Kukdukoo - 17 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 17

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कुकड़ुकू - भाग 17

देखते ही देखते शाम के सात बज गए। अब तक तो खाना बनना भी शुरू हो चुका था। जानकी और शांतिखाना बना रहे थे और शिल्पा उनका हाथ बटा रही थी। सुशील और शेखर आंगन मे बैठकर बाते कर रहे थे।
“अरे यार सुशील, मैने तो सोचा भी नही था की रघु इतनी जल्दी इतना अच्छा फुटबॉल खेलना सिख जायेगा, मैने तो आजतक ऐसा कोई खिलाड़ी नही देखा जो एक दो हफ्तों मे इतना अच्छा फुटबॉल खेलना सिख गया हो।” शेखर ने रघु की तारीफ करते हुए सुशील से कहा। 

“अरे हां यार, सोचा तो मैने भी नही था की रघु इतनी जल्दी इतना अच्छा खेलने लगेगा।” सुशील ने शेखर से कहा। 

“सुशील, अच्छा हुआ तू उसके फुटबॉल खेलने के लिए राजी हो गया, अगर तूने उस दिन माना कर दिया होता तो आज रघु का इतना नाम नही होता, पूरे गांव मे सभी लोग उसकी तारीफ कर रहे हैं।” शेखर ने सुशील से कहा।

इतने मे रघु उनके पास आकर बैठ गया। “बेटा रघु , हमे तो पता ही नही था की तू इतना अच्छा फुटबॉल खेलना है।” शेखर ने मुस्कुराते हुए रघु से पूछा। 

“अरे चाचाजी वो तो मुझे भी नही लगा था की मैं इतनी जल्दी खेलना सिख जाऊंगा वो तो रघु भईया को मुझपर भरोसा था इसलिए ये सब हो पाया। उन्होंने मेरी बहुत मदद की, मेरे पास तो फुटबॉल खेलने वाली कीट भी नही थी, मेरे बिना बोले ही उन्होंने मुझे एक जोड़ कीट दे दी, और साथ मे प्रैक्टिस करने के लिए एक बोल भी दे दिया ताकि मैं जल्दी सिख सकूं। अगर दिलीप भईया नही होते तो मैं फुटबॉल खेलना नही सिख पाता, और चाचाजी, किसी भी नये खिलाड़ी को इतनी जल्दी मेच मे खेलना का मौका नहीं मिलता, वो तो दिलीप भईया को मुझ पर भरोसा था और उन्होंने मुझे मैच मे उतार दिया।” रघु ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ शेखर से कहा।

 “बेटा बोल तो तुम सही रहे हो। दिलीप बहुत अच्छा लड़का है।” शेखर ने कहा।

खाना बनते बनते रात के 9 बज गए। मंगल और उसके परिवार वाले भी अब रघु के यहां आ चुके थे। सब लोग आंगन मे बैठकर बाते करने लगे। रघु , मंगल और शिल्पा एक तरफ बैठे हुए थे। शिल्पा उन दोनो को अपनी कविताओं की कॉपी दिखाने लगी। मंगल ने जब उसकी कविता की कॉपी देखी तो उसने बहुत सी अच्छी अच्छी कविताएं लिखी हुई थी।

मंगल ने देखा की शिल्पा ने अपने मम्मी पापा और रघु के मम्मी पापा पर भी कविता लिखी हुई है। “ओए शिल्पा, हम दोनो के लिए भी कविता लिख ना, मंगल ने शिल्पा से कहा।

 “अरे हां यार शिल्पा, हमारे लिए भी कविता लिख दे।” रघु ने भी शिल्पा से कहा।

 शिल्पा ने उन दोनो की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा– “अरे इसमें क्या, अभी लिख देती हूं , तुम दोनो थोड़ा इंतजार करो, मैं अभी दोनो के लिए कविता लिख देती हूं।” शिल्पा ने इतना कहा और पेंसिल निकलकर उन दोनो के लिए कविता लिखने लगी। देखते ही देखते कुछ ही मिनटों मे उसने उन दोनो के लिए कविता लिख दी।

“ये लो, ये तुम दोनो के लिए कविता तैयार हो गई।” शिल्पा ने रघु और मंगल से कहा। रघु और मंगल को तो यकीन नही हो रहा था की कुछ ही मिनटों मे शिल्पा ने उन दोनो के लिए कविता लिख दी। तभी मंगल ने कहा– “ला दिखा तो, कैसी कविता लिखी है !” कहते हुए मंगल ने शिल्पा से कॉपी ले ली। 

जब रघु और मंगल ने कविता पढ़ी तो उन्हे यकीन ही नहीं हो रहा था की शिल्पा इतना अच्छी कविता लिख सकती है। दोनो कविता पढ़कर बड़ी हैरानी से एक दूसरे की तरफ देख रहे थे।

 “अरे यार रघु , ये शिल्पा तो छुपी रूस्तम निकली, इतनी जल्दी इतना अच्छी कविताएं लिख दी।” मंगल ने शिल्पा की तारीफ करते हुए रघु से कहा।

 “हां यार मंगल तू सही बोल रहा है, इतनी जल्दी इतनी अच्छी कविताएं, मुझे तो लग रहा था की पता नही क्या आलतू फालतू लिख रही होगी, पर इसने तो कमाल कर दिया। इतनी जल्दी इतनी अच्छी कविताएं लिख दी।” रघु ने मंगल से कहा।

यहां ये तीनों अपनी बातों मे लगे हुए थे की तभी शांतिने कहा– “चलो बच्चो खाना खा लो।” 

सभी लोग खाना खाने के लिए बैठ चुके थे। खाना खाते समय भी सभी रघु की बातें कर रहे थे। रघु को भी सबके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था। 

“अरे पापा, आज अगर रघु टीम मे नही होता तो शायद हम इस बार भी फाइनल मेच तक नही पहुंच पाते।” दिलीप ने अपने पापा से कहा और रघु की तरफ देख कर मुस्कुरा दिया। ये सुनकर रघु के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। सबने खाना खाया और अपने अपने घर चले गए।

रघु और उसके मम्मी पापा सोने ही जा रहे थे की रघु ने कहा– “पापा, आपने शिल्पा की कविताएं सुनी ! आज उसने मेरे और मंगल के लिए भी कविता लिखी है, इतनी अच्छी कविता मैने आज तक नही सुनी।” सुशील और शांतिने जब रघु की बात सुनी तो मुस्कुराने लगे। 

“अरे बेटा हमको तो पहले से पता है। पहले बार जब उसने हमारे लिए कविताएं लिखी थी, तब हमें भी उसकी कविताएं सुनकर बहुत अच्छा लगा था। जैसे तू फुटबॉल खेलने मे माहिर है, वैसे ही वो कविताएं लिखने मे माहिर है। कुछ ही मिनटों मे किसी पर भी कविता लिख सकती है।” सुशील ने रघु से कहा। 

“मां, तुम्हे पता है, कल गांव मे दावत है।” रघु ने अपनी मां से कहा। “हां सुना तो है की कल गांव मे दावत है, पर पता नही चला की दावत कैसे होने वाला है !” शांति ने रघु से कहा।

 “अरे मां हम लोग फुटबॉल टूर्नामेंट जीत कर आएं हैं ना, इसलिए सरपंच जी ने दावत रखी है। सरपंच जी ने दिलीप भईया से कहा था की अगर हम लोग टूर्नामेंट जीतकर आए, तो हमारे और पूरे गांव वालो के लिए दावत रखी जायेगी। इसलिए ये दावत रखी गई है।” रघु ने अपनी मां से कहा।

 “अच्छा तो ये बात है, तभी मैं सोचूं की अचानक गांव मे किस खुशी मे दावत रखी जा रही है, अब पता चला की तुम लोगो के जितने की खुशी मे दावत रखी जा रही है, सरपंच जी बहुत भले इंसान हैं, हमेशा गांव की भलाई के बारे मे सोचते हैं।” इतना कहकर शांतिरघु की तरफ देखकर मुस्कुराने लगी।

Story to be continued......
Next chapter will be coming soon......