Ravi ki Laharen - 6 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 6

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रावी की लहरें - भाग 6

रतनारे नयन

 

शंकर और तराना नकटिया नदी के किनारे एक टीले पर बैठे हुए थे। दुनिया की चिन्ता फिक्र से दूर दोनों यहां, इस एकान्त में अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे। शंकर गिटार बजा रहा था और तराना गाना गा रही थी । गिटार की आवाज और गाने की ध्वनि इस शान्त जगह पर दूर-दूर तक गूंज रही थी । 

शंकर की उम्र यही ग्यारह - बारह साल रही होगी। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार का किशोर था । उसके पिता की शहर में किराना की दुकान थी। शंकर देखने भालने में बेहद सुन्दर और पढ़ने में काफी तेज था । उसे गिटार बजाने का बड़ा शौक था। उसके पिता ने उसे यह गिटार उसके दसवें जन्मदिन पर उपहार में दिया था। शंकर गिटार को हमेशा अपने पास रखता और उस पर नई-नई धुनें निकालता रहता । 

तराना दस-ग्यारह साल की एक अल्हड़ किशोरी थी। छरहरा वदन, तीखे नयन नक्श और गोरा रंग सादा लिवास में भी वह बेहद सुन्दर लगती थी । तराना पढ़ने में तो औसत दर्जे की थी मगर वह गाती बहुत अच्छा थी । स्कूल के हर कार्यक्रम में वह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी । उसके अब्बू की शहर में साइकिल की दुकान थी । उसके दो बड़े भाई थे और दोनों तराना पर जान छिड़कते थे। वह घर में सबकी बहुत लाडली थी। 

शंकर और तराना एक ही मोहल्ले में रहते थे। दोनों के घरों के बीच यही कोई आधा फर्लांग का फासला था। यह मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला था। यह उस समय की बात है जब शहर पर रोहेल सरदारों का शासन था, और सभी लोग आपस में बड़े मेल जोल से रहते थे। शंकर और तराना बहुत छोटे से ही एक-दूसरे के साथ खेला करते थे। 

बचपन से वे कब किशोरावस्था में प्रवेश कर गए उन्हें खुद भी कुछ पता नहीं चला। यह वह अवस्था थी जब उनके शरीर और स्वभाव दोनों में आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगे थे। तराना जब गाती तो शंकर मंत्र मुग्ध सा होकर घंटों उसे निहारता रहता। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आते। इसी तरह जब शंकर गिटार बजाता तो तराना एकटक उसके चेहरे को देखती रहती थी। गिटार की मधुर ध्वनि तराना के दिल में कुछ गुदगुदी सी पैदा कर देती। 

स्कूल से लौटने के बाद दोनों इस टीले पर आकर बैठ जाते और दुनिया - जहान की बातें करते । बिना किसी नागा के वर्षों से दोनों का यहां मिलने और आपस में बातें करने का सिलसिला जारी था। दोनों की अपनी अलग दुनिया थी । उनकी इस दुनिया में रंगीन सपने थे और हसीन कल्पनाएँ। 

उधर समय का पंछी पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। शंकर बी. ए. में आ गया था और तराना इंटर में। मगर दोनों की दोस्ती और मुलाकतें अब भी बदस्तूर जारी थी। 

शंकर की हल्की-हल्की दाढ़ी-मूंछ निकल आई थी। सीना चौड़ा हो गया था और मशल्स स्ट्रांग । कुल मिलाकर वह बड़ा हैण्डसम लगता था। वह कब तराना के सपनों का हीरो बन गया था, तराना को भी पता नहीं चला था। 

उधर तराना में भी जवानी के लक्षण उभर आए थे। बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बी नाक और रक्ताभ कपोल। वह देखने में बेहद हसीन लगती थी । 

शंकर और तराना घंटों एक-दूसरे के साथ रहते और एक-दूसरे की प्रशंसा करते नहीं थकते। अब दोनों प्यार की मजबूत डोर में बंध चुके थे। 

तराना बेहद सुन्दर थी और किसी अप्सरा की तरह लगती थी । शंकर के लिए तो वह इस जहां की सबसे हसीन लड़की थी, मगर एक चीज उसे बेहद खटकती थी वह थी तराना की आँखें । उसकी आँखें बड़ी-बड़ी तो थीं मगर उनमें झील जैसी गहराई नहीं थी। वे कजरारी नहीं थी । एक दिन बातों ही बातों में शंकर ने तराना से कहा - "तराना तू काजल क्यों नहीं लगाती है तेरी आँखों में अजीब सा सूनापन लगता है, वे कजरारी नहीं लगती ।" 

तराना ने मुस्करा कर शंकर की ओर देखा और बोली “तू ठीक कह रहा है शंकर | मैंने कई बार काजल लगाने की कोशिश की, मगर कोई भी काजल मुझे शूट ही नहीं करता है। काजल लगाते ही मेरी आँखों से पानी निकलने लगता है और वे लाल पड़ जाती है । " 

वह सुनकर शंकर ने एक गहरी सांस ली। फिर वह दुखी स्वर में बोला- “काश तेरी आँखें काली कजरारी होती ।" 

अगर तुझे मेरी आँखों की इतनी ही चिन्ता है शंकर तो तू ही मेरे लिए कोई काजल या सुरमा क्यों नहीं बना देता हो सकता है तेरे हाथों का बना काजल या सुरमा मेरी आँखें कजरारी बना दे ।" तराना इठलाते हुए बोली | 

यह सुनकर शंकर यकायक काफी सीरियस हो गया था। उसने मन ही मन तय कर लिया था कि वह तराना के लिए सुरमा जरूर बनाएगा। 

तराना उसे छेड़ते हुए बोली - " क्या हुआ शंकर । उदास क्यों हो गया?" 

“नहीं तराना ऐसी कोई बात नहीं है, तू तो बेहद हसीन है। तेरे चेहरे से तो मेरी नजर हटती ही नहीं है।" वह मुस्कराते हुए बोला । 

अब शंकर पर तराना के लिए सुरमा बनाने की धुन सवार हो गई थी। वह तराना के लिए ऐसा सुरमा बनाना चाहता था जैसा आज तक किसी ने नहीं बनाया हो। इस चक्कर में उसने सैकड़ों किताबें पढ़ डालीं, दसियों सुरमा बनाने वालों के यहां चक्कर लगाए तथा सैकड़ों हकीमों के घर की खाक छानी । उसने सुरमा बनाने के कई नुस्खे आजमाए मगर बात नहीं बनी। शंकर ने हार नहीं मानी थी और वह लगातार अपने इस अभियान में लगा हुआ था । 

इस सबके बीच वह कई-कई दिन तक तराना से भी मिल नहीं पाता था। उसने अपने इस मिशन के बारे में तराना को कुछ नहीं बताया था। इसलिए तराना कभी-कभी बेहद उदास हो जाती । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शंकर इतना खोया-खोया सा क्यों रहता है। उसने शंकर से इस बारे में कई बार बात भी करनी चाही मगर शंकर कोई न कोई बहाना बनाकर बात को टाल जाता । वह तराना को सरप्राइज देना चाहता था । 

कई महीनों की कोशिशों के बाद अखिरकार एक दिन शंकर की मेहनत रंग लाई। वह ऐसा सुरमा बनाने में कामयाब हो गया जिसको लगाने से आँखों में कोई जलन नहीं पड़ती थी और न ही पानी निकलता था । सुरमा की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उसे लगाने के बाद आँखें कुदरती काली लगने लगती थी । 

शंकर ने कई दिनों तक उसे अपनी आँखों में लगाया। उसकी खुशी की कोई सीमा नहीं थी । उसने ऐसा सुरमा बना लिया था जैसा आज तक किसी ने नहीं बनाया था। वह अपनी सफलता पर फूला नहीं समा रहा था । 

कालेज के बाद शंकर सीधा नकटिया नदी के किनारे उसी टीले पर पहुंचा। तराना पहले से ही वहां बैठी शंकर का इन्तार कर रही थी । शंकर को देखकर उसका मुरझाया चेहरा ताजे फूल की भांति खिल उठा। 

तभी शंकर उससे बोला, “अपनी आँखें बन्द करो तराना। मैं तुम्हारे लिए एक नायाब तोहफा लाया हूँ।' 

“कैसा तोहफा?" तराना ने हैरानी से उसकी ओर देखते हुए पूछा ।" तू आँखें तो बन्द कर ।" शंकर मुस्कराते हुए बोला। 

तराना अपनी आँखें बन्द करके बैठ गई। उसके चेहरे पर गहरी उत्सुकता साफ झलक रही थी। 

शंकर ने अपनी जेब से निकाल कर सुरमे की शीशी तराना के हाथों में रख दी और उससे आँखें खोलने के लिए कहा। 

तराना ने शीशी की ओर देखते हुए पूछा - "यह क्या है शंकर ?" 

यह सुरमे की शीशी है तराना । कई महीने तक लगातार कोशिश करने के बाद मैंने अपनी तराना के लिए यह नायाब सुरमा बनाया है। इसे लगाने से तुम्हारी आँखें झील जैसी गहरी और काली रतनारी हो जायेंगी । 

यह सुनकर तराना का चेहरा अनोखी खुशी से चमक उठा था। उसने प्यार भरी नजरों से शंकर की ओर देखा था। फिर दोनों बातों में मस्त हो गए थे। 

तराना ने सुरमा लगाना शुरु कर दिया था । बास्तव में बड़ा नायाब सुरमा था। इसे लगाने से न तो तराना की आँखें लाल हुई थीं और न ही उनमें से पानी निकला था। कुछ दिन सुरमा लगाने के बाद ही तराना की आँखों की सुन्दरता काफी बढ़ गई थी। 

तराना के बड़े भाई कासिम की शादी हो चुकी थी। उसने विसातखाने की दुकान कर ली थी । एक दिन अचानक उसकी नजर तराना की आँखों पर पड़ी। उसने तराना से पूछा - "तुम्हें तो कोई काजल या सुरमा शूट ही नहीं करता था फिर तू यह कौन - सा सुरमा लगाने लगी है?" 

तराना ने अपने भाई कासिम को सुरमा की पूरी कहानी बता दी। 

तराना की बात सुनकर कासिम के मन में यह विचार आया कि यदि शंकर इस सुरमे को बनाने का फार्मूला बता दे तो वह यह सुरमा बनाकर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकता है। 

कासिम ने तराना से कहा "तराना तुम शंकर से कहकर यह सुरमा बनाने का फार्मूला मुझको दिला दो ।" 

“तुम यह फार्मूला लेकर क्या करोगे भाई? तराना ने हैरानी से कासिम की ओर देखते पूछा। 

“मैं इस फार्मूला से सुरमा बनाकर उसे बेचकर पैसा कमाऊँगा । मुझे पूरी उम्मीद है कि यह सुरमा बाजार में खूब बिकेगा ।" कासिम बोला । 

'मगर शंकर ने तो यह सुरमा सिर्फ मेरे लिए बनाया है। उसने इसके लिए बहुत मेहनत की है। हो सकता है वह यह फार्मूला देने को तैयार न हो। " तराना ने शंका प्रकट की। 

तुम्हें किसी तरह से शंकर को यह फार्मूला मुझे देने के लिए राजी करना होगा तराना। क्या तुम अपने बड़े भाई के लिए इतना छोटा सा काम भी नहीं कर सकती हो?" कासिम ने चिरौरी की । 

तराना बोली, “ठीक है भाई मैं शंकर से बात करूंगी। " 

अगले दिन तराना ने शंकर को सारी बातें बताकर उससे वह फार्मूला कासिम को देने को कहा। 

शंकर असमंजस में पड़ गया। उसने इस फार्मूले के लिए कई महीने तक कड़ी मेहनत की थी। यह फार्मूला उसने केवल तराना के लिए खोजा था। वह यह फार्मूला किसी को नहीं देना चाहता था। 

तराना द्वारा बार-बार मान मनौवल करने पर वह सुरमे का यह फार्मूला कासिम को देने को तैयार हो गया था। उसने सोचा कि वहतो तराना से प्यार करता है सुरमा तो उसने तराना की खातिर बनाया था। अब जब तराना ही इसे कासिम को देने को कह रही है तो उसे वह फार्मूला कासिम को दे देना चाहिए। उसने तराना से कहा- "ठीक है जब तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं कल फार्मूला लाकर तुम्हें दे दूँगा । मैं तो तुम्हारी खुशी में ही खुश हूँ। " 

तराना ने प्यार भरी नजरों से शंकर की ओर देखा था । 

अगले दिन तराना ने शंकर से फार्मूला लेकर कासिम को दे दिया । कासिम बड़ा खुश हुआ। 

कासिम ने उस फार्मूले पर सुरमा बनाकर उसको अच्छी सी सुरमेदानी में रखकर बाजार में बेचना शुरू किया। कुछ ही महीनों में यह सुरमा लोगों की पहली पसंद बन गया और उसकी खूब बिक्री होने लगी । कासिम सुरमा बेचकर खूब मुनाफा कमा रहा था। 

इधर तराना और शंकर का प्यार दिनों दिन प्रगाढ़ होता जा रहा था। दोनों का टीले पर मिलना बिना किसी नागा के जारी था। एक दिन शंकर ने तराना की ओर देखते हुए कहा- "तरारा तेरे नयन तो अब बड़े रतनारे हो गए हैं। यह झील सी गहरी आँखों से तेरी सुन्दरता में चार चांद लग गए हैं।" 

यह सुनकर तराना खिल-खिला कर हंस पड़ी थी। उस सुनसान स्थान पर तराना की खनकती हुई हंसी दूर -दूर तक गूंज गई थी। 

वे दोनों अब एक-दूसरे का जीवन साथी बनने का सपना देखने लगे थे। 

उधर कासिम के सुरमा की बिक्री दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। शहर की सीमाओं को पार करती हुई सुरमे की ख्याति पूरे प्रदेश में फैल चुकी थी । अब इस शहर की पहचान सुरमे से होने लगी थी । कासिम खूब मुनाफा कमा रहा था। 

कभी - कभी कासिम के मन में यह ख्याल आता कि यदि कभी शंकर ने किसी दिन सबको यह बता दिया कि सुरमे का यह फार्मूला तो उसका बनाया हुआ है तो मेरा सारा बना-बनाया खेल बिगड़ जाएगा। 

कासिम का खुराफाती दिमाग शंकर के खिलाफ तरह - तरह की योजनाएं बनाने लगा। उसने अपने समुदाय के नौजवानों और धार्मिक नुमाइन्दों को यह बताया कि दूसरे समुदाय का लड़का शंकर उसकी भोली-भाली बहिन तराना को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उससे शादी करना चाहता है। 

इससे उन लोगों में उत्तेजना फैल गई। सबने एक स्वर में कहा - "यह तो हमारे समुदाय का भारी अपमान होगा। इससे पहले कि शंकर और तराना कोई गलत कदम उठाएं हमें शंकर को सबक सिखाना होगा ।" 

उधर इस सबसे बेखबर शंकर और तराना अपने प्यार में मगन थे। उनका प्यार गंगाजल जैसा पवित्र और सोने जैसा खरा था । 

एक दिन शंकर और तराना टीले पर बैठ आपस में बातें कर रहे थे। तभी एक समुदाय के लोगों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। उन लोगों के हाथों में लाठी, डन्डे और छुरियां देखकर शंकर और तराना के होश फाख्ता हो गये थे । 

 “तराना ने लोगों को यह बताने की कोशिश की कि शंकर और वह एक-दूसरे को गहरा प्रेम करते हैं। मैं शंकर के बिना नहीं रह सकती हूँ । शंकर का इसमें कोई दोष नहीं है। " 

मगर भीड़ में जुनून था ओर जुनून न्याय तथा दया की भाषा नहीं समझता । कुछ उन्मादी लोग शंकर की ओर बढ़े। 

शंकर ने तराना से कहा – “तुम भाग जाओ तराना, नहीं तो यह लोग मेरे साथ तुम्हें भी मार डालेंगे। " 

'नहीं मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी शंकर। जियेंगे तो साथ-साथ, मरेंगे तो साथ-साथ ।" तराना चिल्लाई । 

तब तक वे लोग शंकर के काफी नजदीक पहुंच चुके थे। इससे पहले कि वे लोग शंकर पर हथियारों से वार करे शंकर ने नदी में छलांग लगा दी थी। 

"मैं भी तुम्हारे साथ आ रही हूँ शंकर ।" तराना चिल्लाई। लोग उसे पकड़ने के लिए दौड़े। मगर तब तक तराना नदी में छलांग लगा चुकी थी। नकटिया नदी की तेज धार में बहते हुए वे दोनों क्षण में ही बहुत दूर चले गए थे। 

भीड़ में मौजूद लोग काफी देर तक बुत बने वहीं खड़े रहे, फिर वे वापस लौट गये थे। 

कई दिन बाद शंकर और तराना की लाशें शहर से कई मील दूर नदी के किनारे एक झाड़ी में मिली थी । दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे। नदी की तेज धार भी उन्हें अलग नहीं कर पाई थी। कुछ ही दिनों में उन दोनों के प्यार के चर्चे दूर-दूर तक फैल गए। 

कहते हैं कि आज भी शंकर और तराना की अतृप्त आत्माएं नकटिया नदी के उस टीले के आसपास भटकती रहती हैं। कई लोगों ने दोनों को टीले पर बैठे हुए एवं आपस में बात करते हुए देखा है।