तीन दिन बाद सुप्रिया को होश आ गया और वो खून की प्यास के कारण तड़पने लगी। उसने एक नर्स को पकड़ा और उसके गले में काटने ही वाली थी की विक्रांत वहां आ गया और उसने सुप्रिया को पकड़ लिया। सुप्रिया उसके हाथों से छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसे खून चाहिए था।
विक्रांत के पास सुप्रिया को वहां से ले जाने के अलावा और कोई रास्ता नही था। विक्रांत ने सुप्रिया को अपने कंधे पर उठाया और हवा की तेजी से हॉस्पिटल से बाहर निकल गया। कुछ ही देर मे वो सुप्रिया को लेकर अपने घर पहुंच गया। घर पहुंच कर विक्रांत ने सुप्रिया के हाथ पैर रस्सियों से बांध दिए। इसके बाद विक्रांत उसके पीने के लिए खून की तलाश में निकल गया।
विक्रांत किसी भी हालत मे सुप्रिया को इंसान का खून नही पीला सकता था। क्योंकि उसके पापा ने साफ साफ कहा था की अगर सुप्रिया के मुंह इंसान का खून लग गया तो उसकी प्यास को शांत करना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए उसे इंसान की जगह अगर जानवर का खून पिलाया जाए तो उसकी प्यास को कुछ समय तक शांत किया जा सकता है।
विक्रांत जंगल में कोई जानवर ढूंढ रहा था जिसका खून सुप्रिया को पिलाया जा सके। अचानक विक्रांत की नजर एक खरगोश पर पड़ी। विक्रांत तेजी से खरगोश की तरफ भागा और उसने खरगोश को पकड़ कर मार दिया। वो ऐसा करना तो नही चाहता था मगर इसके अलावा उसके पास कोई तरीका नहीं था सुप्रिया को शांत करने का। उसने खरगोश का खून एक बॉटल मे भरा और उसे लेकर वापस घर लौट आया।
घर पहुंच कर जैसे ही उसने बोतल का ढक्कन हटाया तो सुप्रिया के शरीर में कुछ हलचल सी होने लगी। सुप्रिया होश में आ गई और प्यास के मारे छटपटाने लगी। विक्रांत ने उसके हांथ पैर की रस्सियां खोली और उसको वो खून से भरी बॉटल पकड़ा दी। सुप्रिया ने बिना समय गवाएं उस बॉटल का पूरा खून पी लिया।
खून पीने के बाद सुप्रिया अब थोड़ी ठीक नजर आ रही थी। उसने जब अपने हाथों मे खून वाली बॉटल देखी तो उसने घबराते हुए विक्रांत से पूछा–“विक्रांत...! मैं कहां हूं, और ये कौनसी जगह है?”
विक्रांत ने सुप्रिया का सवाल सुनने के बाद सुप्रिया को बताया की ये उसका घर है। “विक्रांत मुझे क्या हुआ है? मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है। और ये इस बोतल में क्या है?”
सुप्रिया के इस सवाल का विक्रांत क्या जवाब दे उसे समझ नही आ रहा था। फिर भी उसने अपना मन मजबूत करते हुए कहा–“सुप्रिया ये खून है। अभी तुमने यही पिया है।” विक्रांत के मुंह से ये सुनकर सुप्रिया ने गुस्से मे वो बॉटल विक्रांत की तरफ फेंक दी।
“खून...! तुमने मुझे खून क्यों पिलाया? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?” सुप्रिया ने गुस्से में विक्रांत से पूछा।
विक्रांत ने पहले सुप्रिया को शांत होने को कहा। फिर उसने जंगल मे हुए वाक्ये के बारे में सुप्रिया को सबकुछ बताया। जब सुप्रिया ने ये सब सुना तो उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था की अब वो आम इंसान नही बल्कि एक मानव भेड़िया बन चुकी है।
“विक्रांत तुम मजाक कर रहे हो ना! बोल दो की तुम मजाक कर रहे हो और ये सच नहीं है।” सुप्रिया ने लड़खड़ाती आवाज मे विक्रांत से पूछा।
विक्रांत को समझ नही आ रहा था की वो सुप्रिया के सवालों का क्या जवाब दे...! तभी सुप्रिया ने शक भरी नजरों से विक्रांत को देखते हुए पूछा–“तुम मुझे सच सच बताओ, तुम कौन हो? और तुम्हे कैसे पता की मै एक मानव भेड़िया बन चुकी हो। तुम इस बारे मे कैसे जानते हो?” सुप्रिया के ये पूछने के बाद विक्रांत ने उसे बता दिया की वो भी एक मानव भेड़िया है।
विक्रांत की सच्चाई जानने के बाद सुप्रिया गुस्से से बोली–“इसका मतलब तुमने मुझे आजतक जो कुछ भी बताया वो सब झूठ है! तुमने जान बूझ कर मुझसे दोस्ती! ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है। ना मै तुमसे मिलती ना मेरे साथ ये होता।”
सुप्रिया ने इतना कहा ही था की तभी उसको कुछ याद आया और उसने विक्रांत की तरफ देखते हुए कहा–“इसका मतलब तुमने ही रोहन को मारा था...!”
सुप्रिया के मुंह से ये सुनते ही विक्रांत ने उससे कहा–“सुप्रिया तुम मुझे गलत समझ रही हो। वो मेरे भाई कबीर ने किया था। मुझे तो खुद पता नही था की मैं एक मानव भेड़िया हूं। वो तो मुझे उस रात पता चला जब कबीर ने रूपाली और तुम पर हमला किया था।” विक्रांत ने सुप्रिया को समझाते हुए कहा।
वहीं दूसरी तरफ जयराज सिन्हा ने अपने साथियों को मीटिंग के लिए बुलवाया। सभी लोग शाम को जयराज सिन्हा से मीटिंग करने के लिए पहुंचे। एक बड़े से कमरे में एक बड़ी सी टेबल रखी हुई थी, जिसके चारो तरफ कुर्सियां रखी हुई थी।
करीबन उन्नीस से बीस लोग आकर कुर्सियों पर आकर बैठ गए। उनमें से एक बुजुर्ग व्यक्ति ने जयराज सिन्हा की तरफ देखते हुए सवाल किया– “तो बताओ जयराज....! तुमने हम सबको इतनी जल्दबाजी में मिलने के लिए क्यों बुलवाया है?”
ये बुजुर्ग व्यक्ति देवदत्त वर्मा थे। जयराज सिन्हा ने नजर नीचे करते हुए देवदत्त वर्मा से कहा–“सर हमारे दुश्मन यहां आ चुके हैं। अभी हाल ही मे उनमे से किसी एक ने यहां उत्तराखंड मे मे कई लोगों की जान ली है।” जयराज सिन्हा ने कहा।
देवदत्त वर्मा ने जब जयराज सिन्हा की बात सुनी तो उन्होंने ऊपर की तरफ देखकर कुछ सोचते हुए कहा–“अच्छा तो वो लोग वापस आ चुके हैं! मुझे इतना तो पता था की वो लोग कभी न कभी तो लौटकर वापस आयेंगे, पर इतनी जल्दी लौटेंगे इसका अंदाजा नहीं था।” देवदत्त वर्मा ने गंभीर भाव के साथ कहा।
मीटिंग रूम में जयराज सिन्हा के साथ जितने भी लोग बैठे थे ये कोई आम लोग नही थे। ये ऐसे काबिले के लोग थे जिनकी दुश्मनी कई सदियों से इन भेड़ियों के साथ चली आ रही थी। ये सब लोग सिंगोरी कबीला नामक कबीले के लोग थे। ये लोग कई राज्यों मे अपना व्यवसाय जमाकर बैठे थे। और देवदत्त वर्मा इसी कबीले के मुखिया थे। इनका काम भेड़ियों का पूरी तरह से सफाया कर देना था। मानव भेड़िए इनके जानी दुश्मन थे।
इनके काबिले का एक शक्त नियम था। इनके काबिले के बारे में कोई ना जान पाए। इस राज को छुपाकर रखने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते थे। इनके कबीले का राज छुपाए रखने के लिए ये लोग किसी की जान लेने मे भी नही हिचकिचाते थे। इनके काबिले का राज सिर्फ इनके काबिले के लोगों को ही पता था।
Story to be continued.....