Savan ka Fod - 22 in Hindi Crime Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 22

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

सावन का फोड़ - 22

जोहरा जल्दी से जल्दी कर्मा तक सुभाषिनी को पहुँचाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती थी वह भागती ही जा रही थी . कोशिकीपुर में अद्याप्रसाद के घर मातम का माहौल था गांव वाले अपने अपने तरह से इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे अद्याप्रसाद और शामली को तो जैसे सांप सूंघ गया हो ऐसा वज्रपात हुआ हो जिससे उबरना ही मुश्किल हो तभी गेहूल नशे में धुत अद्याप्रसाद के दरवाजे पहुंचा और अद्याप्रसाद शामली रजवंत मुन्नका को रोते विलखते देख बोला हम त परसो ही बतवले रहनी कि जाऊँन औरत के तोहन लोगन घरे रखले हव ऊ ससुरी बाई जी ह और वोकर कौनो ठीक नाही बा कब गच्चा मारिजा भइल न ऊहे गेहूल की बात सुनकर रजवंत को  पछतावा हो रहा था  मन ही मन सोच रहा था की गलती तो उससे हुई है गेहूल की बात पर विश्वास ना करके। जोहरा का चार महीने का बच्चा जोर जोर से रोता ही जा रहा था ना शामली ध्यान दे रही थी ना मुन्नका गांव कि भीड़ में भी लोग बार बार रोते बिलखते बच्चे पर ध्यान देने की बात कहते लेकिन अद्याप्रसाद और शामली को तो सिर्फ सुभाषिनी ही कि याद और वेदना सता रही थी जोहरा के रोते विलखते बच्चे को देखने के लिए रजवंत नाराज होकर मुन्नका से कहा की तुरंत बच्चे को चुप कराओ मुन्नका ने कहा यह तो पाप है जो इसकी धोखेबाज माँ हम लोंगो के सर मढ़ गयी है .रजवंत ने पत्नी मुन्नका को समझाते हुए बोले चार माह के मासूम को क्या मालूम कि वह किसी अपराध या पाप कि देन है बच्चे ईश्वर का रुप होते है तुमने भी अपने पाँच वर्ष के रितेश को खोया है पता नही किस हालात में वह कहां होगा कम से कम इस बच्चे को तुम्हारे ममत्व से सुकून मिले सम्भव है हमारे रितेश और सुभाषिनी को भी ईश्वर का कोई न कोई रूप रक्षा करे और वे जीवित स्वस्थ रहेंगे तो मिल भी सकते है ।जिस चार महीने कि बच्चे को यह भी नही पता है की उसे  जनने वाली माँ ही उसे छोड़ कर चली गयी है कम से कम इसे माँ कि कमी नही होगी और यह कभी भी माँ जैसे पवित्र रिश्ते कि मर्यादा पर कोई  प्रश्रचिन्ह खड़ा नही कर सकेगा मुन्नका ने जोहरा के बच्चे को गोद मे ज्यो ही उठाया वह मुनक्का के चेहरे को देखता चुप हो गया जिस तरह से सुभाषिनी जोहरा से घुली मिली थी उसी तरह से मुन्नका से और जोहरा का बच्चा भी शामली और मुनक्का दोनों के पास वैसे ही रह सकता था जैसे जोहरा के पास एक दिन बीता इस सम्भावना में कि सम्भवतः जोहरा किसी विशेष कारण से सुभाषिनी को ले गयी हो और लौट आएं ।जोहरा जब सुभाषिनी को लेकर कर्मा बाई के पास पहुंची तो सुभाषिनी बहुत खुश हुई औऱ कर्मा के गोद मे जा बैठी और बड़े प्यार से बोली तू त माई जईसन हुऊ हमरे खातिर खेलौना बिस्कुट मिठाई देत रहलु और जाने क्या क्या प्यार भावनाओं कि बाते करती जा रही थी कर्मा इस सोच में डूबी थी की करोटि नाम का राक्षस आएगा और फूल सी मासूम को या तो किसी कोठे पर बैठा देगा या कमसिन कली को फूल बनने से पहले रौंद कर अपनी रखैल बना कर अपनी दुश्मनी का बदला अद्याप्रसाद से लेगा  जघन्यता क्रूरता के अपने राक्षसी  इतिहास में एक अध्याय सुभाषिनी का जोड़ देगा कर्मा सोच में डूबी ही थी कि सुभाषिनी ने उसका हाथ पकड़कर झटकते हुए कहा हमे खिलौने टॉफी बिस्कुट चाहिए कर्मा ने कभी खुद माँ बनने का एहसास तो किया नही था लेकिन थी तो वह एक औरत ही जिसमे ममत्त्व कहीँ न कहीं किसी न किसी कोने में जाग उठा उसने जोहरा से कहा जोहरा अब औरत के इम्तेहान और कुर्बानी का वक्त आ गया है यदि मैं सुभाषिनी को लेकर गयी तो तुम्हे और  तुम्हारे साथ सभी उस्तादों कि बलि चढ़ा देगा करोटि तुम्हे बहुत चिंता अपने बेटे के लिए करने कि आवश्यकता इसलिए नही है क्योकि  तुम नेक इंसानों के पास अपना बच्चा छोड़ आई हो जहां तुम्हारे बच्चे को अच्छी परिवरिश और जिंदगी मिलेगी और उनकी बेटी उठा लाई हो दरिंदगी की भेंट चढ़ाने के लिए खुदा इस दुनियां क्या कयामत दर कयामत हमे माफ नही करेगा जोहरा ने कहा हम क्या करे दीदी ?कर्मा ने कहा भाग जाओ जहाँ तुम्हे पनाह मिल सके जोहरा ने कर्मा कि बात सुनते ही फौरन बिना देर किए बरकत नवी एव नसीर को जैसे थे वैसे दो चार कपड़े कि गठरी बनाया और जो कुछ पैसे थे उन्हें लेकर सुभाषिनी को कर्मा के पास छोड़ते हुए निकल गए शाम ढलने को ही थी चारो का किस्मत साथ दे रही थी चारो ज्यो ही मुख्य सड़क पर पहुंचे एक ट्रक उधर से गुजर रही थी जोहरा ने ट्रक को हाथ दिया ट्रक वाले ने ट्रक रोक दिया जोहरा नवी नसीर ट्रक में बैठ गए ट्रक चालक सवारथ ने जोहरा को देखते ही कहा की तुम हमारे बगल में बैठो और क्लीनर शिधारी से बोला तुम  तीनो के साथ पीछे बैठ जाओ सिधारी नवी बरकत नसीर ट्रक में पीछे बैठ गए और जोहरा सवारथ के बगल में ड्राइविंग सीट के बगल में सवारथ ने ट्रक का एक्सीलेटर दबाते हुए सवाल किया कारे जास्मिनवा तोका त कर्मा के सौंपियाए रही काहे भागत हुऊ जोहरा ने कहा तुमने तो हमारी नादानी का फायदा उठाया जब तक मन नही भरा जब मन भर गया तो कर्मा को सौंप गया कर्मा दीदी ने हमे तुम जैसे किसी भी शैतान हवस का भूखे भेड़िए मर्द के हवाले नही किया उसने तो बड़ी बहन की तरह हमे अपने पास नाच गाना सिखाया जिंदगी  मजे से चल ही रही थी ना जाने खुदा ने कैसे तुम्हें इतनी अक्ल दे दी कि तुम मुझे भूखे भेड़ियों के मर्दों के मनबहलाव के हेठा कोठा वह भी कर्मा बाई के यहाँ मुझे बेच गए अच्छा की किया तुमने तुम्हारे कमीनेपन से छुट्टी तुमने खुद दे दी मेरे जिस्म को रौंदकर बेच दिया मेरे जिस्म को रौंदा सो रौंदा ही जिस्म का सौदा भी कर दिया वह तो खुदा का लाख लाख सुक्रिय कि तुमने मेरा सौदा कर्मा से किया कही और करते तो जाने क्या होता ? तुम्हरा हम तक पहुँचना भी खुदा कि मेहरबानी थी अम्मी अब्बू के इंतकाल के बाद मेरा कोई सगा नही बचा था मैं अपने मामूजान के घर गयी मामू भी अम्मी का सगा भाई नही था अब्बल दर्जे का शैतान जब मैं छः वर्ष की थी तब मामू के घर चली तो गयी दो चार दिन बाद ही लगभग रोज रात मामू मुझे अपने विस्तर पर उठा ले जाता और जाने कैसी अनाप शनाप हरकते करता जब मैंने इस बाबत मुमैनी को बताया तो वह बोली कमबख्त मिरकाईल अपने हर रोटी के टुकड़े का हिसाब चुकाता है बहुत जालिम इंसान है तू भाग सके तो भाग जा नही तो यह जालिम इंसान तेरी बोटियां नोच नोच रोज खाता रहेगा मुझे मुमैनी के दिल कि आवाज सुनाई दी छः सात वर्ष कि उम्र में दुनियां के पैरों तले आए दिन रौंदे जाने से कुछ अक्ल काम कर जाती मै मुमैनी नाज़ से दुआएं लेकर घर से निकली ही थी जैसे आज तो तू मिल गया तू भी मिरकाईल से कम दरिंदा नही था तूने भी तो मेरे जिस्म को ही रौंदना शुरू किया तुझमें और मिरकाईल में फर्क सिर्फ इतना ही था तुझमें इंसानियत थोड़ी बाकी थी तो मेरा ख्याल भी करता चार पांच साल तक तूने मुझे गन्ने की तरह निचोड़ा और अंत मे कर्मा दीदी को बेच आया आज किस्मत फिर वही तारीख दोहरा रही है देखते है की आज भी तू उसी नजरिए से मेरे साथ पेश आता है जैसे पहली मुलाकात में सवारथ बोला धंधे कि कसम आज सवारथ तुझे तेरी मंजिल तक पहुंचाएगा बोल क्यो कर्मा का कोठा छोड़कर भाग रही है वह भी सारे उस्तादों को साथ लेकर जोहरा बोली करोटि के डर से सवारथ और कुछ जानना ही नही चाहता था क्योंकि करोटि के आतंक का उसे भी पता था वह बोला फिर तो तू कहीं  भी महफूज है ही नही क्योकि इस दुनिया मे तो शायद ही  खुदा भी तुम्हे न बचा सके।