सुरेश बाबू मिश्रा
(कहानी संग्रह)
‘जीवन संघर्ष और उत्कट जिजीविषा से जुडी हैं संग्रह की कहानियां’
मानव जीवन और उसके कार्य व्यवहार सदा ही अनंत कौतुक - कौतूहलों व जिज्ञासाओं का केंद्र रहे हैं । साहित्य किसी भी कालखंड के क्रिया कलापों व गतिविधियों को जानने समझने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण जरिया माना जाता है । साहित्य के द्वारा हम अपने पास-पड़ौस, परिवेशीय जीव जगत के अलावा दुनिया के कोने कोने में फैले जीव जगत व उसके कार्य व्यवहार के बारे में जानते और अनुभव करते हैं। यह अनुभव पाठक के तौर पर न केवल हमें समृद्ध करते हैं बल्कि हमारा दृष्टिकोण या नजरिया भी बनाते हैं।
अपने उद्भव काल से ही 'कहानी' साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा रही है। साहित्य की अन्य विधाओं के इतर कहानी का यह सर्वाधिक स्वाभाविक गुण है कि वह हर आयु वर्ग के व्यक्ति को रुचती और आकर्षित करती है। बाल मन कहानियाँ सुनते-सुनाते ही किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में कदम रखता है। उम्र के इस हर पड़ाव पर कहानी हमकदम की तरह मजबूती से साथ निभाती है । इसलिए यहाँ तक कहा जाता है कि 'कहानियाँ हमारी जीवन यात्रा में सर्वाधिक कुशल मार्गदर्शक होती हैं।'
कहानी के तात्विक विश्लेषण के अपने आधार बिंदु हैं जो कि विद्वानों द्वारा निश्चित और निर्धारित किये गए हैं। इनके आधार पर समीक्षक अपने अपने ऐंगल से किसी भी कहानी या कहानी संग्रह की समीक्षा किया करते हैं। लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि सामाजिक स्थितियों, परिस्थितियों, संगतियों असंगतियों विसंगतियों पर दृष्टिपात के साथ-साथ अगर कहानी तात्कालिक परिस्थितियों में समाधान के मार्ग भी सुझाती है तो यह कदम साहित्य के हितकारी भाव को पुष्टि प्रदान करता है ।
श्री सुरेश बाबू मिश्रा देश के जाने-माने रचनाकार हैं जो लम्बे समय तक शिक्षण कार्य से जुड़े रहे हैं। स्वाभाविक ही है कि शिक्षा विभाग के पवित्र और गुरुतर दायित्वों में उनका साहित्यिक व संवेदनशील रचनाकार मन घुला - मिला रहा है। इसी का नतीजा रहा कि उनकी रचनाएँ मानवीय उदात्त पहलुओं से सघन रूप में बनी - बुनी होती हैं।
कहानी संग्रह 'रावी की लहरें' सुरेश बाबू मिश्रा जी का नवीनतम कहानी संग्रह है। संग्रह में कुल पच्चीस कहानियाँ हैं जो विषयगत वैविध्य के चलते सहज ही आकर्षित करती हैं। संग्रह की प्रथम कहानी के रूप में 'आखिरी प्रणाम' अपने सैन्य मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुँचाने वाले जाँबाज सिपाही की कथा है तो 'अनोखी आभा' देश प्रेम के जज्बे के चलते आतंकियों की धमकी में न आने वाले देशभक्त परवेज रसूल की कथा । 'घायल सैनिक' वतन की सुरक्षा की खातिर दहशतगर्दों से झूठ बोलकर घायल सैनिक की जान बचाने वाले अल्लाह के बन्दे 'गौस खान' के जरिए पाठक के हृदय का स्पर्श करती है तो 'बिखरा हुआ लहू' को पढ़ते पढ़ते पाठक उस जाँबाज रघुराज के प्रति स्वतः ही नतमस्तक हो जाता है जो दीवाली पर घर जाने के बजाय सीमा पर तनाव के चलते देश के लिए कुर्बान हो जाता है। इसी प्रकार 'रावी की लहरें' प्रेम का नाटक कर देश की सुरक्षा से जुड़ी गोपनीय फाइलों को प्राप्त करने का दुष्प्रयास कर रहे आतंकवादी के खत्मे की कथा है। संग्रह की सभी कहानियाँ सार्थक और सोद्देश्य हैं जो मनुष्यता के विश्वास को पुख्ता करती हैं। इन सभी कहानियों में देश प्रेम, मानवता, करुणा, साहचर्य, समावेशन जैसे विभिन्न रंग हैं जो सहज सरल तरीके से पाठक के सामने खुलते - खिलते हैं।
संग्रह की सभी कहानियों में भाषा परिवेश, परिस्थितियों व पात्रों के अनुकूल है। भाषा को लेकर कोई वाग्विलास नहीं है जिससे पाठक सुगमता पूर्वक कहानियों के बहाव में बहता चला जाता है। कहानियों में अनावश्यक विस्तार नहीं है तथा घटनाओं में परस्पर जुड़ाव है। कहानियों के पात्र, परिवेश, कथावस्तु और घटनाएँ किसी काल्पनिक दुनिया का हिस्सा न लगकर आपने आस पास के और परिचित प्रतीत होते हैं। कहानियों में जीवन संघर्ष हैं तो उत्कट जिजीविषा भी । सामाजिक जीवन की व्यथा कथा हैं, तो इंसानियत के सुरीले राग भी ।
निश्चित रूप से संग्रह की सभी कहानियाँ अपने भाव और प्रभाव में पाठक को बाँधे रखती हैं और समृद्ध करती हैं।
मैं संग्रह के प्रकाशन हेतु अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ । मेरा पूर्ण विश्वास है कि पाठकों की दुनिया में इस संग्रह की सभी कहानियाँ भरपूर चाही और सराही जायेंगी ।
- डॉ० अवनीश यादव
प्रधानाचार्य
राजकीय मॉडल इण्टर कॉलेज, बरेली
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रावी की लहरें - जन सामान्य का स्वर
दो सौ से अधिक कहानियां लिख चुके सुरेश बाबू मिश्रा जी के नए कहानी संग्रह 'रावी की लहरें पढ़ कर फिर यह कहना उचित ही लगता है कि कहानियां बस यूँ ही नहीं लिख दी जातीं। लेखक को समाज के हर उस कोने पर विशेष दृष्टि डालनी पड़ती है, जो ज्यादा अँधेरे में डूबे होते हैं। हर उस व्यक्ति, वर्ग की आवाज बनना पड़ता है जो उपेक्षित और दुर्बल हैं। संग्रह की पचीस दिलचस्प कहानियां समाज के उस वर्ग को भी छूती हैं, जिनके बारे में चर्चा कम ही की गई है।
ऐसा प्रारंभ की कुछ कहानियों के बारे में विशेष रूप से कह सकते हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य को लेकर सामान्यतः यही धारणा है कि वहां के लोगों में देश के लिए यह राष्ट्र भक्ति नहीं है, जो देश के अन्य हिस्सों के लोगों में है । उनमें देश की सेना के लिए अच्छी भावना का अभाव है, यो उन पर हमलावर होते हैं, पत्थरबाजी करते हैं, आतंकियों के लिए स्लीपर सेल बनते हैं, उन्हें हर संभव मदद करते हैं।
वहां पर जैसी स्थितियां आजादी के समय से ही बनी रही हैं, तथ्य आंकड़ों पर जब दृष्टि जाती है तो इन बातों को पूरा बल मिलता भी है। इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि सेना और देश को प्रारंभ से ही वहां पर व्यापक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन जैसा कि कहते हैं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं और कोई भी सिक्का या बात पूर्ण तभी है जब उसके दोनों ही पहलुओं की बात हो ।
इस संग्रह की, 'आखिरी प्रणाम', 'अनोखी आभा', 'घायल सैनिक', 'रावी की लहरें ' आदि ऐसी कहानियां हैं जो सिक्के के उस पहलू की बात कर रही हैं, जिसकी चर्चा सामान्यतः कम ही की जाती है। संग्रह की शीर्षक कहानी 'रावी की लहरें' की नायिका का एक कदम इसी पक्ष को बहुत ही सशक्त ढंग से प्रस्तुत करती है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के षड्यंत्र का शिकार हो उनके शिकंजे में बुरी तरह फंस जाती है। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान वह पाकिस्तानी एजेंट के प्यार में उलझ कर उसे जी- जान से चाहने लगती है।
एजेंट को जब विश्वास हो गया कि अब वह बिना उसके नहीं रह सकती तब वह अपने सीनियर जिसे वह अपना अब्बा कहता है, के साथ पाकिस्तान से आकर भारत के बॉर्डर पर वहां मिलता है, जहाँ रावी नदी पाकिस्तान में प्रवेश करती है। उसका अब्बा उससे कहता है कि वह अपने पुलिस अधिकारी फादर की अलमारी से सीक्रेट फाइल जब निकाल कर उसे देगी, तभी उसका निकाह होगा, अन्यथा नहीं ।
उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस बुरी तरह छल कपट, षड्यंत्र का शिकार होगी । लेकिन धैर्य बनाए रखती है और छल कपट का जवाब छल-कपट से ही देते हुए, उन्हें बॉर्डर के उसी स्थान पर फाइल देने के बहाने बुला कर शूट कर देती है। और हतप्रभ मरते हुए एजेंट से कहती है, 'आतंकवादी किसी का पति, पिता या भाई नहीं हो सकता वह सिर्फ आतंकवादी होता है।'
संग्रह की अलग-अलग काल-खंड का प्रतिनिधित्व करतीं यह कहानियां समाज के कमजोर वर्गों से लेकर, फौजियों के जीवन, उनके त्याग, बलिदान का बहुत ही प्रभावशाली चित्रण करती हैं। इन छोटी-छोटी कहानियों में समाज के ऐसे वर्ग की भी आवाज को शक्ति प्रदान करने की कोशिश की गई है, जो स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। 'इज्जत के रखवाले', 'जमीन का पट्टा', 'बड़े ठाकुर' आदि कहानियों में कमजोर वर्ग की बात उठाई गई है। समाज व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का बहुत ही सशक्त चित्रण 'कार्य शैली' कहानी करती है।
'जमीन का पट्टा' एक बहुत ही मार्मिक कहानी है जो शोषक और शोषित की स्थिति को एक वकील और बुजुर्ग व्यक्ति के माध्यम से बड़ी कुशलता से स्पष्ट करती है, जिसे पढ़ते हुए कैलाश गौतम की चर्चित कविता, कचहरी न जाना बरबस ही याद आती है। जिसमें एक जगह यह कहते हैं, ..... कचहरी की महिमा निराली है बेटे, कचहरी वकीलों की थाली है बेटे, पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे ... ऐसे ही आगे लिखते हैं .... लगाते - बुझाते सिखाते मिलेंगे, हथेली पर सरसों उगाते मिलेंगे, कचहरी तो बेवा का तन देखती है, कहाँ से खुलेगा बटन देखती…. कहानी में बुजुर्ग व्यक्ति का यह संवाद हृदय को झकझोर देता है कि, 'मैंने सोचा था कि वकील साहब से मिलने के बाद धोती खरीद लूंगा, पर जमीन पर कब्जे की दिलासा दिलाकर वकील साहब ने यह पैसे भी मुझसे ऐंठ लिए। मैंने वकील साहब से कितनी मिन्नत की मगर उनका दिल नहीं पसीजा। पैसे की हवस शायद कभी शांत नहीं होती है बाबूजी । आज तो किराया भी नहीं बचा है । गाँव भी शायद पैदल ही जाना पड़ेगा। यह कह कर बूढा शांत हो गया था । चिंता की अनगिनत परछाइयाँ उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी । ' बाजारवाद के युग में मानवता के अनवरत क्षरण का सशक्त दृश्य प्रस्तुत करती है यह कहानी ।
किशोरावस्था में उपजे निष्कपट प्रेम की एक उत्कृष्ट कहानी है, 'रतनारे नयन' इस कहानी के माध्यम से जहां किशोरवय में हुए प्रेम की, दीन दुनिया से बेखबर बाते हैं, तो वहीं यह कहानी धर्म मजहब को अपने स्वार्थों के लिए किस तरह हथियार बनाकर प्रयोग किया जाता है, उसका भी खुलासा करती है। 'बाबा संता सिंह' कहानी मानवीय संवेदनाओं, मानवीय मूल्यों का उत्कृष्ट आख्यान है। एक बड़े सिख डॉक्टर अपनी सेवा के कारण शहर के सभी वर्गों में समान रूप से लोकप्रिय हैं, और आतंकियों की बर्बर अमानवीय हिंसक गतिविधियों का निर्भीक होकर विरोध करते हैं, इससे नाराज आतंकियों ने अवसर पाकर उनकी पत्नी, बेटों की हत्या कर दी।
वह घर के रक्त - रंजित आँगन में पूरे परिवार का शव देखकर हत - प्रभ रह जाते हैं। हृदय पर आघात ऐसा लगा कि आँखें तपते रेगिस्तान सी शुष्क हो गई, एक बून्द आँसूं नहीं कि वो कहने को भी गीली हो सकें। उनका आहत मन उन्हें विरक्ति भाव से भर देता है, वो शहर छोड़कर एक गांव में झोपड़ी में रह कर लोगों की सेवा करने लगते हैं। कुछ समय बाद ही उन्हें एक घायल व्यक्ति मिलता है जिसे देखकर वह पहचान जाते हैं कि यह उनके परिवार का हत्यारा आतंकी है. उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठती है । यहीं पर प्रतिशोध और मानवीय भावनाओं के द्वंद का चरम बिंदु अंकित करने में सुरेश जी विशेष रूप से सफल होते हैं।
'चौधरी काका का सपना', 'रमिया', 'हाशिये पर के लोग', 'अंतिम परिणति', 'इज्जत के रखवाले', 'सुख का महल', 'गुबार', 'ऐश्वर्य की लालसा', 'सम्बन्ध', 'बचपन की होली', 'अमर शहादत' आदि सहित विभिन्न विषयों पर केंद्रित संग्रह की समस्त कहानियां सुरेश जी के विशद अध्ययन, दूर दृष्टि का प्रतीक है। इनके विषय का चयन यह स्वतन्त्रता के पूर्व से लेकर आधुनिक समय तक कहीं से भी कर लेते हैं। सभी विषयों पर उनकी कलम समान रूप से चलती है। 'अमर शहादत' कहानी देश की आजादी से पहले का चित्र उकेरती है कि अंग्रेज कैसे देशवासियों का शोषण कर रहे थे, देश के लिए लड़ने वालों को छल- क्षद्म से आपस में लड़वा रहे थे, ब्लैकमेल कर रहे थे, उन पर भीषण अत्याचार कर रहे थे, इसके बावजूद स्वतंत्रता सेनानी किस प्रकार से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर रहे थे।
सुरेश जी की दृष्टि समाज के विभिन्न बिंदुओं पर जाती है, बारीकी से विश्लेषण करती है. घटनाओं को कहानी तत्व के रूप में प्रयोग करती है। कहानियों का शिल्प बहुत ही सीधा-सादा सहज सरल है। आसान आम बोल-चाल की भाषा में लिखी यह कहानियां पाठक के हृदय को आसानी से स्पर्श करने में सक्षम है। यह कहानियां पाठकों को अपने समाज के उन पहलुओं के ज्यादा करीब ले जाती हैं जो यथोचित चर्चा के अभाव में उनसे दूर रही हैं। कहानियां ऐसा विश्वास दिलाती हैं कि, यह पाठकों के हृदय पर अपनी छाप छोड़ने में सफल होंगी। सुरेश बाबू मिश्रा जी को अनवरत उत्कृष्ट लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
- प्रदीप श्रीवास्तव
कथाकार, सम्पादक
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अपनी बात
मनुष्य का जीवन बहुरंगी और बहुआयामी है । वह कभी एक जगह नहीं रुकता, ना ही ठहर पाता है । मन कभी शांत नहीं रहता। उसके अन्दर प्रतिपल कुछ नया, कुछ अलग करने की इच्छा हिलोरे मारती रहती है। कुछ अलग करने की इस धुन के कारण मेरा झुकाव साहित्य की ओर हुआ। धीरे-धीरे साहित्य के प्रति मेरा लगाव बढ़ता गया और आज साहित्य मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है।
कहानी साहित्य की सबसे पुरानी विधा है । जिस समय शब्द, भाषा, लिपि एवं व्याकरण का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था तब भी कहानी सुनी और सुनाई जाती थीं। कहानी एक ऐसी विधा है जिसे पढ़ने में हर वर्ग का पाठक रुचि लेता है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए मैंने कहानी लिखना प्रारम्भ किया। मेरी साहित्य यात्रा सन् 1984 से प्रारम्भ हुई जो अभी तक अनवरत रूप से जारी है। इस बीच मुझे पाठकों का बहुत स्नेह मिला। मेरा मानना है कि पाठकों के पत्र उनकी प्रतिक्रिया एवं उनके संदेश किसी भी साहित्यकार के लिए सबसे बड़ा सम्बल होते हैं। यह सुधी पाठकों के स्नेह का ही प्रतिफल है कि इस मध्य मेरी लेखनी कभी रुकी नहीं, कभी थकी नहीं ।
कहानी संग्रह ‘रावी की लहरें’ मेरी चौदहवीं कृति है। इस संग्रह में पच्चीस कहानियाँ हैं। यह कहानियाँ अलग-अलग विषय वस्तु पर आधारित हैं। पारिवारिक एवं सामाजिक ताने-बाने पर बुनी इन कहानियों में मैंने आम आदमी के मर्म को छूने का प्रयास किया है।
यह दुनिया बड़ी अजीब है जो दिखाई देता है वह सच नहीं है और जो सच है वह दिखाई नहीं देता। मैंने अपनी कहानियों के माध्यम से पर्दे के पीछे छिपे इसी सच को उजागर करने का प्रयास किया है। यह कहानियाँ आम आदमी के मन में उठने वाले विचारों एवं भावनाओं के स्वछंद प्रवाह की अभिव्यक्ति है।
आपाधापी के इस दौर में आदमी देश और समाज से कटकर स्वयं के दायरे में सिमटता जा रहा है। उसका अपना दायरा सबसे बड़ा हो गया है। पूरा देश और समाज नैतिक मूल्यों के संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में इस कहानी संग्रह की कहानियाँ समाज में देशप्रेम और सामाजिक सरोकार की अलख जगाने में सार्थक भूमिका निभायेगी ऐसा मेरा मानना है ।
यह कहानी संग्रह स्वर्गीय पिता जी गुलजारी लाल मिश्रा एवं स्वर्गीया माता जी राम प्यारी मिश्रा के चरणों में सादर समर्पित है जिनका आशीष एवं स्नेह ही मेरा सबसे बड़ा सम्बल है।
इस कहानी संग्रह के लेखन एवं प्रकाशन में दिए गए रचनात्मक सुझावों के लिए मैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पवनपुत्र बादल, डॉ. संदीप अवस्थी, डॉ. अवनीश यादव, डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव, डॉ. बीना शर्मा, डॉ. एन. एल. शर्मा, डॉ. शशि वाला राठी, सुरेन्द्र कुमार अग्निहोत्री, आनन्द गौतम, डॉ. एस. पी. मौर्य, रोहित राकेश, राजीव श्रीवास्तव, डॉ. सी. पी. शर्मा, विनोद कुमार गुप्ता, गुरुविन्दर सिंह एवं नरेश कुमार मौर्य का आभारी हूँ।
आभार की इस श्रंखला में मैं अपनी धर्मपत्नी श्रीमती संतोष मिश्रा, अपनी पुत्री समता मिश्रा, दामाद जयन्त पाठक, पुत्र सौरभ मिश्रा, सुमित मिश्रा, अमित मिश्रा, पुत्रवधु स्वाति मिश्रा, शालिनी मिश्रा एवं प्रतिभा मिश्रा के प्रति आभार व्यक्त करना नहीं भूलूंगा । जिन्होंने सदैव मेरी लेखन यात्रा को सकारात्मक सहयोग प्रदान किया है।
किसी भी कृति की सफलता या असफलता का निर्धारण उसके पाठक करते हैं। पाठकों की कसौटी पर यह कृति कितनी खरा उतरती है यह अभी भविष्य के गर्भ में है
कहानी संग्रह रावी की लहरों पर आपकी प्रतिक्रिया और रचनात्मक सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
- सुरेश बाबू मिश्रा
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आखिरी प्रणाम
रमनदीप उस झाड़ी की तलाश कर रहा था जहां उसने बैग में अपना लैपटाप छुपा कर रखा था । रमनदीप को अच्छी तरह याद है कि उसने उस झाड़ी के पास बी का चिन्ह बनाया था। बी का मतलब भारत । वह उस चिन्ह को ढूढ़ रहा था।
काफी देर तक तलाश करने के बाद आखिर उसे वह झाड़ी मिल ही गई। झाड़ी में छिपाए गए बैग में अपने लैपटाप को सुरक्षित देखकर उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई थी । उत्सुकतावश उसने लैपटाप आन करके देखा। उसके द्वारा इकट्ठी की गई सारी गोपनीय सूचनाएं एवं डाटाज पूरी तरह से सुरक्षित थे। यह देखकर उसकी सारी थकान उड़न छू हो गई थी और उसका पूरा शरीर एक अनोखे रोमांच से भर गया था। उसने अपना लैपटाप जिस बैग में रखा था उसे उठाकर पीठ पर टांग लिया ।
रमनदीप कुछ देर सुस्ताने के लिए वहीं जमीन पर बैठ गया। बीते दिनों की घटनाएं चलचित्र की भांति उसकी आँखों के सामने घूमने लगी । रमनदीप सिंह भारतीय सेना की इंटेलीजेंस कोर का जांबाज जासूस था। उसे एक गोपनीय मिशन पर पाकिस्तान भेजा गया था। वह कई दिनों से भेष बदलकर पाकिस्तान में रह रहा था और बड़े गोपनीय तरीके से अपने मिशन पर काम कर रहा था। उसे पाकिस्तान आए दो सप्ताह से अधिक हो गए थे। उसे पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविर के बारे में सूचनाएं एकत्र करने के लिए भेजा गया था।
वह अपने मिशन में काफी हद तक कामयाब रहा। आतंकवादी कैम्पों की काफी सूचनाएं एकत्र कर उसने अपने लैपटॉप में अपलोड कर ली थीं। वह एक सूफी फकीर की वेशभूषा में घूमा करता था, इसलिए किसी को उस पर कोई सन्देह नहीं हुआ था । परन्तु कल एक आतंकवादी शिविर का फोटो लेते हुए पाकिस्तानी पुलिस के एक जवान ने उसे देख लिया। उसे रमनदीप पर शक हो गया। तब से पाकिस्तानी पुलिस उसका पीछा कर रही थी।
किसी तरह से वह पुलिस के जवानों को चकमा देकर पी. ओ. के. के इस पहाड़ी इलाके में आकर छुप गया था। यह तो अच्छा हुआ कि उसने कुछ दिन पहले अपना लैपटाप वाला बैग यहीं पहाड़ी पर एक झाड़ी में छुपाकर रख दिया था जो आज उसे सही सलामत मिल गया । पाकिस्तानी पुलिस अब भी उसे ढूंढ रही थी, इसलिए खतरा अभी टला नहीं था।
रमनदीप पंजाब प्रान्त के होशियारपुर जिले के एक गांव का रहने वाला था। उसके पिता सेना के रिटायर्ड कर्नल थे। उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया था और असाधारण शौर्य का प्रदर्शन किया था । रमनदीप ने देशभक्ति का ककहरा उन्हीं से सीखा था। उसकी माँ रमनदीप से बेहद प्रेम करती थीं क्योंकि वह उनका इकलौता बेटा था। उसके पिता के पास काफी खेती भी थी और उनके परिवार की गिनती सम्पन्न परिवारों में होती थी।
रमनदीप के तीन बहिनें थीं दो बड़ी और एक उससे छोटी । रमनदीप को ध्यान आया कि आज से लगभग एक महीने बाद उसकी छोटी बहिन रजवन्त कौर की शादी है। शादी में घर जाने के लिए उसने छुट्टी की एप्लीकेशन अपने आफीसर को इस मिशन पर आने से काफी पहले ही दे दी थी।
तीन साल पहले रमनदीप की शादी हो चुकी थी । उसकी पत्नी सुरजीत कौर बेहद सुन्दर और शालीन थी। अपनी शादी के बाद इन तीन सालों में वह कुल मिलाकर बमुश्किल एक महीने ही घर अपनी पत्नी के साथ बिता पाया था, मगर सुरजीत कौन ने कभी कोई शिकायत नहीं की। उसने घर के कामकाज को बहुत अच्छी तरह से संभाल रखा था और वह सबका बहुत ख्याल रखती।
रमनदीन सोचने लगा कि सेना के जासूस का काम कितना कठिन और चुनौतीपूर्ण है। उसे हर समय प्राण हथेली पर रखकर काम करना पड़ता है। दुश्मन की कब उस पर नजर पड़ जाए कुछ पता नहीं । उसका हर मिशन खतरों से भरा होता है । विडम्बना तो देखो उसके घर वालों या देश के लोगों को उसके जोखिमपूर्ण कार्यों की कोई जानकारी नहीं हो पाती है। मिशन अत्यंत गोपनीय होने के कारण उसके कामों और उपलब्धियों के बारे में मीडिया में भी न तो कुछ छपता है और न चैनलों पर कुछ दिखाया जाता है। एक जासूस तो यही सोचकर हर समय खुश रहता है कि उसका पूरा जीवन भारत माता की सेवा में समर्पित है। रमनदीप ने सोचा कि इस मिशन को पूरा करने के बाद वह अपनी छोटी बहिन की शादी में गांव जाएगा और कम से कम एक माह गांव में ही अपनी पत्नी और परिवार के साथ ही बिताएगा।
वह इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ था कि उसे एक फर्लांग दूर की झाड़ियों में कुछ हलचल सी दिखाई दी। वह चौकन्ना हो गया। उसने अपने मोबाइल में उस स्थान की लोकेशन देखी। भारतीय सीमा यहां से के बीस किलोमीटर दूर रह गई थी । उसने सूफी फकीर की वेशभूषा उतार दी और बैग में से निकालकर इण्डियन मिलिट्री इंटेलिजेंस कोर की ड्रेस पहन ली। उसने अपने बैग को ठीक तरह से पीठ पर टांगा और वहां से निकलने के बारे में सोचने लगा। जिधर झाड़ियों में हलचल दिखाई दी थी उसके विपरीत दिशा में वह कोहनियों के बल रेंगता हुआ आगे बढने लगा। उसने ऐसा करने में बहुत कठिनाई हो रही थी मगर वह खड़े होने का खतरा मोल लेना नहीं चाहता था । उसके लिए वह लैपटाप और उसमें एकत्र डाटा सुरक्षित अपने हेड क्वार्टर पहुंचाना था। वह करीब एक घंटे तक इसी प्रकार रेंगता रहा। अब वह उस स्थान से लगभग एक किलोमीटर दूर आ गया था। उसकी श्वांस फूल रही थी। इसलिए वह कुछ देरा तक वहीं बैठा रहा । फिर उसने खड़े होकर देखा । चारों तरफ दूर-दूर तक सन्नाटा था । वह धीरे-धीरे भारतीय सीमा की ओर बढ़ने लगा । वह पूरी तरह से सतर्क था और सावधानीपूर्वक आगे की ओर बढ़ रहा था।
अभी वह तीन - चार किलोमीटर ही दूर पहुंचा होगा कि उसे तीन-चार पाकिस्तानी सैनिक टहलते हुए दिखाई दिए । शायद वहां कहीं आस-पास पाकिस्तानी चेक पोस्ट रही होगी। किसी तरह से उन सैनिकों की नजर से छुपता-छिपाता रमनदीप वहां से निकलने में सफल रहा। अब वह तेज कदमों से चलने लगा था। वह किसी तरह पाकिस्तानी सीमा को पार कर भारत की सीमा में प्रवेश कर जाना चाहता था । उसका मिशन पूरा हो चुका था और अब उसे अपने हेड क्वार्टर पहुंचकर यह लैपटॉप अधिकारियों को सौंपना था ।
शाम का धुंधलका छाने लगा था। रमनदीप ने मोबाइल में एक बार फिर लोकेशन देखी। भारतीय सीमा अब केवल चार-पांच किमी दूर रह गयी थी । रमनदीप तेजी से भारतीय सीमा की ओर बढ़ने लगा, तभी उसे चार-पांच पाकिस्तानी सैनिक बिल्कुल सामने से आते दिखाई दिये । उनकी नजर शायद रमनदीप पर पड़ चुकी थी। वे सीधे उसी की ओर आ रहे थे। अब बचने का कोई रास्ता नहीं था। रमनदीप ने कुछ क्षण सोचा फिर उसने बैग से एक छोटा हैण्ड ग्रेनेड निकाल कर उन सैनिकों को टारगेट बनाकर उनकी ओर फेंका। बहुत तेज धमाका हुआ और क्षण भर में ही पाकिस्तानी सैनिक जमीन पर गिरकर छटपटाने लगे।
रमनदीप पूरी ताकत से भारतीय सीमा की ओर भागा। वह काफी दूर तक दौड़ता चला गया। अब उसे भारतीय सीमा साफ दिखाई देने लगी थी इसलिए उसका मन उत्साह से भर गया तभी अचानक पाकिस्तानी सीमावर्ती पोस्ट से रमनदीप को टारगेट करके फायरिंग शुरू हो गयी।
रमनदीप भारतीय सेना का एक प्रशिक्षित कमांडो था । वह मार्शल आर्ट में काफी दक्ष था। गोलियों की बौछार में से बचकर कैसे निकलना है इस कला को वह बखूबी जानता था । इसलिए शत्रु की गोलियों से बचता हुआ वह लगातार भारतीय सीमा की ओर बढ़ रहा था। आखिरकार वह भारतीय सीमा पर पहुंचने में सफल हो गया था। काफी सावधानी बरतने के बावजूद शत्रु पक्ष की कई गोलियों ने उसके शरीर को छलनी कर दिया जिनमें से लगातार रक्त बह रहा था। असहनीय पीड़ा के बावजूद वह भारतीय सीमा में पहुंचने के लिए पहाड़ियों पर घुटने एवं कुहनियों के बल रेंगकर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा था। पाकिस्तानी पोस्ट से अब फायरिंग बन्द हो गई थी ।
उधर भारतीय सीमा में स्थित सेना की द्रास सेक्टर पोस्ट के जांबाज सैनिक सीमा पर गश्त कर रहे थे। रात का अंधेरा चारों ओर फैल गया था। हड्डियों तक को कंपा देने वाली सर्द हवाएं चल रही थीं। मगर इससे सैनिकों के जोश में कोई कमी नहीं आई थी। वे पूरी मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रहे थे।
अचानक उनकी नजर रमनदीप पर पड़ी जो घुटनों और कोहनी के बल रेंगकर भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास कर रहा था। किसी आने वाले खतरे को भांपकर सेना के जवान सतर्क हो गए थे। उन्होंने अपनी राइफलें लोड कर लीं और पूरी सावधानी से उस दिशा की ओर बढ़ने लगे जिधर से वह आदमी हमारे देश की सीमा में घुसने का प्रयास कर रहा था। सैनिकों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। मगर वे यह देखकर हैरान रह गए कि उसके पूरे शरीर में गोलियों के घाव थे और उनसे खून बह रहा था। उसकी पीठ पर एक बैग टंगा हुआ था। वह अब भी आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा था ।
अपने चारों ओर भारतीय सेना के जवानों को देखकर रमनदीप के चेहरे पर खुशी की एक अनोखी चमक आ गई थी। उसके शरीर से बहुत अधिक खून बह चुका था और उसकी श्वांस रूक-रूक कर चल रही थी । उसने भारत की मिट्टी को हाथ में लेकर अपने माथे से लगाया। फिर उसने सिर झुकाकर धरती को चूमा और भारत माता की जय के उद्घोष के साथ अपने जीवन की अन्तिम सांस ली
भारतीय सेना के जवान उसे ऐसा करते देख हैरान से खड़े थे। उन्होंने उसकी तलाशी ली। उसकी जेब से आइडेंडिटी कार्ड मिला जिससे पता चला कि वह इण्डियन मिलिट्री इन्टेलीजेन्स कोर का जासूस रमनदीप सिंह था । जिसे एक गोपनीय मिशन पर पाकिस्तान भेजा गया था।
उसके बाएं हाथ की मुट्ठी में एक मुड़ा - तुड़ा कागज का टुकड़ा था। एक जवान ने उसकी मुट्ठी खोलकर वह कागज का टुकड़ा निकाला। उसमें लिखा था मैंने अपना मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया। मेरे बैग में जो लैपटाप है उसमें पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी ट्रेनिंग कैम्पों के फोटो है। प्लीज इसे हेडक्वार्टर पहुंचा देना। लौटते समय पाकिस्तानी सैनिकों ने अंधाधुंध फाइरिंग कर मुझे बुरी तरह घायल कर दिया। मगर मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मैंने भारत माता की गोद में अपने जीवन की अंतिम सांस ली। भारत माता को उसके पुत्र का आखिरी प्रणाम । तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहे ना रहें। जय हिन्द। भारत माता की जय ।
रमनदीप का पत्र पढ़कर सेना के जवानों की आँखों की कोरें गीली हो गई थीं। उन्होंने सैल्यूट देकर भारत माता के इस सच्चे सपूत को अपनी श्रद्धांजलि दी थी।