Ravi ki Laharen - 5 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 5

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रावी की लहरें - भाग 5

रावी की लहरें

 

रेशमा रावी नदी के किनारे बैठी हुई थी। वह एकटक नदी की शांत लहरों को देख रही थी । लहरें शांत गति से बह रही थी। चारों तरफ गहरी निस्तब्धता थी । 

यहां से बहती हुई रावी नदी पाकिस्तानी की सीमा में प्रवेश कर जाती है । यहीं पर भारत और पाकिस्तानी की सरहद मिलती है। रेशमा कश्मीर में रहती थी। वह सोपिया रेंज के एस.पी. के. आर. खान की इकलौती सन्तान थीं। 

काफी देर तक रेशमा नदी की फेनिल लहरों को निहारती रही। फिर उसकी नजरें पश्चिम की तरफ उठ गई । उसे सरफराज के आने का इंतजार था। उसने घड़ी पर नजर डाली। चार बज गए थे। सरफराज अभी तक आया नहीं, वह मन ही मन बुदबुदाई | 

वह सरफराज के बारे में सोचने लगी । अतीत की स्मृतियां चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने साकार हो उठी। रेशमा कश्मीर यूनिवर्सिटी में पढ़ती थीं । उसने वहां से बी. एस. सी. किया और इस वर्ष वह एम. एस. सी. प्रीवियस की स्टूडेन्ट थी । वह लम्बी और छरहरे बदन की बेहद सुन्दर युवती थी । गोरा रंग और तीखे नक्श वाली रेशमा को जो देखता वह उसे देखता ही रह जाता। यूनिवर्सिटी के सैकड़ों स्टूडेंट्स उससे बात करने और मिलने को बेताव रहते, मगर रेशमा किसी की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखती। 

वह बेहद संजीदा किस्म की लड़की थी। अपने पापा की तरह वह एक जांबाज पुलिस आफीसर बनना चाहती थी । इसलिए उसने पढ़ाई के साथ-साथ एन.सी.सी. ज्वाइन की थी। एन.सी.सी. की ड्रिल वह रेगुलर अटेन्ड करती और हर कैम्प में भाग लेती। बी.एस.सी. फस्ट डिवीजन पास करने के साथ ही साथ उसे एन.सी.सी. का सी. सर्टिफिकेट भी मिल चुका था । उसकी गिनती यूनिवर्सिटी के ब्रिलिएन्ट एवं सिन्सियर स्टूडेन्ट में होती थी । 

एम. एस. सी. प्रीवियस का उसका पहला दिन था। रेशमा क्लासरूम में बैठी हुई थी और अपनी क्लासमेट से बातें कर रही थी। तभी एक नए स्टूडेंट्स ने क्लास में प्रवेश किया। अकस्मात् सबकी निगाहें उसकी ओर उठ गई । 

रेशमा भी उसकी ओर देखने लगी। वह इतना हैंडसम था कि रेशमा की निगाहें उस पर टिक गई। वह लगातार उसे देखे जा रही थी । वह इस बात से बेखबर थी कि उसकी सारी फ्रेन्ड्स रेशमा की यह हालत देख मुस्करा रही थीं और आँखों में एक दूसरे को इशारे कर रही थी । 

रेशमा की फ्रेन्ड अंजलि उसका कंधा हिलाते हुए बोली - 'कहाँ खो गई रेशमा। लगता है इस नए क्लासमेट ने मेरी फ्रेन्ड को अपना फैन बना लिया है।' 

'नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ।' रेशमा शर्माते हुए बोली। मगर उसकी आँखें कुछ चुगली कर रही थी। 

उस नए स्टूडेन्ट का नाम सरफराज था। पता चला कि वह लाहौर का रहने वाला था और यहां कश्मीर यूनिवर्सिटी से एम. एस. सी. करने आया था। 

लम्बा छरहरा बदन, मजबूत कद-काठी स्ट्रांग मशल्स, चौड़ा सीना और गम्भीर चेहरा। कुल मिलाकर उसका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावी था । रेशमा पहली नजर में ही उसे अपना दिल दे बैठी थी। वह जब भी उसे देखती उसके दिल में एक अजीब सी गुदगुदी होने लगती । 

एक दिन रेशमा खाली पीरियड में बैठी हुई कोई मैगजीन पढ़ रही थी। तभी सरफराज वहां आ गया और उसी टेबिल के पास पड़ी चेयर पर बैठ गया । अचानक सरफराज को अपने पास बैठा देखकर हड़बड़ी में रेशमा के हाथ से मैगजीन छूट कर नीचे जा गिरी। 

सरफराज ने नीचे झुककर मैगजीन उठाई और रेशमा को पकड़ा दी। मैगजीन लेते समय रेशमा की उंगलियां सरफराज की उंगलियों से छू गई। किसी पुरुष के स्पर्श का रेशमा का यह पहला अनुभव था। उसके पूरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गई। 

रेशमा और सरफराज की यह पहली मुलाकात थी। दोनों का आपस में परिचय हुआ। फिर दोनों के बीच मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया । वह मुलाकातें कब प्यार में बदल गई दोनों को खुद भी पता नहीं चला। 

रेशमा और सरफराज प्यार की मजबूत डोर में बंध चुके थे। देश की सरहदें भी उनके प्यार में रुकावट नहीं बन पाई थी। अक्सर दोनों शाम को कई-कई घंटे साथ बिताते और दुनिया जहान की बातें करते । 

तभी कोरोना के कारण अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ही यूनिवर्सिटी अनिश्चितकाल के लिए बन्द कर देने की सूचना नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दी गई। वह सूचना पढ़कर सरफराज और रेशमा दोनों बड़े उदास और परेशान हो उठे। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब वे एक-दूसरे के बिना कैसे रह पायेंगे। 

सरफराज और रेशमा ने आपस में तय किया कि जब तक यूनिवर्सिटी बन्द रहती है तब तक वे दोनों हर रविवार को सरहद पर रावी नदी के किनारे मिला करेंगे। तब से सरफराज और रेशमा लगातार हर रविवार को बिना किसी नागा के यहीं रावी नदी के किनारे मिला करते थे। 

आज सरफराज अपने पापा को लेकर आने वाला था। उसने रेशमा को बताया कि उसने अपने पापा को रेशमा के बारे में सब कुछ बता दिया है। वे उन दोनों की शादी के लिए तैयार हैं, मगर वह एक बार रेशमा से मिलना चाहते हैं। 

रेशमा बड़ी बेसब्री से दोनों का इन्तजार कर रही थी। बार-बार उसकी निगाहें पाकिस्तानी सरहद की ओर उठ जाती। तभी उसे सरफराज के साथ उसके पापा आते दिखाई दिए। उसका दिल बल्लियों उछलने लगा। 

धीरे-धीरे दोनों पास आ गए। रेशमा ने सरफराज के पापा को नमस्ते की । वे रेशमा से बात करने लगे। कुछ देर तक रेशमा से बात करने के बाद वे बोले “सरफराज ने मुझे तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दिया है। मैं तुम दोनों के रिश्ते के लिए तैयार हूँ, मगर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा ।" 

“मैं हर काम करने के लिए तैयार हूँ अंकल जी । आप बताइए तो सही।" रेशमा मुस्कराते हुए बोली, “एक बार फिर सोच लो ।” उन्होंने रेशमा की ओर देखते हुए कहा । 

इसमें सोचने वाली क्या बात है अंकल जी । आप काम तो बताइए' रेशमा बोली । 

'तुम्हारे पापा की अलमारी में एक फाइल रखी है। तुम्हें वह फाइल मुझे लाकर देनी होगी । " 

“मगर पापा तो अपनी सारी फाइलें आफिस में रखते हैं। मैंने उन्हें कभी कोई फाइल घर लाते नहीं देखा ।" रेशमा भोलेपन से बोली। 

'वह बहुत गोपनीय और महत्वपूर्ण फाइल है । उसमें आतंकवादियों के मारने का एक्शन प्लान है । उन लोगों के नाम और फोन नम्बर भी है जो आतंकवादियों की लोकेशन की सूचना अधिकारियों तक पहुँचाते हैं। इसलिए तुम्हारे पापा उस फाइल को घर पर सेफ में रखते हैं। मुझे हर कीमत पर वह फाइल चाहिए।" सरफराज के पापा कठोर स्वर में बोले । 

“क्या?" रेशमा का मुंह आश्चर्य से खुले का खुला रह गया। काफी देर तक वह बुत बनी खड़ी रही। फिर उसने पूछा - " मगर अंकल जी आतंकवादियों की फाइल का हम दोनों के रिश्ते से क्या सम्बन्ध है?" 

“सम्बन्ध है, मैं सरफराज का पापा नहीं हूँ मैं तो आतंकवादियों का कमांडर हूँ। सरफराज भी आतंकवादी गुट का मेम्बर है। तुम्हारे द्वारा यह फाइल हासिल करने के लिए ही हमने सरफराज को यूनिवर्सिटी में एडमीशन दिलाया था जिससे वह तुम्हें अपने प्यार के जाल मे फंसा सके। "वह सपाट स्वर में बोला। 

"क्या?" रेशमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसके कानों में पिघलता हुआ शीशा उड़ेल दिया हो। 

काफी देर में वह अपने को संयत कर पाई। फिर वह सरफराज की ओर देखते हुए बोली, “अंकल जो कह रहे हैं वह क्या सच है सरफराज ? क्या तुम भी आतंकवादी हो और तुमने मेरे साथ प्रेम का नाटक किया?" 

“अंकल जो कह रहे हैं वह सच है रेशमा । " सरफराज कुटिलता पूर्वक मुस्कराते हुए बोला । सरफराज की बात सुनकर रेशमा को सारी दुनिया घूमती हुई सी मालूम पड़ रही थी। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे । 

"देखो रेशमा, अगर तुम मुझे यह फाइल लाकर दे देती हो तो मैं तुम्हारा रिश्ता सरफराज से करा दूंगा। तुम भी सरफराज के साथ मेरे संगठन में काम करना। मगर तुमने कोई चालाकी दिखाई तो तुम्हारे और सरफराज के सारे फोटो सोशल मीडिया पर वाइरल कर दिए जायेंगे ।" सरफराज के पापा चेतावनी भरे स्वर में बोले । 

रेशमा ने कोई उतर नहीं दिया। तरह-तरह के विचार उसके मन में आ रहे थे। वह काफी देर तक सोचती रही। फिर मन ही मन कुछ निश्चय कर 

वह बोली - "ठीक है अंकल जी । मैं सरफराज से बेहद प्रेम करती हूँ उसका प्यार पाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ। आप दोनों कल इसी समय यहां आ जाना। मैं पापा की सेफ से वह फाइल लाकर आप लोगों को दे दूंगी।" 

“वेरी गुड रेशमा। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी । " सरफराज के साथ आया कमांडर बोला। 

फिर तीनों वहां से चले गए। अगले दिन निश्चित समय पर रेशमा कंधे पर बैग लटकाए वहां पहुंच गई। सरफराज और उसका कमांडर पहले से ही वहां मौजूद थे और रेशमा के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। 

रेशमा को देखते ही कमांडर ने पूछा - “फाइल ले आई।"

"जी अंकल जी ।" रेशमा ने उत्तर दिया। “लाओ फाइल मुझे दिखाओ।" कमांडर आदेश भरे स्वर में बोला । 

यह लीजिए फाइल अंकल जी।" यह कहकर रेशमा आगे बढ़ी। कमांडर और सरफराज के निकट पहुँचकर रेशमा ने बैग की चेन खोली और उसमें से एक मोटी सी फाइल निकाली। फिर इससे पहले कि सरफराज और कमांडर कुछ समझ पाते रेशमा ने बड़ी फुर्ती से फाइल में से रिवाल्वर निकालकर एक-एक गोली दोनों के सीने में उतार दी । सरफराज चिल्लाया, “ये क्या कर रही हो रेशमा, मैं तुम्हारा होने वाला पति हूँ।" "आतंकवादी किसी का पति, पिता या भाई नहीं हो सकता। वह सिर्फ आतंकवादी होता है। " रेशमा ने कठोर स्वर में कहा। 

रेशमा अचूक निशानेबाज थी उसका निशाना बिल्कुल सटीक बैठा था । एक-एक गोली में ही दोनों का काम तमाम हो चुका था। फिर अपनी तसल्ली के लिए रेशमा ने रिवाल्वर में बची गोलियां दोनों के शरीर में उतार दी। दोनों जमीन पर गिरकर तड़पने लगे। 

फिर उन्हें उसी हालत में छोड़कर रेशमा वापस घर आ गई। जगह सुनसान होने के कारण किसी को इस हादसे की भनक तक नहीं लगी। 

शाम को जब उसके पापा आफिस से वापस आए तो रेशमा ने सारी बातें उन्हें साफ-साफ बता दी। 

“क्या कह रही हो रेशमा? जानती हो? वे लोग कितने खतरनाक है। अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं क्या करता?" उसके पापा बड़े भावुक स्वर में बोले। 

“मैं आपकी बेटी हूँ पापा । जाबांज आफीसर आर. के. खान की बेटी । मेरी रगों में आपका ही खून दौड़ रहा है। अपने वतन की रक्षा के लिए मैं कोई भी खतरा उठा सकती हूँ।" रेशमा दृढ़ स्वर में बोली । 

इसके बाद उसने अपना सिर अपने पापा के सीने में टिका दिया। एस. पी. खान प्यार से अपनी बेटी के सिर पर हाथ फिराने लगे।