अंतिम परिणति
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के इमरजेंसी वार्ड के सामने युवा उद्योगपति मधुरेश अपनी पत्नी रेखा के साथ बेचैनी से टहल रहे हैं। उनके चार वर्षीय पुत्र राहुल का ऑपरेशन होना है। राहुल उनकी एक मात्र सन्तान है । इसलिए दोनों के हृदय धड़क रहे हैं। पैसे के मद में हर समय ऐठे रहने वाले मधुरेश आज अस्पताल के वार्ड ब्याय से भी 'भाई साहब' कहकर बात कर रहे हैं।
ऑपरेशन की तैयारी हो चुकी है। मधुरेश डॉक्टर साहब से गिडगिड़ा कर बोले, "डाक्टर साब, मेरे बच्चे को बचा लो, चाहे जितना रुपया खर्च हो जाए ।'
"हर परेशानी का इलाज पैसा नहीं है बरखुरदार । घबराओ मत, हौसला रखो। ऊपर वाले से दुआ माँगो। सब ठीक हो जाएगा ।" डॉक्टर विलियम मधुरेश को सांत्वना देकर ऑपदेशन करने चले गए।
ऑपरेशन रूम का दरवाजा बन्द है । मधुरेश और रेखा दोनों बाहर टहल रहे हैं। उन्हें एक-एक पल युग के समान लग रहा है। रेखा व्याकुल स्वर में मधुरेश से बोली, "मेरा राहुल ठीक तो हो जाएगा?"
"क्यों नहीं ठीक हो जाएगा। अभी तुमने सुना नहीं डॉक्टर साहब क्या कह रहे थे?"
पता नहीं मन क्यों बहुत डर रहा है? "
उसी समय ऑपरेशन रूम का दरवाजा खुला। डॉक्टर विलियम बाहर निकले। मधुरेश और रेखा दोनों लपक कर उनके पास पहुँचे और पूछने लगे - “डॉक्टर साहब, कैसा है हमारा राहुल?"
“आपरेशन सफल रहा है परन्तु राहुल अभी खते से बाहर नहीं है । ये इंजेक्शन और दवाएँ बाजार से मंगवा लो। भगवान ने चाहा तो राहुल जरूर ठीक हो जाएगा । " मधुरा ने डॉक्टर साहब के हाथ से पर्चा लेकर फौरन शोफर को आवाज दी और उससे जल्दी से दवाइयाँ लाने को कहा। शोफर गाड़ी लेकर बाजार से दवाइयाँ लेने चला गया।
रेखा एक बैंच पर जाकर बैठ गई । वह सोच रही है कि राहुल के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया। न जाने कितनी मनोतियाँ मनाई, कितने व्रत रखे, ओझे, मौलवियों की खाक छानी, सालों डॉक्टरों के चक्कर लगाए। तब कहीं जाकर शादी के इन दस वर्षों बाद मेजर ऑपरेशन के बाद यह बच्चा पैदा हुआ तथा डॉक्टरों ने रेखा को भविष्य में बच्चा पैदा करने के अयोग्य घोषित कर दिया।
राहुल ही उनकी सारी आशाओं का केन्द्र है। यही उनकी बेशुमार दौलत का अकेला वारिस है।
शोफर ने दवाइयाँ लाकर अन्दर पहुँचा दी है। डॉक्टर अपना काम करने लगे हैं परन्तु इन सबसे बेखबर रेखा अभी तक विचारों की दुनिया में खोई हुई है।
“किन विचारों में खो गई रेखा ?" मधुरेश ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"कुछ नहीं, मैं सोच रही थी कि आप तो बिजनेस की कामों में अक्सर बाहर रहते हैं परन्तु मेरा तो हर क्षण राहुल के साथ ही बीतता है। अगर उसे कुछ हो गया तो....”
“छि..छि.., तुम ऐसी बातें सोचती ही क्यों हो?" मधुरेश बीच में ही उसकी बात काटते हुए बोले ।
तभी वार्ड ब्याय को अपनी ओर आता देख दोनों चुप हो गए। वार्ड ब्याय बोला, “आप लोगों को अन्दर बुलाया है।'
रेखा और मधुरेश दोनों वार्ड ब्याय के साथ अन्दर पहुँचे । अन्दर डॉक्टर विलियम और कई अन्य डॉक्टर बैठे थे। सभी लोगों के चेहरे पर निराशा और थकान के चिन्ह थे। अनिष्ट की आशंका से मधुरेश और रेखा के दिल धड़कने लगे। दोनों ने एक साथ पूछा, “राहुल कैसा है डॉक्टर साहब?"
“हम लोगों ने बहुत कोशिश की परन्तु हमें अफसोस है मिस्टर गुप्ता कि हम राहुल को बचा नहीं पाए।"
"नहीं! ऐसा नहीं हो सकता ।" मधुरेश और रेखा दोनों एक साथ चीखे ।
“भाग्य को शायद यही मंजूर था मिस्टर गुप्ता । हम लोगों ने अपनी तरफ से भरपूर कोशिश की। राहुल का आपरेशन सफलतापवूक कर लिया गया परन्तु उसके बाद जैसे ही इंजेक्शन लगाया गया, उसकी हालत बजाय सुधरने के बिगड़ती चली गई। परीक्षण करने पर पता चला कि वह इंजेक्शन नकली था। वह नकली इंजेक्शन ही राहुल की मौत का कारण बना।"
“मेरा राहुल! मेरा लाल!" रेखा हृदय विदारक चीख के साथ राहुल के बैड की ओर भागी और बीच में ही बेहोश होकर गिर पड़ी ।
नकली इंजेक्शन! मधुरेश के चेहरे पर भूकम्प जैसे भाव आने लगे । जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे अस्पताल में फैल गई कि नकली इंजेक्शन लगने से एक बच्चे की मौत हो गई है।
काफी लोग सेठ मधुरेश के आसपास इकट्ठे हो गए। भीड़ में लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। एक नवयुवक ने पूछा, “डॉक्टर साहब, वह इंजेक्शन किस कम्पनी का था?"
“उस पर 'न्यू लाइफ ड्रग्स' कम्पनी लिखा हुआ था। परन्तु यह कम्पनी फर्जी होगी और उसका कोई पता नहीं चल पाएगा।
'न्यू लाइफ ड्रग्स कम्पनी' यह नाम सुनकर मधुरेश को ऐसा लगा मानो उनके कानों में किसी ने पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। भीड़ के कोलाहल से दूर भटकती हुई उनकी यादें काफी दूर पहुँच गई थी।
आज से दस वर्ष पूर्व वह महानगर के पास एक छोटे से कस्बे शीशगढ़ में एक साधारण डॉक्टर थे। उन्होंने बी. आई. एम. एस. का डिप्लोमा किया था। उनकी प्रेक्टिस बहुत कम चलती थी। किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी घिसट रही थी ।
मधुरेश आधुनिक सभ्यता में पला हुआ एक महत्वाकांक्षी युवक था । डॉक्टरी चलती न देख उसने दवाएँ बनाना शुरू कर दी। दवाओं की बिक्री से कुछ आमदनी तो बढ़ी परन्तु मधुरेश पर तो हर समय अधिक से अधिक पैसा पैदा करने की धुन सवार रहती । धनवान बनने के सपने वह हर समय देखा करता। ऐसे ही समय में मधुरेश की भेंट वीरपाल नामक युवक से हो गई जो नकली दवाइयों की सप्लाई किया करता था । वीरपाल ने मधुरेश को सुझाव दिया कि अगर वह नकली दवाईयाँ बनाने लगे तो साल-दो - साल में ही करोड़पति बन सकता है।
मधुरेश का मन इस प्रकार का घृणित काम करने के लिए तैयार नहीं था । रेखा ने भी इसका विरोध किया।
वीरपाल ने समझाया, “पैसा सारी बुराइयों एवं पापों को धो डालता है। पैसा ही आज का भगवान है ।'
पैसे के बिना समाज की गाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ती। आजकल आदर्शवाद का जमाना नहीं रहा । तुम्हीं बताओ, तुमने हरीशचन्द्र बनकर क्या हासिल कर लिया? तुम्हारा मन नहीं करता है तो तुम असली दवाईयों के साथ-साथ एक-दो नकली दवाईयाँ बनाना शुरू कर दो।"
वीरपाल के काफी ऊँच-नीच समझाने के बाद मधुरेश ने एक-दो नकली दवाइयाँ बनानी शुरू कर दी। उसे इससे अच्छी-खासी आमदनी होने लगी । मधुरेश के मन में नकली दवाओं का आकर्षण बढ़ता गया । वीरपाल के कहने पर उसने 'न्यू लाइफ ड्रग्स कम्पनी' के फर्जी नाम से नकली दवाइयाँ बनानी शुरू कर दीं। यह कम्पनी बड़े स्तर पर अपना काम करने लगी। दवाओं की सप्लाई का काम वीरपाल के आदमी करते ।
धीरे-धीरे उनका यह व्यापार पूरे देश में फलने लगा। मधुरेश ने महानगर में एक आलीशान कोठी ले ली। खटारा साइकिल की जगह एम्बेसेडर कार आ गई। पाँच वर्षों में ही उनके पास आधुनिक सुख-सुविधाओं के सारे साधन एकत्र हो गए।
डॉक्टर मधुरेश अब सेठ मधुरेश बन गए। उनकी गिनती युवा उद्योगपतियों में की जाने लगी। रेखा ने शुरू-शुरू में इस काम का विरोध किया परन्तु नए-नए गहनों और साड़ियों के आकर्षण तले उसके विरोध का स्वर भी धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया ।
मधुरेश के जीवन में जो एक अभाव था, राहुल के जन्म से वह भी पूरा हो गया। अब उसके जीवन में खुशियाँ थीं धन का महत्व अब उसकी समझ में आने लगा। उसे इस बात की बिल्कुल चिंता नहीं थी कि उसने यह धन समाज में ज़हर घोलकर प्राप्त किया है।
पिछले एक वर्ष से राहुल के पेट में रसौली हो जाने से उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया था और आज ऑपरेशन के बाद राहुल की जीवन लीला समाप्त हो गई। यह बात मधुरेश के हृदय में शूल की भांति गड़ रही है कि उसकी कम्पनी द्वारा बनाए गए नकली इंजेक्शन ने ही राहुल की जान ले ली है। उसने खुद अपने हाथों अपना सर्वनाश कर लिया। उसकी इच्छा हो रही है कि वह लोगों को चीख-चीख कर बताए कि मैं पुत्र - हन्ता हूँ।
तभी किसी के हाथ का स्पर्श अपने कंधे पर पाकर मधुरेश वर्तमान में लौटे।
डॉक्टर विलियम बोले - “किन विचारों में खो गए मिस्टर गुप्ता? आपकी मिसेज की हालत बिगडती जा रही है। उन्हें शीघ्र डॉक्टर घोष के चैम्बर में ले जाइए और इनका चैकअप कराइए।"
रेखा का परीक्षण करने के बाद डॉक्टर घोष ने कहा, "मरीज को अपने बेटे की मौत से गहरा सदमद पहुँचा है। इनकी यादाश्त गुम हो गई है। इन्हें मैंटल वार्ड में भर्ती करवा दीजिए। इनको पूरी तरह ठीक होने में लगभग दो तीन वर्ष लग जायेंगे।
मधुरेश को पूरी दुनिया घूमती हुई सी मालूम पड़ी।
वह सोच रहे हैं कि एक तरफ राहुल की लाश और दूसरी तरफ अर्द्ध विक्षिप्त रेखा, बस यही है उनके घिनौने व्यापार की अन्तिम परिणति । उनका यह दम्भ कि पैसे से हर सुख खरीदा जा सकता है, अब चरमरा कर टूट रहा है और उनके सपने एक-एक करके बिखरते जा रहे हैं।