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घर
सबने देखा कि ज्योति खड़ी है, ज्योति की आँखों में आँसू और चेहरे पर गुस्सा है। ज्योति को इस तरह अचानक आया देखकर सभी हैरान है। अब नन्हें से रहा नहीं गया तो उसने ज्योति से पूछा,
ज्योति क्या वो लड़की तुम हो?
हाँ मैं हूँ। उसने पूरे विश्वास के साथ कहा, मगर अंकुश उसकी तरफ गुस्से में दौड़ा तो निहाल ने उसे हाथ उठाकर वहीं रुकने के लिए कहा तो वह वही से चीखने लगा, “यह क्या बकवास कर रही हो, तुम्हें अच्छे से पता है कि यह सच नहीं है।“
यही सच है। उसने अब निहाल को देखकर कहा, मैंने इसके कहने पर तुम्हारा एडमिट कार्ड चुराया था और हम दोनों ने ही इस छोले कुल्चे वाले को दे दिया था
पर कैसे ? नंदन बोला।
तुम्हारी बहन शालिनी की मदद से।
क्या मतलब मैं समझा नहीं।
उस दिन बस में अंकुश को पता चला कि एडमिट कार्ड तुम्हारे पास है, इसलिए मैं शालिनी से मिलने तुम्हारे घर आई और मौका देखकर किताब से एडमिट कार्ड निकाल लिया। यह सुनकर निहाल का मन किया एक ज़ोरदार घूंसा अंकुश के मुँह पर दे मारे, मगर उसने खुद पर काबू रख लिया।
ज्योति आगे क्या हुआ?
आगे क्या होना था, फिर हम दोनों यहाँ अक्सर छोले कुल्चे खाने आते थें, इसलिए हमने यह एडमिट कार्ड इसे दे दिया। अब अंकुश ज्योति को मारने दौड़ा तो नन्हें बीच में आ गया, “गलती से भी हाथ मत उठा दियो, वरना मैं तुझे अपने साथ किये गए कांड के लिए नहीं बल्कि इस हरकत के लिए तेरी खाल खींच लूँगा।“ निहाल की आँखों में गुस्से से खून उतर आया देखकर, वह पीछे हट गया और ज़ोर से बोला,
यह झूठ बोल रही है।
यही सच है और इसी ने तुम्हें गुंडे भेजकर पिटवाया था।
ज्योति मगर अंकुश ऐसा क्यों करेगा? अंकुर ने हैरानी से पूछा।
“क्यों नहीं करेगा? यह निहाल से जलता है और आज से नहीं जलता, बल्कि कॉलेज के पहले दिन से जलता है। यह नहीं चाहता था कि तुम पेपर दो और पुलिस में जाओ, यह तुम्हें हराने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता।“ अंकुर ने धृणा से अंकुश को देखा, “यार !! तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। तूने यह सही नहीं किया।“ अब एक ज़ोरदार घूंसा निहाल ने अंकुश के मुँह पर जड़ दिया। “तुझे शर्म नहीं आती, अपनी करतूतों के लिए ज्योति का सहारा लेता है और दोस्त के नाम पर तू कलंक है।“
“हाँ हूँ।“ अब अंकुश भी चिल्लाया। “तेरे अंदर जो होशियार होने का घमंड है न उसे तोड़ने के लिए तुझे नीचे गिराना बहुत ज़रूरी था। मैं तुझे तेरी औकात दिखाना चाहता था, तू अपने आपको बहुत सूरमा समझता है, हर कोई कॉलेज में तेरे पीछे घूमें, तुझसे सवाल पूछे और तू मास्टरों की तरह जवाब दें । बस यहीं अकड़ को मैं खत्म करना चाहता था।“
“तू फिर मुझे मारने की बजाय पेपर में पास होकर दिखाता न, और यकीन मान, अगर तू पुलिस का पेपर पास कर लेता तो मुझे बहुत ज्यादा ख़ुशी होती।“ अंकुश ने फिर एक थूंक ज़मीन पर फेंकी और वहाँ से पैर पटकते हुए चला गया। जाते जाते नन्हें ज़ोर से चिल्लाया, “मुझे याद रहेगा कि हम कभी दोस्त थें।“ मगर वह अनसुना करकर वहां से चलता गया। अंकुर भी नन्हें को हमदर्दी से देखकर वहाँ से चला गया और अब ज्योति की रुलाई फूट गई। नन्हें ने उसे सड़क के किनारे रखें बड़े से पत्थर पर बिठाया और कहा,
ज्योति अपने आँसू पोंछ लो। वो चला गया है।
वैसे तुमने अंकुश का साथ क्यों दिया? नंदन ने पूछा।
मैं उससे प्यार करती हूँ और और......... वह बोलते बोलते चुप हो गई।
और क्या ज्योति? निहाल ने नरम लहजे में पूछा।
“और मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी।“ दोनों हैरानी से उसे देखने लगे। मगर वह बोलती गई,” जब मैंने अंकुश को बताया तो उसने कहा, “बच्चा गिरा दो। मैंने कह भी कि शादी कर लेते हैं, मगर उसने साफ़ इनकार दिया और मुझसे मिलना जुलना भी बंद कर दिया। इसलिए मैं तुम्हें उस दिन डॉक्टर के पास दिखी थी। मेरी एक सहेली ने उनके बारे में बताया था, वह बच्चा गिराने की दवा भी रखते हैं।“ अब नंदन ने एक गहरी साँस छोड़ी और उसे कहा, “अगर अंकुश तुमसे बेवफाई नहीं करता तो तुम कभी भी उसकी सच्चाई हमें नहीं बताती?”
“शायद नहीं, मगर अब हम अजनबी है।“ उसने अपने आँसू पोंछे।
“देखो !! ज्योति जीवन में कुछ बन जाओ, अंकुश जैसे बहुत मिलेंगे और भविष्य में जिसके साथ भी रहना, उससे उतना प्यार ही करना जितना ज़रूरी हो क्योंकि जो तुम्हें बहुत प्यार करेगा वो इस तरह मझधार में नहीं छोड़ेगा। इस तरह किसी पर अंधा भरोसा करना भी ठीक नहीं।‘
निहाल तुम ठीक कहते हो।
रात हो रही है, तुम्हें घर छोड़ दें ।
नहीं, मैं पास ही रहती हूँ, चली जाऊँगी। जाते समय, ज्योति उन्हें देखकर मुस्कुरा दी और जवाब में वे दोनों भी मुस्कुरा दिए।
यार !! नन्हें हमें अंकुश को पुलिस को देना चाहिए ।
नहीं यार!! वह अपने माँ बाप की इकलौती संतान है, बेकार में उन्हें दुःख होगा। अगर राजवीर होता तो मैं पंचायत में कहता, मगर इसे तो अपना दोस्त कहा था ।
नन्हें! दोस्ती निभाना तो कोई तुझसे सीखे, मेरा इतना बड़ा दिल नहीं है।
बड़ा दिल!! अब दोनों ज़ोर से हँसने लगें।
बिरजू अपने चेहरे को अच्छे से ढके चलता जा रहा है। उसे जग्गी से मिलना है, उसने उसे गोदाम के पीछे जो कुआँ है, वहां आने के लिए कहा है । जैसे ही वह वहाँ पहुँचा उसे जग्गी उसका इंतज़ार करते दिखा, अब उसने जल्दी से जेब से पैसे निकाले और उसे पकड़ा दिए। उसके जाते ही उसने पुड़िया को एक बार चाटकर देखा, जब उसे लगा कि वह असली है तो वह खुश हो गया। जग्गी तो उसे सलाम करकर चला गया, मगर उससे रहा नहीं गया, वह बिना नशे के तड़प रहा है। उसने जल्दी से अपने लिए पुड़िया खोली और सारी खा ली। फिर दो तीन पुड़िया और भी खा ली, अब वह बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गया और उसे होश ही नहीं रहा कि उसे घर भी जाना है।
बिरजू की किस्मत कहो कि मुंशी रामलाल वहीँ से गुज़रा और बिरजू को ऐसी हालत में देखकर पहले तो हैरान हुआ, मगर फिर हँसते हुए बोला, “अब तू तो गया बिरजू। अभी बड़े सरकार के दरबार में तेरी पेशी करवाता हूँ।“ यह कहते हुए उसके कदम तेज़ी से जमींदार के घर की तरफ बढ़ने लगे ।