Swayamvadhu - 13 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 13

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स्वयंवधू - 13

(वोह! कितना आलिशान है...मुझे बहुत घबराहट महसूस हो रही है।)
जहाँ भी मैं अपनी आँखें दौड़ाती मुझे विलासिता ही दिखाई देती। सुनहरी फिनिश के साथ सफेद संगमरमर से बना होटल एक मध्यमवर्गीय लड़की के लिए पचाना मुश्किल था!
होटल के कर्मचारी हमें ड्रेसिंग रूम तक ले गए, वहाँ मैंने कायल को छोड़कर सभी प्रतियोगियों को देखा। यह तो तय था, उसे वीआईपी कमरा मिला होगा। (अकेले रहना कितना अच्छा है।)
मैंने देखा उस बड़े कमरे में बहुत सारे लोग कैसे इधर-उधर अपना काम करते हुए भाग रहे थे। अब हमारे लिए तैयार होने का समय आ गया था। मैंने आसमानी नीला ए-लाइन गाउन पहना जो मेरे पूरे शरीर को ढक रहा था।
मैं बाहर गयी जहाँ मेरी मुलाकात दोबारा मोनिका से हुई। मैंने उनका स्वागत किया...मैंने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया और उसने भी मुझे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "मैं आज तुम्हारा मेकअप करूँगी, लेकिन उन चीज़ों के साथ जो मैंने मूल रूप से आप जैसी अति संवेदनशील त्वचा के लिए तैयार की हैं।",
(पेट दर्द कर रहा है।)
मुझे खुशी थी कि वह इस पूरे समय मेरे बारे में सोच रही थी, "मिस्टर बिजलानी के कहने पर मैं खासतौर पर आई हूँ ताकि किसी भी प्रतिस्पर्धी के साथ खेला ना जा सके।",
बैठक के बाद उनकी टीम ने सभी प्रतियोगियों का मेकअप करना शुरू कर दिया जबकि मोनिका मेरा मेकअप कर रही थीं। उसने मेरा चश्मा उतारा, मुझे भारी मेकअप पहनाया जो आगे मुझे परेशान करने वाला था। जब मैंने उन्हें बाल बाँधने के लिए कहा तो उन्होंने मेरे बालों को खुले छोड़ दिए।
वह बार-बार यही कहती रही कि, 'वह वही कर रही थीं जो उनसे कहा गया था और तुम उसमें अच्छी लग रही हो।'
उनकी बात सुनने के बाद मैं असमंजस में थी कि 'आखिर ऐसे कौन कहेगा?', फिर वहाँ भैय्या आए, उन्होंने मुझे देखा, मैं इस बात से विशेष दुखी थी कि उनकी इतनी मेहनत के बाद भी मुझे नहीं लगता कि मैं कभी जीत पाऊँगी।

भैय्या ने मुझे लैपटॉप पर काम करते हुए चिंतित देखा। वे मेरे पास आए और मुझे आश्वासन दिया कि मैं अच्छी दिख रही थी और मेरी खराब दृष्टि के लिए उन्होंने मेरे लिए कॉन्टैक्ट लेंस खरीदे, उन्होंने कॉन्टैक्ट लेंस लगाने में मेरी मदद की, पहले तो यह थोड़ा असहज था, फिर किसी तरह ठीक हो गया?
मैं थोड़ी बातचीत के बाद घूमकर आईने में अपने चेहरे को देखा। वो सूजी हुई लगी। तभी अचानक मेरी आँखें जलने लग गई जैसे किसने उसमे आग लगा दी हो! मेरी आँखे लाल हो गयी थी और आँसू अनियंत्रित रूप से बहे जा रहे थे। मेरे कॉन्टेक्ट लेंस तुरंत हटा दिए गए पर बहुत देर हो गयी थी। मेरी आँखो में आईड्रॉप्स डाला गया पर उसने ना के बराबर काम किया। कमरा हड़बड़ाहट की आवाज़ से भर गया था, मेरी दृष्टि धुंधली से काली हो रही थी तभी मुझे महसूस हुआ कि भारी कदम हमारी ओर बढ़ रहा था, इस समय तक दर्द इतना तेज़ हो गया था कि मैं हाँफ भी नहीं पा रही थी।
मुझे किसी और की उपस्थिति का एहसास हुआ, यह परिचित था- उसका स्पर्श मेरी ठोड़ी और गाल पर था, बड़ा और दृढ़। उस हाथ ने मेरे चेहरे को पीछे की ओर झुकाया और मेरी आँखों को ज़ोर से थोड़ा सा खोल उसमें कुछ तरल पदार्थ गिरा दिया गया। मैं बहुत उलझन में थी कि क्या हो रहा था? दर्द के मारे मैंने बस उनके हाथो कसकर पकड़ लिया, जैसे-जैसे मेरी आँखें शांत होती गई, मेरी पकड़ ढीली होती गई। मैं महसूस कर सकती थी कि वह हाथ पूरे समय मेरे सिर को सहलाती रही। 
जैसे ही मेरी आँखों को कुछ आराम महसूस हुआ मैंने उसे खोलने की कोशिश की लेकिन उन बड़े हाथों ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। तभी मैंने परिचित आवाज़ सुनी, "और अधिक समय तक ऐसे ही रहो।" (यह निश्चित रूप से वृषा है।)
जिस पर मैंने हल्के से सिर हिलाया।
कुछ देर बाद मैंने उन्हें सुना, "अब धीरे-धीरे खोलो-", मैंने फिर धीरे से अपनी आँखें खोलीं। पहले तो सब कुछ सफ़ेद धुंधला सा था, फिर कुछ पलकें झपकाने के बाद मैं कुछ और विवरण देखने में सक्षम हुई।
मैंने अपनी आँखें खोलीं और वहाँ वृषा को देखा, (मुझे यह पता था! यह वृषा थे।) मैंने अपनी आँखें मलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुझे रोक दिया। मैंने दिव्या और साक्षी की आवाज़ सुनी जो पूछ रही थी कि 'क्या तुम ठीक हो?'
जिस पर मैंने हाँ में सिर हिलाया। तब वृषा ने पूछा, "सचमुच?"
तो मैंने फिर हाँ में सिर हिलाया।
अपनी धुंधली दृष्टि से मैंने उन्हें कुछ पढ़ते हुए देखा, "ओह? लेकिन इसे ठीक होने में लगभग एक घंटा लगेगा। क्या सोचती हो? तुम किसे मूर्ख बना रही हो?",
अपने बचाव में मैंने तुरंत कहा, "मैं सचमुच ठीक हूँ, बस थोड़ी असुविधा है। बस इतना ही।",
"वास्तव में? निश्चित रूप से? ", मैंने भैय्या कि गुस्से वाली आवाज़ सुनी, "हर कोई तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित है! क्या सच कहने से तुम घिस जाओगी क्या?!",
मैंने अपने हाथ भींच लिए और कहा, "म-मुझे क्षमा करें...",
"ठीक है सब लोग अपने काम पर वापस आ जाइए। केवल एक घंटा बचा है।", एंकर सक्षम ने घोषणा की।

मुझे भी अपना मेकअप एक बार फिर से करवाने की ज़रूरत थी क्योंकि अब सब बर्बाद हो गया था। मेरी आँखें असहज और सूजी हुई थीं, इसलिए मोनिका ने मुझे बेहतर महसूस कराने के लिए दो जमी हुई चम्मचों को मेरी आँखों पर रख दिया। कुछ मिनटों के बाद सब ठीक लगने लगा, मेरी दृष्टि अब उतनी धुंधली नहीं थी। अब मैं मोनिका, भैय्या के चिंतित चेहरे देख सकती थी...और वृषा का भी। एक बार फिर जब वृषा ने जाँच की कि मेरी आँखें ठीक थी तो उन्होंने मुझे अपना सेलफोन दिया और लैपटॉप अपने साथ ले गए। मैं उनके व्यवहार से हैरान थी।
कमरा तेज़ आवाज़ों से भर हुआ था, मैं सुन नहीं सकी कि आख़िर वृषा ने क्या कहा। मैं बस सेलफोन को देखती रही। भैय्या ने कहा, "वृषा ने कहा कि सिर्फ मौखिक रूप से काम करो और बाकी काम विषय को करने दो।",
"पर ये काम तो मेरा है ना?", मैंने पूछा,
"पहले अपनी स्थिति को समझो बच्चा। क्या तुम देख सकती हो?", तब उन्होंने अपराध बोध से कहा, "मुझे क्षमा कर दो बहन मुझे पहले ही दोबारा जाँच कर लेनी चाहिए थी।",
इस पर मैंने कहा, "आपको पता था कि क्या होने वाला है?",
"नहीं...", उनका जवाब,
"क्या आपको पता था मुझे इससे इतनी परेशानी होने वाली थी?",
"नहीं...",
"ना ही मुझे। ना मुझे पता था मुझे इससे भी परेशानी है ना तो आपको। हम दोनों भाई-बहन को कुछ नहीं पता था जिसमे वृषा फिर से हीरो बन गए।", मैं अहसानफरामोश लग सकती थी लेकिन यह भैय्या को हँसाने के लिए काफी था।
उन्होंने अपने घायल हाथ से मुझे गले लगाया और कहा, "तुम घबराई हुई हो ना?",
"हा?-", उन्होंने मुझे रंगे हाथ पकड़ लिया, मैंने बहाने बनाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार था। उन्होंने मुझे लॉलीपॉप देते हुए कहा, "वृषा को पता था कि तुम डर से काँप रही होगी इसलिए उसने मुझसे तुम्हें यह देने के लिए कहा था।", 
मैंने कहा, "लेकिन वे यहाँ क्यों थे? क्या ऐसा नहीं लगेगा कि वे मेरा पक्ष ले रहे थे?",
(वे एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानने लगे।)- गर्वित भैय्या और मित्र का क्षण।
"उसके लैपटॉप में कुछ समस्याएँ थीं, किसी ने विषय द्वारा भेजे गए लिंक के माध्यम से बग लगाने की कोशिश की थी।", भैय्या ने हँसते हुए कहा,
मैं चौंक पड़ी, "भैय्या ये हँसने कि बात नहीं है। वृषा-",
भैय्या ने मुझसे कहा, "चिंता मत करो वृषा को इन सबकी आदत है।",
अब मैं इसमे क्या कह सकती थी। भैय्या ने मेरे थोड़े ठीक होने के बाद मोनिका से कहा कि मुझे फिर से तैयार कर दे। मोनिका ने मुझे फिर तैयार कर दिया। उसने मेरी आँखो पर ऐसा मेकअप किया जिससे कोई कह नहीं सकता था कि मेरा मुँह और आँख सूजी हुई थी। बस खूनी लाल आँखे डरावनी लग रही थी।

प्रतियोगिता शुरू हुई, क्रमानुसार एक-एक करके प्रतियोगी रैंप पर उतर रहे थे।
सबसे पहली थी, अंजली।
मैं अभी भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पा रही थी इसलिए मैं बस सुन रही थी। मैंने सक्षम की टिप्पणी मैं सुनी रही थी कि वह कितनी खूबसूरती से चली और उसने वृषा बिजलानी से संबंधित प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए। प्रश्न, किंडरगार्टन प्रश्न की तरह थे जैसे कि 'वृषा को अपने खाली समय में क्या करना पसंद है?' 'क्या खाना पसंद है या पहनना पसंद है?' यह साधारण और बेकार लग सकता था लेकिन ये ऐसे सवाल थे जिसपर आपका वैवाहिक जीवन नष्ट हो सकता हैं? इसमें पति-पत्नी के बीच सबसे बड़ी गलतफहमी का जवाब होता था।

प्रांजली अपनी तेज़ आवाज़ के माध्यम से अपने उत्तरों को लेकर इतनी आश्वस्त थी कि उसके सभी प्रश्न सही लग रहे थे लेकिन नहीं। वृषा को तेज़ गति पसंद नहीं। यह मैं और भैय्या थे जिन्हें गति पसंद थी।

तीसरी थी, दिव्या जिसका मुख्य रंग संयोजन पीला था, यह रंग वृषा का नहीं मिस्टर खुराना का पसंदीदा था।

उसके बाद कायल की बारी थी और वह इतनी खूबसूरत थी कि मैं उसे अपनी घायल आँखों से भी चमकते हुए देख रही थी। उसने वृषा के व्यवहार को हर इंच को सही ढंग से प्रदर्शित किया लेकिन कभी भी उनका नाम लेकर उनका उल्लेख नहीं किया।
जैसे, प्रश्न था कि- 'वृषा कैस तरह वक्त बिताते थे?'
उसका जवाब था- 'मुझे आराम करते हुए समय बिताना पसंद है क्योंकि मुझे उसकी तरह कुछ ही छुट्टियाँ मिलती हैं इसलिए मैं मानती हूँ कि वह हमारी छोटी सी छुट्टियों में मेरे साथ आराम करते बिताएंगे।'
उसने अपने शब्दों का चयन बड़ी चालाकी से किया।
ऐसे ही बाकी सब गए।

मुझे कुछ समय पहले ही पता चला कि कल प्रैक्टिस राउंड हुआ था जिसे मैंने सोकर बीता दिया और मज़े कि बात तो यही थी कि किसने मुझे उठाया कि ज़हमत नहीं उठाई। मैं जितना अधिक घबरा गयी, मेरी लॉलीपॉप चाटने की गति उतनी तेज़ हो गई।
अब मेरी बारी थी और मेरी आंतें ऊपर-नीचे कचोट रही थीं। मैं एक कदम भी उठाने से बहुत डर रही थी। मैं फोन लॉक करके भैय्या को देने जा रही थी, मैंने एक संदेश देखा जिसमें लिखा था-
'अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना ताकि तुम्हें आगे कोई पछतावा ना हो। साँस अंदर और बाहर।'
मैं नहीं जानती थी कि वे इतने प्यारे हो सकते थे। मैं दिल-दिल मुस्कुराई। मैं अब निश्चिंत थी, अपने सफेद लहरदार पैटर्न के साथ नीले रंग की ए-लाइन पोशाक, सफेद लंबी पतली पट्टियों वाली बालियाँ और सफेद पँख वाला लॉकेट, बिल्कुल वृषा की तरह पहनकर रैंप पर गयी और एक सामान्य इंसान की तरह चली और अपने परंपरानुसार थोड़ा झुक उन्हें प्रणाम किया फिर अपना उनके प्रश्नों का सामना किया।
अब जब मैं मंच पर थी तो मैंने देखा कि वहाँ ज़्यादा लोग नहीं थे और डरने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वहाँ वे लोग थे जिन्हें मैं जानती थी और वृषा वहाँ नहीं थे इसलिए मैं स्वतंत्र रूप से सवाल का जवाब दे सकती थी।
प्रश्न पूछने वाले डायरेक्टर रमन थे,
प्रश्न 1. "वृषा का पसंदीदा रंग?"
उत्तर-" आकाश का रंग, आसमानी नीला।"
2. "खाली समय में वह क्या करना पसंद करता है?"
जवाब- "बेहोश होने पर भी वे कभी ब्रेक नहीं लेते।"
3. "हमने देखा है कि आपने उनके प्रतिनिधी के रूप में महत्वपूर्ण मीटिंग में सम्मिलित हुई थी तो आप आमतौर पर उसकी मदद कैसे करती है?"
उत्तर- "मैं उनके सहायक के रूप में उनकी सहायता करती हूँ। उन्होंने मुझे जो भी काम सौंपा, उसमें उनकी मदद करती हूँ। जैसा कि आपने कहा, हाल ही में उन्होंने निदेशक की बैठक के लिए मुझे अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मैंने उनके दैनिक जीवन का भी हिस्सा हूँ जैसे- खाना बनाना, उनके कपड़े तैयार करना और उनके साथ एक मित्र की तरह रहना।" (ज़्यादा तो नहीं हो गया?)
4. "अगर ऐसी बात है तो, वृषा को खाने में क्या पसंद है?"
जवाब- "उन्हें कुछ भी दे दिया जाए वो अन्न का मान और बनाने वाले का मान रखकर खा लेते है पर उन्हें करेले खिलाना मुश्किल है।", मैंने मुस्कुराकर कहा।
5. "आपने अपने लिए और वृषा लिए यह पोशाक क्यों चुनी?"
उत्तर- "आज नहीं। मैंने आज उनके लिए कुछ नहीं चुना, पर उन्होंने वैसी पोशाक चुनी जो मैंं अक्सर उनके लिए चुनती हूँ। और रही बात मेरी...हमें इस आधार पर पोशाक चुनने के लिए कहा गया कि हम उन्हें कितना जानते हैं और खुद को कितना दिखाते हैं। उन्हें आकाश से प्यार है और उसके प्रतिबिंब सागर से, और यह एकदम सही पोशाक है क्योंकि समुद्र आकाश के रंग को प्रतिबिंबित करता है और यह लहराती पैटर्न समुद्र के लहरो को दर्शाता है।" (और वृषा के पास जैसा ये पंख वाला लॉकेट पहले से ही इस सेट में मौजूद था।)
मैंने आसमानी नीला ए-लाइन गाउन पहना हुआ था, घुटने तक खुले रेशमी लंबे बाल थे और मैंने दूसरों की तुलना में मैंने हल्का मेकअप पहन रखा था जिससे मेरी असली त्वचा दिख रही थी, मेरे लुक को पूरा करने के लिए मैंने ब्लैक वेजेज और एक काला सुनहरा क्लच पहना था। 
मुझे यकीन था कि वे मुझसे और सवाल पूछने वाले थे लेकिन डायरेक्टर राघव ने कहा, "आप जा सकती है।",

मैं बाहर निकली, जैसे ही मैं ड्रेसिंग रूम में पहुँची तो मेरी घबराहट ने फिर से मुझ पर हावी हो गई। मैं ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रही थी। फिर बाकी सबके साथ क्रमानुसार आखिर बार चली, वहाँ उन्होंने हमें बताया कि वे छह बजे परिणाम घोषित करेंगे। अब चार बज रहे थे।
सभी लोग दोपहर का भोजन करने चले गए जबकि मैं कमरे में अपनी आँखों को आराम दे रही थी। मोबाइल चेक करते समय मुझे विषय का फोन आया। मैंने कॉल उठाया, वहाँ नेटवर्क इतना खराब था।
"अभी तक का तो ये ठीक काम कर रहा था।", मुझे सिग्नल पकड़ते-पकड़ते मुझे होटल के बाहर जाना पड़ा। मैंने उससे आधे घंटे तक बात की। मुझे पता था कि समीक्षा पूरी करने के लिए मुझे पूरी रात जागना पड़ेगा।
मैं अंदर जाने लगी। वहाँ होटल के प्रवेश द्वार पर मैं एक आदमी से टकरा गयी। वो लंबा-चौड़ा था पर वृषा जितना नहीं। उसने भूरे रंग का थ्री पीस सूट पहना था, उसके बगल में दो-तीन लोग थे। मैंने उसने माफी माँगी और निकल गई।
फिर से विषय का काॅल आया।
"हाँ विषय?", मैंने काॅल का जवाब दिया। सिग्नल के लिए मुझे ललॉबीके कोने में ही खड़ा रहना पड़ा।
उसने सामने से कहा, "वृषाली माफ करना मैंने अभी-अभी तुम्हें संशोधित योजना का पास कोड भेजा है। उसका इस्तेमाल नहीं किया तो पूरी फाइल गायब हो जाएगी बिना बैकअप के।",
"हम्मम...ठीक है, बाय।", मैं काॅल पर ही थी किसीने मुझे पीछे से ज़ोर से धक्का दिया जिससे वृषा के फोन नीचे गिर गया। आमतौर पर मैं अपना सामान उठाकर चली जाती पर इस बार मैं पीछे मुड़कर देखा। वो भी बड़ा व्यापारी लग रहा था।
उसने मुझे पूरा ऊपर नीचे देख कहा, "कुछ कहना नहीं है?",
मैं घबराकर, "म-माफ क-कीजिएगा।", मैं वहाँ से भागने लगी।
तभी उसने मेरा हाथ ज़ोर से अपनी ओर ताना और कहा, "हमारे साथ घूमना चाहती हो? इसलिए तुम मुझसे टकराई।",
मैं सुन पड़ गयी। फिर उसके हाथ मेरी बाँहों पर घूमने लगे।
उसके बगल खड़े आदमी ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि तुम इसे संभाल सकती हो , लेकिन यह तुम्हें परमानंद की ओर ले जाएगा। आज़माने चाहती हो?", उसकी वासना भरी आँखे भी मुझे नीचा दिखाए जा रही थी।
मैं बहुत डर गई थी। यह पहली बार था जब मेरे साथ छेड़छाड़ किया जा रहा था। मैं अपना हाथ छुड़ाने कि कोशिश कर रही थी पर उसकी पकड़ काफी मज़बूत थी। मेरे कितना भी हाथ झड़कने का फायदा नहीं था, उसकी पकड़ मज़बूत थी। मैं उम्मीद कर रही थी कि कोई मेरी मदद करेगा।
"हाथ छोड़ो मेरा!", मैंने तेज़ आवाज़ में कहा।
"हेल्प! कोई मेरी मदद कीजिए!",
लोगों का ध्यान हम पर गया पर किसीने कुछ नहीं किया। मेरे लाख मदद माँगने पर कोई सामने नहीं आया। उसने मेरे चश्मा नीचे फेंककर कुचल दिया। उनलोगों ने मुझे बाल से पकड़कर गलियारे के अंत तक घसीटकर ले जा रहे थे।
"छोड़ो मुझे!", मैं उसके हाथों में लगातार मुक्के मार रही थी।
उसने मेरे बाल को और कसकर कहा, "रुक जाओ वर्ना यही तुम्हें और तुम्हारे सम्मान को यही सरे आम नीलाम कर दूँगा!"
"बस बाहर निकलो और मेरे लिए ये कमरा बुक करो।", उसने उन्हें निर्देश दिया और मुझे उस कमरे में धकेलने की कोशिश की। मैं रोती बिलखती, हाथ पैर चलाकर कैसे भी उस कमरे में ना जाकर उसके चंगुल से निकलने की कोशिश कर रही थी।
"रुक जाओ राज!!", मुझे वृषा कि आवाज़ सुनाई दी। उनकी तेज़ आवाज़ सुनकर मेरे दिल को राहत मिली। वो भागकर मेरी तरफ बड़े। वो मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए उसने गलियारे में, जहाँ लोग अब भी थे वहाँ उसने मेरे सामने वाले कपड़े को फाड़ने कि कोशिश की, लेकिन भगवान का शुक्र था कि वृषा इतनी तेज़ थे कि उन्होंने मुझे उसके हाथों से बचा लिया।
सरररररर....मुझे कुछ फटने कि आवाज़ आई। दूसरे वक्त वृषा ने मुझे अपना कोट पहना दिया। (!) मैं चौंक पड़ी! (मेरे कपड़े से?)
वृषा उसे मारने वाले होते ही थे कि कही से किसीकी आवाज़ आई। मैं नहीं जानती उसने क्या कहा पर वृषा ने गुस्से में कहा, "ले जाओ इसे! इससे पहले मेरा मुझपर से काबू हट जाए!!", वृषा ने उससे गुस्से में कहा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वहाँ मैंने एक आदमी को उनके पास आते देखा, वह कुछ-कुछ उस आदमी जैसा ही था इसलिए मैंने सहमकर अपना सिर नीचे कर लिया। वृषा ने मुझे कंधे से पकड़ लिया और कहा, "मैं तुमसे बाद में संपर्क करूँगा।" जिस पर उस आदमी ने सिर हिलाया और माफी माँगी। वह कुछ-कुछ जाना-पहचाना था लेकिन मैं कुछ भी सोचने के लिए सही दिमाग में नहीं थी।
वृषा मुझे वहाँ से ले गए और उस कमरे में ले गए जो उसे उस दिन के लिए उन्हें सौंपा गया था। मैं इतने सदमे में थी कि मुझे नहीं पता कि मैं उस कमरे में चलकर कैसे गयी। उस आदमी से दूर कमरे में जा मैं फर्श पर गिर फूट-फूटकर रोने लगी, मुझे इतनी घृणा महसूस हो रही थी कि मैं बस यहाँ से गायब हो जाना चाहती थी! मेरी आँखें दुख रही थी, मेरा गला दुख रहा था, मेरा सिर दुख रहा था, मेरा दिल दुख रहा था, मेरी आत्मा यहाँ तक कि मेरा अस्तित्व भी उस समय मुझे बुरी तरह दुख रहा था। मैं मर जाना चाहती थी!

(वह अब कुछ देर तक रोऐगी।
मैं उस समय इतना क्रोधित था कि यदि वहाँ शिवम ना होता तो शायद मैं उसे उसी क्षण मार डालता...ये मेरे साथ हो क्या रहा है?) वह उलझन में है क्योंकि उसने पहले कभी अपना धैर्य नहीं खोया।
मैं वृषाली की ओर झुका जो उस समय सदमे में थी। वह खुद को बरकरार रखने की भरपूर कोशिश कर रही थी लेकिन मासूम, वह ऐसा नहीं कर सकी। मैंने उसके कंधे को थोड़ा थपथपाया और यह बताने की कोशिश की कि वह अब सुरक्षित थी।

फशशश...बाथरूम से पानी के बहने की आवाज़...
उसे खुद को शांत करने में कुछ समय लगा, उसने अपना समय लिया। वह स्वतंत्र थी, उसे शांत होने के लिए मेरे समर्थन की आवश्यकता नहीं लगी।
वह बाथरूम से बाहर आई, मैंने उसका चेहरा सुखाने के लिए उसे तौलिया दिया। वह अब भी लड़खड़ा रही थी। उसने अपना तौलिया कसकर पकड़ा और कहा, "मैं किस मुँह से आपका धन्यवाद करूँ पता नहीं वृषा...आपकी वजह से आ-आज म-मेर...मेरी-", वह कोशिश कर रही थी लेकिन वह ऐसा करने में सक्षम नहीं थी।
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "यह ठीक है...तुमने अपनी अच्छी तरह से रक्षा की थी। हम्म...?", उसने हाँ में सर हिलाया।
उसने मुझसे पूछा, "क्या आपने कुछ खाया? आपने हमारे साथ केवल वड़ा खाया था। क्या आपको भूख नहीं लगी? समय?", उसने घड़ी की तरफ देख वह घबरा गई, 
"परिणाम घोषित करने का समय हो गया था। कोई समय नहीं बचा... मेरे कपड़े! पूरी तरह बर्बाद हो गए है। मैं इस तरह से बाहर नहीं जा सकती।", वह सही थी। राज से बचाने के दौरान उसकी कपड़े नष्ट हो गए थे। उसने उसे इतने जोश और वासना से कसकर पकड़ा हुआ था कि मैं डर गया कि शायद वह उसे पूरी तरह से नष्ट करने पर अमादा ना हो जाए।
वह घबरा रही थी, "श्श्श...मेरा कोट पहने रखो। यह तुम्हारी कपड़े के साथ अच्छा लग रहा है। बाद में यही आ जाना।", मैंने उससे कहा,
उसने अनिच्छा से इसे पहने रखा। उसका सामने वाला हिस्सा पूरी तरह से ढका था जैसे इसे फाड़ा गया ही नहीं गया। इस बीच मैंने मोनिका को फोन किया और उसे वृषाली के मेकअप और बाल ठीक करने के लिए कहा। वह पन्द्रह मिनट में तैयार हो गयी। उसने सामान्य चप्पलें पहन लीं, मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे मंच के पीछे के दरवाज़े तक भागने में मदद की और उसे अंदर जाते देखा।

मुझे सरयू का फोन आया जो उसे पागलों की तरह उसे हर जगह ढूँढ रहा था। मैं मॉनिटर रूम में गया जहाँ से मैं उन पर नज़र रख रहा था। वह निश्चित रूप से देर से आई थी, उसने देर से आने के लिए माफ़ी माँगी, "मुझे क्षमा कीजिए। मैं अगले आगामी प्रोजेक्ट से संबंधित कामों को निपटाने में व्यस्त थी।",
 राघव गुस्से में था लेकिन काम का नाम सुनकर शांत रह गए। उन्होंने थोड़ा टाइमपास किया, फिर उनके लिए परिणाम घोषित करने का समय आ गया।
एंकर ने उच्च अंक प्राप्त करने वालों की घोषणा करना शुरू किया, "तीन प्रतियोगी ऐसे थे जिसने साबित किया वे खाद्य उद्योग के युवा दिग्गज वृषा बिजलानी को अच्छी तरह से जानते है।", वो मुझे एक सस्ती वस्तु की तरह बेच रहा था।
"अंतिम ने सत्तर फीसदी अंक प्राप्त किए, इसका मतलब है कि वह मिस्टर बिजलानी के बारे में अधिकांश बातें जानती थी। वह नदी की तरह शांत है, वह कोई और नहीं बल्कि प्रांजली है! कृपया सामने आएँ।" प्रांजली आगे बढ़ी,
उसने जारी रखा, "दूसरी वह खूबसूरत महिला है जो हमारे बॉस के बारे में लगभग सब कुछ जानती थी, कायल राज! पंचानवे प्रतिशत स्कोर के साथ!", वह आगे बढ़ी लेकिन वह स्पष्ट रूप से खुश नहीं थी। जब वह सुनेगी कि प्रथम स्थान किसने जीता तो वह नंबर एक को मार देगी।
"अब जिसने सर के बारे में निन्यानबे प्रतिशत चीज़ों का सही अनुमान लगाया! वह देर से आई, उच्च टिप्पणियों वाली एक छोटी पैकेज...वह है...वृषाली राय! जिसने एक गलत जवाब के साथ ये राउंड जीत लिया है!", जब वह उसे भी उनके सामने खड़े होने के लिए कह रहा था तो मैं पक्के तौर से कह सकता था कि उसका दिल पागलों कि तरह धड़क रहा होगा। चुपचाप कुछ मदद कि उम्मीद करते हुए अंदर ही अंदर काँप रही होगी। (लगता है मुझे उसकी मदद करनी होगी।)
मैं माॅनिटर रूम से बाहर निकला, अंदर गया और वहाँ अपनी सीट पर बैठ गया, डायरेक्टर नीरज उसे सुनहरा पँख वाला ब्रोच दे रहे थे। वह घबराई हुई थी, लेकिन इतनी स्थिर थी कि वह बस माहौल के साथ चली और उसने नीरज को इसे अपनी कपड़े से जोड़ने दिया। मैं समझ सकता था कि वह यह दिखाने की भरपूर कोशिश कर रही थी कि वह डरी हुई नहीं थी। उससे मुझे देखा। शांत हुई, उसने इसे जल्द ही समाप्त करने की आशा से मेरी ओर देखा।
"और अब-?",
मैंने कहा, "इसे जल्दी ख़त्म करो!", हर कोई मुझे देख रहा था,
"...वो सर, हमें विजेता का बयान चाहिए...", उस एंकर ने मुझे समझाने की कोशिश की,
मैंने ज़ोर से कहा, "आपको एक विजेता चाहिए था? आप लोंगो को मिल गया। सामान पैक करो और निकलो!" मैंने इसे तुरंत समाप्त करवा दिया। वृषाली को राहत मिली और उसने अपने होंठ हिलाते बिना आवाज़ के कहा, "धन्यवाद।",
इस बीच कायल वह थी जो अब अधिक खुश थी। (क्या वह सोचती है कि मैंने उसका पक्ष लिया?)
मैं बाहर चला गया पीछे-पीछे वृषाली भी निकल गयी पर उसे रास्ते में सरयू, दिव्या, साक्षी और प्रांजली ने घेर लिया।
मैंने उन्हें वहीं छोड़ दिया, मैंने डायरेक्टर से बात करते समय उनके प्रश्न सुने।
"तुम कहाँ थी?", सरयू ने चिंता करते हुए पूछा, "क्या तुम्हें अंदाज़ा है कि मैं कितना चिंतित था?",
"वह सही है। मंच पर प्रवेश करते समय हमने सुना कि किसी ने हमारी टीम की एक लड़की के साथ रेप करने कि कोशिश की गई और तुम यहाँ नहीं थी।", प्रांजली ने कहा,
"तुम ही एकमात्र थी जो गायब थी। तुम कहाँ थी?", साक्षी और दिव्या ने भी उसे घेर लिया,
"-मैं नहीं!", वो खुद को बचाने कि भरपूर कोशिश कर रही थी,
"तुम नहीं? तुम्हारा मुँह वहीं खुलता है जहाँ तुम घबरा जाती हो। अब बताओ तुम कहाँ थी?", सरयू का पारा सच में बढ़ा हुआ था,
बीच में प्रांजली ने कहा, "वृषाली तुम्हारे हील्स कहाँ गए और ये कोट...? मुझे लगता है कि यह मिस्टर बिजलानी का हैं।", वह इतनी सटीक और आश्वस्त थी कि मैं भी एक सेकंड के लिए घबरा गया।
अब मुझे उसके लिए कदम बढ़ाना होगा। यह अच्छा था कि मैंने पहले ही किसी से मेरे लिए एक कोट लाने के लिए कहा। वह कोट लेकर आया, मैंने उसे पहना और वहाँ चला गया। मैं उसे हकलाते हुए देख सकता था।
"दिव्या, आर्य कमरा नंबर चार सौ तीन में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। सरयू उसे बिना किसी को दिखे सुरक्षित वहाँ ले जाओ।", मैंने देखा कि सब मुझसे नाराज़ थे कि मैंने उनके प्यार भरी बाते बंद कर दी। वो दोंनो चले गए।
"वृषाली भूलो मत तुम्हारी टीम को जल्द से जल्द एक नई रिपोर्ट सबमिट करनी होगी। इस प्रतियोगिता का बहाना तुम नहीं कर सकती। काम पर वापस जाओ।",
वृषाली मेरे सामने से निकली। मैंने साक्षी और प्रांजली से विदा ले अपने कमरे कि ओर गया जहाँ मेरे कुछ सामान और थे। वृषाली मेरा वहाँ इंतज़ार कर रही थी।
कमरे के सामने,"तुम बाहर क्या कर रही हो?",
कमरे के अंदर जाते हुए उसने कहा, "आपने तो कहा था कि कमरे में इंतज़ार करो...",
"बिल्कुल! मैंने कहाँ था कमरे के अंदर इंतज़ार करो बाहर नहीं।", मैंने उससे कहा,
जिसमें उसने कहा, "पर आप एक मिनट में आ गए ना?",
( मैं इसका क्या करूँ?)
"कपड़े इस बैग में है। तुम जाकर कपड़े बदल लो मैं बाहर जा रहा हूँ।", मैं बाहर गया।
उसके कपड़े बदलने के अंतराल में एक सहायक मलहम लेकर आया। मैंने कमरे में दस्तक दिया, 'खट-खट', "वृषा।",
उसने दरवाज़ा खोला, वह जींस और टी-शर्ट में असहज दिख रही थी। उसने मेरा कोट अब भी क्यों पहना रखा था?
"कृपया मुझे इसे पहनने दीजिए।", उसने रोने कि आवाज़ में कहा,
"ठीक है। पर तुमने मेकअप क्यों नहीं निकाला?", मुझे हैरानी हुई। उसे मेकअप से चिढ़ है।
"क्योंकि...इतने महंगे होटल में...",
"कुछ फर्क नहीं पड़ता! तुम मेकअप निकालो और ये मलहम लगा लेना।", मैं बाहर जा रहा था,
"वृषा-", उसने रोका,
मैं मुड़ा और पूछा, "हाँ?",
वह घबराकर बोली, "...धन्यवाद लेकिन मेरा एक और अनुरोध है...",
"क्या तुम काम कर सकती हो?", मैंने पूछा,
"आ-", उसका दिमाग खाली था, 
"तुम ठीक हो?", मैंने उससे फिर पूछा,
"हाँ! मुझे होना होगा।", वह मुस्कुराई पर मुस्कान में दर्द था,
"देखो तुम्हें ये सब करने कि ज़रूरत नहीं-", मैं उसे आराम करने लिए समझा रहा था पर...
"मुझे करना हैं! ...नहीं तो शायद मैं खुद को आज ही खत्म कर दूँगी...मैं अकेला नहीं रहना चाहती...मुझे डर लगता है... मैं हास्यास्पद लग सकती हूँ कि ये लड़की इतने में बात का बतंगड़ बना रही है- ...लेकिन जब मैं काम कर रही होंगी तब कृपया मेरे साथ रहेंगे?", वह रोने की कगार पर थी,
"ठीक है, लेकिन क्यों?", जीतने के बाद भी उसमे आत्मविश्वास नहीं आया, "और तुम खुद को इतना गिराकर क्यों देखती हो? तुम्हारे साथ जो हुआ वो एक जघन्य अपराध है! तुम्हारी इज़्ज़त को तुम 'हास्यास्पद' नहीं बता सकती!"
"शायद?...मैं आपके आसपास सुरक्षित महसूस ...करती हूँ?...", अब मुझे उसके अति कम आत्मविश्वास से डर लगने लगा था,
"ठीक है।", हालाँकि मैंने कहा कि मैं उसके कम आत्मविश्वास से डरा लेकिन मुझ पर उसका भरोसा देखकर मैं आश्वस्त था।
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और काम के लिए हम, कमरा नंबर चार सौ चार में चले गए। साथ मिलकर काम किया और महसूस किया कि मेरी उपस्थिति में वह बहुत सहज महसूस कर रही थी और मैं उसकी और अधिक सुरक्षा करना चाहता था। उस समय मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अगले ही दिन उसके साथ हैवानियत करूँगा! मुझे खुद से घिन आ रही थी।