कर्मा दीदी पर मेरा कोई बोझ नही था उन्हें मेरी बदनामी और इज़्ज़त का डर था वह मुझे कुछ नही कहती लेकिन मन ही मन घुटती रहती एक दिन उनके अंदर कि चिंगारी बारूद बनकर निकली गुस्से में बोली जोहरा अपने कोख में पल रहे मुस्तकीम का पाप लेकर कही जाओ डूब मरो लेकिन हमारा पिंड अब छोड़ दो ।जोहरा अपनी बीती बताती जा रही थी शामली सुनती कभी उसकी आंखें डबडबा जाती जोहरा को ढांढस देती कहती अब घबड़ाओ नही ।जोहरा बोली दीदी मैं कर्मा दीदी का घर छोड़कर निकल तो गई लेकिन कहाँ जाँऊ समझ मे ही नही आ रहा था कर्मा के घर से निकल कर जब मैं इधर उधर भटक रही थी उस समय जिसकी नजर मुझपर पड़ती लगता वह मुझे कच्चा खा जाएगा या अपनी हवस कि भट्टी में भून डालेगा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता था ही नही था सिवा खुद खूंखार बन जाऊं और लोग मुझसे दूर भागे इसीलिए दीदी मैंने पागल बनने का नाटक किया और भटकते भटकते आपके गांव पहुँच गयी खुदा का लाख लाख सुक्रिया। जोहरा कि झूठी मनगणतं कहानी सुनकर शामली का दिल दहल गया उस भोली भाली शामली को क्या मालूम कि उसके बगल में लेटी जोहरा कितने खतरनाक मंसूबे लेकर उसके घर मे दाखिल हुई है ।जोहरा और शामली आपस मे बाते करती जाने कब सो गई सुबह शामली जोहरा साथ साथ उठी जोहरा भरसक कोशिश करती की शामली को कोई भी काम न करना पड़े चौका बरतन रसोई आदि दिन चढ़ने के साथ पति अद्याप्रसाद को शामली ने जोहरा की आपबीती जो जोहरा ने बताई थी बता दिया फिर मुंनक्का को मुंनक्का ने रजवन्त को अब स्थिति यह थी की दोनों परिवारों में जोहरा के लिए बहुत हमदर्दी हो गई दोनों परिवारों को यह तो मालूम था की जोहरा मुसलमान है हिन्दू घर मे रसोई में आज भी मुसलमान का जाना वर्जित है यह जानते हुए कि सम्भव है कोशिकीपुर गांव के लोग जोहरा के मुसलमान होने की सच्चाई जानने के बाद उधम मचाए उन्हें ऊंटपटांग सवालों का सामना करना पड़े इन सभी सम्भावनाओ को दरकिनार करते हुए अद्याप्रसाद ने पत्नी शामली को हदायत दी की जोहरा को कोई तकलीफ ना हो सुभाषिनी तो पहले से ही घुली मिली थी जोहरा से ।पूरे कोशिकीपुर गांव में जोहरा द्वारा अपने बारे में बताई गई मनगंणनत कहानी लोगो के जुबानों पर बस गयी और जोहरा के लिए मन मे हमदर्दी ।जोहरा ने अपनी मेहनत व्यवहार से अद्याप्रसाद के परिवार का मन जीत लिया कलकत्ता कि जान पहचान समझ बुझ के विश्वसनीय रिश्ते का रूप ले चुकी थी ।जोहरा रजवन्त के परिवार का भी महत्वपूर्ण विश्वसनीय हिस्सा बन चुकी थी जिस प्रकार अद्याप्रसाद एव रजवन्त पड़ोसियों में ताल मेल समझ बुझ थी जोहरा भी उसी ताल मेल समझ बुझ के रिश्तो कि विश्वसनीय कड़ी बन चुकी थी ।जोहरा सुभाषिनी को तो ऐसे रखती जैसे खुद शामली सुभाषिनी अक्सर जोहरा के साथ ही रहती खेलती सोती शामली को जोहरा के आने के बाद बहुत आराम मिल गया था ।इसी प्रकार चार पांच महीने बीत गए और ज़ोहरा के कोख में पल रहे बच्चे के पैदा होने का समय आ गया अद्याप्रसाद ने जोहरा को कोई परेशानी ना हो सारी व्यवस्थाए कर रखी थी ।जोहरा को जब प्रसव पीड़ा हुई उस समय रुक्मीना दाई मौजूद थी रुक्मीना को पूरा जवार जनता था बच्चा पैदा कराने में उसे महारत हासिल था हर गर्भावस्था की औरत चाहती कि जब वह बच्चे को जन्म दे रुक्मीना दाई अवश्य मौजूद रहे ।जोहरा के प्रसव पीड़ा से लेकर बच्चे के पैदा होने तक रुक्मीना ने ही सारा दायित्व संभाला रुक्मीना को यह हिदायत भी करोटि ने भी दे रखा था।जोहरा ने हृष्ट पुष्ट लड़के को जन्म दिया अद्याप्रसाद के परिवार में तो जैसे शामली ने ही बेटे को जन्म दिया हो बहुत दिनों बाद अद्याप्रसाद के घर कोई खुशी का अवसर आया था भले ही वह अपनी न हो अस्थाई हो लेकिन जोहरा के बच्चे के जन्म के बाद खुशी सबने महसूस किया रजवन्त मुन्नका को तो ऐसे लग रहा था जैसे उनके रितेश कि जगह ही जोहरा के नवजात बेटे को भेजा है भगवान ने दोनों परिवारों को यह जानने में कोई दिलचस्पी नही थी की जोहरा के बेटे का बाप कौन है ?भविष्य में क्या होगा? उनको तो बच्चे के पैदा होने से जो खुशी मिली थी उसकी सिर्फ अनुभूति कर सकते थे जो दोनों परिवारों को देखने समझने से स्प्ष्ट परिलक्षित हो रहा था ।कोशिकीपुर गांव एव आस पास जितने लोग उतनी बाते कोई अद्याप्रसाद को कुछ भी जो मन करता कहता कोई शामली को भी कोई कुछ भी कहता और आपस मे कहते पता नही अद्याप्रसाद ने कौन सी वला पाल ली जिससे कुछ उनको लाभ तो होगा नही नुकसान जितना होगा उसकी भरपाई शायद वह इस जिंदगी में कर सके।अद्याप्रसाद एव रजवंत का परिवार दुनियां कि बातों एव तोहमत से बेखबर मगन था।