Torero kanada yatra sansmaran - 12 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 12

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 68

    ભાગવત રહસ્ય-૬૮   નારદજીના ગયા પછી-યુધિષ્ઠિર ભીમને કહે છે-કે-...

  • મુક્તિ

      "उत्तिष्ठत जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशि...

  • ખરા એ દિવસો હતા!

      હું સાતમાં ધોરણ માં હતો, તે વખત ની આ વાત છે. અમારી શાળામાં...

  • રાશિચક્ર

    આન્વી એક કારના શોરૂમમાં રિસેપ્શનિસ્ટ તરીકે નોકરી કરતી એકત્રી...

  • નિતુ - પ્રકરણ 31

    નિતુ : ૩૧ (યાદ)નિતુના લગ્ન અંગે વાત કરવા જગદીશ તેના ઘર સુધી...

Categories
Share

टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 12

‘अखिल विश्व हिन्दी समिति’ का वार्षिक कार्यक्रम

‘अखिल विश्व हिन्दी समिति’ का वार्षिक कार्यक्रम 17 अक्टूबर 2015 को ‘विश्व कवि सम्मेलन’ के नाम से सिंधी गुर मंदिर क्वीन पलाटे ड्राइव में था। यह संस्था विश्व के अनेको देशों में है। कनाडा में इसके अध्यक्ष श्री गोपाल बघेल मधु जी हैं, उनका सादर आमंत्रण मिला। हम सपत्नीक बेटे गौरव के साथ उक्त कार्यक्रम में गये। वहाँ अनेक साहित्यकारों से मुलाकात हुयी।

वहाँ भोजनोपरांत हमारा विशेष रूप से लखनउ से पधारे मुख्य अतिथि डा. दाउ गुप्त एवं आगरा से डा. भगवान दास जी से सुखद मुलाकात हुयीं। डा. दाउ गुप्त उन विभूतियों में से हैं जो अखिल विश्व हिन्दी समिति एवं अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति नई देहली के प्रमुख अध्यक्ष हैं। वे काफी वरिष्ठ हैं फिर भी प्रतिवर्ष विदेशों में जा जाकर हिन्दी की अलख जगाने का काम कर रहे हैं।आप लखनउ के मेयर भी रह चुके हैं। साहित्य एवं मानस मर्मज्ञ हैं । अभी तक जितने भी विश्व हिन्दी सम्मेलन हुये हैं,उनमें आप की सभी में उद्बोधन, सुझाव की भागेदारी अवश्य रही है।

एक बार तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन 28 अक्टूबर 1983 जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रागांधी जी ने किया था। उसमें कुछ विवाद हो जाने पर सम्मेलन से असन्तुष्ट देशी-विदेशी प्रतिनिधियों के आग्रह पर इन्होंने ही समानान्तर विश्व हिन्दी सम्मेलन की अघ्यक्षता भी की थी। गुप्त परिवार हिन्दी के प्रति समर्पित है,यू.के.में पद्मेश गुप्ता,नई देहली से प्रवीण गुप्ता तो उत्तर प्रदेश से रत्नेश गुप्त सौरभ की कमान सम्हाले हुये हैं।

इनकी सौरभ ऐसी पत्रिका है कि जो भारत एवं न्यूयार्क से भी निकलती है। न्यूयार्क से यह अनेकों देशों तक अपनी हिन्दी की सुगंध निरंतर पहुँचाती आ रही है। उन्होंने वह पत्रिका के दो अंक मुझे भेंट किए। इस कार्यक्रम में उनका उद्बोधन वाकई गजब का था। सभी मंत्रमुग्ध हो सुनते रहे। कार्यक्रम का संचालन डा.गोपाल बघेल जी ने किया। कनाडा से एकत्रित हुए सभी साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम में कनाडा की सांसद क्रिस्टी मुख्य अतिथि रहीं और भारत सरकार के कौंशल कार्यालय से उप कौंशल अधिकारी आये हुये थे। सभी रचनाकारों ने अपनी सुंदर सुंदर रचनायें सुनाईं। मैंने कार्यक्रम में पधारे सभी मुख्य अतिथि महानुभावों का स्वागत भाषण पद्य में सुनाया तो सभी ने वाह वाही की और प्रसंशा की।

अखिल विश्व हिन्दी समिति एवं अन्तर्राष्टीय विश्व हिन्दी सम्मेलन के टोरेन्टो कनाडा में कार्यक्रम संयोजक श्री गोपाल बघेल मधु द्वारा विश्व हिन्दी कवि सम्मेलन का आयोजन मुख्य अतिथि भारतीय कोंसिलाधीश श्री राजेन्द्र कुमार रैना एवं कनाडा सांसद श्री किष्टी डंकन एवं विशेष अतिथि डाॅ. दाउजी गुप्त लखनउ एवं डाॅ भगवान शर्मा आगरा के आतिथ्य में दिनांक 17अक्टूबर 2015 को सम्पन्न हुआ। मैंने उक्त अवसर पर एक कविता कार्यक्रम पर बनाकर सुनाई जिसे सभी ने सराही।

अखिल विश्व हिंदी समिति......

अखिल विश्व हिंदी समिति,उसका वंदन आज।

कवि सम्मलेन कर रहा, हिन्दी पर है नाज।।

टोरेन्टो इस शहर में, हिन्दी का यशगान।

वतन दूर फिर भी बसा, दिल में हिंदुस्तान।।

नौ रात्रि का पर्व है, सजा है वंदनवार।

नत मस्तक हैं हम सभी, स्वागत बारम्बार।।

गुरु मंदिर में है लगा, कवियों का दरबार।

सभी अतिथि श्रोताओं का, करते हैं सत्कार।।

मुख्य अतिथि राजेन्द्र जी, ज्ञानवान सरताज।

सांसद क्रिस्टी डंकन जी, पर है सबको नाज।।

लखनउ शहर से दाउ जी, हम सबकी हैं शान।

आगरा से भी आये, डाॅ शर्मा भगवान।।

विशेष अतिथि के रूप में, सभी बने मेहमान।

उनको पा कर हम सभी, पुलकित हैं श्रीमान।।

हाथ जोड़ स्वागत करें , फूलों से सत्कार।

दूर दूर से अतिथिगण, आये हैं इस बार।।

संयोजक गोपाल मधु, आयोजन की जान।

जिनकी मेहनत से हुआ, हिन्दी का जयगान।।

आत्मीयता से हर घड़ी, मिलते सदा जनाब।

मृदुभाषी गोपाल जी, जिनका नहीं जवाब।।

आभारी हैं आपके, उत्सव रचा कमाल।

आमंत्रित हम कविगण, हुए सभी खुशहाल।।

विश्व क्षितिज में छा गयी, हिन्दी अब तो आज।

मोदी ने भी रख दिया, उसके सिर पर ताज।।

मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’

17 अक्टूबर 2015

बाद में कवि सम्मेलन में भी भाग लेने का सुखद अवसर मिला। इस कार्यक्रम में शैलजा सक्सेना से जो कि हिन्दी राइटर गिल्ड की संस्थापिका एवं निर्देशिका हैं, उनसे भी मुलाकात हुई। उन्होंने 12 सितम्बर 15 को हिन्दी दिवस पर आने का निमंत्रण दिया।हनुमान मंदिर में स्वामी मोहनदास सेवा समिति द्वारा कवि सम्मेलन

जगन्नाथ यात्रा फेस्टिवल में मुझे श्री देवेन्द्र मिश्रा जी के द्वारा फोन पर एक बृहद कवि सम्मेलन की जानकारी एवं आमंत्रण मिल चुका था। श्री देवेन्द्र मिश्रा जी यहाँ के एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं,इस कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालन कर्ता थे। हनुमान मंदिर में स्वामी मोहनदास सेवा समिति द्वारा कवि सम्मेलन रखा गया था। ट्रेन एवं दो बसों को बदल कर लगभग छै घंटे की यात्रा के बाद ब्राम्टन के उस हनुमान मंदिर में पहुँचा। उसमें श्री सरन घई,भगवत शरण श्रीवास्तव, श्रीमती सुधा मिश्रा, हर भगवान शर्मा, संदीप त्यागी,श्रीमती राजकश्यप, सुरेन्द्र पाठक,अनिल पुरोहित, पाराशर गौर, राकेश तिवारी, सम्पादक हिन्दी टाईम्स, गोपाल बघेल मधु, श्री मती तारावाष्णेय, ग्यानेश पालीवाल, निर्मल सिद्वू, रवि पाहूजा, श्रीमती दीपिका धरमेला आदि से मुलाकात का सुखद संयोग पुनः मिला।

इस कार्यक्रम की विशेष बात यह थी कि वहाँ के साहित्य जगत के वरिष्ठ भीष्मपितामह श्री श्याम त्रिपाठी जी से मेरी मुलाकात हुयी। आप हिन्दी चेतना पत्रिका के संरक्षक एवं प्रधान संपादक हैं जो कि यहाँ से तो निकलती है कई देशों तक जाती है। दूसरी बात यह है कि भारत में सिहोर भोपाल से सम्पादक श्री पंकज सुबीर जी कमान सम्हाले हुये हैं। भारत में भी इस पत्रिका की काफी चर्चा है।

हिन्दी प्रचारणी सभा कैनेडा की त्रैमासिक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका काफी चर्चित है। सुंदर आकर्षक मुद्रण, देशी विदेशी लेखकों एवं उत्कृष्ट पेपर में छपी लगभग 80 पृष्ठीय यह पत्रिका बरबस अपना ध्यान खींच लेती है। इसमें हमारे जबलपुर नगर के श्री संजीव सलिल जी की रचना दिखी। यह पत्रिका अंतर्राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका के रूप में अपनी बड़ी पहचान बना चुकी है। यहाँ का कार्यक्रम हमारे लिए एक यादगार रहेगा। भोजनोपरांत कवि सम्मेलन हुआ। कार्यक्रम बड़ा सुखद एवं अच्छा रहा। सभी आमंत्रित कवियों को गिफ्ट दिया गया था। शाम काफी हो चुकी थी और कई घंटे का सफर था। उक्त कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महोदय अपने कार से मुझे टोरेन्टों के बस स्टाप तक छोड़ गये थे जो कि कार्यक्रम स्थल से आधे घंटे का सफर था। अंधेरा छा चुका था वहाँ से मुझे तुरत बस मिल गयी। बस से रेल का सफर किया फिर बस से घर देर रात्रि को पहुँचा।

उस कार्यक्रम में श्रीमती राजकश्यप से मेरी एवं श्रीमती की मुलाकात हुयी। उनकी ‘‘काव्य संगम ’’पुस्तक का विमोचन गांधी जयन्ती पर 10 अक्टूबर15 को लक्ष्मी नारायण मंदिर में होने वाला था। इस तरह एक और कार्यक्रम का आमंत्रण मिल गया था। इस तरह एक अवसर और मिला। इस कार्यक्रम में काफी लोग पधारे थे।

कनाडा के कौंसलाधीश भी पधारे थें उन्होंने हिन्दी में भाषण देकर सभी की तालियाँ बटोरीं। मंदिर बड़ा स्वतंत्र एरिया में बना था। बड़ा हाल था। श्रीमती राजकश्यपजी को बधाई देते हुये मैंने उनके सम्मान में एक रचना पढ़ी। बाद में एक रचना और सुनाने का अवसर मिला। यहाँ पर हमने अपनी पुस्तके भी राज जी को भेंट की कहानी संग्रह ‘‘एक पाव की जिंदगी’’ और काव्य संग्रह ‘‘संवेदनाओं के स्वर’’श्री मति राजकश्यप जी को सादर समर्पित की फिर उनके सम्मान में कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं जो इस प्रकार थीं।

टोरेन्टो में फिर बढ़ा.....

टोरेन्टो में फिर बढ़ा, हिन्दुस्ताँ का मान।

इस मंदिर में गूँजता, हिन्दी का यशगान।।

हिन्दी का यह कुम्भ है, देख रहा हॅँू आज।

गंगा में स्नान का, पुण्य लूटतीं राज।।

अतिथि महोदय का सभी,हम करते सत्कार।

प्रभु के चरणों में लगा, कवियों का दरबार।।

काव्य विमोचन हो रहा, कवियत्री हैं राज।

मंगलमय शुभकामना, देते हैं हम आज।।

सृजन शील हैं राजजी, संवेदित मन साथ।

स्मृतियाँ मन में संजो, थामे प्रिय का हाथ।।

सरल हृदय की हैं धनी, माँ वीणा का साथ।

प्रभु चरणों में है लगन, झुका हुआ है माथ।।

मृदुभाषी हैं राज जी, जो मिलते कम आज।

आमंत्रण पर हम सभी, आभारी हैं राज।।‘हिन्दी साहित्य समिति ’ द्वारा श्रीमती राजकश्यप की बुक का विमोचन

श्रीमती राजकश्यप की पुस्तक ‘काव्य संगम’ का विमोचन कार्यक्रम भी बड़ा था। यह कार्यक्रम हिन्दू सांस्कृतिक संस्था स्कारबरो एवं लक्ष्मी नारायण गोल्डन ग्रुप के द्वारा आयोजित था। मंदिर के भूमिगत कक्ष में कार्यक्रम रखा गया था। उस कार्यक्रम में हम सपरिवार उपस्थित हुये। गांधी जयन्ती पर पहले गांधी की प्रार्थना सभा में गाये जाने वाले भजनों को प्रस्तुत किया गया। यहाँ काफी लोगों की उपस्थिति रही कार्यक्रम ‘हिन्दी साहित्य समिति ’ के बैनर तले रखा गया था। जिसके अध्यक्ष श्री भगवत शरण श्रीवास्तव थे। यहाँ डा.भारतेन्दु श्रीवास्तव एक जाना पहचाना नाम है काफी कुछ लिखा है।

भारत में ‘साहित्य क्रांति’ गुना मध्यप्रदेश से निकलने वाली एक साहित्यक पत्रिका है। कनाडा में डा.भारतेन्दु श्रीवास्तव एवं दीप्ती कुमार देखते हैं। अमरीका, इंग्लैंड,जर्मनी,त्रिनाड,अबूधाबी,नेपाल,मारीशस में यह अपनी पहचान बना चुकी है। यह पत्रिका पुस्तक प्रकाशन का कार्य भी कर रही है। जिसमें डा.भारतेन्दु श्रीवास्तव की अनेक प्रकाशित पुस्तकांे का उल्लेख दिया गया था। इस पत्रिका में मुझे नगर के गार्गीशरण मिश्र एवं आचार्य भगवत दुबे की रचनाएँ छपी दिखीं। एक विशेष बात यहाँ देखने को आयी कि यहाँ के रचनाकारों में आज भी हमारे गौरव पूर्ण इतिहास के चक्रवर्ती राजा चन्द्रगुप्त मौर्य मुख्य रूप से रचनाकारों के बीच में छाए हुए हैं जबकि भारत में तो आज वह इतिहास के पन्नों में दब कर रह गए हंै।

लक्ष्मी नारायण मंदिर एक बड़ा मंदिर है। यहाँ बराबर कार्यक्रम चलते रहते हैं। हिन्दुओं के हर उत्सव को बड़े घूम धाम से मनाया जाता है। उत्सव में संगीत और गायकी का बराबर ध्यान रखा जाता है। यहाँ पर श्री महेश नंदा जी से मेरी मुलाकात हुयी। ये चंडीगढ़ के रहने वाले गजल लिखते हैं, इन्होंने जबलपुर में आदिवासी मिशन का उल्लेख किया। शायद उनका परिवार ही इस सेवा कार्य को कर रहा है।बनवासी आश्रम चलाने वाली संत ज्ञानेश्वरी दीदी को याद करते हुये बताया कि आप उनसे अवश्य मिलियेगा।विश्व प्रसिद्ध न्याग्राफाॅल

न्याग्राफाॅल जो कि विश्व का विशाल जलप्रपात माना जाता है। एक रविवार सपरिवार हम लोगों ने कार्यक्रम बनाया। विभिन्न बसों फिर एक विशेष डबल डेकर ट्रेन में सवार होकर नवजात को चाईल्ड ट्राली में लेकर रवाना हुए। रास्ते में अनेक सुंदर स्टेशनांे, प्राकृतिक दृश्यों को निहारते, रास्ते में अंगूर की खेती को देखते हुए न्याग्राफाॅल जा पँहुचे। यह न्याग्रा नदी अमेरिका और कनाडा की जीवन दायनी नदी है। नदी की दूसरी ओर अमेरिका देश की बार्डर है तो इस पार कनाडा की। दोनों के बीच में एक पुल है जो कि सेतु का काम करता है। दोनों देश वासियों के आने जाने के रूप में उपयोग होता है। आने जाने के लिए बीसा तो जरूरी है। न्याग्राफाॅल पर्यटन स्थल के रूप में दोनों देशों ने अपने अपने भूमि पर विकसित किया है। न्याग्राफाॅल कनाडा की भूमि में है और दो अन्य जलप्रपात अमेरिका की भूमि पर है। अनेकों होटल, रेस्ट्रारेंट और विशाल लम्बे क्षेत्र में फैला पार्क बरबस सबको अपनी ओर खींच लेता है।

न्याग्रा नदी के चौड़े पाट में दोनों देश अपने-अपने बड़े-बड़े पानी जहाजों के साथ अपने-अपने पर्यटकों को घुमाते नजर आते हैं। और लाल, हरे प्लास्टिक बरसाती पहनाकर जलप्रपात के पास तक ले जाते हैं। जलप्रपात से हवा में उड़ते पानी के कण सबको भारी वर्षा का अहसास करा जाता है। आसमान में उभरे बड़े इन्द्रधनुष वर्षा ऋतु के आगमन का संकेत देते दिखाई पड़ जाते हैं। आकाश में थोड़ी ही देर में बादलों का आकार उभरता है और बारिस करके सबको भिगो जाता है। बारिस से बचने पर्यटक लोग यहाँ वहाँ भागते नजर आते हैं।कई पर्यटक रंग बिरंगी छतरियों के साथ या फिर बेमौसम बरसात का लुत्फ उठाते नजर आते हैं। जलप्रपात की विशालता और भव्यता इसी बात से आँकी जा सकती है।

पानी के जहाज पर जाने के लिए या यों कहें नदी के सतह तक जाने के लिए लिफ्ट,घुमावदार स्लोप के द्वारा जाया जाता है। कनाडा और अमेरिका दोनों देशों का आपसी सामन्जस्य देखकर बड़ी खुशी हुयी। दोनों देशों के पर्यटकों से न्याग्राफाॅल हमेशा गुलजार रहता है। कनाडा के पर्यटकों का रंग लाल बरसाती तो अमेरिका के पर्यटकों का रंग हरा इससे दोनों देशों के पर्यटकों एवं नावों की पहचान आसानी से हो जाती है। जहाज जब जलप्रपात तक जाता है तो वे क्षण कितने रोमांचकारी और अविस्मरणीय होते हैं उसका वर्णन करना असंभव है। यहाँ भी सी.एन टावर की तर्ज पर स्काईलोन टावर है। हरी भरी हरियाली के साथ रंग बिरंगे फूलों की बहार चारों ओर दिखलाई पड़ती है।

रैलिंग का सहारा लेकर मैं सोच रहा था कि पड़ोसी देश हो तो ऐसा। आपसी सौहार्द और सामंजस्य का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है। एक जमाने में दोनों उपनिवेशवाद के शिकंजे में पराधीन थे। अंगे्रजों से मुक्त होते ही आपसी सौहार्द से सीमाओं का बटवारा हो गया। अपनी अपनी विरासत,संस्कृति, सभ्यता और अस्मिता को लेकर प्रगति और विकास के पथ पर चल पड़े। शोषण और शोषकों से मुक्ति पाकर उन्मुक्त भाव से आजादी के मूल भाव में तिरोहित होकर एक संकल्प ले चल पड़े और निरंतर आगे बढ़ते रहे। तब जाकर आज इस मुकाम पर पहुँचे हैं

एक हमारा भारत है जो आजादी के बाद हमारे ही देश के एक वर्ग की अलगावादी सोच के आगे हमने घुटने टेके और बटवारा कर देने के बाद भी उनको संतुष्ट नहीं कर पाए हैं। उनकी बस सत्ता लोलुपता विस्तारवादी धर्मान्धता ने शांति प्रिय भारत के विकास में सदा रोड़े ही अटकाए हैं। आजादी के सत्तर वर्षों के बाद भीे लगातार युद्ध, घुसपैठ, आतंकवाद, विस्तारवादी नीति के दंश को लगातार झेलते आ रहे हैं। उनके अंदर की दुश्मनी और धर्मान्धता ने ऐसे पैर पसारे कि हमारे ही देश में आस्तीनों के साँप अब फन उठाकर आज हमीं को फुफकारने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर हमारे देश को अपनीे सीमाओं की सुरक्षा करना एक चुनौती भरा कार्य लगने लगा है। तभी हमारे बेटे गौरव ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर हमारी विचार तंद्रा पर विराम लगा दिया। फिर हम इन दो देशों आपसी सामन्जस्य और विकास की हरी भरी कहानियों में खो गये। शाम का धुंधलका गहराने लगा था, यहाँ रुकने का कतई विचार नहीं था। अतःसुनहरी यादों को संजोये घर वापसी की ओर हम सभी चल पड़े।

हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की स्मार्ट सिटी योजना का श्री गणेश हो चुका था। यहाँ के जागरूक नागदिक और चुस्त प्रशासन को देखते हुये हमें अपने देश की याद आ गई। क्या दोनों देशों को देखते हुए यह संभव है?क्या प्रशासन और नागरिकों में इतनी जागरूगता नजर आती है? तब लगा प्रशासन की भागेदारी के साथ साथ नागरिको की जागरूकता भी जरूरी है। मेरे मन में जो स्मार्ट सिटी के बारे में विचार आये उन्हे काव्यात्मक शैली में यहाँ दे रहा हूँ।

स्मार्ट सिटी स्मार्ट से....

स्मार्ट सिटी स्मार्ट से, बनती है श्री मान।

जागरूक जनता उसे, देती है पहिचान।।

नगर निकायें सुस्त जब, जनता होती त्रस्त।

घर बाहर की स्वच्छता, सभी दिशा में ध्वस्त।।

जनादेश कुछ भी रहे, इनकी पकती दाल।

जन हित के हर काज में, यही खींचते खाल।।

कूड़ा करकट फेंककर, रखा स्वच्छ घर द्वार।

बाहर की किसको फिकर, लगा रखा अम्बार।।

पीट ढिढोंरा हर गली, सिर पर पहने ताज।

बंद कमरों में कर रहे, सभी घिनौने काज।।

राजनीति रग रग बसी,जनहित कारज भूल।

यही हमारे देश का, बना हुआ है शूल।।

अधिकारों के वास्ते, लड़ते हैं नित लोग।

कर्तव्यों को भूलकर, चाहें मोहन भोग।।

प्रदूषण संकट है बढ़ा, जल थल नभ आकाश।

जीवन मुश्किल में हुआ, वातावरण हताश।।

हरी भरी हो वसुंधरा, गिरि वन नदी तलाब।

पशु पक्षी कलरव करें, झूमे प्रकृति शवाब।।

स्वच्छ रहेगी यदि धरा, हरा भरा संसार।

स्वस्थ सभी होंगे सदा, खुशियों का भंडार।।

भ्रष्टाचार से मुक्त हों, पुख्ता हों हर काम।

कर्तव्यों के प्रति सजग, मिलता तभी मुकाम।।

सच्चे मन सहयोग दें, तभी सिटी स्मार्ट।

सबकी हो सहभागिता, तब निखरेगा आर्ट।।

कनाडा शहर की सुंदरता का राज ही यह है कि यहाँ की सरकार तो जागरूक है ही साथ में यहाँ की जनता भी उतनी ही जागरूक है। दोनों के तालमेल से ही यह संभव हो सका है। जलवायु की अनुकूलता यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा को हरियाली से आच्छादित किये रहती है। वृक्षों की सघनता वातावरण को अनुकूल बनाने में प्रभावशाली भूमिका अदा करती है। लोगों का प्रकृति से अगाध प्रेम है। लोगों की जीवटता का राज भी यही है। विकास के उच्च शिखर पर पहुंचने के साथ वन सम्पदा का संरक्षण का सदा ध्यान रखा है। साफ स्वच्छ झीलों की समृद्धता ने उनकी विकास यात्रा को सुगम बनाया। सभी लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति भी उतने ही जागरूक दिखे। टोरेण्टो शहर के छह माह के प्रवास में मैंने जो अनुभव किया उसे काव्य में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।

शहर टोरेण्टो है बसा (कनाडा यात्रा संस्मरण)

देख कनाडा खुश हुये, सुन्दर लगते छोर।

ऊँची भव्य इमारतें, दिखतीं हैं चहुँ ओर।।

सुंदर टोरेण्टो शहर, बड़ी झील के पास।

स्वच्छ नगर आदर्श यह ,जो शहरों में खास।।

जनता के सहयोग से, चला रखा अभियान।

साफ सफाई का यहाँ, रखते हैं सब ध्यान।।

बाग बगीचे सड़क घर, लगा रखे हैं फूल।

वन उपवन को देखकर, मन हो जाता कूल।।

धरा हरितिमा से भरी, कहीं न दिखती धूल।

तन मन खुश होता यहाँ, स्वर्ग धरा अनुकूल।।

भूतल ट्रेनें दौड़ती, नाम मात्र स्टाॅफ।

सभी टिकिट लेकर चलें, सब करते इंसाफ।।

टिकिट नहीं तो दीजिए, डालर में चालान।

या फिर जाओ जेल में, लागू यहाँ विधान।।

प्लेट फार्म पहुँचा सकें, हर बस में है होड़।

लोकल ट्रेनें चल रहीं, सड़कों पर ना दोड़।।

बस के हाल न पूछिये, बस तो इनकी शान।

बाल वृद्ध सबके लिये, रखा गया है ध्यान।।

सड़क किनारे बाक्स में, ताजा फ्री अखबार।

विज्ञापन सँग में सजे, समाचार भंडार।।

बीच सड़क क्यारी बनीं, अद्भुत है परिदृश्य।

कीचड़,रज से मुक्त हैं, घर आँगन-सा दृश्य।।

होड़ मची रहती यहाँ, सुंदर दिखें मकान।

अच्छी पेंटिग से सजें, घर औ गली दुकान।।

चलने को पथ हैं बनेे, ट्रेफिक के हैं रूल।

अनुशासन रखते सभी, करते कभी न भूल।।

खम्बों में गमले टँगे, बिजली संग में फूल।

मार्ग सजावट देखकर, मन हो जाता कूल।।

जनता का सहयोग है, नगर निगम के साथ।

दोनों मिलकर चल रहे, हाथों में ले हाथ।।

चुस्त यहाँ की टीम है, सुनती है अविराम।

फोन सूचना पर तुरत, हो जाता है काम।।

बाधित पथ करते नहीं, नहीं कार्य में देर।

सड़क खोदते इस तरह, कहीं न दिखता ढेर।।

कूड़ा करकट के लिये, रखे हुए हैं बाक्स।

सब उसमें ही डालते, नहीं गन्दगी रास।।

पार्किंग का ठेका नहीं, होता नहीं यकीन।

नगर निगम की हैं लगीं, पार्किंग-पेड मशीन।।

सड़क किनारे पर अगर, रखना चाहें कार।

पैसा खुद प्री पेड कर, नहीं बढ़ाते रार।।

कोई ठेका है नहीं, खड़ा न चौकीदार।

सब अनुशासन में चलें, सब करते सहकार।।

संस्कारों में बस गया, इनके अंदर ज्ञान।

साफ-सफाई के लिये, रखते हैं सब ध्यान।।

श्वानों को तो पालते, एक नहीं दो चार।

चिन्ता इनकी भी करें, हर क्षण पालनहार।।

लेकर सँग में घूमते, रोज सुबह ओ शाम।

पाॅटी करते ही तुरत, साफ करें खुद आम।।

सड़क बनाते हैं यहाँ, उसमें लगती सील।

समय,कम्पनी नाम की, ठुक जाती है कील।।

गारन्टी पक्की रहे, रखते हैं सब ध्यान।

गुणवत्ता को देखकर, हम सचमुच हैरान।।

सबकी अपनी रोड है,साइकलें या कार।

पैदल भी निर्भय चलें , दुर्घटना बेकार।।

पुलिस प्रशासन चुस्त है, भ्रष्ट नीति से मुक्त।

गुंडों, चोरों के लिए, रहती है वह चुस्त।।

कर्तव्यों के प्रति सजग, रहें न लापरवाह।

दिखते चुस्त दुरुस्त सब, जनता करती वाह।।

नगर सजावट देखने, लाखों आते लोग।

बाग बगीचे देखकर, भगते दिल के रोग।।

झीलों के इस देश में, हरियाली चहुँ ओर।

प्रकृति छटा मन भावनी, मन में उठे हिलोर।।

होता मन हर्षित यहाँ, नहीं व्यर्थ का शोर।

जीवन जीने के लिए, सुखद शांति चहुँ ओर।।

न्याग्रा वाटर फाल की,जग में नहीं मिसाल।

एक बार जो देख ले, होता वही निहाल।।

नीर धवल अठखेलियाँ, उछल कूद दिन रात।

उछली बूँदें मेघ बन, कर देतीं बरसात।।

न्याग्रा के तट पर बसा, अमरीका सा यार।

दो देशों के बीच से ,बहती अमरित धार।।

जीवन रक्षा के लिये,सरिता होती खास।

निर्मल सी बहती सदा, हर लेती संत्रास।।

सेतु बनाया बीच में, कभी न सिलवट माथ।

ताल मेल ऐसा बना, राम-लखन सा साथ।।

पर्यटकों की भीर है, हाट सजे चहुँ ओर।

प्रकृति नजारा देख कर, होते भाव विभोर।।

मनोज कुमार शुक्ल मनोज

____________________________________________________________________________________________________________

20 मई 2022 से 30 अक्टूबर 22 ( 5माह 10 दिनों की ) पुनः कनाडा यात्रा

विश्व में करोना संकट ने सभी देशों को प्रभावित किया। जो जहाँ था, वहीं थम गया था। विश्व भर में मानव जीवन और मौत से संघर्ष कर रहा था। दो तीन वर्षों में वह संकट धीरे-धीरे खत्म होता गया। भारत ने भी अपने देश में करोना टीके का अविष्कार करके एक इतिहास रचा और अपने देश को ही नही वरन विश्व के अनेक देशों को इस संकट से उबारा। ऐसे विषम संकट से उबरने के पश्चात हमारा कनाडा में सात वर्षों के बाद पुनः आने का कार्यक्रम बना। 20 मई 2022 को दुबारा कनाडा जाने का जब कार्यक्रम बना तो इस बार बेटे गौरव शुक्ल बहू रोशी शुक्ला अपने बेटे वेदांश एवं विहान के साथ भारत में घर पर आए हुए थे। उनके साथ पुनः जाने का मौका मिला। हमारे चिंरजीव गौरव टोरेन्टों से ब्राम्टन में आकर रहने लगे थे। जहाँ भारतीय समाज भी ज्यादा निवास करता है। यहाँ प्रकृति को बहुत ही नजदीक से देखने का अवसर मिला और भारतीय प्रवासियों से मिलने का मौका मिला। भिन्न भिन्न प्रांतों से आये लोगों को आपस में हिन्दी बोलते देखा। हाँ जब वे अपने प्रान्तीय लोगों से मिलते तो अवश्य अपनी मातृ-भाषा में बोलते नजर आते। टोरेन्टों से ब्राम्टन की दूरी 40-45 किलोमीटर की दूरी है। पहले डाउन टाउन एरिया में रहने को मिला जहाँ बहुमंजिला इमारतें थीं उनमें एक फलैट में रहकर हमने वहाँ की संस्कृति के दर्शन किये थे। अब यहाँ कालोनी में रहने का अवसर मिला।

यहाँ आने के बाद कहीं न कहीं आसपास पार्कों दर्शनीय स्थलों को देखने का कार्यक्रम बनाया जाने लगा। पहले रेल व बस का सहारा था। अब गौरव की निजि कार थी, उससे ही आना जाना चालू हुआ। बस कार में पाँच लोग ही सफर कर सकते थे। हर बार एक मेम्बर घर पर ही रह जाता। हम टोटल छः हो रहे थे। आप दो साल के बच्चे को भी गोद में नहीं बैठा सकते हैं। भारत में तो पाँच सीटर कार में सात लोग एइजस्ट हो जाते कोई पूछने वाला नहीं, पर यहाँ पर ऐसा नहीं। नियम सभी फालो करते हैं अन्यथा भारी भरकम जुरमाना भरना पड़ता है।बटरफलाई संग्रहालय

30 जुलाई को ब्राम्टन से लगभग 100 किलोमीटर दूर बटरफलाई संग्रहालय को देखने गए। चैड़ी सीधी सपाट साफ सुथरी सड़कों पर कार में बैठे रास्ते भर छाई हरियाली, जंगल, खेतों को निहारते हुए उस संग्रहालय में पहुँचे जहाँ तितलियों के लिए वातानुकूलित वातावरण बना कर उनको रखा गया था। कई रंगबिरंगी आकर्षक तितलियाँ यहाँ से वहाँ उड़ती नजर आ रहीं थीं। कभी पर्यटकों के सिर पर आकर बैठ जातीं तो कभी उनके कांधों पर सवार हो जातीं। कई प्रजातियों को वहाँ बोर्ड-प्रदर्शिनी के माध्यम से कई हाल में दर्शाया गया है। साथ में महाराष्ट्र का एक परिवार सौरभ पटवर्धन भी साथ में था। उनके सास-ससुर श्री अनंत मुल्गी जी बाम्बे थाना से आना हुआ था। अपने-अपने घरों से कुछ खाने का सामान बनाकर ले गए थे, मिलजुलकर बैठ कर खाना खाया। उनके साथ वेदांश एडजस्ट था। उनकी कार बड़ी थी। बड़ा मजा आया।फ्लावर सिटी ब्राम्टन

यहाँ आए हुए लगभग एक माह होने को आए थे। ब्राम्टन में एक साफ सुथरी कालोनी का रहने का एहसास हो रहा था। भारत की तरह जगह जगह-छोटी-मोटी दुकानें तो नहीं देखने को मिलीं। किन्तु कालोनी के पास ही एक बड़े क्षेत्रफल में गोलाकार दुकानें दिखीं। जिसमें दो तीन बड़े-बड़े माल जिसमें वालमार्ट जैसे भव्य मार्ट के साथ कटिंग सैलून, काफी हाउस, बरगर पीजा की होटलें खोने-पीने की वस्तुएं देखने को मिलीं। यहाँ पालतू जानवरों के लिए भी खाने के शाप दिखे। यहाँ फल-सब्जी, फूल-पौधों की दुकानें काफी हैं। जबकि इन सबका सीजन कुछ ही टाईम रहता है। इसके बाद प्रति वर्ष आपको फिर से पौघे बर्फ गिरने की वजह से लगाने पड़ते हैं। नए वर्ष में सीजन का फिर इंतजार रहता है। रंग बिरंगी पत्तियों फूल पौधों का प्रचलन हर घरों के अंदर बाहर रोपण दिखा। घर सुंदर दिखे, शहर सुंदर दिखे यही भावना के कारण सड़कों के किनारे किनारे भी सुंदर दृश्य देखने को मिल जाते हैं। ब्राम्टन को फ्लावर सिटी भी कहा जाता है। अपने घर से सड़क की दूरी तक मकान मालिक स्वयं के खर्चे से हरी-भरी घास को लगाने से लेकर उसे लगभग दो-तीन इंच तक मशीन से काटकर रखना फिर उसमें फूल पौधों के लालन-पालन का उत्तरदायित्व का निर्वाहन भी उनको करना होता है। यहाँ तक की बर्फ के मौसम में उसे हटाने का भी काम स्वयं ही करना होता है। मालिक और नौकर के बीच कोई अंतर नहीं है। अगर बहुत ही आपके पास पैसा है तो आप 15 डालर प्रति घंटे के हिसाब से यह काम करवा सकते हैं, यह आप पर डिपेंड करता है।

भारत से आए हुए बहुत से विद्यार्थी अपने खर्चों को चलाने के लिए माल होटल रेस्ट्रारेन्ट में पार्ट टाइम काम करते अक्सर नजर आ जाएंगे। यहाँ काम छोटा बड़ा नहीं होता, यही यहाँ की विशेषता है। सफाई कर्मचारी भी एक इंजीनियर के बराबर अपना रुतबा रखता है। कोई भी काम बुरा नहीं माना जाता है। छोटे से लेकर बड़ा काम करवाने के लिए कई एजेन्सियाँ भी कार्यरत हैं । मैने घरों में कार पार्किग वाले हाल में भरे सभी सामानों को देखा। जिसे बड़े करीने से सजाया गया था जिसमें फावड़ा तसला, रिपेरिंग के सभी सामान भरे हुए थे। एक मकान वाला अकेले घर से सड़क तक, एक बेल्ट में कांकरीट डाल रहा था। कोई लेबर नहीं। सामने खुले हुए स्थान में आप पूरे में कंकरीट नहीं डाल सकते हैं। हरियाली तो होना ही चाहिए। इस तरह सभी कुछ न कुछ अपना काम करते नजर आ जाते हैं।

पास में ही एक ट्रेल है जो कि अनेक कालानी को टच करते हुए लगभग 55 किलोमीटर हो कर गुजरती है। यह एक पट्टिका में लिखा हुआ है। यह शायद ब्राम्टन का छोटा सा हिस्सा होगा जिसमें यह जंगल होकर गुजरता है। कई वृक्षों से आच्छादित है कहीं-कहीं तो सेवफल, ब्लैकचैरी के व्क्ष भी दिखे किन्तु सही देखभाल न होने से उनमें कीड़े लग जाते हैं। इन वृक्षों के लिए यहाँ की जलवायु अनुकूल है। वृक्ष संपदा के बीच बकायदा अंदर सड़कों का जाल बिछा है। सड़कों के दोनों किनारे घास लगी है वह भी दो तीन इंच जिसका मेंटनेंस यहाँ की नगर पालिका करती है। कभी-कभी तो पहाड़ जैसा टीला भी घास के मुंडन से हरे कालीन तरह आकर्षक बिछा नजर आता है। कचरे के डिब्बे के साथ ही बैन्चें थोड़ी-थोड़ी दूर पर रखीं हुईं हैं ताकि राहगीर विश्राम भी कर सकें। खा पीकर कचरे को डिब्बों में डाल सकें। घूमने वाले के हाथों में एक नही तीन-चार तो पालतू कुत्तों की चैनें सहज ही देखने को मिल जातीं हैं। किंतु आवारा कुत्ते एक भी नहीं दिखे। कुत्तों के मालिक उनकी पाटी को जेब में रखे खाली-पोलिथिन को निकाल कर, तत्काल उठा कर कचरे डिब्बे के हवाले करते हैं। वैसे यहाँ कोई देखने वाले भी नहीं हैं किन्तु यह अपना कर्तव्य समझ कर वे निभाते हैं ताकि शहर साफ-सुथरा स्वच्छ रहे। मुझे अपने भारत की याद आ गई जो सबके सामने ही पाटी करवाते नजर आ जाते हैं। और उपर से कुछ बोलने वालों की तो खैर नहीं, पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखा। कई बार मैंने छिपकर भी वाच किया। पर कर्तव्य बोध का भाव उनके नस नस में भरा दिखा।

हाँ कुछ मायनों में जो अपवाद देखने को मिले वह शायद हमारे कुछ भारतवंशी ही रहे होंगे या फिर पाकिस्तानी। जैसे माल में खरीदी करने के लिए ट्राली मिलती है ताकि आप अपनी चाहत की वस्तुएं उसमें चुनकर रख सकें और फिर अपने कार पार्किंग में जाकर कार में सामान रख अपने घर ले जाएं। किन्तु लोग उन ट्रालियों को सीघे अपने घर ले जाकर उसे यहाँ-वहाँ लावारिस छोड़ देते हैं। जिससे उन्हें काफी नुकसान होता है, मैंने ट्रेल में झुरमुटों के बीच पड़ी उन टालियों को देखा।

आँधी तूफान बारिस तो कभी भी हो जाती है। मौसम में अचानक कभी भी बदलाव होता रहता है। कभी मौसम में ठंडक आती है तो कभी गर्मी पर यहाँ ज्यादातर कड़ाके की ठंडक ही रहती है। वह भी इतनी कि आपकी हड्डियाँ काँप जाएं। आँधी में जंगल के विशाल वृक्ष भी धराशाही हो जाते हैं। जब मै यहाँ आया था तब मैंने अपनी आँखों से देखा ट्रैल में दूसरे दिन काफी वृक्ष गिरे पड़े थे। बाद में देख रेख कर्मी वहाँ आये होगें, उन्होंने उन झाड़ों में निशान लगा कर और झुके हुई डगालों के टूटने के खतरे को भांप कर काटने का आदेश फरमाया होगा। कुछ समय के बाद देखा पूरी सफाई हो चुकी थी, वहाँ फिर घास की परत ही दिखाई दे रही थी, उनका नामोनिशान भी नहीं था। सड़कांे की दरारों को तुरत भर दिया जाता है। फुटपाथ बनते है, पर मिट्टी धूल का कहीं नामोनिशान नहीं दिखता। मुख्य रोड आठ-दस लाईन की होती हैं जिसको क्रास करना मना है। अगर आप पैदल क्रास करना चाहते हैं, तो चैराहे पर जाकर ट्रेफिक के नियम को ही फालो करना पड़ेगा। कार चालकांे को तो बेहद सतर्क रहना होता है अन्यथा सड़कों पर लगे कैमरे आपके घर में भारी भरकम चालान तत्काल भेज देंगे।

मेरे पड़ोसी की कार एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त हो गई। पुलिस जाँच अपनी करती रहेगी। पुलिस टोकन कर उसे घर में छोड़ गई। ज्यादा क्षति तो मुझे नहीं दिखी किन्तु उसे उसके मुवावजे में इन्शोरेन्स की ओर से नई कार का चैक अवश्य मिल गया। यहाँ छतिग्रस्त कार नहीं चला सकते। इसलिये उनका प्रीमियम भी ज्यादा है।

नगर निगम की अगर बात करें तो हमारे नगर निगम और यहाँ के निगमों में जमीन आसमान का अंतर दिखा। मेरे बेटे गौरव के पास नगर निगम का मकान टैक्स बिल आया था, जिसमें देयक के पीछे आपके ़द्वारा दिए गए इन पैसों का किन-किन मदों में किस अनुपात में उपयोग किया जाएगा। उसका पाई-पाई का पूरा ब्यौरा दिया गया था। पारदर्शिता का यह कार्य मैंने आज तक अपने जीवन काल में कभी देखा ही नहीं।

कनाडा में अच्छे नागरिक होने का राज

भारत की तरह यहाँ भी अंग्रेजों का शासन रहा है। आज भी इनकी मुद्राओं में महारानी विक्टोरिया की फोटो रहती है। मूल रूप से कनाडा वासी बहुत ही संस्कारी भोले-भाले कहे जाते हैं। यह मैने इस 2022 की या़त्रा में अनुभव किया। भारतीयों के प्रति उनकी उदारता सहृदयता ही देखने को मिली। सभी से चर्चा करने पर यह बात सोलह आने लगी। हमने यहाँ आकर देखा कि जनता और सरकार के दोनों पक्षों के सहयोग से ही किसी भी देश का र्निमाण सही ढंग से हो सकता है। सरकार ही उसके लिए जुम्मेदार नहीं हो सकती।

उसको समझने के लिए मुझे यहाँ की बच्चों की शिक्षा नीति काफी पसंद आयी। स्कूलों में कोई किताबों का बोझ नहीं। फिर भी सब बच्चें होशियार समझदार कैसे? मैंने देखा कि घर में ही मेरे बेटे गौरव के दो बेटे हैं जो कि एक दो वर्ष का दूसरा सात वर्ष का दोनों बेटे टीवी अवश्य देखते हैं। पर टीवी में बच्चों के कार्टून इतने सारे भरे पड़े हैं जो कि केवल वे मनोरंजन भर के ही नहीं हैं। एक जागरूक नागरिक बनाने की शुरूआत जैसी है। उनमें बचपन से ही संस्कारों, अच्छे व्यवहारों का बीजारोपण कर दिया जाता है। पहली दूसरी तीसरी क्लास के बच्चों के कार्टून में टेडीवियर, पशु पक्षियों या अन्य प्राणियों के माध्यम से जो उनके प्रिय पात्र बन सकते हैं , उन्हें आकर्षित कर सकते हैं, और उन्हें बरबस लुभाते हैं, उनको हीरो बना कर छोटी छोटी फिल्में के माध्यम से शिक्षित किया जाता है। सभी बच्चे उन्हें भरपूर खूब देखते हंै। चाहे वह छः माह का बच्चा हो या बड़ा उनको शब्दों से परिचय गिनती, जोड़ घटाना सीखना, हँसना, सोना, पाटी करने से लेकर सड़कों पर चलना, कैसे रहना, कैसे खाना-पीना, बात करना, स्वच्छता को समझना और भी अच्छी आदतों और अच्छे संस्कारों की छोटी से लेकर बड़ी चीज सहज भाव से अंकुरित कर दी जाती हैं। हमारे यहाँ दो साल के बच्चे ने एक से पचास तक की गिनती और एबीसीडी रट डाली है जब कि वह स्कूल नहीं गया।

यही बच्चे आगे चलकर देश के नागरिक बनते हैं, अनुशासन की डोर में हमेशा के लिए बंध जाते हैं , और ताउम्र एक अच्छे नागरिक बन जाते हैं। सुबह जब मैं घूमने कोे जाता था तो यहाँ के लोग जब पास से निकलते तो अपरिचित होते हुए भी गुडमार्निग हलो हाय करते ही मिलते। उनका जवाब भी लोग सहज भाव से देते। यही मानवता की पहचान होती है जो स्वयं आपसी सौहार्द का निर्माण करने में सहायक होती है। सम्य समाज की पहचान भी है। अगर आप गलत साईड से चल रहे हैं या आपने पीछे आने वाले को साइड दे दिया तो वह थैंक्यू जैसे शब्द तो उनकी जबान में रखे हुए प्रतीत होते हैं, और गल्ती पर सारी।देश कनाडा में सभी.....(दोहों के रूप में प्रस्तुित)

देश कनाडा में सभी......

देश कनाडा में सभी, सभ्य सुसंस्कृत लोग ।

सद्गुण से परिपूर्ण हैं, करें सभी सहयोग।।

हाय हलो करते सभी, जो भी मिलता राह।

अधरों में मुस्कान ले, मन में दिखती चाह।।

कर्मनिष्ठ व्यवहार से, अनुशासित सब लोग।

नियम और कानून सँग, परिपालन का योग।।

झाँकी पर्यावरण की, मिलकर समझा देख।

संरक्षित कैसे करें, समझी श्रम की रेख।।

फूलों की बिखरी छटा, गुलदस्तों में फूल।

घर बाहर पौधे लगे, पहने खड़े दुकूल।।

हरियाली बिखरी पड़ी, कहीं न उड़ती धूल।

दिखी प्रकृति उपहार में, मौसम के अनुकूल।।

मखमल सी दूबा बिछी, हरित क्रांति चहुँ ओर।

शीतल गंध बिखेरती, नित होती शुभ भोर।।

प्राण वायु बहती सदा, बड़ा अनोखा देश।

जल वृक्षों की संपदा, आच्छादित परिवेश।।

प्रबंधन में सब निपुण, जनता सँग सरकार।

आपस में सहयोग से, आया बड़ा निखार।।

साफ स्वच्छ सड़कें यहाँ, दिखते दिल के साफ।

भूल-चूक यदि हो गई, कर देते सब माफ।।

तोड़ा यदि कानून जब, जाना होगा जेल।

कहीं नहीं फरियाद तब, कहीं न मिलती बेल।।

शासन के अनुकूल घर, रखते हैं सब लोग।

फूलों की क्यारी लगा, फल सब्जी उपभोग।।

रखें प्रकृति से निकटता,जागरूक सब लोग।

बाग-बगीचे पार्क का, करें सभी उपयोग।।

सड़कें अरु फुटपाथ में, नियम कायदा जोर।

दुर्घटना से सब बचें, शासन का यह शोर।।

भव्य-दुकानों में यहाँ, मिलता सभी समान।

ग्राहक अपनी चाह का,रखता है बस ध्यान।।

दिखे शराफत है यहाँ, हर दिल में ईमान ।

ग्राहक खुद बिल को बना, कर देते भुगतान।।

वाहन में पैट्रोल सब, भरते अपने हाथ।

नहीं कर्मचारी दिखें, चुक जाता बिल साथ।।

बाहर पड़ा समान पर, नजर न आए चोर।

लूट-पाट, हिंसा नहीं, राम राज्य की भोर ।।

फूलों सा सुंदर लगा, बर्फीला परिवेश।

न्याग्रा वाटर फाल से, बहुचर्चित यह देश।।

मनोज कुमार शुक्ल मनोज (रायल ओन्टोरियो म्यूजियम) रोम संग्रहालय

26 जून 2022 को (रायल ओन्टोरियो म्यूजियम) जिसे रोम संग्रहालय भी कहते हैं। जहाँ विश्व के अनेक देशों की सभ्यता संस्कृति, मूर्तियाँ, डायनासोर, क्रिस्टल, मानव विकास सभ्यता, पहनावा, शिल्पकला जैसी अनेक वस्तुओं का संग्रह करके उन देशों की प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। हमने यहाँ भारत की अनेक विरासतों को देखा, उनकी प्रतिकृतियों को देखा स्वर्णमंदिर, ताजमहल, दरवाजों पर नक्काशियों के साथ कई मूर्तियों का देखा जो भारत की सम्यता और संस्कृति को दर्शा रहीं थीं। चीन, जापान, एशिया यूरोप आदि देशों की अपनी अपनी विरासतें बहुत ही करीने से सजा कर रखी हुईं थी। यह विशाल क्षेत्रफल में तीन मंजिला भवन में संग्रहित किया गया है।आईलैंड (ओल्ड टोरेन्टो )

2 जुलाई 2022 को आईलैंड ओल्ड टोरेन्टो जाना हुआ। यह वोट या बड़ी जहाज से टोरेन्टो शहर से एक छोटे से द्वीप पर जाना होता है। चारों ओर पानी से घिरा हुआ यह एक आईलैंड है, वहाँ खूबसूरत चारों ओर नजारा देखने मिलता है। लोग पिकनिक, भ्रमण, नौकाविहार करते, खेलते, एवं मौज-मस्ती करते नजर आते हैं। कई तरह के पशु पक्षियों को भी रखा गया है। झूले खेलकूद के अनेकों मनोरंजन-साधन हैं। तरह-तरह के फब्बारो का लोग भरपूर आनंद उठाते नजर आते हैं। हरी-भरी रंगबिरंगे फूलों की क्यारियाँ सहज ही मन को आकर्षित करती हैं।सीएनटावर एवं एक्योरिम

17 जुलाई 2022 को सीएनटावर को देखा जो कि विश्व का सबसे ऊँचा टावर कहा जाता है। उसी के बगल में ही एक्योरिम को देखने के लिए गए। यह जिसे हम मछलीघर भी कह सकते हैं जहाँ अद्भुत दुर्लभ छोटी से छोटी मछलियों के साथ ही समुद्र में पाई जाने वाली खतरनाक बड़ी व्हेल मछलियों को रखा गया है। काँच की गुफा से गुजरते हुए उनका नजदीक से दीदार कर सकते हैं। विशालकाय समुद्र जैसा वातावरण बना कर उनको रखा गया है। विशद वर्णन पिछले यात्रा संस्मरण में कर चुके हैं।

‘मिनि द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी’

विश्व हिन्दी संस्थान (कनाडा) के अध्यक्ष एवं लोकप्रिय साहित्यिक ई पत्रिका ‘प्रयास’ के सम्पादक श्री सरन घई जी द्वारा शनिवार, दिनांक 31 जुलाई 22 को दोपहर तीन बजे से उनके निवास स्थान पर भारत से पधारे समाचार पत्र जनसत्ता के पूर्व सम्पादक श्री शंभूनाथ शुक्ला जी के मुख्य आतिथ्य एवं मनोजकुमार शुक्ल ‘मनोज’ जबलपुर, श्री दिनेश रघुवंशी, श्रीमती सरोजिनी जौहर, के विशिष्ट आतिथ्य एवं कनाडा के योगाचार्य, लोकप्रिय कवि श्री संदीप त्यागी जी के कुशल संचालन में कनाडा के चुनिंदा कवियों का एक मिनि द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। उन्होंने बताया कि मई के मध्य में उनकी संस्था ने एक बड़ा कार्यक्रम कर चुके थे। पर हमारे आगमन का समाचार सुन पुनः एक कार्यक्रम का संयोजन कर लिया। यह उनकी साहित्य के प्रति विशेष अनुरक्ति ही कहेंगे।

कनाडा के मुख्य कविश्री भगवत शरण श्री वास्तव, डॉ विनोद भल्ला, श्री पाराशर गौड़, श्री युक्ता लाल, श्री श्याम सिंह, श्रीमती साधना जोशी, श्रीमती मीना चोपड़ा, श्री भूपेंद्र विरदी, डॉक्टर संतोष वैद, श्री रविंद्र लाल, श्री गौरव, श्री उत्कर्ष तिवारी, श्री राम भल्ला, कीर्ति शुक्ला एवं सरोज शुक्ला आदि कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत की इसके पश्चात कार्यक्रम में भारत से पधारे हुए कवियों का श्री सरन घई जी ने अंग वस्त्र, संस्था-स्मृति चिन्ह एवं अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया। सभी ने आदरणीय सरन घई जी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। सरल सहज दिल के धनी श्री घई जी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। सभी तीस पैतींस मेहमानों को भोजन भी कराया गया।

उनकी हिंदी के प्रति अगाध प्रेम निष्ठा और लगन को देखते हुए मैंने उन्हें मंथन संस्था की ओर से एक प्रशस्ति पत्र भी भेंट किया गया। लगभग 50 पुस्तकों के रचयिता श्री सरन घई कनाडा के काफी लोकप्रिय हिन्दी साहित्यकार हैं। सात वर्ष पूर्व भी उनके रिटायरमेंट एवं जन्मदिन के अवसर पर आयोजित बृहद कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला था।

कार्यक्रम की सभी ने सराहना की जनसत्ता के पूर्व संपादक श्री शंभूनाथ शुक्ल जी ने अपने अतिथि भाषण में श्री सरन घई जी की और सभी कवियों की प्रशंसा की। उनकी रचना को सराहा। रोचक कार्यक्रम काफी समय तक चलता रहा। यह कार्यक्रम का टेलीकास्ट विश्व पटल पर प्रस्तुत हुआ।

प्रशस्ति पत्रआदरणीय श्री सरन घई जी, विश्व हिन्दी संस्थान, कनाडा

‘विश्व हिन्दी संस्थान’, अनुपम इसकी शान।

परचम है लहरा रहा, भारत का सम्मान।।

धन्य हुए हम आज हैं, मिला सुखद संजोग।

फिर अवसर है आ गया, कवि सम्मेलन योग।।

सात बरस के बाद का, लम्बा था वैराग्य।

पाया है सानिध्य अब, मुझे मिला सौभाग्य।।

मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार।

सरन घई की नाव है, खेते हैं पतवार।।

केनेडा की धरा में, अद्भुत बड़ा ‘प्रयास’।

हिन्दी दिल में है बसी, सुखद हुआ अहसास ।।

देश प्रेम की यह छटा, राष्ट्र भक्ति उद्गार ।

दिल में दीपक है जला, फैल रहा उजियार ।।

मोदी की सरकार ने, हिन्दी का सम्मान।

राष्ट्रवाद की गूँज से, बनी जगत पहचान।।

आओ मिल वंदन करें, हिंदी का हम आज।

विश्व पटल पर छा गयी, भारत को है नाज।।

मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’

संस्थापक

‘मंथन’ संस्था

जबलपुर म. प्र. (भारत)

’’लायन सफारी’’

15 अगस्त 2022 को कनाडा में कान्हा किसली की तरह ’’लायन सफारी’’ हेमल्टन अंटोरियो में एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। जहाँ आप बंद कार या उनकी बस में जंगल में पाए जाने वाले गेंड़े, शेर, जिराफ, आदि खतरनाक जानवरों के पास से गुजर कर देख सकते हैं। यहाँ देश विदेशों से लाए गए जानवरों पशु पक्षियों को रखा गया है। साथ ही यहाँ दर्शक दीर्घा बना कर कई खुले मंचों पर उनके साथ प्रदर्शन भी चलता ही रहता है। जो कि अपने आप में देखना रोमांचक एवं साहस भरा कार्यक्रम होता है। वहाँ सपरिवार घूमने का दिन भर आनंद लिया। फिर बच्चों के लिए एक बने पार्क में गए जहाँ सभी लोग विभिन्न फुहारों में भींग कर आनंद उठाते हैं, विशेषकर बच्चों को काफी मजा आता है।टोरंटो, में ‘‘आजादी-अमृत महोत्सव पर्व’’ (विशाल शोभा-यात्रा)

कनाडा, टोरंटो में पन्द्रह अगस्त आजादी का अमृत महोत्सव पर्व धूमधाम से 22 अगस्त 22 को नाथन फिलिप स्कवायर से एक विशाल झाकियों का जलूस निकाला गया। जलूस में भारत के विभिन्न प्रांतों की मन मोहक झलक उनके वेशभूषा और ढोल नगाड़ों के साथ देखने का अवसर मिला। उनके संग 35 से 40 फीट झाकियों की मन मोहक छटा चल रही थी, जिसे देख कर आनंद की अनुभूति हुई।

चल समारोह में ‘विश्व हिन्दी संस्थान’ की भी झाँकी श्री सरन घई जी के संयोजन में कवियों के काव्य पाठ के साथ प्रदर्शित की गई थी। जिसका सुअवसर मुझे भी मिला। विश्व हिंदी संस्थान के द्वारा जलेबी, समोसे का वितरण सारे मार्ग में किया जाता रहा, यह उनके देश प्रेम एवं हिन्दी के प्रति अनुराग निष्ठावान का परिचायक था। राह चलते सभी लोग उसका लुत्फ उठा रहे थे। मंच पर सरन घई जी के साथ मनोजकुमार शुक्ल, समीर लाल, संदीप त्यागी, भल्ला, मीना और अनेक कनाडा के कवियों ने देश भक्ति की रचनाओं का काव्य पाठ किया।

प्रवासी भारतीयों का उत्साह आनंद सचमुच देखने लायक था। जिसे देख कर अन्य देशों के लोग भी जोशो-खरोस के साथ नारे लगाने का प्रयास कर रहे थे। सड़कों के दोनों ओर भारत माता की जय, वंदेमातरम् , जय हिंद के उद्घोष बराबर सुनाई पड़ रहे थे। कनाडा की धरती में उनकी हिस्सेदारी एवं सहभागिता का परिचायक है।

झाँकियाँ में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, जम्मू काश्मीर, पंजाब, हरियाणा आदि अनेक प्रांतों का नेतृत्व महाराष्ट्र की परंपरागत झंडे, वेशभूषा एवं ढोल के साथ जिसमें दो फिल्मी कलाकार राहुल देव और एक अभिनेत्री दिख रही थी। यह कोई सरकारी आयोजन नहीं था। पैनोरेमा इंडिया एवं प्रवासी भारतीयों के मेहनत का परिणाम था जिसमें उनका आर्थिक सहयोग उत्साह के साथ ही देश प्रेम के प्रति समर्पण भाव छिपा स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

भारतीयों की यही विशेषता उन्हें अन्य लोगों से हटकर अपना स्थान बनाने के लिए सहायक सिद्ध होती है। यह सब देख कर मेरा मन रोमांचित हो उठा, गौरव से भर उठा। साथ में आजादी के अमृत महोत्सव के दुर्लभ कुछ चित्र आप सभी के लिए अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छे लगेंगे।विष्णु मंदिर

ओंटारियो शहर के रिचमंड हिल सिटी में बने विष्णु मंदिर में दर्शन के लिए ३ सितम्बर २२ को गए। बड़े क्षेत्रफल में बना तीन मंजिला मंदिर, बाहर विशाल सुंदर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। अंदर पहुँचते ही बरगद की आकृति उभार कर सनातन धर्म का वृक्षों के प्रति निष्ठा प्रदर्शित किया गया है। वहीं दूसरी ओर सर्व धर्म सद्भाव भी देखने को मिला। जहाँ संगमरमर में स्लाम, बौद्ध, क्रिश्चियन, जैन आदि के स्तम्भ धर्म को भी विष्णु मंदिर में स्थान दिया गया है। यही हमारे सनातनधर्म की विशेषता है।

यही हमारी हिन्दू संस्कृति की विशेषता है। हमारे मंदिरों में विश्व के आदर्श पुरुषों की मूर्तियाँ महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर, आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। विभिन्न विष्णु अवतारों के साथ ही सभी देवी देवताओं के दर्शन हुए। यहाँ पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा है। जिसे कि सुनने में आया था कि यहाँ खलिस्तानि समर्थकों ने क्षति पहुँचाने की कोशिश की थी।चिंतपूर्ति, राममंदिर एवं भारत माता मंदिर

1 अक्टूबर 22 को नव रात्रि के छठवें दिन में अपनी श्रीमती के साथ गौरव की कार में तीन मंदिरों में गए। साथ में बेदांश भी था। जिसमें यहाँ राम मंदिर की चर्चा करना चाहूँगा। बहुत ही सुंदर मंदिर बना है, विशाल हाल में आकर्षक मूर्तियाँ स्थापित थीं। मंदिर बने कुछ ही साल हुए होंगे। पुजारी जी ने बताया कि दशहरा में यहाँ रावण दहन होता है। काफी लोग यहाँ आते हैं। एक बड़े हाल में पार्टी चल रही थी शायद शादी की पार्टी होगी। पहले हम लोग चिंतपूर्ति मंदिर गए फिर राम मंदिर इसके बाद भारत माता मंदिर में जाकर माँदुर्गा के दर्शन किए।हिन्दू महासभा मंदिर में भव्य दशहरा का आयोजन

4 अक्टूबर को दशहरा मनाने के लिए ब्राम्टन में हिन्दू महासभा मंदिर के विशाल प्रांगण में जाना तय हुआ। वहाँ जाकर देखा एक ओर विशालकाय रावण का पुतला खड़ा किया गया था। सामने ही एक मंच बना था, जहाँ रामलीला चल रही थी। राम के बचपन से लेकर संक्षिप्त मे रामलीला का मंचन हो रहा था। दर्शको की सुविधा के लिए कई जगह ग्राउंड में स्क्रीने लगीं हुईं थीं।लगभग पचास हजार से भी अधिक प्रवासी भारतीयों की भीड़ दशहरा उत्सव मनाने के लिए इकट्ठी थी।

एक ओर पंडाल में एक बड़ी लम्बी लाईन भी लगी थी भंडारे के रूप में सभी को पैकेट में पैक खाने का सामान दिया जा रहा था। तो दूसरी ओर एक स्टाल भी चल रहा था जहाँ चाय वितरित की जा रही थी। बच्चों को बिस्किट के पैकिट भी वितरित किये जा रहे थे। अनुशासन की इतनी बड़ी लम्बी लाईन देखकर स्तब्ध रह गया। कोई घक्का मुक्की नहीं सभी लाईन में भंडारे का प्रसाद पाने को ललायत थे। मंदिर को असंख्य बिजली के झालरों और लाईट से सजाया गया था। लोंगों में काफी उत्साह उत्सुकता दिखाई दे रही थी। जो पहले आ गए थे उनकी कार तो मंदिर कैम्पस मे ही पार्क थीं किन्तु जा लेट आए उनको कारों की पार्किग के लिए काफी दूर तक जाना पड रहा था।

गौरव को एक किलोमीटर दूर पर जाना पड़ा। उसका इंतजार करता रहा। उसी बीच गोपाल बघेल मधु जो कि अखिल विश्व हिन्दी साहित्य संस्था कनाडा की इकाई के अध्यक्ष हैं , उनसे आकस्मिक मुलाकात हुई जिसका मैने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी। वे काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे, उनके बारे में सरनघई जी ने बतलाया था कि वे हास्पिटल में भरती हैं। देखते ही हम दोनों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। एक दूसरे के गले लग कर स्वागत किया। तभी गौरव भी आ गए परिचय का दौर चला। बघेल जी ने बताया कि किडनी में प्राबलम था। थोड़ी ही देर में सरनघई जी से भी मुलाकात हो गई। अच्छा लगा दशहरे दोस्तों से मुलाकात हो गई। सरन घई साहब ने बताया कि इस तरह और भी मंदिर हैं जिनमें आज दशहरे का कार्यक्रम चल रहा है वहाँ भी इसी तरह की भीड़ है। घई साहब का मकान भी यहाँ से नजदीक रहा है।

रामलीला में राम रावण का युद्ध चलने लगा और राम ने रावण पर अपना अतिम बाण लक्ष्य साधकर चलाया । असत्य पर सत्य की विजय हुई। बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। रावण धराशाही हो गया। विशालकाय रावण का पुतला भी धू-धू कर जलने लगा आकाश में रंगविरंगी आतिशबाजी देख सभी जय श्री राम का उद्घोष करने लगे। चारों ओर हँसी- खुशी, हर्ष-उल्लास का वातावरण छा गया। इस कार्यक्रम के साथ-साथ कनाडा के कुछ नेता गणों के भाषण भी चल रहे थे। रात्रि 10 बजे घर वापसी हुई। बहू रोशी घर पर ही अपने नन्हें विहान के साथ टी वी पर डायरेक्ट टेलीकास्ट कार्यक्रम को देख रही थी।

दिनांक 16 अक्टूबर को विश्व हिन्दी संस्थान कनाडा के संस्थापक श्री सरन घई जी हमारे घर पर अपनी श्रीमती रीता घई जी के साथ घर पर लंच के लिए पधारे तीन घंटे तक उनसे यहाँ की साहित्यक गतिविधियों के बारे में चर्चा हुई और पुराने साहित्यकारों के बारे में जानकारी के साथ उनके साहित्य लेखन के बारे में चर्चा हुई। दोनों को बहुत खुशी हुई। उन्होंने बताया कि हमारा प्रतिवर्ष भारत भ्रमण का कार्यक्रम रहता है इस वर्ष जनवरी फरवरी में जाने का कार्यक्रम बना है तब मैंने उन्हें जबलपुर आने का आमंत्रण दिया। उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।सेव-फलों का विशाल फार्म हाउस

17 अक्टूबर 22 को गौरव के साथ मैं ममता एवं वेदांश भी थे। हम लोगों का हैरीटैज रोड ब्राम्टन स्थित केनेल्स फार्म में जाना हुआ। जिसमे पहाड़ी एरिया में विशाल क्षेत्र में जहाँ एक ओर 1500 मील से बहती आ रही नदी की कल-कल ध्वनि आ रही थी तो वही दूसरी और उँचे पहाड़़ से घिरे हुए रंग बिरंगे वृक्षों की पत्तियों से आच्छादित दृश्य बड़ा ही मनोहारी लग रहा था। लगता था कि किसी चित्रकार ने अपनी तूलिका से रंग बिरंगे प्रकृति में रंग भर दिए हों। वस्तुतः यहाँ आना हुआ था, सेवफल फार्म हाउस को देखने के लिए। कनाडा में यहाँ का मौसम सेव फल के अनुकूल है यहाँ सेव अंगूर चैरी जैसे फलांे की पैदावार ज्यादा होती है। काश्मीर जैसा मौसम हमेशा रहता है। घर से 12-14 किलोमीटर पर था। ऐसे कई फार्म हैं।

इसमें टिकिट भी लगी। बाहर कारों का हुजूम लगा था। अंदर जाना हुआ । सेव के वृक्ष अनेकों कतारों में लगे हुए थे। हर एरिया में सेव की वेरायटी का उल्लेख किया गया था। बोन साइज के वृक्षों में ज्यादा से ज्यादा 4-5 फुट के सभी वृक्ष थे। उनमें बड़े-बड़े लाल पीले हरे सेव लटके हुए नजर आ रहे थे अनेकों जमीन पर बिखरे पड़े थे। कई लोग अपने मन पसंद सेव स्वयं तोड़कर खाने का आनंद उठा रहे थे। हमने भी भरपूर आनंद उठाया। इतनी वेरायटी के सेव तो हमने भी नहीं देखे थे। गेट पर एक पालीथिन भी मिल रही थी 20 डालर में यदि आपको अपने मनपसंद सेव लेना है तो उसमें भरकर जितने आते हैं भरकर ले लीजिये। खाने की तो पूरी छूट थी, शायद जो टिकिट ली गई है वह इसीलिए थी। टैक्टर से सैर भी करवाने की व्यवस्था कर रखी थी टाली की जगह लकड़ी की सिटिंग सीट, चार लाइन वाली जिसमें 40-50 लोग एक साथ बैट सकते हैं। चंूकि एरिया बहुत बड़ा था। एक ओर उन्होंने स्वीट कार्न और हाट डाग का भी स्टाल लगाया था । लोग पिकनिक का आनंद उठा रहे थे। अपने हाथ से सेंक कर खा रहे थे नीचे चाय नास्ते का भी स्टाल लगा हुआ था।

इसके साथ ही एक ओर मक्का के खेत भी थे, जो कि पक कट चुके थे । एक ओर कद्दू के खेत थे। जिनमें हरे कद्दू की जगह अब पीले पके कद्दू 10-15 किलो के नजर आ रहे थे। जिन्हें यहाँ के लोग हैलाविन त्यौहार में करीने से काटकर दरवाजे में टांगते हैं। 4 डालर में मनचाहा कद्दू ले लीजिए। बच्चों के लिए एक शेड में मक्के के दाने भरे हुए थे तो दूसरे शेड में गेंहू बच्चे उसमें खेल रहे थे शायद उन्हें बताने के लिए था।

एक दिन गौरव मेरे को पीआर के लिए मना रहा था। अर्थात् परमानेंट वीसा के लिए यहीं साथ में रहने के लिए। किन्तु यहाँ स्थाई निवास करना मेरे जैसे व्यक्ति वह भी साहित्यानुरागी अभिरुचि वाले के लिए बड़ा ही मुश्किल भरा कदम था । वृद्धावस्था में ठंड में बड़ी कठिनाई होती है, जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। घर में बंद होकर रहना यह किसी जेल से कम न था। जबलपुर में माह में पन्द्रह दिन साहित्यिक गोष्ठियां संवाद परिचर्चा होती रहतीं है। यही इस उम्र में समय का सदुपयोग है। हम और हमारी स्कूटर स्वतंत्र हैं, कहीं भी आने जाने के लिए।

अक्टूबर-नवंबर में ठंड बढ़ने लगती है। जंगल में वृक्षों के पत्तों ने अपना रंग बदलना चालू कर दिया। हरे से लाल पीले रंगों की अद्भुत छटा नजर आने लगी। धरा को वे वृक्ष हरी भरी घास के उपर रंग बिरंगी पत्तीयों की चादर को उढ़ा रहे थे ताकि उसकी हरियाली सुरक्षित रहे। वस्तुतः यह काल यहाँ पतझर का काल होता है। सूखी झरती रंग बिरंगी पत्तियों को देखने पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है। बच्चे आकर पत्तियों के ढेर में खेलते हैं। नौ जवान पेयर आकर फोठोग्राफी सेल्फी लेते नजर आते हैं। मैं प्रायः सुबह शाम टेल में आये दिन देखता। एक दिन रात में बर्फ गिर गई, वृक्षों की पत्तियाँ अधिकांशतः धाराशाही हो गईं। वृक्षों में डगालें ही अब दिखाई देने लगीं थीं। पर गिरे हुए रंग बिरंगी पत्तियाँ धरती को रंगीन बनातीं नजर आ रहीं थीं। यह देखते देखते 24 अक्टूबर का दिन अर्थात दीवाली पास आ गई।

ब्राम्टन कनाडा की यह दीवाली देखने का पहला अवसर था। पिछली बार की या़त्रा में दीवाली दिल्ली में मनाई थी। मन में उत्सुकता भी थी, रह-रह कर भारत की दिवाली की याद आ रही थी। रूप चैदस को अर्थात दीवाली के एक दिन पूर्व एक गुजराती परिवार अहमदाबाद के श्री दामजी भाई बावरिया जी ने अपने घर पर दीपावाली कार्यक्रम रखा। जिसमें चार-पाँच परिवारों को बुलाया। जिसमें सौरभ का परिवार जो कि स्थाई रूप से दो चार मकान बाद रह रहे थे। यह परिवार महाराष्ट से था एवं श्री सुरेन्द्र जोकि आन्ध्रा के निजामाबाद से आए हुए थे। सभी परिवार अपने-अपने घर से कुछ न कुछ खाना बनाकर ले आये। सभी ने उनके घर में सहभोज किया। विभिन्न स्वादों का रसास्वादन किया। बच्चों ने अपने-अपने ढंग से कार्यक्रम प्रस्तुत किया। गाना गाकर संगीत-नृत्य कर के मन को बहलाया। वेदांश ने भी संगीत मय प्रस्तुति दी मैंने भी दो कविताएं सुनाई सभी ने दीवाली का आनंद उठाया।

दीपावली के दिन शाम को घर पर पूजन किया। बाहर बच्चों ने पटाखे फुलझरियाँ जलाईं। जितनी रात गहराती गई रंग बिरंगी आतिशबाजी के नजारे आकाश में अपनी छटा बिखेरने लगे। आतिशबाजी, बमों के धमाकों की आवाज से दीवाली की अद्भुत छटा आकाश में दिखाई देने लगी और भारतीयों की उपस्थिति दर्ज कराने लगी। पर्यावरण को किसी प्रकार से नुकसान न पहुँचे सभी सतर्क थे। पतझर की वजह से पत्तियों के जगह जगह ढेर लगे थे। अग्नि कांड की दुर्घटना से बचा कर सभी दीवाली मना रहे थे। सभी को मालूम था कि यदि कोई दुर्घटना होती है तो फाईन भी भरना होगा। मुझे तो बस सभी के जागरूक होने का अंतर ही समझ में आया। भारत की दीवाली और कनाडा की दीवाली में खास अंतर नजर नहीं आया। वही हर्षोउल्लास का वातावरण। घरों में बिजली के रंग बिंरगी झालरों से दमकते घर, अपनी खुशियाँ बिखेरते नजर आ रहे थे।हेलोविन त्यौहार

कनाडावासियों के लिए हमारी दीवाली के बाद ही एक उनका त्यौहार आता है जिसे पाश्चात्य सभी देशों में हेलोविन के रूप में मनाते आ रहे हैं। जैसे सनातन धर्म में हमारा एक सम्प्रदाय जादू टोटकों को मानता और विश्वास करता है। दीवाली के आसपास वह भूतप्रेतों को सिद्ध करने के प्रयास में लगा रहता है। उसी तरह यहाँ भी हैलाविन के समय देखने को मिलता है। झाड़ू भूत पे्रतों के पुतले और कद्दूओं से बाजार-माल भरे पड़े हैं। यहाँ शहरों की संस्कृति में उसे किसी भी अहित या नुकसान पहुँचाने की दृष्टि से नहीं बल्कि त्यौहार के रूप में मनाते हैं। घरों के बाहर पके हुए बड़े-बड़े सूखे कद्दूओं में अंदर काट कर प्रेतों की आकृतियाँ बनाकर अंदर बल्व लगाकर लटकाया या रखा जाता है। फिर लोग अपने अपने बच्चों को ले जाकर दिखाते हैं और आयोजकगण उन्हें टाफियाँ, चाकलेट देते हैं। बच्चों में इस त्यौहार की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है। बाजारों में लोग विशेष मेकअप व कपड़े में वीभत्स रूप धारण कर धूमते नजर आते हैं उनके साथ सैल्फी लेते नजर आ जाएंगें। 2015 में यह त्यौहार मैंने देखा था पर इस बार का त्यौहार मुझे देखने नहीं मिलेगा। हाँ घरों में एक माह से ही तैयारी चलने लगी है वह मैंने देखी है। 28 अक्टूबर को गौरव के साथ हैप्पी हैलोविन लाईट शो देखने को गया। एक बड़े समतल मैदान में लाईट की झालरों से आकृतियाँ उभार कर भूत, प्रेतों, चमगादड़ों उल्लुओं महलों आदि को बनाया गया था कार में ही बैठ कर दर्शकगण रोमांचित, और आनंदित हो रहे थे। आधे घंटे से अधिक हम लोग कार से भ्रमण करते रहे। मैं गौरव वेदांश ,एवं ममता के साथ कार में घूमते रहे आनंद आया।

आज जबकि मै अपनी संस्मरण यात्रा को लिख रहा हूँ या यूँ कहूँ समेट रहा हूँ, 28 अक्टूबर का दिन है। आज से ठीक दो दिन बाद अपने स्वदेश की वापसी का दिन अर्थात 30 अक्टूबर को सीधे कनाडा एयरलाईन्स से दिल्ली के लिए उड़ान और 1 नवम्बर 22 को जेट एयरलाईंस के द्वारा दिल्ली से सुबह 6 बजे जबलपुर की उड़ान जो कि आठ बजे सुबह जबलपुर में पहुँचा देगा।