Bepanaah Mohabbat - 26 in Hindi Love Stories by Anjali Vashisht books and stories PDF | बेपनाह मोहब्बत - 26

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बेपनाह मोहब्बत - 26

अब तक :

अंजली ने सुना तो जल्दी से बाहर निकल गई । शिवाक्ष ने डिक्की बंद की और गाड़ी से टिककर खड़ा हो गया । फिर अक्षत को देखते हुए बोला " तो ये थी तेरी हिचकी की वजह.. " बोलते हुए शिवाक्ष ने बाजुएं आपस में बांध ली ।

और अक्षत और अंजली दोनो को एक एक करके घूरने लगा ।

अब आगे :

शिवाक्ष आगे कुछ बोलता इससे पहले ही उसकी नजर अंजली की बाजू पर पड़ी । उसकी बाजू पर लाल रंग के गहरे निशान बन चुके थे जो शायद अभी अभी बने थे ।

शिवाक्ष ने realise किया कि उसकी गाड़ी की डिक्की मैं लोहे का काफी सारा सामान रखा हुआ था और अंजलि उसी के सहारे बैठी हुई थी जिससे उसकी बाजू पर निशान बन चुके थे । वहीं अंजली का चेहरा भी पूरी तरह से उतरा हुआ था । वो घबराई हुई थी ।

" क्या तुझे पता था कि ये गाड़ी में छिपी हुई है ? " पूछते हुए शिवाक्ष ने अक्षत को देखा ।

अक्षत ने अंजली को देखा और ना में सिर हिलाते हुए बोला " ऐसा नहीं है शिव.. । मुझे तो अंदाजा भी नहीं था" ।

शिवाक्ष ने आंखें बंद की और बोला " तुझे क्या लगता है तू मना करेगा और मैं मान लूंगा.. । अक्षत तेरी नस नस से वाकिफ हूं मैं । वो जो नीचे झुको तूने बोला था वो इसी के लिए बोला था ना । क्योंकि ये अपनी ostrich जैसी गर्दन उपर करके देख रही होगी.. । और तू नही चाहता था कि मैं इसे देख लूं इसीलिए तूने इसे नीचे झुकने का बोला । am i right.. " बोलकर शिवाक्ष ने आंखें खोली और अक्षत को देखने लगा ।

अक्षत अपनी गर्दन पर हाथ फेरते हुए नजरें इधर उधर घुमाने लगा । मानो शिवाक्ष की बात सुनी ही ना हो । शिवाक्ष ने सिर हिला दिया । वो समझ गया कि वो सही सोच रहा है । फिर उसने गर्दन टेढ़ी करके अंजली को देखा जो उसे ही घूरे जा रही थी ।

शिवाक्ष ने आंखें छोटी करके उसे देखा और पूछा " क्या.. घूर क्या रही हो.. ? " ।

अंजली ने घूरना बंद किया और नॉर्मली देखते हुए पूछा " आपने मुझे ostrich कहा ? " ।

शिवाक्ष ने आंखें बड़ी की ओर बोला " हान ostrich कहा.. मतलब शतुरमुर्ग कहा... " ।

अंजली ने चिढ़ते हुए पूछा " लेकिन क्यों ? क्या मेरी गर्दन शुतुरमुर्ग जैसी है ? " ।

" अरे शतुरमुर्ग जैसी नहीं , बल्कि उसी की गर्दन लगाई हुई है तुम्हे.. " शिवाक्ष उसे चिढ़ाते हुए आगे कहा ।

" देखिए आप मुझे ऐसे कुछ भी नही बोल सकते.. "

" बोलूंगा बाद में पहले तो जाकर पानी में फेकूंगा "

" नही , मैं डूब जाऊंगी "

" डूब जाती हो तो डूब जाओ " बोलकर शिवाक्ष उसकी तरफ कदम बढ़ाने लगा ।

अंजली पीछे जाकर गाड़ी से टिक गई । शिवाक्ष उसके नजदीक आकर खड़ा हुआ और दोनो हाथों को अंजली के दोनो तरफ गाड़ी पर टिकाकर बोला " और क्या कहकर भागी थी तुम ? जंगली सुअर ? तुम्हे हम किस एंगल से हम जंगली सुअर दिखाई दिए ? " ।

अक्षत ने सुना तो उसे हंसी आ गई लेकिन अपनी हंसी रोकते हुए वो खांस दिया और दूसरी और घूम गया ।

शिवाक्ष ने अपनी मुट्ठियां कस ली और अपने होंठ आपस में कस लिए । अक्षत को हंसता देख उसे खुद भी हंसी आ रही थी लेकिन वो हंसना नही चाहता था ।

" पर वो मैंने आपको थोड़ी बोला था और अगर बोला भी था तो आपको तो बुरा लगना चाहिए था ना । और आप तो अभी उस बात पर इतना जोर-जोर से हंस रहे थे.. । और अब मुझे देखते ही गुस्सा करने लगे " ।

शिवाक्ष से उसे घूरा और बोला " हमारे हंसने से तुम्हारा कोई मतलब नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि तुमने हमें ये बोल कैसे दिया.. ? " ।

बोलते हुए शिवाक्ष और करीब झुककर उसकी आंखों में देखने लगा । अंजली भी उसकी आंखों में घबराए हुए देखने लगी ।

दोनो ही पलकें नही झपका रहे थे । शिवाक्ष की नजर अंजली के चेहरे पर भी फिसलती जा रही थी । माथे पर लगी काली बिंदी शिवाक्ष को और करीब बुलाती जा रही थी ।

बड़ी बड़ी पलकें और पानी में गिरने के डर से भरी आंखें शिवाक्ष को मजबूर सा कर रही थी कि वो कह दे उससे कि ये सब सिर्फ उसको डराने के लिए कहा जा रहा था । लेकिन इन सबसे परे इस वक्त वो उसे निहारे ही जा रहा था ।

अंजली को समझ में नही आ रहा था कि आखिर वो इतना खामोश क्यों हो गया था और उसको ऐसे क्यों देख रहा था ।

कुछ पल बाद अक्षत खांसा तो शिवाक्ष ने अपनी नजरें फेर ली । वो झेंप सा गया और बोला " चल अक्षत... अंधेरा हो चुका है.. घर भी जाना है " बोलकर शिवाक्ष ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गया । उसका दिल तेजी से धड़कने लगा था ।

और ऐसा क्यों हो रहा था वो खुद भी नही जानता था ।

अक्षत ने अंजली की तरफ देखा और खिड़की पर हाथ टिकाकर शिवाक्ष को देखते हुए बोला " शिव.. पहले इसको इसके घर छोड़ देते हैं.. " ।

शिवाक्ष ने हॉर्न बजाते हुए कहा " इसे इसके घर हम क्यों छोड़ें.. ? हमने थोड़ी कहा था कि हमारी गाड़ी में आकर बैठे.. । अपनी मर्जी से आई थी तो अब वापस जाने का तरीका भी खुद ही ढूंढ लेगी । तू बैठ गाड़ी में.. । "

अक्षत ने अंजली को देखा तो उसकी आंखों में आसूं भरे थे । और वो आस पास देखे जा रही थी । चारों तरफ अंधेरा था । अगर वो उसको वहीं छोड़कर चले जायेंगे तो वो यहां से कैसे जायेगी । उसको तो अपने रूम के रास्ते का भी पता नही लगने वाला था । आखिर वो अभी तो इस नए शहर में आई थी और इतनी जल्दी वो कितना ही जान सकती थी ।

अक्षत ने फिर आसमान को देखा और बोला " शिवाक्ष लगभग अंधेरा हो चुका है यार.. अभी तो थोड़ा बोहोत दिख रहा है लेकिन कुछ देर में पूरा काला ही हो जायेगा.. । और हम इसको यहां ऐसे नही छोड़ सकते भाई । इतनी रात में कहां जायेगी " ।

शिवाक्ष ने अपनी बात पर अड़े हुए कहा " हान तो अंधेरा तो रोज ही होता है अक्षत.. इसमें नई बात क्या है ? और ये हमारे भरोसे नही आई थी । और वैसे भी इसको किसी की मदद की जरूरत नही है तो हम क्यों वक्त बर्बाद करें । और वैसे भी हम उस जगह से काफी आगे आ चुके हैं और अब इतनी दूर वापिस मैं नही जाने वाला.. । ये पैदल निकल लगी , लगातार चलती रही तो पहुंच जाएगी कल दोपहर तक " ।

अक्षत ने कमर पर हाथ रखते हुए कहा " शिव.. मैं इसे यहां अकेला छोड़कर नहीं जाने वाला । तू क्यों ऐसा कर रहा है । मैने कभी नही देखा तूने मांगने पर किसी की मदद की हो " ।

शिवाक्ष ने स्टेरिंग पर अपनी पकड़ कसते हुए कहा " अक्षत.. मैं इसे साथ लेकर नही जाने वाला तो मतलब नही जाने वाला.. " ।

" शिव..... " ।

" अक्षत.. " ।

" तू नही मानेगा ना शिव "।

" तू भी नही मानेगा ना अक्षत.. " ।

अक्षत ने ना में सिर हिलाते हुए कहा " नही , बिल्कुल नही । और इस मामले में तो बिल्कुल भी नही " ।

" तो मेरा जवाब भी यही है.. । तुझे नही आना तो मत आ.. रह इसके साथ.. । मैं तो चला.. " बोलते हुए शिवाक्ष ने वहां से गाड़ी चला दी ।

अंजली और अक्षत शिवाक्ष की गाड़ी को जाते हुए देखते रहे।

अक्षत ने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन की और अंजली की ओर बढ़ गया ।

अंजली हाथ बांधे खड़ी थी । अक्षत को अपनी तरफ आता देख वो थोड़ा पीछे खड़ी हो गई । अक्षत ने देखा तो अपनी जगह पर ही रुक गया। वो समझता था कि अंजली का ऐसे किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल था और फिर अक्षत भी तो उन्हीं लोगों का दोस्त था। क्या पता क्या साजिश चल रहा हो ।

" मैं हमेशा गलत का साथ नही देता.. " अक्षत ने कहा तो अंजली उसकी ओर देखने लगी । अक्षत आगे बोला " जहां लगता है कि बात बोहोत ज्यादा सीरियस है और ये लोग कुछ ज्यादा ही गलत करने लगे हैं तो वहां मैं सबसे लड़ भी जाता हूं अंजली... । तुम्हारा इल्जाम भी सही था , शायद दोस्ती की आड़ में मैं भी गलत का साथ दे रहा था " ।

अंजली ने नजरें झुका ली और बोली " सॉरी वो.. शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई थी... । आपको डबल स्टैंडर्ड वाला नही कहना चाहिए था... " ।

अक्षत हल्का मुस्कुराया और बोला " no it's okay... मुझे बुरा नही लगा... " ।

अक्षत ने कहा तो अंजली भी हल्का सा मुस्कुरा दी ।

अक्षत ने सड़क की ओर देखते हुए कहा " सड़क सुनसान है रास्ता लंबा है और अंधेरा भी हो ही चुका है । मुझे नहीं लगता कि इस वक्त यहां से कोई लिफ्ट मिल सकती है तो हमें चलते रहना चाहिए । " अंजली ने सिर हिलाया और आगे चलने लगी ।

अंजली अक्षत से दूर दूर चल रही थी । उसे थोड़ा अजीब सा लग रहा था । हालांकि अक्षत ने कोई गलत बात नही की थी और ना ही उससे कोई बुरी वाइब्स आ रही थी लेकिन फिर भी वो अंजली के लिए पूरी तरह से अनजान था।

और एक अंजान लड़के से साथ इतनी रात गए रहना उसे बिल्कुल सही नही लग रहा था। वहीं पास के जंगल से उसे डर भी लग रहा था क्योंकि जानवरों की आवाज़ें भी सुनाई दे रही थी ।

" क्या सोच रही हो.. ? " अक्षत ने पूछा तो अंजलि चौंक सी गई और झटके से घबराते हुए अक्षत की ओर देखा ।

" क्या हुआ.. ? तुम ठीक तो होना... " अक्षत के पूछने पर अंजलि ने हल्का सा सिर हिला दिया ।

अक्षत ने उसकी नर्विसनेस भांप ली थी । उसने गहरी सांस ली और बोला " see i can understand.. तुम्हे ऐसे मेरे साथ अजीब लग रहा होगा.. । एक अंजान लड़के के साथ रहना तुम्हे सही नही लग रहा होगा.. । But trust me.. you are safe.. । और अगर चाहो तो मैं 10 फीट की दूरी पर चल लूंगा " ।

अंजली ने सुना तो अक्षत को देखने लगी । अक्षत ने पलकें झपका दी।

अंजली ने रियलाइज किया कि इससे पहले जब भी उसे परेशान किया गया तो अक्षत अकेला ही होता था जो उसकी मदद करने आता था और अपने दोस्तों को अंजलि को परेशान न करने के लिए कहता था ।

वहीं आज दोपहर में भी वीडियो रिकॉर्डिंग को लाकर अक्षत ने ही उसकी मदद की थी ।

अंजली ने ये सब बातें सोची तो अब वो थोड़ा सहज महसूस करते हुए बोली " नही आपको ऐसा करने की जरूरत नही है । बस मैं तो , हो जाता है कुछ मुझे " बोलकर वो थोड़ा अक्षय के नजदीक होकर चलने लगी ।

पास के जंगल से भी उसे डर लग रहा था । अक्षत को अभी भी महसूस हो रहा था कि अंजली उतनी सहज नहीं हो पा रही थी । उसने माहौल को हल्का करने के लिए आगे बातचीत करना सही समझा ।

" तो अंजली जी आपका पूरा नाम क्या है... ? " अक्षत ने बहुत शालीनता से पूछा ।

" जी.. अंजली आर्य.. " अंजली ने सहजता से जवाब दिया फिर पूछा " और आपका पूरा नाम क्या है.. ? " ।।

अक्षत ने कहा " जी मेरा नाम अक्षत राणा.. " ।

अक्षत ने अंजली के ही लहजे में उसे जवाब दिया था। अंजली ने सुना तो थोड़ा सा हंस दी ।

अक्षत बोला " वैसे मुझे नहीं पता था कि तुम शिव की गाड़ी में आकर छुप जाओगी.. । पर तुम गाड़ी में आई कैसे.. ? " ।

" वो.. " बोलते हुए अंजली अपने हाथ की उंगलियों आपस में फसाने और निकालने लगी फिर आगे बोली " जब आप लोग तीन तीन होकर सड़क के दोनो तरफ देख रहे थे तो आप लोग एक ही तरफ को देखे जा रहे थे। तो मैं उससे दूसरी तरफ को भाग गई । पर सड़क लंबी थी तो कितना भागती । फिर गाड़ी की पिछली सीट से होकर डिक्की में छुप गई । " ।

अक्षत हंस दिया ।

अंजली आगे बोली " फिर जब मैने बाहर निकलना चाहा तो डिक्की पीछे से लॉक्ड थी । और आगे से निकल नही पाई क्योंकि आप लोग आ कर बैठ गए थे। तो फिर उसी में बैठना पड़ा.. और वो टायर और लोहे का समान चुभ चुभ कर परेशान करता रहा " बोलते हुए अंजली बहुत मासूम सी लग रही थी।

अक्षत मुस्कुराते हुए उसकी बातें सुने जा रहा था। अंजली ने बोलना खतम किया तो अक्षत बोला " वैसे मानना पड़ेगा , दिमाग तो तुमने बहुत सही लगाया । बचपन में एक कहानी सुनी थी मैने.. जिसमे एक व्यापारी चोर के साथ फंस गया था । रात थी तो दोनो को एक ही साथ किसी झोंपड़ी में रुकना पड़ा था । व्यापारी के पास बहुत सारे रुपए थे । और उसे डर था कि कहीं वो चोर उसके रुपए चुरा ना ले ।

तो उसने चोर के बैग में ही अपने सारे रुपए छिपा दिए थे । फिर जब व्यापारी सोया तो चोर ने हर जगह पैसों को ढूंढा लेकिन उसे वो पैसे नही मिले। क्योंकि वो उसी के बैग में रखे थे और उसने अपना बैग तो चेक ही नही किया । और फिर अगली सुबह व्यापारी उसी के सामने उसी के बैग से रुपए निकाल कर ले गया " ।

अंजली ने कहानी सुनी तो हंस दी ।

अक्षत आगे बोला " आज हम भी उसी चोर की तरह थे जिसने सब जगह देखा पर अपना बैग नही देखा । और हमने भी बाकी हर जगह तुम्हे ढूंढा लेकिन अपनी गाड़ी में नही ढूंढा और तुम वहीं छिपी हुई थी । " बोलकर अक्षत भी हंस दिया।

अक्षत ने तो हंसना बंद कर दिया लेकिन अंजली हंसती रही । अक्षत उसकी स्माइल में खो सा गया। वो किसी छोटे बच्चे की तरह खिलखिलाकर हंस रही थी । कुछ अलग सी ही बात थी उसकी मुस्कुराहट में ।

अंजली ने उसे खुद को देखते हुए देखा तो हंसना बंद कर दिया और चुप हो गई ।

" अरे चुप क्यों हो गई... ? हंसो न.. मेरे देखने से हंसना बंद क्यों कर दिया ? " अक्षत ने कहा तो अंजली बोली " नही अभी हंसना हो गया.. इसलिए बंद कर दिया। " ।

" अच्छा.. मुझे लगा कि मेरे देखने से हंसना बंद कर दिया । “ अक्षत ने कहा तो अंजली ने ना में सिर हिलाते हुए कहा “ नही मतलब थोड़ा सा बंद किया लेकिन मेरा हंसना वैसे भी पूरा हो ही गया था । “ ।

“ Ohk.. मतलब आधा हंसना मेरे देखने से रुक गया और आधा हंसना हो गया था । Right ? “ अक्षत ने कहा तो अंजली ने सिर हिला दिया ।

अक्षत आगे बोला “ वैसे अच्छी लगती हो हंसते हुए.. हंसती रहा करो.. "

" आपके दोस्त हंसने कहां देते हैं । मुझे तो अगले दिन का सोच सोचकर रातों को नींद भी नहीं आती "

" अब से नही होगा " अक्षत ने कहा तो अंजली बस उसकी कही बात पर हल्का मुस्कुराकर रह गई ।

" वैसे , पता है तुम्हारा नाम किसी खास की याद दिला देता है अंजली... । जब पहली बार तुम्हे देखा और तुम्हारा नाम सुना तो मुझे उसी की याद आई। अगर वो होती तो शायद तुम्हारे जितनी ही होती और शायद तुम्हारे जैसी ही होती... " बोलते हुए अक्षत कहीं खो सा गया।

" किसकी याद आती है अक्षत जी.. ? कौन मेरी तरह होती ? " अंजली ने पूछा तो अक्षत बात टालते हुए बोला ।

“ अरे वो छोड़ो ना… मैं भी किन बातों में लग गया.. तुम ये बताओ कि तुमने जंगली सूअर हम लोगों को ही कहा था ना. ? "

" नही नही.. मैने वो आप लोगों को नही कहा था बल्कि आप लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कहा था । और अगर नही कहती तो आपके दोस्त तो मुझे नदी में बहा देते । और मुझे तैरना नहीं आता.... " ।

अक्षत उसकी बात पर हल्का मुस्कुराया और फिर सिर हिला दिया। अंजली की बातें अक्षत को बोहोत मासूमियत भरी लग रही थी।

दोनो सड़क पर चल ही रहे थे कि तभी एक गाड़ी तेज़ी से उनके बिल्कुल पास में आकर रूकी । और हॉर्न बजाने लगी । इस तरह अचानक से किसी गाड़ी की रुकने से अंजलि डर गई और अक्षत के पास जाकर उसने अक्षत की बाजू कसकर पकड़ ली और आंखें बंद कर ली ।

आखिर किसकी गाड़ी आकर इतनी तेज़ी से रुकी है ? आखिर अंजली अक्षत को किसकी याद‌ दिलाती है ? क्या शिवाक्ष वाकई में दोनो को छोड़कर चला गया है ?