Bairy Priya - 18 in Hindi Love Stories by Anjali Vashisht books and stories PDF | बैरी पिया.... - 18

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बैरी पिया.... - 18


अगली सुबह :


संयम कमरे में आया तो शिविका सोई हुई थी । उसके बाल कुछ सोफे पर और कुछ उसके उपर बिखरे हुए थे । एक टांग उसने सोफे की बैक के उपर चढ़ाई हुई थी और सिर सोफे से नीचे लटकाया हुआ था । ।




संयम के कदम सहसा ही उसकी ओर बढ़ चले । उसने उसके चेहरे के उपर से फूक मार कर बाल हटा दिए । शिविका ने चेहरे के उपर हवा में उड़ाया मानो मच्छर भगा रही हो फिर उसने अपने चेहरे पर हाथ रख दिया ।


संयम ने सिर हिलाया और फिर वाशरूम चला गया । बाहर आया तो शिविका अभी भी सो ही रही थी । संयम उसके पास गया और उसे बाजू से पकड़कर नीचे गिराने ही वाला था कि इतने में उसने अपने आप को रोक लिया ।


फिर सिर हिलाया और शिविका को आराम से उठाकर ठीक से लेटा दिया फिर गाल पर tap करके उठाने लगा । शिविका नही उठी । और उसने फिर से अपना एक पांव सोफे की बैक के उपर चढ़ा लिया और एक हाथ सोफे से नीचे लटकाकर फिर से फैल कर सो गई ।


" Huh.... ये लड़की है क्या..... ??? " बोलकर संयम ने एक गहरी सांस ली और फिर बाहर निकल गया ।


कुछ देर में शिविका की नींद खुली तो वो अंगड़ाई लेते हुए उठ बैठी । उसने देखा कि उसके पास एक बैग रखा हुआ था । शिविका ने बैग उठाया जिसमे कुछ कपड़े थे । शिविका ने बाहर निकालकर देखा तो उसमे एक ग्रे कलर की प्रिंटेड डिजाइन वाली वेस्टर्न ड्रेस थी । जिसकी कमर के पास बेल्ट थी ।


शिविका समझ गई कि ये संयम ने उसके लिए रखी है । शिविका ड्रेस को देखने लगी । वाकई ड्रेस काफी प्रिटी थी । क्या संयम खुद ये ड्रेस लाया था और अगर ऐसा था तो संयम की पसंद काफी अच्छी थी । ।


" अचानक से बदलाव क्यों लग रहा है... ?? पहले बिना बात के इतना गुस्सा और अब अचानक से इतना अच्छा बिहेव.... ?? नॉर्मल तो नही है... । कही ये खतरे की घंटी तो नही है ना शिवि.... ।


आज अगर मैं यहां से बाहर निकल रही हूं तो भागने का मौका नहीं छोडूंगी.... लेकिन बचना कैसे है.... वो सोचने वाली बात है.... इस बार अगर पकड़ लिया और टांगे ही तोड़ दी तो... ?? । नई नई नई... ।




भगवान जी.. क्या सोचा था और क्या हो रहा है... उस बूढ़े को तो कैसे न कैसे शायद हैंडल कर ही लेती लेकिन इनको कैसे हैंडल करूं... बोहोत मुश्किल है... । " बोलकर शिविका फिर से कुछ सोचने लगी ।


खयालों में डूबी हुई ही वो बाथरूम की ओर चल दी । तैयार होकर बाहर आई तो कमरे में एक बार फिर शीशा ढूंढने लगी । लेकिन शीशा नहीं दिखा । वैसे भी इस कमरे में शीशे का काम भी क्या था । हर वक्त तो अंधेरा ही रहता था और हल्की सी लाल रोशनी में इंसान को शीशे में क्या ही दिख जायेगा.... ।


उसकी ड्रेस की जिप पूरी लगी नहीं थी । बाहर आकर शिविका उस zip को लगाने की कोशिश में लगी हुई थी । लेकिन zip नहीं लगी ।


" पता नहीं अंधेरी नगरी क्यों बना रखा है विला को.. । भूतों की पूजा करते हैं क्या... ?? भूत बंगला बना रखा है । और उपर से शीशा भी नहीं है.. । पर अगर होगा तो खुद का ही चेहरा देखकर डर नहीं जायेंगे... " बोलते हुए उसने zip लगाना छोड़ा और curtains को खोल दिया । थोड़ी रोशनी अंदर आने लगी ।


शिविका ने कुछ सोचा और फिर बालकनी की ओर चल दी । वहां पर लगी विंडी में दिख रही हल्की सी रिफ्लेक्शन में वो खुद को देखने लगी ।


" हाश कहीं तो शीशा मिला.... " बोलते हुए वो पीछे घूमकर शीशे में देखते हुए ड्रेस की जिप लगाने लगी ।


उसे वो ड्रेस घुटनों तक आ रही थी । कमर पर उसने बिल्कुल सही से बेल्ट को कस लिया था । ड्रेस की बैक में लगी जिप को वो अभी भी लगाने की कोशिश किए जा रही थी लेकिन फिर भी वो पूरी तरह से उपर तक नही लग रही थी । जब उसके हाथ थक गए तो शिविका ने बालों को पीठ पर खुला छोड़ा हुआ था... । वहीं संयम के दिए हुए ब्लैक कलर के हाई बूट्स उसने पैरों में पहन लिए थे ।


शिविका ने खिड़की के नजदीक जाकर देखा तो उसकी गर्दन पर एक लव बाइट बनी हुई थी जो बोहोत ज़्यादा दिखाई दे रही थी.... । शिविका ने थोड़े से बाल आगे की तरफ कर लिए... । अपने आप को देखते हुए शिविका कही खो सी गई । यादों में खोए हुए उसकी आंखों में आसूं तैर गए । उसने मुट्ठी कसी और फिर दरवाजे की ओर चल दी ।




उसके जाते ही दरवाजा अपने आप ही खुल गया । शिविका दरवाजे के पास खड़ी उसे ध्यान से देखने लगी । फिर मन में बोली " यूं तो ये दरवाजा sk के फेस और फिंगर सेंसर से अनलॉक होता था लेकिन फिर ये बिना sk के कैसे खुल जाता है... ।


कुछ तो तरीका है इसे बिना उनके अनलॉक करने का... । पर क्या... ??? You have to find out shivi..... " सोचते हुए शिविका ने स्टेप आउट कर दिया ।


लिफ्ट के पास आकर खड़ी हुई तो उसे अपने पेट पर किसी का हाथ महसूस हुआ । जिसने उसे झटके से पीछे की ओर खींच लिया ।


" आह..... " शिविका के मुंह से अपने आप ही निकल गया और उसने अपने पेट पर रखे हाथ पर अपने दोनो हाथ रख दिए ।


शिविका कुछ रिएक्ट करती उससे पहले ही संयम ने एक तरफ से उसके बालों को साइड किया और उसकी गर्दन पर होंठ रख दिए । शिविका के रोंगटे खड़े हो गए । उसने कसकर आंखें बंद कर ली ।


संयम ने उसकी गर्दन पर होंठ टिकाए हुए ही उसके बालों को समेट कर आगे की तरफ कर दिया और उसकी ड्रेस की जिप को पूरी तरह से उपर तक लगा दिया ।


फिर उसकी गर्दन से होंठ हटाकर दूर हो गया ।

शिविका बुत बनी वैसे ही खड़ी रही । संयम ने उसका हाथ पकड़ा और लिफ्ट में चला गया । शिविका statue बनी हुई थी ।


" इनको कैसे पता कि उसकी जिप पूरी नहीं लगी थी । जबकि मैने तो पीठ को बालों से कवर किया हुआ था । कहीं bathroom में कैमरा तो नही लगाया है... " सोचते हुए शिविका की आंखें हैरानी से फैल गई.... ।

वो सवालिया नजरों से संयम को देखने लगी ।


" बाथरूम में नहीं लेकिन रूम में जरूर कैमरा है... । अश्लीलता नही भरी मुझमें..... । don't worry..... " बोलते हुए संयम सामने देख रहा था ।


शिविका ने सिर हिलाया और फिर संयम को देखने लगी । वो आखिर था क्या... ?? वो उसके मन की बातों को कैसे सुन लेता था ?? । और अगर कमरेे में कैमरा लगाा था तो हो सकता है कि वॉइस कैमरा भी लगाा हुआ हो । क्या संयम नेे उसकी सब बातें भीी सुनी होगी ?? ।




शिविका उसे घूरे जा रही थी । शिविका ने ध्यान से उसे देखा तो उसने डार्क ग्रे कलर का बिजनेस सूट पहना हुआ था । जो कहीं न कहीं शिविका की ड्रेस से भी मैच कर रहा था । सूट उसको परफेक्टली fit था । वो बोहोत अट्रैक्टिव लुक दे रहा था ।




संयम ने अपना कोट सही करते हुए कहा " don't stare at me..... " ।


शिविका ने नजरें फेर ली.... । संयम उसका हाथ पकड़े हुए ही लिफ्ट से बाहर निकला । और डॉक्टर के केबिन की ओर बढ़ गया । डॉक्टर ने शिविका की पट्टी चेंज करके दवाई लगा दी तो संयम उसे लेकर बाहर निकल गया । अब शिविका के पैर काफी बेहतर थे । वो चलने लायक हो गई थी ।


विला से बाहर निकलकर दोनो एक गाड़ी में जाकर बैठ गए थे । ड्राइवर ने गाड़ी चला दी ।


कुछ देर बाद एक बड़े से मॉल के आगे गाड़ी आकर रूकी । ड्राइवर ने जल्दी से उतरकर संयम के लिए दरवाज़ा खोला । संयम बाहर उतरा तो ड्राइवर शिविका की ओर जाने लगा । संयम ने उसे उंगली से इशारे से रोक दिया । ड्राइवर वहीं हाथ बांधे और सिर झुकाए खड़ा हो गया । संयम ने खुद जाकर शिविका के लिए दरवाजा खोल दिया ।


शिविका बाहर निकल गई । सामने के मॉल को देखकर शिविका की आंखें खुली की खुली रह गई । ये एक बोहोत बड़ा मॉल था । और देखने से ही पता चल रहा था कि इसमें मिलने वाला सामान भी सस्ता तो नहीं होगा.... ।


" ये तो उसी टाइप का मॉल लग रहा है जहां सड़क पर पड़ा फटा रुमाल भी फैशन के नाम पर कई लाखों में बेचा दिया जाता होगा.... । तो नॉर्मल चीज का प्राइस क्या ही होगा..... ??? " सोचते हुए शिविका एक खोए हुए बच्चे की तरह मॉल की कुतुब मीनार जैसी ऊंची बिल्डिंग को देखे जा रही थी ।