जय श्री कृष्णा 🙏
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने,
प्रणतः क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नमः।
तारा का कमरा
तीनों उदास हो कर बैठे थे।तीनो को देख कर ही समझा जा सकता था की वो सब कितनी उदास है।
तारा( मायूसी से ) " इसे कहते है, निवाला मूंह तक तो आया पर पेट में नही गया, सारी मेहनत बरबाद हो गई "
वैशाली " अब क्या करे ? ऐसे तो नही बैठ सकते कुछ तो सोचो क्या करे "
चंद्रा "अब करना क्या है, अब हमे पहले वो सारी चीजें सीखनी होगी जो उस मणि के रहस्य को खोलने में सहायक हो, इसके लिए पहले हमे एक गुरु की तलाश करनी पड़ेगी वही हमे सही निर्देश दे कर हमे हमारे लक्ष्यों तक पहुंचाएंगे "
तारा " वो सब तो ठीक है पर पहले तुम राजा सा से बात करो और कहो की तुम अभी ब्याह नही करोगी,क्योंकि अगर एक बार ब्याह हो गया तो फिर तुम रिश्तों और मर्यादाओं में बंध जाओगी "
वैशाली " हां, और फिर अब तक की सारी मेहनत खराब हो जायेगी हमने जितनी भी पढ़ाई की है इन साधनाओं के बारे में सब बर्बाद हो जाएगा "
तारा कुछ सोचते हुए चंद्रा से पूछती है।
तारा, चंद्रा से " चंद्रा एक बात बताओ तुमने हमे तिब्बती सीखने को क्यों कहा और साथ में ग्रीक और लैटिन जैसे पुरानी भाषाओं को भी ? जबकि इन सब में बस संस्कृत भाषा की आवश्यकता पड़ती है। "
चंद्रा " वो मैने एक बार पिता जी को और हमारे कुल पुरोहित को बात करते सुना था "
वैशाली " क्या सुना था ? "
चंद्रा वैशाली का सवाल सुन कर अतीत के पन्नो में खोने लगती है, अतीत के समुंद्र में डूबते हुए उसे याद आता है की नवरात्री का समय था, सब ओर माता की पूजा अर्चना हो रही थी, चारो तरफ मंगल वातावरण था , एक सोलह साल की लड़की हाथ में एक बक्सा पकड़े जा रही थी उस बक्से में कई तरह की के गहने थे। वो एक कमरे के बाहर रुकती है, उस कमरे का दरवाजा बंद था वो लड़की धीरे से हल्का सा दरवाजा खोलती है तो देखती है की उसके पिता देवराज जी और उनके कुल पुरोहित खिड़की के पास खड़े हो कर कुछ बाते कर रहे थे, माहौल थोड़ा गंभीर लग रहा था ,वो लड़की खुद से ही कहती है
लड़की ( खुद से ) " चंद्रा कोई समस्या है जो पिता जी और पुरोहित जी इतने गंभीर है, कही कोई संकट तो नही आ गया, कैसे पता करे ? हां उस खिड़की ने पास खड़ी हो जाती हूं ताकि उनकी बात सुन सकूं "
ऐसा कह कर वो खिड़की के पास जा कर छुप जाती है उसे अब उनकी बात सुनाई देने लगती है, उन्ही बातो को याद करके वो वैशाली से कहती है।
चंद्रा " पिता जी ने पुरोहित जी से पूछा था की इन साधनाओं का अभ्यास करने के लिए और संसार की अदृश्य और रहस्यमई शक्तियों को समझने के लिए क्या करना चाहिए? ( तब पोरिहित जी ने कहा ) इन साधनाओं को सीखने और शक्तियों के विषय में जानकारी इक्कठा करने के लिए सबसे पहला कार्य तो ये करना होगा की संसार की सबसे पुरानी भाषाओं का गहन अध्यन किया जाए। इन भाषाओं में संस्कृत पहले सीखो फिर दूसरी भाषाओं को भी सीखो, जिनका जन्म भी संस्कृत के ही गर्भ से हुआ है। (फिर पिता जी ने पूछा की ) कौन कौन सी दूसरी भाषा सीखे ? "
चंद्रा ने आगे कहा की पिता जी के प्रश्न पर पुरोहित जी ने कहा ।
पुरोहित " तिब्बती, ग्रीक और लैटिन जैसी पुरानी भाषाओं को सीखो "
तब पिता जी ने दूसरा प्रश्न किया
देवराज जी " संस्कृत में तो सम्पूर्ण ज्ञान है तो फिर इन विदेशी भाषाओं की क्या आवश्यकता ? "
पुरोहित जी " साधना आज का नही बल्कि बहोत पुराना अभ्यास है, लोग बहोत पहले से ही अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधना का अभ्यास करते थे, अधिकांश ज्ञान तो संस्कृत में ही है परंतु समय के साथ कुछ चीजों को इन भाषाओं में लिखा गया और समय के साथ संस्कृत की वो प्रतियां नष्ट हो गई, और इन भाषाओं में और भी साधना की नई पद्धतियां मिलेंगी जिससे तुम्हे और भी ज्ञान होगा इन शक्तियों के विषय में।"
वर्तमान समय
चंद्रा की बातों को वो सभी बड़ी गंभीरता से सुन रही थी ।
चंद्रा " इसीलिए मैंने पहले से ही सभी भाषाओं का अध्यन शुरू कर दिया ताकि हमे चीजों को सीखने में ज्यादा दिक्कत न आए "
वैशाली " ओह तो ये बात है "
दूसरे तरफ
महल के पिछले दरवाजे से एक साया पूरी तरह से काले कपड़ों में लिपटा हुआ छुपते छुपाते बाहर की तरफ जा रहा था वो महल से निकल कर चौराहे को पार कर प्रताप गढ़ की सीमा के बाहर विस्तृत क्षेत्र में फैले गहन जंगलों के साम्राज्य में कही गुम हो जाता है।
रात का समय
सब लोग खाना खाने के लिए इक्कठा हुए थे, चंद्रा देवराज जी से बड़े ही बेखौफ अंदाज में पूछती है।
चंद्रा " पिता जी, वैशाली बता रही थी की आप माधव गढ़ गए थे हमारा रिश्ता तय करने,(तल्खी अंदाज में)क्या मैं पूछ सकती हूं, क्यों ? मेरा ब्याह और मुझ ही से नही पूछा गया ऐसा आखिर क्यों ? "
चंद्रा का अंदाज देखते ही सब सन्न रह जाते है, सबका डर से हालत खराब हो जाता है, क्योंकि देवराज जी से इस अंदाज में कोई बात नही कर सकता था, जहां सब डरे थे वही देवेंद्र जी मुस्कुरा रहे थे, वो चंद्रा के निडर स्वभाव को पहले से ही जानते थे, और उन्हें अंदाजा भी था की जब चंद्रा को इस विषय में पता चलेगा तो कुछ ऐसा ही होगा।यहां अगर कोई सबसे ज्यादा डरा हुआ था तो वो मदन जी थे, उन्हें अपनी बेटी के लिए डर लग रहा था । वैशाली और तारा के तो गले में ही निवाला अटक गया था । देवराज जी मुस्कुराने लगते है।
देवराज जी ( मुस्कुराते हुए ) " तो वैशाली बिटिया से रहा नही गया,(थोड़ा रुक कर ) मेरी लाडो ब्याह तो सबको करना पड़ता है "
चंद्रा " पर हम अभी तैयार नही है, हमे अभी ब्याह नही करना है पिता जी "
गायत्री जी कुछ बोलने को होती है, पर देवराज जी उन्हें आंखों से शांत रहने का इशारा करते है तो वो चुप ही रह जाती है।
देवराज जी " ठीक है, जब आप तीनो की इच्छा होगी तभी आप सब का ब्याह होगा। अब खुश, तो जरा मुस्कुराए आप सब "
देवराज जी के बात पर तीनो मुस्कुरा देती है। वैशाली और तारा चंद्रा की सहेली थी, वैशाली मदन जी की बेटी थी जो यहां काम करते थे और तारा देवेंद्र जी की बेटी थी।पर ये दोनो ही सिंह भवन में चंद्रा के साथ रहती थी क्योंकि ये देवराज जी का आदेश था।देवराज जी इन्हे भी अपनी बेटी की तरह ही प्यार करते, और इनके जरूरतों का ख्याल रखते ये तीनो गायत्री जी की सबसे कीमती चीज थी वो भी इनसे बहुत प्यार करती थी।
दूसरी तरफ जंगल में वही साया एक पेड़ के झुरमुट में किसी पूजा की तैयारी कर रही थी उसने अपने ऊपर से काले चादर को हटा दिया था लेकिन उसका चेहरा अभी भी ढका था । वो एक लड़की थी । तभी दो हट्टे कट्टे मर्द वहां आते है और उस लड़की के सामने सर झुका कर खड़े हो जाते है ।
लड़की " आज रात में यहां हवन करूंगी माता काली को आज बलि दूंगी इसलिए तुम सब मेरे आने से पहले पूजा की तैयारी करके रखो और बलि भी तैयार रखना, अगर एक भी चूक हुई तो तुम्हारी बलि चढ़ा दूंगी, समझे, अब मैं जाती हूं नहीं तो महल में किसी को संदेह हो जायेगा "
फिर वो अपने काले चादर से खुद को ढंक कर महल वापस आ जाती है।
तो क्या होगा इस कहानी में आगे ? कौन है ये लड़की और कैसी पूजा की उसने ? जानने के लिए बने रहे मोहिनी ( प्यास डायन की )।
✍️ शालिनी चौधरी