Ravi ki Laharen - 2 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 2

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रावी की लहरें - भाग 2

अनोखी आभा

 

नवम्बर का महीना था। रात के दस बजे थे। मैदानी इलाकों में नवम्बर में हल्की सर्दी का महीना माना जाता है। दिन में गुनगुनी धूप निकलती है और शाम होते-होते मौसम हल्का ठंड हो जाता है। मगर कश्मीर में नवम्बर में भी अच्छी खासी सर्दी पड़ती है। कभी-कभी तो बर्फबारी भी शुरू हो जाती है । 

परवेज रसूल गुलमर्ग में अपने घर में बैड पर रजाई में लेटा हुआ था। वह सोने की कोशिश कर रहा था। तभी उसके दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई। वह आश्चर्य में पड़ गया । इतनी रात में इस सर्दी की रात में कौन हो सकता है उसने मन ही मन सोचा । 

उसने उठकर दरवाजा खोला। सामने तीन - चार राइफल धारी नौजवानों को देखकर वह घबरा उठा। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि वे आतंकवादी हैं। 

“हमें आपसे कुछ बात करनी है।" उनमें से एक रुआबदार स्वर में बोला । वह शायद उनका कमांडर था । 

बताइए क्या बात है ?" परवेज रसूल ने कहा। बात महत्वपूर्ण है इसलिए यहां खड़े होकर नहीं की जा सकती। आप हमें अन्दर आने दीजिए। बैठकर बात करते हैं ।" उसी नौजवान ने परवेज रसूल के चेहरे की ओर देखते हुए कहा । 

मजबूरी में परवेज रसूल ने अनमने भाव से दरवाजा खेला, और उन तीनों को अपने कमरे में बैठाया। फिर उसी नौजवान की ओर मुखातिब होते हुए पूछा, “कहिए क्या कहना है?" 

देखिए आप यह तो समझ ही गए होंगे कि हम लोग आतंकवादी संगठन से जुड़े हैं और कश्मीर को आजाद कराने की मुहिम में लगे हुए हैं। हमें इस नेक काम में आपकी मदद चाहिए। "नौजवान सपाट स्वर में बोला, 'कैसी मदद?" परवेज स्कूल ने उसकी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा । 

नौजवान राजभरे स्वर में बोल, “ देखिए हमें पता चला है कि आप इस रेन्ज के एस.एस.पी. एक. के. सिंह के पर्सनल अटेन्टेन्ट हैं। उनके लिए चाय, काफी, ब्रेकफास्ट और खाने का टिफिन आप ही लेकर जाते हैं। वे आप पर बहुत विश्वास करते हैं और आप द्वारा ले जाई गई खाने-पीने की चीजों को कभी चेक नहीं करवाते हैं। हम इसी का लाभ उठाना चाहते हैं। " 

"कैसा लाभ मैं कुछ समझा नहीं।" परवेज रसूल ने उस नौजवान की ओर देखते हुए पूछा। 

"देखिए एस. के. सिंह एक जांबाज और दिलेर पुलिस ऑफिसर हैं। वे हमारे मिशन के लिए बहुत बड़ा खतरा है । हमारे कई साथियों को वह पुलिस मुठभेड़ में गोलियों से छलनी कर चुके हैं। उनके कारण हमारा नेटवर्क यहां सक्रिय नहीं हो पा रहा है। उन्हें रास्ते से हटाना बहुत जरूरी है। हमने उनको मारने का एक्शन प्लान बनाया है और उसमें हमें आपकी मदद चाहिए।" वह आतंकवादी कमांडर रसूल की आँखों में झाँकते हुए बोला ।" 

“क्या? एस.एस.पी. साहब को मारने का प्लान । परवेज रसूल ऐसे उछल पड़ा मानो उसके पास में ही कहीं बम फटा हो ।" मैं इसमें तुम लोगों की कोई मदद नहीं कर सकता। यह एस. एस. पी. साहब के साथ विश्वासघात होगा । नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता। तुम लोगों ने सोच भी कैसे लिया कि मैं इस गुनाह में तुम लोगों का साथ दूँगा ।" परवेज रसूल उत्तेजित स्वर में बोला । 

आतंकवादी कमांडर ने कोई इशारा किया और उसके साथियों ने परवेज रसूल पर अपनी राइफलें तान दी । परवेज रसूल का चेहरा भय से सफेद पड़ गया। 

कमांडर कड़कदार स्वर में बोला, “तुम्हें यह काम करना ही होगा। अगर तुमने इसके लिए मना किया तो मेरे एक इशारे पर तुम्हारी और तुम्हारे दोनों बेटों व बेगम की लाशें जमीन पर तड़ती मिलेंगी ।" 

परवेज रसूल का पूरा शरीर भय से थर-थर कांपने लगा था । "मुझे विचार करन के लिए कुछ समय चाहिए। "बड़ी कठिनाई से यह शब्द उसके मुँह से निकले । 

"हमारा हुक्म अन्तिम होता है। उस पर विचार करने के लिए कोई समय नहीं मिलता। तुम्हें अभी हाँ या ना में जवाब देना होगा। अगर ना की तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना ।" 

परवेज रसूल को मानो सांप सूंघ गया था। काफी देर तक वह बुत बना बैठा रहा । 

वह आतंकी कमांडर अपने स्वर को मुलायम बनाते हुए बोला - देखो यह काम तुम्हें हर हालत में करना ही करना है । हम तुम्हें इस काम के लिए पूरे पच्चीस लाख रुपए देंगे जो तुम्हारी दस साल की पगार के बराबर है ।" 

परवेज रसूल के पास अब हाँ करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। 

अपनी परिवार की सुरक्षा और पच्चीस लाख रुपए के लालच में वह हाँ कहने के लिए तैयार हो गया था। उसने कहा, “मैं आपका काम करने के लिए तैयार हूँ। मगर मुझे करना क्या होगा यह तो बताइए?" 

यह तुम्हें दो-तीन दिन में बता दिया जाएगा। फिर उसने अपने एक साथी को कुछ इशारा किया। उसने एक बैग परवेज रसूल के सामने रख दिया। वह आतंकवादी कमांडर बोला, "इसमें दस लाख रूपए हैं, रख लो। शेष पन्द्रह लाख रूपए जिस दिन हम काम बताने आयेंगे उस दिन दे देंगे।" इसके बाद ये आतंकवादी चले गए थे। जाते-जाते ये चेतावनी दे गए थे कि वह इस बारे में किसी को नहीं बताएगा। उनके जाने के बाद भी परवेज रसूल काफी देर तक बुत बना बैठा रहा था । 

परवेज रसूल की बेगम भी जाग गई थी और अंदर बैठी हुई सारी बातें सुन रही थी। दोनों काफी देर तक आपस में सोच विचार करते रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक आई इस विपदा से कैसे निपटा जाए। 

दो-तीन दिन बाद सुबह वह घर से ऑफिस जा रहा था । आफिस उसके घर से दो किलोमीटर दूर था। मगर पहाड़ी रास्ता होने के कारण उसे पैदल ही आफिस जाना पड़ता था। एक जगह पर रास्ता संकरा था, दोनों तरफ झाड़ियाँ थीं। परवेज रसूल कुछ सोचता हुआ जा रहा था। अचानक झाड़ी में से चार-पांच आतंकवादी निकल आए थे। उन्हें देखकर परवेज रसूल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। इससे पहले कि वह कुछ कहे वही कमांडर बोला, "तुम रोज दोपहर में एस. एस. पी. सिंह के क्वार्टर से उनका लंच बॉक्स लेकर जाते हो और उसको उनकी टेबल पर रख देते हो।" 

"जी हाँ, रसूल ने बड़ी कठिनाई से कहा था। आज तम्हें उनके लंच बॉक्स में यह बम रखना है। बम में ठीक दो बजे का टाइम सेट है। एस.एस. पी. टाइम का बड़ा पावंद है। वह ठीक दो बजे लंच करता है। आज जैसे ही वह लंच बॉक्स खोलेगा, बम फट जाएगा और उसके परखचे उड़ जायेंगे । 

परवेज रसूल का पूरा शरीर भय के मारे थर-थर कांप रहा था। वह कुछ कहना चाह रहा था, मगर भय के कारण शब्द उसके होठों से नहीं निकल पाए थे। उसे बम पकड़ाकर आतंकवादी फिर झाड़ियों में गायब हो गये थे। 

परवेज रसूल को तो मानो काठ मार गया था। वह काफी देर तक वहीं बुत बना खड़ा रहा था फिर वह आफिस की ओर चल दिया था। उसने सोचा कि आतंकी कमाण्डर ने जो कहा है वैसा करने में ही उसकी और उसके परिवार की खैरियत है। 

दोपहर में जब वह एस. एस. पी. साहब को यहां से लंच बॉक्स लेकर आया तो उसने लंच बॉक्स में से खीर की कटोरी हटाकर उसके स्थान पर बम रख दिया। बम आकार में काफी छोटा था इसलिए आसानी से लंच बॉक्स में फिट हो गया था। 

उसने लंच बॉक्स ले जाकर साहब की टेबल पर रख दिया। उसका दिल धक-धक कर रहा था। उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाने में बड़ी कठिनाई हो रही थी। 

दो बजने में पाँच मिनट रह गए थे। एस. एस. पी. साहब लंच करने के लिए अपनी टेबल की ओर चल दिए थे। 

अचानक एक विचार परवेज रसूल के मन में बिजली की भांति कौंधा, 'यह क्या करने जा रहा है परवेज रसूल ! तू उस अफसर के साथ गद्दारी करने जा रहा है जो तुझ पर सबसे ज्यादा विश्वास करता है। जिस अफसर ने तेरी पत्नी को बचाने के लिए पिछले साल अपना खून दिया था। वह अफसर जो जांबाज है. ईमानदार है और अपने बतन की रक्षा के लिए हर दम अपनी जान हथेली पर लिए फिरता है । वह अफसर है जो हर मिशन में खुद सबसे आगे रहता है। और फिर तू अपने वतन से गद्दारी कर रहा है। ऐसा करके तुझे दोजख में भी जगह नहीं मिलेगी । परवेज रसूल ! तू गद्दार कहलाएगा गद्दार । लोग तेरे नाम पर थूकेंगे। 

विचारों का सिलसिला थामे नहीं थम रहा था। उत्तेजना के मारे परवेज रसूल का पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया था । 

उसने देखा कि एस.एस.पी. साहब टेबुल पर पहुंच गए हैं और वे टिफिन खोलने ही वाले हैं। परवेज रसूल ने घड़ी पर नजर डाली। दो बजने में केवल दो मिनट रह गए थे। 

अचानक परवेज रसूल जोर से चीखा - “साहब टिफिन मत खोलना, टिफिन में बम है। " एस.एस.पी. का हाथ जहां का तहां रूक गया था। 

परवेज रसूल तेजी से मेज की ओर भागा। उसने फूर्ती से लंच बॉक्स उठाया और खिड़की में से नीचे झील में फेंक दिया। तब तक दो बज गए थे। अचानक इतना तेज धमाका हुआ कि आफिस की खिड़कियों के शीशे चटक गए और झील का पानी बहुत देर तक खौलता रहा । 

यह सब एक क्षण में घटित हो गया था। एस.एस.पी. एस. के. सिंह हैरान से खड़े यह सब देख रहे थे। 

“तुम्हें इस बम के बारे में कैसे पता चला?" उन्होंने परवेज रसूल से कठोर स्वर में पूछा । 

परवेज रसूल ने अपने साथ घटी तीन-चार दिन की घटनाएं सच-सच बयां कर दी।  

एस. के. सिंह अनुभवी अफसर थे। उन्हें परवेज रसूल की बातों में सच्चाई लगी । फिर अचानक एक बात उनके मन में बिजली की भांति कौंधी और वे बोले, "तुम्हारे परिवार को खतरा हो सकता है परवेज रसूल। हमें तुरन्त वहां पहुंचना होगा ।" 

एस. एस. पी. एस. के. सिंह तत्काल एक्शन मोड में आ गए थे। उन्होंने हेड क्वार्टर पर मौजूद पुलिस फोर्स एवं रेपिड एक्शन फोर्स को चार टुकड़ियों में बांटकर तीन टुकड़ियों को आतंकवादियों की काम्बिंग करने के आदेश दिए । 

स्वयं वे एक टुकड़ी लेकर परवेज रसूल के साथ उसके घर की ओर चल दिए। आतंकवादी अभी तक परवेज रसूल के घर नहीं पहुंचे थे जिससे उसका परिवार सुरक्षित था। एस.के. सिंह को आशंका थी कि आतंकवादी देर-सवेर परवेज रसूल के मकान पर आयेंगे जरूर इसलिए उन्होंने फोर्स को मोर्चा संभालने और हर पल एक्शन मोड में रहने का आदेश दिया। वे खुद आगे रहकर नेतृत्व कर रहे थे। 

एस.एस.पी. एस. के. सिंह की आशंका सही साबित हुई । एक-डेढ़ घंटे बाद आतंकवादियों ने परवेज रसूल के मकान को घेरकर अंधाधुन्ध फायरिंग शुरू कर दी। वे परवेज रसूल पर गद्दारी का का आरोप लगा रहे थे और उसे सबक सिखाने की बात कर रहे थे। 

उधर परवेज रसूल के घर पर पुलिस एवं रैपिड फोर्स के जवान पूरी तरह मुस्तैद थे। उन्होंने एस.एस.पी. एस. के. सिंह के आदेश पर जवाबी फयरिंग शुरू कर दी। दो-तीन घंटे तक दोनों ओर से फायरिंग होती रही। इस बीच दो आतंकवादी पुलिस की गोलियों से ढेर हो गए। शेष बचे तीन आतंकवादी भाग निकले। 

एस.एस.पी. एस. के. सिंह ने जंगल में कांम्बिज कर रहे पुलिस एवं एक्शन फोर्श में जवानों को पूरी बात बता कर उन्हें पूरी तरह से अलर्ट रहने और आतंकवादियों को घेरने का आदेश दिया। कई घंटे की फायरिंग के बाद दो आतंकी मारे गये और बचे हुए एक आतंकवादी ने आत्मसमर्पण कर दिया। 

एस.एस.पी. एस. के. सिंह ने परवेज रसूल की पीठ थपथपाई। परवेज रसूल ने श्रद्धावश उनके पैर छू लिए। परवेज रसूल के मन में छाए संशय के सारे बादल अब छट चुके थे और उसका चेहरा देश प्रेम की अनोखी आभा से दमक उठा था।