Saathi - 10 in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | साथी - भाग 10

Featured Books
Categories
Share

साथी - भाग 10

पहले वाले ने अब भी जब कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तब दूसरे वाले को यकीन हो गया कि पहले वाला भी शायद यहीं चाहता है कि वह इस घर से चला जाए...

अभी दूसरे वाले ने बाहर जाने वाला दरवाजा खोला ही था कि पीछे से आवाज़ आयी तुम्ही सारी ज़िन्दगी, सारे फैसले करते रहो गे क्या...? मेरी सहमति या असहमति तुम्हारे लिए कभी कोई मायने नहीं रखती भी है या नहीं ...! शायद नहीं इसलिए तुम मुझसे बातें छिपते हो, मुझे कभी खुल कर अपना कोई सच नहीं बताते. मेरी तुम्हारे जीवन में कोई अहमियत ही नहीं है ...?

"नहीं ऐसा नहीं है...."

'चुप एकदम चुप'...! बहुत बोल चुके हो तुम ओर बहुत फैसले भी ले लिए तुमने, अब मेरी बारी है. अब मैं बोलूंगा ओर तुम सुनोगे. अब तुम वही करोगे जो मैं कहूंगा, समझें. ख़बरदार अगर मुझसे पूछे बिना तुम कहीं गए. अब तुम हमेशा के लिए यहीं रहोगे. एक कैदी की तरह हर बात में तुम्हें पहले मुझसे परमीशन मांगनी पड़ेगी. चाहे वह कितनी भी छोटी से छोटी बात ही क्यों ना हो. ओर अगर कुछ भी तुम ने अपनी मन मर्जी से किया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.

गुस्से में ना जाने क्या कुछ नहीं कहा पहले ने दूसरे से क्यूंकि वह आहत महसूस कर रहा था, ठगा हुआ सा महसूस कर रहा था. उसे ऐसा लग रहा था कि उसे हर बार वफ़ा के बदले बेवफाई ही मिली छलावा ही किया उसके साथी ने उसके साथ...इसलिए अब वो अपने साथी को अपने साथ किए हुए धोखे के बदले सजा देना चाहता है... बिना अपने साथी की पूरी बात सुने ही उसने ना जाने कितने निष्कर्ष निकाल लिए.

दृश्य बदलता है और कुछ महीने बीत जाने के बाद एक दिन दूसरे वाला अपने बेटे से बात कर रहा होता है. अचानक वह दोनों आपस में कहीं मिलने का प्लान बनाते है ओर दूसरा वाला बिना पहले वाले से पूछे अपने बेटे से मिलने के लिए चला जाता है. जब वह अपने बेटे से मिलकर एक अच्छे मूड के साथ घर वापस आता है, तब पहले वाले की आँखों में अंगारे देख वह एक बार फिर उससे बात करना चाहता है. लेकिन हर बार की तरह पहले वाला इस बार भी उसकी एक नहीं सुनता ओर जोर जोर से चिल्लाने लगता है.

मैंने तुम से कहा था ना कि तुम मेरी इजाजत के बिना कहीं नहीं जाओगे. फिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बाहर जाने की...! साहू जी... साहू जी तुम ने इन्हें बाहर जानें कैसे दिया. मैंने तुम्हें क्यों रखा है यहाँ... ? साहू जी वो व्यक्ति है जिसे पहले वाले ने दूसरे वाले पर नज़र रखने के लिए रखा हुआ है. जो डरा धमकाकर दूसरे वाले पर नजर रखता है. और उसे जुड़ी पल पल की खबर पहले वाले को दिया करता था. इसी बात को लेकर दोनों के बीच बहुत कहा सुनी होती है. इतनी कि जीवन में पहली बार उम्र के इस मुकाम पर आने के बाद भी पहले वाला गुस्से में अपने होश खो बैठता है. दूसरे वाले के उपर हाथ उठा देता है.

यह मंजर देख साहू जी जोर जोर से हँसने लगता है... ठीक उसी तरह जैसे जब किसी घर में चल रही या हो रही घरेलू हिंसा को देखने वाले परिवार के अन्य सदस्य पिट रही स्त्री पर हँसते है, ताकि वह और भी अधिक लज्जित महसूस करे. यूँ भी इस दुनिया में लोगों को दूसरे किसी व्यक्ति को बेइज़्ज़त होते देखने और करने में कुछ अधिक ही आनंद आता है. खैर अब दूसरे वाले को जो अपमान महसूस हुआ उसकी कोई सीमा ना रही. हालांकि 'साहू जी का हँसना कहीं ना कहीं पहले वाले को भी अंदर तक चुभ गया था'. लेकिन वो कहते है ना "गुस्सा इंसान के दिमाग को खा जाता है" वही पहले वाले के साथ भी हुआ.

उस रात तो दूसरा वाला इतने अपमान के बावजूद भी कुछ नहीं बोला और सीधा अपने कमरे में चला गया. उसके जाने के बाद पहले वाले ने साहू जी को काम से निकाल दिया और खुद भी अपने कमरे में चला गया. अगले दिन जब पहले वाला सोकर उठा तो अपने पास रखे पत्र को देखकर पहले तो कुछ सोचने लगा. लेकिन फिर उसने वह पत्र उठाकर पढ़ना शुरु किया.

मेरे यार,

मुझे नहीं पता तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो. लेकिन अब तक मेरे दिल में तुम्हारे लिए एक अलग ही मान था सम्मान था. आज भी है, लेकिन कल जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैं तुम से क्या ही कहूँ...! मुझे भी ठीक से समझ में नहीं आरहा है. मैं नहीं जनता तुम्हारे मन में क्या है. लेकिन मैं तुम्हें अपना सच जरूर बताना चाहता हूँ. मैंने तुम्हें कभी कोई धोखा नहीं दिया. ना ही तुम्हारे खिलाफ जाने के विषय में कभी सोचा, ना ही तुम्हारे खिलाफ कभी कोई साजिश ही रची. फिर भी तुमने मुझे गलत ही समझा शायद मेरे गलतियों की यही सजा सही हो. मेरी वो गलतियाँ जो मैंने कभी जानकर नहीं की, मैंने तो हमेशा तुम्हारे विषय में अच्छा ही सोचा और उसके लिए वही सब किया जो मुझे सही लगा. रही बात मेरे बेटे की...! तो तुम्हें पता है, मेरा पुराना जॉब क्या था. जब मैंने तुम्हें खुश करने के चक्कर में और तुम्हारा सहारा बन तुम्हारा साथ देने के चक्कर में सेलिंयूं में काम किया करता था. उन्हीं दिनों मेरी मुलाक़ात किसी से हुई थी. मैं तो अपना काम कर के चला आया था. लेकिन मेरे कारण कोई थी जो युवती से माँ हो गयी. हालांकि अब वो इस दुनिया में नहीं है. लेकिन मरने से पहले उसने मुझे मेरे बेटे के विषय में विस्तार से बताया और फिर एक (डी.एन.ए) टेस्ट के माध्यम से यह कन्फोम हो गया कि वह मेरा ही बेटा है. बस फिर उसने मुझे बेटा सौंपते हुए कहा कि मैं उसकी देखभाल करूँ. मैंने सिर्फ इंसानियत की खातिर उसे पाला पोसा और फिर धीरे -धीरे मुझे उससे लगाव हो गया. बाकी बातें फिर कभी. जब तुम्हारा दिमाग ठंडा हो जाए, तब मिलकर बात करेंगे. फिलहाल मैं अपना पुराना वाला फोन ले जा रहा हूँ. बस यही बताने के लिए तुम्हें यह पत्र लिखा. मैं तो यह सब 'बात कर के बताना चाहता था'. लेकिन तुम ने मुझे मौका ही नहीं दिया. इसलिए आज इस तरह कहना पढ़ रहा है. मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. तुम बस हमेशा ख़ुश रहो. सदा से यही चाहा है मैंने और आगे भी यही चाहता रहूँगा...

तुम्हारा ‘साथी’.

अब आगे क्या ...? क्या एक बार फिर पहले वाले ने दूसरे को हमेशा के लिए खो दिया है या फिर यह दोनों एक बार फिर मिलेंगे ...? जानने के लिए जुड़े रहिए.

जारी है ...