यंग्य की समीक्षा नहीं होती है .व्यंग्य के उपादानों ,औजारों की और नए सिरे से ध्यान देने की जरूरत है . सब लोग अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलाप रहे हैं हो ; तो  यह आत्मालाप की तरह लगता है.

सुरेश महेश्वरी की पुस्तक व्यंग्य लोचन का इतिहा स की भूमिका में शंकर पुणताम्बेकर ने सही लिखा –

व्यंग्यालोचन का विकास है,इतिहास है .

इसे ध्यान से समझा जाना चाहिए .लेकिन इतना  समय किस के पास है ?

आलोचक को व्यंग्य की शाश्वतता  पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए .इसे तात्कालिक लेखन नहीं समझा जाना चाहिए .

स्तम्भ लेखन की चर्चा भी जरूरी है .परसाई ,शरद जोशी, श्रीलाल शक्ल ,मृदुला गर्ग आदि ने स्तम्भ  लेखन में  काफी  किया .इस पूरे लेखन को तात्कालिक मान कर ख़ारिज नहीं किया जा सकता .इस व्यंग्य  विधा को शिखर  तक पहुँचाने  का श्रेय स्तंभ लेखन को ही देना होगा .व्यंग्य सभी के लिए जरूरी विधा है .यह कोई कॉमेडी प्रोग्राम नहीं हैं एक गंभीर विधा है.

 

व्यंग्य उपन्यास एक अपेक्षाकृत नयी विधा है  इस का भी गंभीर अनुशीलन होना चाहिए .व्यंग्य एक विधा के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है सेकड़ों लोगों ने शोध किया है, कर भी रहे हैं .नए शोध छात्रों के लिए शंकर जी  ने एक अच्छी नींव बना दी  है जिस पर आज के लेखक महल बना सकते हैं और बना भी रहे हैं.व्यंग्य उपन्यास  लेखन कोई आसान काम नहीं है .विदग्ध हो जाता है,लिखनेवाला और पढनेवाला . शंकर पुणताम्बेकर का व्यंग्य उपन्यास ‘एक मंत्री स्वर्ग लोक में’ एक पठनीय उपन्यास है .विश्व विद्ध्यालयों के प्रोफेसरों को व्यंग्य पर ज्यादा काम करना चाहिए .शंकर जी के काम को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी नयी पीढ़ी की है .समाज का सोच आर्थिक है समय भी अर्थ का है ऐसे में साहित्य या व्यंग्य लेखन की सीमा है .लेखक को अपनी सीमा में ही काम करना होता है .समाज में  व्याप्त गलतियों विसंगतियों  को सुधारना जरूरी है .

शंकर पुणताम्बेकर की व्यंग्य आलोचना पर कोई पुस्तक नहीं दिखी पर व्यंग्य  -अमर कोश व केक्टस के कांटे पुस्तकें बहुत कुछ कह देती हैं .उनकी पुस्तक हरियाली और कांटे को केन्द्रीय हिंदी निदेशालय का पुरस्कार मिला,उनकी अन्य रचनाएँ भी पत्र पत्रिकाओं में पढ़ी थी ; रचनाओं के मराठी में अनुवाद भी हुए ,सब को  यहाँ समेटना संभव नहीं और अभीष्ट  भी नहीं .

शंकर पुणताम्बेकर की जन्म शताब्दी के अवसर पर मैं उनके  परिवार को शुभकामनायें देता हूँ.

डा.सुरेश माहेश्वरी ने मुझे  यह आलेख लिखने का अवसर  दिया उनका आभार.आशा है शंकर पुणताम्बेकर रचनावली जो लम्बे समय से प्रेस में है वो भी जल्दी ही आ जायगी.इन्ही मंगल कामनाओं के साथ  उनको प्रणाम .

 
यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह  रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015  मो.-94144612 07