Savan ka Fod - 16 in Hindi Crime Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 16

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सावन का फोड़ - 16

लेखराज आयशा कि हैसियत शानो शौकत देखकर बहुत प्रभावित हुआ जंगेज आयशा का मेहमान नही बल्कि आयशा को रखैल बनकर ही रहना था करोटि कि आयशा को हिदाययत थी। कर्मा कि निगरानी कर रहे बिहार पुलिस के जवानों से इंस्पेक्टर बुरहानुद्दीन कि मुलाकात हुई  बुरहानुद्दीन ने जंगेज के कलकत्ता पहुँचने कि बात बताई गौरांग शमरपाल जोगेश जिमनेश को तो जैसे सांप सूंघ गया उन्हें यह भय सताने लगा कि कहीं जंगेज उन्हें मारने के उद्देश्य से कलकत्ता तो नही आया है अपने साथियों की स्थिति देखकर इंस्पेक्टर बुरहानुद्दीन ने साथियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा क्यो डरते हो एक मामूली अपराधी से ?जब हम पुलिस वाले वर्दी पहनते है तो यह समझकर कि यही मेरे लिए कफ़न है यही वर्दी पहन कर जिएंगे और यही वर्दी पहन कर मरेंगे फिर क्यो तुम चारो दो कौड़ी के अपराधी से खौफ खा रहे हो ?जंगेज आयशा के घर शहंशाह कि तरह रहने लगा लेखराज ने जंगेज से बड़ी विनम्रता से अनुरोध किया उस्ताद कोई मेरे लिए भी धंधा बताओ हमे कोई काम धाम तो देगा व्यापार हम कर सकते नही पैसा नही है बाप दादो कि खेती भी इतनी नही है जिससे काम चल सके आयशा जंगेज और लेकराज कि बातों को बड़े गौर से सुन रही थी बोली लेखराज तुम लौटकर क्यो जा ही रहे हो ?जाना है तो तुम बम्बई चले जाओ और मेरे कारोबार का जिम्मा बम्बई में संभालो वहां तो बहुत बड़े बड़े कस्टमर है और खतरा विल्कुल नही लेखराज ने सवाल किया ऐसा क्यो ? आयशा ने बहुत स्प्ष्ट शब्दों में लेखराज को बताया कि हमारा धंधा ऐसा है कि हर धनपशु,बाहुबली ,राजनीति हैसियत ,व्यवसायी का व्यक्तिगत शौख है पर सात परदों के पीछे कानोकान किसी को खबर ना लगे और हाँ कभी किसी के साथ कोई हादसा पेश ही आ जाय तो वह अपनी इज्जत बचाने के लिए पैसे को पानी कि तरह बहा देता है और पैसे पर तो दुनियां में क्या नही बिकता ईमान दीनआदमी जानवर यहाँ तक कि भगवान तो लेखराज जी समझ गए मेरा धंधा कितना सुरक्षित है एक बात और खास है मेरे धंधे कि मेरे धंधे में बिकने वाला माल भी अपनी इज़्ज़त बेचता जरूर है लेकिन वह भी इज़्ज़त के लिए ही जीता मरता है जब कभी कोई हादसा पेश आता है तो चेहरा तक नही दिखा पाता अपनी इज़्ज़त के प्रति इतना संवेदनशील होता है. हमारे धंधे में बिकने वाला माल बिकता भी है अरमानों के आकाश को छू लेने के लिए सारे जहाँ को मुठ्ठी में भर लेने के लिए जिसके लिए मेहनत इन्तज़ार बहुत मुश्किल काम है ।पैदा होता है गरीब भुखमरी में या पेट भरते लेकिन अपूर्ण अरमानों कि चाहत में आम शहरी आम देहाती परिवार में जिनमे सूरत सीरत और आसमान की ऊंचाई हासिल करने के अरमान हिचकोले मारते है क्योकि उन्हें पता रहता है कि चाहे कितने जन्म ले ले उनके लिए उनके अरमानों कि दुनियां को हासिल कर पाना असम्भव ही नही मात्र ख्वाब है जो जन्म दर जन्म लेने पर भी पूरा नही होता और जिन्हें इस धर्म का अल्पायु में ही शिखर ज्ञान होता है कि हाड़ मास का शरीर मिट्टी में ही मिल जाना है तो जब तक मिट्टी उपजाऊ है और जोतने योग्य है उसका लाभ क्यो न उठाया जाय ?हमारे धंधे में कमसिन कुंवारी ही आती है जिनकी ग्राहक पूरी दुनियां एव दुनियां का हर क्षेत्र है सर्वोपरि है राजनीति राजनीति में मेरे धंधे का सिक्का चलता है किसी को कुछ भी चाहिए मेरे पास आता है मैं उसके अरमानों के आका के पास शील बंद ताला भेज देती हूँ जिसे खोलकर अरमानों कि चाहत का मसीहा बन बैठता है .हमारे धंधे में कोई जज्बाती रिश्ता होता ही नही सिवा जिस्मानी जो भी माल बिकते है रात के अँधेरो में सुबह के उजाले में उन्हें खुद नही पता उनका खरीदार कौन था?