Savan ka Fod - 27 in Hindi Crime Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 27

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सावन का फोड़ - 27

हासिल अधिक से अधिक हो कम से कम कानूनी शिकंजे के आप सरदार गेरुआधारी के भक्त ही हो गए अब आपके बस में अपराध नही है ऐसी ही हालत रही तो जो आपके आतंक के  भय का जो डंका बज रहा है आलम यह होगा की आम जनता सड़को पर आपको पागल कुत्तों की तरह इटो ढेलो पत्थरो से दौड़ दौड़ा कर मार डालेगी सरदार हम लोंगो को अभी से बहुत डर लग रहा है ।हम लोंगो का क्या होगा? करोटि लगभग शेरो कि तरह गुर्राते हुए अंदाज़ में बोला चुप करो नालायको ना हम सधुआने जा रहे है ना ही मंदिर में घण्टी बजाने जा रहे है तुम लोग जितनी जल्दी हो सके कर्मा जोहरा का पता लगाओ वर्ना हम सधुआए ना सधुआए मंदिर जाए ना जाए घण्टी बजाए न बजाए तुम लोंगो कि घण्टी जरूर बजाय देंगे करोटि कि दहाड़ से चारो तरफ सन्नाटा पसर गयाकर्मा रुकती भगती चलती ही जा रही थी।सर के बाल मुड़वा दिए थे जब कोई उसे देखता कोई प्रश्न करता वह यही बताती कि उसके खसम का इंतकाल हो जाने पर उसके परिवार वालो ने उसे घर से बाहर निकल दिया और वह अपनी पांच साल कि बेटी को लेकर अपने दोस्त के घर अरुणाचल जा रही हूँ वही जाकर मेहनत मजदूरी करके अपना और बेटी को पालूंगी।   लगभग तीन चार महीने इधर उधर भटकने के बाद कर्मा पासीघाट नेफा रास्ते मे रुकती लोंगो के ताने जलालत को झेलती लेकिन बिना रुके थके खुद भले ही कुछ न खाए लेकिन सुभाषिनी के लिए खाने कि व्यवस्था अवश्य करती जो भी जिद्द सुभाषिनी करती पूरा करती औरपूरा करने का भरसक प्रयास करती और करती भी करती भी क्यो नही तवायफ कर्मा के पास जिंदगी में बचा भी कुछ नही था शरीर अधेड़ हो चुका था पैरों की घुघरुओ में वह दम कशिश नही रह गयी थी अपना कोठा वह खुद जला आई थी और उसके पास जोहरा थी जिसके द्वारा वह अपने कोठे कि रौनक कायम रख सकती थी वह भी साथ छोड़ चुकी थी अब कर्मा के पास अगर कोई भी था दौलत भविष्य जिंदगी के नाम पर तो सिर्फ सुभाषिनी ।सुभाषिनी जब कभी भी अपनी माई शामली को याद करती कर्मा कहती मैं तुम्हरी माई नही हूँ सुभाषिनी रोते कंठ से कर्मा को माई माई कहती चिपक जाती कर्मा के पास जो पैसे थे अपने कपड़ों की गठरी में छुपा के रखे थे वह जो भी देखता उसे यही समझ मे आता यह तो भिखारी जैसी है इसके पास कुछ भी नही होगा जिससे कर्मा को चोरी का भय तो बिल्कुल नही था वह होशियारी से अपनी तय मंजिल अरुणाचल को बढ़ती जा रही थी अरुणाचल का रास्ता उसे मालूम ही नही था और साधन भी नही मालूम था अतः उसने निश्चय कर लिया वह जैसे तैसे पैदल या जब कही कोई साधन मिल गया तो उसके सहारे चलते ही जाना है और हिम्मत नही हारनी है चाहे कितनी भी कठिनाईया क्यो न आए ।कर्मा सुभाषिनी को लिए चलती ही जा रही थी कि उसकी मुलाकात अरुणाचल कि लड़की सुजाता से हुई जो असम दिसपुर में अध्ययन रत थी से हुई जो मूल रूप से बौद्ध मतावलंबी परिवार से सम्बंधित थी ।सुजाता ऐसे ही सड़क के किनारे बस कि प्रतीक्षा कर रही थी और वही थकी कर्मा सुभाषिनी के साथ बैठी थी सुजाता ने खुद ही कर्मा के निकट जाकर प्रश्न किया किसे खोज रही है यहाँ सुनसान सड़क पर हम लोग के लिए जाना सुना रास्ता समाज है आप तो सीधे मौत के मुहँ में जा रही हो सुजाता को हिंदी आती थी कर्मा को देखकर समझ चुकी थी कि कर्मा को हिंदी के अतिरिक कोई भाषा समझ नही आ सकती है कर्मा ने कहा बेटी मुझे अरुणाचल में पासी घाट के आखिरी छोर में जाना है सुजाता ने कहा मरियांग पेकि जहां मैं जा रही हूँ मैं वही कि रहने वाली हूँ कर्मा ने कहा हां मुझे वही जाना है कर्मा को सुरक्षित स्थान कि तलाश थी न कि जान पहचान की सुजाता बड़े विश्वास भाव से कर्मा और सुभाषिनी को साथ चलने का अनुरोध किया ।सुजाता को बहुत अच्छी तरह इल्म था की उसके साथ जाने वाली औरत के बस कि बात नही कि अरुणाचल एव आस पास के राज्यो में वह कुछ भी अनाप शनाप या आपराधिक हरकत करने में सक्षम है एक भाषा कि समस्या दूसरा सामाजिक समझ तीसरा भौगोलिक समझ सुजाता कर्मा को साथ लिए  दुमरो गांव पहुंची बस से बस बदलती और अन्य दूसरे साधनों का इस्तेमाल करती हुई पूरे रास्ते सुजाता ने कर्मा से अपना घर परिवार समाज जाती धर्म भाषा सब कुछ छोड़ कर अरुणांच प्रदेश जैसे राज्य में जाने कि आवश्यकता ही क्यो पड़ी ?कर्मा को ना तो कोई भय था ना कोई भविष्य की चिंता उसे तो सिर्फ और सिर्फ सुभाषिनी कि ही चिंता थी जिसके लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार थी कोई भी त्याग बलिदान देने के लिए तैयार थी उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ सुभाषिनी ही शेष रह गया था  अतः उसने बिना किसी लाग लपेट के सुजाता को सही बताना ही उचित समझा जो उसका सही निर्णय था क्योकि सुजाता हिंदी समझती थी वह कोई समस्या आने पर  स्थानीय लोंगो को कर्मा कि वास्तविकता से आवगत करा सकती थी कर्मा ने बताया कि  वह एक बड़े जमींदार परिवार की लड़की है उसके पिता मृत्युंजय सिंह के पास खेती बहुत है वह अपने पंचायत के सरपंच भी है सम्भव हो अब ना हो नही होंगे तो मेरे भाई होंगे ऐसा लोग कहते है कि जब मैं पैदा हुई थी तब बहुत दिनों तक खुशियां मनाई गई थी क्योकि मैं पांच भाइयों में एकलौती बहन थी मुझसे बड़े पांच भाई है।