Ravi ki Laharen - 23 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 23

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रावी की लहरें - भाग 23

गुबार

 

“पापा आ गए, पापा आ गए।" कहते हुए दिवाकर के दोनों बच्चे दिवाकर से लिपट गए। " आज बड़ी देर कर दी आने में।" दिवाकर की पत्नी बोली । दिवाकर ने कुछ जवाब नहीं दिया और गुमसुम सा बैड पर बैठ गया ।" मेरी किताब लाए पापा ?" “आज ध्यान नहीं रहा, कल ले आऊंगा।" दिवाकर ने अनमने भाव से उतर दिया ।" परसों मेरा टैस्ट है। आपसे कितने दिन से कह रहे हैं। आप रोज़ यही कह देते हैं पर लाते कभी नहीं हैं। अब मैं टैस्ट कैसे दूंगा?" “कल ज़रूर ले आऊँगा ।" "आप रोज़ ऐसे ही कहते हैं। कल लाएँगे तो फिर याद कब करूंगा टेस्ट में नंबर कम आएँगे तो आप डाटेंगे कि नंबर कम क्यों आए हैं।” “ज्यादा बातें नहीं बनाते हैं। बहुत बातें बनाना सीख गए हो ।" दिवाकर उसे डाँटते हुए बोला । तभी दिवाकर की छोटी लड़की प्रीति तुनकते हुए बोली - "पापा, आज टॉफी नहीं लाए?" "टॉफी वगैरह कुछ नहीं है आज चुप रहो, दिमाग मत चाटो ।" "फिर आपने सुबह कहा क्यों था? मुझे तो अब टाफी चाहिए। नहीं तो मैं खाना नहीं बनाऊंगी।" प्रीति ज़िद्द करते हुए बोली । “पापा ऐसे ही हैं। हर चीज के लिए कह तो देते हैं मगर लाते कुछ नहीं हैं।" दिवाकर का मंझला लड़का बोला।" बहुत बदतमीज़ हो गए हो तुम लोग।" दिवाकर उठा और उसने गुस्से में तीनों बच्चों को पीट डाला। बच्चे ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। 

दिवाकर की पत्नी बचाते हुए बोली - " क्यों मार रहे हो बेचारों को ? कह तो ठीक ही रहे हैं जब कोई चीज़ लानी नहीं है तो कह क्यों देते हो?" “हाँ हाँ सब ठीक है । खराब तो बस मैं हूँ इस घर में । "दिवाकर भड़कते हुए बोला ।" कैसी बातें कर रहे हो आज? क्या हो गया है तुम्हें?" "मैं पागल हो गया हूँ... यही कहना चाहती हो ना तुम! दिनभर घर में बैठी रहती हो इसलिए बातें ज़्यादा हो गई है। मेरी तरह ऑफिस में खटना पड़े तो आटे - दाल का भाव पता चले।" 

“हाँ हाँ मैं तो पूरे दिन बैठी ही रहती हूँ। काम के लिए तो तुमने नौकर चाकर लगा रखे हैं। "सुनीता तैश में आते हुए बोली। “देखो सुनीता, मुझे ज्यादा  गुस्सा मत दिलाओ नहीं तो एक दो हाथ तुम्हारे भी जमा दूंगा । 'क्या कहा? तो तुम मुझे मारोगे?" सुनीता तुनककर उठी और पैर पटकती हुई कमरे में चली गई तथा भड़ाक से कमरे के किवाड़ बंद कर लिए। 

माँ - बाप को झगड़ते देखकर बच्चे सहम गए और अपने - अपने बस्ते खोलकर बैठ गए। दिवाकर कुछ देर तक वहीं अकेला बैठा बैठा कुछ सोचता रहा। फिर कपड़े पहनकर वह बाहर चल दिया। काफी देर तक वह निरुद्देश्य सड़कों पर इधर-उधर टहलता रहा । दस बजे के करीब वह वापस घर लौट आया। 

बच्चे तब तक सो चुके थे। सुनीता ने दिवाकर से खाना खाने के लिए कहा मगर उसने मना कर दिया। सुनीता ने उसे मनाना भी चाहा, मगर वह बिना खाए ही चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गया । सुनीता ने भी खाना नहीं खाया। दोनों भूखे ही सो गए। 

सुबह दिवाकर देर से उठा । उठकर नहाया - धोया। फिर बैग उठाकर आठ बजे ही ऑफिस के लिए चल दिया। सुनीता पूछती ही रह गई कि इतनी जल्दी कहाँ जा रहे हो, मगर दिवाकर उसकी बात सुनी-अनसुनी करते हुए बाहर आ गया। साढ़े आठ बजे थे । दफ्तर खुलने में अभी डेढ़ घंटे की देर थी । दिवाकर को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां जाए। कुछ दूर तक सोचने के बाद यह पार्क की ओर चल दिया। वह पार्क में आकर एक बेंच पर बैठ गया । 

ऑफिस की घटनाएँ एक-एक करके उसके दिमाग में घूमने लगी । दिवाकर एक सरकारी आफिस में स्टोर कीपर है। तीन महीने पहले दिवाकर के आफिस में तीन लाख रुपये की परचेजिंग हुई थी। बड़े बाबू से लेकर बड़े साहब तक सब में कमीशन का बंटवारा हुआ मगर दिवाकर को किसी ने नहीं पूछा। पिछले कई सालों से जिस फर्म से परचेजिंग की जाती थी. वह फर्म सरकारी मान्यता प्राप्त थी । उसका सामान अच्छा होता था। मगर वह कमीशन कम देती थी। इसलिए इस बार नए साहब और बड़े बाबू ने मिलकर दूसरी फर्म को ऑर्डर दिया। उसने उन लोगों को मनचाहा कमीशन दिया। मगर फर्म द्वारा जो सामान सप्लाई किया गया था वह बहुत ही घटिया किस्म का था । दिवाकर मन ही मन कुढ़ता रहा मगर उसने कहा कुछ नहीं । जब सामान आए कई दिन हो गए तो एक दिन बड़े बाबू ने दिवाकर को अपने केबिन में बुलाया। वे दिवाकर से बोले, “दिवाकर बाबू यह सामान कई दिन का आ गया है। आप इसे रिसीव कर लें। आखिर स्टोर के मालिक तो आप ही हैं।" "यह सामान तो बहुत घटिया किस्म का है। मैं इसे रिसीव नहीं कर सकता बड़े बाबू ।" दिवाकर अकड़ कर बोला।" रिसीव तो आप को करना पड़ेगा। नहीं करेंगे तो साहब नाराज़ हो जाएंगे। " बड़े बाबू स्वर नर्म बनाते हुए बोले । “हो जाएंगे तो हो जाने दो। कमीशन साहब खाएँ और घटिया सामान हम सिरीव करें.. यह कहाँ का इंसाफ है?" दिवाकर भड़क गया। “बात तो आपकी सोलह आने सच है। मगर अफसर - अफसर होता है, दिवाकर बाबू, उससे बिगाड़ ठीक नहीं।" बड़े बाबू ने दिवाकर को समझाया।" कुछ भी हो, मैं यह सामान रिसीव नहीं करूंगा।" दिवाकर दृढ़ स्वर में बोला। “ठीक है जैसी आपकी इच्छा, मैं साहब तक आपकी बात पहुँचा दूँगा ।" दिवाकर अपनी टेबल पर चला आया था। 

दो-तीन दिन तक कोई बात नहीं हुई । दिवाकर समझा कि उसकी घुड़की काम कर गई है। अब कोई उससे सामान रिसीव करने को नहीं कहेगां मगर चौथे दिन जैसे ही वह सीट पर जाकर बैठा तभी डिस्पैच बाबू ने बड़े साहब का एक लैटर लाकर उसे थमा दिया । लिखा था -

“मिस्टर दिवाकर स्टोर कीपर । 

आपने अपने पिछले चार महीने के जो टी.ए. बिल प्रस्तुत किए हैं, उनकी जाँच करने पर पाया गया कि आपने सोलह डी. ए. फर्जी चार्ज किए हैं जो गम्भीर वित्तीय अनियमितता है। क्यों न आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए? इस सम्बन्ध में अपना स्पष्टीकरण तीन दिन के अन्दर प्रस्तुत करें।" पत्र पढ़कर दिवाकर बौखला उठा गुस्से में भरा हुआ वह बड़े बाबू के पास पहुंचा और बोला - "आफिस में सभी लोग तो फर्जी डी.ए. चार्ज करते हैं फिर मैंने फर्जी डी.ए. चार्ज करके ऐसा कौन-सा गुनाह कर दिया है जो मेरे बिलों की जाँच कराई जा रही है।" "यह तो भई बड़े साहब के अधिकार क्षेत्र की बात है कि वह किसका टी. ए. बिल पास करें और किसके बिलों की जाँच कराएँ। इसमें हम क्या कर सकते हैं? "बड़े बाबू कुटिलतापूर्वक मुस्कराते हुए बोले । दिवाकर कट कर रह गया खिसियाता हुआ सा वह अपनी टेबल पर आकर बैठ गया । 

इस घटना को अभी दो-तीन दिन ही बीते थे कि उसे एक स्पष्टीकरण और थमा दिया गया। लिखा था - मिस्टर दिवाकर, पिछले वर्ष जून में आपने एल. टी. एस. ली थी। उसमें आपने अपनी माँ का भी फेयर चार्ज किया था। जबकि जाँच करने पर पाया गया कि आपकी माँ आप पर आश्रित नहीं हैं। आपको आदेशित किया जाता है कि आप शीघ्र इस आशय का कोर्ट का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करें कि आपकी माँ गुजारे के लिए आप पर ही आश्रित हैं। अन्यथा आपके खिलाफ विभाग के साथ हेराफेरी करने के आरोप में सख्त कार्यवाही की जाएगी। 

पत्र पढ़कर दिवाकर के हाथ-पाँव फूल गए। उसने कभी सोचा भी न था कि इतनी पुरानी बात उखड़ आएगी। सबके कहने पर एक हजार रुपये मिलने के लालच में उसने माँ का फेयर भी चार्ज कर लिया था, जबकि नियमानुसार यह गलत था। दिवाकर के पिताजी अभी जिंदा थे और पेंशन पाते थे। इसलिए कोर्ट से माँ के निराश्रित होने का प्रमाणपत्र मिलने का सवाल ही नहीं उठता था । दिवाकर को लगा कि साहब उसके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए सबूत इकट्ठा कर रहे हैं। इससे वह चिंतित हो उठा ।

कहा जाता है कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती है । दिवाकर इन्हीं परेशानियों में उलझा हुआ था कि घर से बहन की शादी की चिट्ठी आ गई। अगले महीने उसकी शादी थी। दिवाकर ने नकदीकरण के लिए आवेदन कर दिया। उसे उम्मीद थी कि शादी से आठ-दस दिन पहले नकदीकरण की धनराशि मिल जाएगी। मगर जब बिल जमा किए कई दिन हो गए तो उसने इस सम्बन्ध में बड़े बाबू से पुछा। बड़े बाबू बोले - “तुम्हारा नकदीकरण का आवेदन बड़े साहब के यहाँ से बिना स्वीकृत हुए ही वापस लौट आया है। उन्होंने लिखा है कि मिस्टर दिवाकर की गत वर्ष की सेवाएँ पूर्व अधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं हैं इसलिए उनका नकदीकरण स्वीकृत नहीं किया जा सकता है।" उसने बड़े बाबू से सर्विस बुक लेकर देखी । वास्तव में उसकी पिछले साल की सेवाएँ पूर्व अधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं की गई थी । दिवाकर के हाथों के तोते उड़ गए। उसने सोचा था कि तीस-चालीस हजार रुपये नकदीकरण के मिल जाएँगे। दस-पन्द्रह हजार और करके वह बहन की शादी में पचास-साठ हजार रुपये खर्च कर देगा। मगर अब तो कुछ नहीं हो सकता था। पूर्व अधिकारी का ट्रांसफर काफी दूर के जनपद में हुआ था । वहाँ सर्विस बुक भेजकर इतनी जल्दी सेवाएँ प्रमाणित होकर आना सम्भव नहीं था। अब वह शादी में क्या खर्च करेगा दिवाकर को यह चिन्ता सताने लगी। तभी उसके मन में आशा की एक किरण जागी। वह बड़े बाबू से बोला - “अगर साहब चाहें तो वे वेतन रजिस्टर के आधार पर सेवाएँ प्रमाणित कर सकते हैं।" 

हाँ, कर तो सकते हैं मगर यह तो साहब के मूड की बात है, वह करें या न करें। बड़े बाबू व्यंग्य से बोले । 

दिवाकर तिलमिलाकर रह गया। मगर वह कर भी क्या सकता था। शादी की तारीख धीरे-धीरे नज़दीक आती जा रही थी। दिवाकर बहुत परेशान रहने लगा था। आफिस में सबको पता चल गया था कि साहब दिवाकर से नाराज़ हैं इसलिए उसके साथी भी उससे कन्नी काटने लगे थे। उधर दिवाकर के खिलाफ साजिश जारी थी। उसे बड़े साहब का एक पत्र और मिला । लिखा था - मिस्टर दिवाकर, पत्र प्राप्त के एक सप्ताह बाद ऑफिस के स्टोर के रिकॉर्ड का निरीक्षण तथा सामान का भौतिक सत्यापन किया जाना है। अतः आपको आदेशित किया जाता है कि आप तीन दिन के अन्दर स्टोर में उपलब्ध सामग्री की सूची तीन प्रतियों में बड़े बाबू के समक्ष प्रस्तुत करें। 

पत्र पढ़कर दिवाकर सन्न रह गया था। कई सालों से स्टोर का निरीक्षण नहीं हुआ था। स्टोर की कई चीजें पिछले साहब लोग अपने साथ ले गए थे। कुछ चीजें इस समय भी साहब तथा अन्य लोगों के घरों में थीं। सबसे सामान मंगवाने का मतलब था हर एक से दुश्मनी मोल लेना। दूसरे, निरीक्षण की डेट उसकी बहन की शादी के ठीक दो दिन पहले थी । वह पहले से ही परेशान था, इस पत्र को पाकर उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब देने लगी। उसने अपने एक दो मित्रों से सलाह ली। सबने समझाया कि देखो भाई जल में रहकर मगर से बैर नहीं किया जा सकता है। तुमने सामान रिसीव नहीं किया है इसलिए साहब तुमसे नाराज़ हैं। तुम कल साहब से मिल लो और वे जैसा कहें कर दो, सब ठीक हो जाएगा। 

मित्रों के काफी ऊँच-नीच समझाने के बाद दिवाकर को भी बात समझ में आ गई। दूसरे दिन सुबह वह साहब के केबिन में पहुँचा। उसने चिक उठाकर साहब को आदरपूर्वक नमस्ते की । साहब बोले- “आओ भाई दिवाकर बाबू  बैठो। कहो कैसे कष्ट किया?" साहब के स्वर में व्यंग्य साफ झलक रहा था । दिवाकर मन मसोसकर रह गया। वह बोला- “साहब! अगले हफ्ते मेरी बहन की शादी है । मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है। आप मेरा नकदीकरण और टी. ए. बिल पास कर दीजिए।" "मैंने सुना है दिवाकर बाबू, आप नियम कानून के बड़े पाबंद हैं। इसलिए आपके बारे में तो सारी कार्रवाई नियमानुसार ही की जाएगी।" साहब ने फिर चोट की । " वह मेरी भूल थी साहब। आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा करने को तैयार हूँ। " दिवाकर हथियार डालते हुए बोला । “गुड, यह हुई न बात। हम अभी बड़े बाबू को बुलावाते हैं। " साहब ने घंटी बजाई और चपरासी को बड़े बाबू को बुलाने का आदेश दिया। 

बड़े बाबू के आते ही साहब बोले - “ देखिए बड़े बाबू, दिवाकर बाबू सामान रिसीव करने को तैयार हो गए हैं। आप ऐसा करें कि स्टाक रजिस्टर से सामान चेक कराकर इन्हें रिसीव करा दें। उसके बाद दोनों लोग स्टाक रजिस्टर लेकर मेरे पास आ जाएँ।" "ठीक है सर। आइये दिवाकर बाबू ।" दिवाकर ने लिस्ट से सामान मिलाकर रिसीव कर लिया। उसके बाद दोनों लोग साहब के कमरे में पहुंचे। बड़े बाबू बोले- “सर, दिवाकर बाबू को सारा सामान रिसीव करा दिया है।" "ठीक है। आइये बैठिए दोनों लोग ।" साहब ने दोनों लोगों के लिए चाय मंगवाई। चाय पीने के बाद बड़े बाबू बोले “दिवाकर बाबू, आपने सामान तो प्राप्त कर ही लिया है, अब आप उक्त सामान का बैक डेट में एक डिमांड लेटर बना दें तथा स्टाक रजिस्टर पर एक प्रमाणपत्र लगा दें कि खरीदे गए सामान का सैम्पल से मिलान कर लिया गया है। सामान विभागीय प्रयोग के लिए उपयुक्त है ।" "मगर इससे तो सारा रिस्क मेरे ऊपर ही आ जाएगा ।" दिवाकर ने शंका प्रकट की ।" रिस्क तो हर काम में है दिवाकर बाबू। हम भी तो आपकी पिछले साल की सेवाएँ प्रमाणित करके रिस्क लेंगे।" साहब ठहाका लगाते हुए बोले । दिवाकर को कोई उत्तर नहीं सूझा। वह बगलें झाँकने लगा। 

बड़े बाबू बोले - “इसमें कोई रिस्क नहीं है, दिवाकर बाबू । फिर साहब के होते हुए आपको किस बात की चिन्ता ।" 

"ठीक है, जैसी आप लोगों की मर्जी ।" दिवाकर ने चुपचाप डिमांड लेटर भी बना दिया और स्टाक रजिस्टर पर प्रमाण पत्र भी लगा दिया। साहब ने स्टाक रजिस्टर और डिमांड लेटर पर नज़र डाली, फिर संतुष्ट होते हुए बोले, "ठीक है दिवाकर बाबू अब आप निश्चिंत रहें। आपके नकदीकरण और टी. ए बिलों का पैसा आपको परसों मिल जाएगा।" "और स्टोर का निरीक्षण सर?” दिवाकर दबी जुबान से बोला । “उसे फिर आपकी सुविधानुसार कर लिया जाएगा। बड़े बाबू कल इनके लिए एक लेटर बना दें कि स्टोर का निरीक्षण अगले आदेशों तक स्थगित किया जाता है ।" "ठीक है सर। कल बना देंगे ।" बड़े बाबू ने स्वीकृति में सिर हिलाया । उसके बाद दिवाकर चला आया । बड़े बाबू ने नियत समय पर टी. ए. बिलों और नकदीकरण का पैसा दिवाकर को दे दिया। बहन की शादी में काम करने के लिए ऑफिस का एक चपरासी भी दिवाकर के यहाँ भेज दिया गया। इस सबको एक महीना बीत गया । साहब दिवाकर से खुश थे। तभी एक ऐसी घटना हो गई जिससे दिवाकर की रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया। जिस फर्म से हर साल परचेजिंग की जाती थी वह इस खरीदारी से खुश नहीं थी । वे लोग मन ही मन खार खाए बैठे थे और मौके की तलाश में थे। उनकी शह पर एक दैनिक पेपर ने घटिया सामग्री आपूर्ति के सम्बन्ध में विस्तार से एक खबर छाप दी। अखबार की कटिंग जिला अधिकारी के पास पहुँची । स्थानीय नेताओं के दबाव में जिला अधिकारी ने पूरे प्रकरण की जाँच एक मजिस्ट्रेट को सौंप दी। जब परचेजिंग के खिलाफ मजिस्ट्रियल इन्क्वायरी सेटअप हो गई तो सारे आफिस में खलबली मच गई। लोग अपने को बचाने की फिक्र में लग गए। बड़े बाबू, छोटे साहब और बड़े साहब ने मिलकर सारा दोष दिवाकर पर डाल दिया। बड़े बाबू की सलाह पर बड़े साहब ने स्टोर का आकस्मिक निरीक्षण किया और दिवाकर से एक स्पष्टीकरण पूछा। लिखा था -

मिस्टर दिवाकर, स्टोर निरीक्षण के दौरान हाल में क्रय किए गए सामान की जाँच की। जाँच से ज्ञात हुआ कि क्रय की गई सामग्री काफी घटिया किस्म की है। जबकि आपके द्वारा स्टाक रजिस्टर पर प्रमाणपत्र अंकित किया गया है कि क्रय की गई सामग्री विभागीय कार्य के लिए उपयुक्त है। उक्त सामग्री का डिमाण्ड लेटर भी आपके द्वारा ही प्रस्तुत किया गया है। इससे जाहिर होता है कि आपकी उक्त फर्म से साँठगाँठ थी। आपने ऐसा किन परिस्थितियों में किया, इसे स्पष्ट करें, अन्यथा आपके खिलाफ विभाग को जानबूझकर अंधेरे में रखने के आरोप में सख्त कार्रवाई की जाएगी। पत्र की प्रतियाँ जिला अधिकारी और जाँच अधिकारी को भी भेजी गई थी। इससे सबकी नज़रों में वही दोषी बन गया था। एक सप्ताह से जाँच चल रही थी । रोज़ उससे बीसियों तरह के सवाल पूछे जाते । दिवाकर बहुत परेशान रहता है। बड़े बाबू और साहब के कहने पर उसने स्टाक रजिस्टर पर प्रमाणपत्र लगा दिया था वही उसके गले का फंदा बन गया था। 

दिवाकर को रह-रहकर गुस्सा आता है कि देखो ये लोग परचेजिंग में हज़ारों रुपये डकार गए और अब जाँच चल रही है तो उसे बलि का बकरा बना रहे हैं। वह कसमसाकर रह जाता है, मगर साहब लोगों का वह बिगाड़ ही क्या सकता है। आफिस का गुबार वह घर में निकालता है । बात-बात में बच्चों को पीट डालता है। बिना वजह पत्नी को बुरी तरह झिड़क देता है। बात-बात में भड़क जाता है। पत्नी परेशान है कि इन्हें क्या हो गया है। दिवाकर को बाद में अपने व्यवहार पर बड़ा पछतावा होता है। दिवाकर को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कब तक इस प्रकार इस मानसिक यंत्रणा को झेलता रहेगा और कब तक गीली लकड़ी की भांति अंदर ही अंदर सुलगता रहेगा। तभी नगरपालिका के घड़ियाल ने टन - टन करके दस घंटे बजाए। दिवाकर चौंक कर उठ बैठा। बैग उठाकर वह ऑफिस के लिए चल दिया। वह सोच रहा था कि देखें आज कौन - सी नई मुसीबत आती है।