अनन्या की बातें सुनने के बाद रेवती और घनश्याम ने सुविधाओं और अच्छा वेतन मिलने के कारण उसे हाँ कह दिया। उनके मुँह से हाँ सुनते ही अनन्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया।
घनश्याम ने कहा, "ठीक है कर लो यह नौकरी लेकिन वह गाँव कितना दूर है?"
अनन्या ने कहा, " बहुत दूर नहीं है पापा, पास के ही गाँव में यह हवेली है। उस हवेली की बहुत तारीफ सुनी है। बहुत सुंदर हवेली है और उनकी बातचीत से लग रहा है कि लोग भी अच्छे ही होंगे।"
"ठीक है बेटा तो फिर जाने की तैयारी शुरू कर दो," कहते हुए उसके पापा कमरे से बाहर जाने लगे, तो अनन्या उनके सीने से लग गई और कहा, " थैंक यू पापा, आप बहुत अच्छे हैं, आई लव यू पापा।"
इसके बाद अनन्या ने अपनी माँ रेवती की ओर देखते हुए कहा, "माँ, मेरी इच्छा तो है कि मैं आपको पूरी दुनिया की सैर कराऊँ, घुमाऊँ फिराऊँ, ख़ूब आराम दूं। आपके जीवन के संघर्षों को अब ख़त्म करने का समय आ गया है। अब मैं आपके सभी सपने साकार करूंगी।"
तब रेवती ने कहा, "लेकिन अनन्या, हमने तो ऐसे कोई सपने देखे ही नहीं हैं बेटा कि हमें दुनिया भर की खुशियाँ मिल जाएँ, पूरी दुनिया की सैर करने मिल जाए। हमने तो केवल यही सपना देखा है कि हमारी बेटी के सारे सपने पूरे हों, वह एक बहुत अच्छी इंसान बने, अपने दम पर अपनी खुशियाँ ढूँढे और अपने दम पर ही आगे बढ़े। कभी किसी को दुख ना दे।"
अपनी माँ के ऐसे वचन सुनकर अनन्या ने कहा, "माँ, आगे बढ़ने के लिए रास्ते में बहुत सारी बाधाएँ आती हैं, जिन्हें पार करना पड़ता है।"
रेवती ने कहा, "हाँ, तो क्या हुआ? वही तो तुम्हारी परीक्षा होगी। वैसे भी कहते हैं ना कि भगवान के यहाँ देर हो सकती है, पर अंधेर नहीं। भगवान ने तुम्हारे भाग्य में भी कुछ न कुछ अच्छा ज़रूर लिखा होगा।"
"नहीं माँ, यह भाग्य वाग्य कुछ नहीं होता। देर और अंधेर भी नहीं होती। सब कुछ अपने ऊपर होता है। अपना दिमाग, अपनी सोच और अपनी मेहनत ही सब कुछ करवाती है। हमारे हाथों में शक्ति होनी चाहिए और कुछ पाने का जुनून होना चाहिए। मेरा सपना ही मेरा जुनून है। माँ जब आपने जीवन भर कष्ट उठाया, तब भगवान कहाँ थे? उनके यहाँ तो तब से आज तक अंधेर ही होती आ रही है। देर तो उन्होंने कब की कर दी है माँ। लेकिन मैं न तो देर होने दूंगी और न ही अंधेर। मैं वह सब कुछ जल्दी ही हासिल कर लूंगी जो मुझे चाहिए।"
अपनी बेटी की इस तरह की बातें सुनकर रेवती थोड़ी चिंतित हो गई।
कुछ समय बाद, जब अनन्या के पिता घनश्याम घर आए, तो उन्होंने अपनी पत्नी को उदास देखकर पूछा, "क्या हुआ, अनु की माँ? तुम बड़ी उदास लग रही हो। लगता है बेटी के जाने का दुःख तुम्हें सता रहा है। अरे तुम्हें तो खुश होना चाहिए तुम्हारी बेटी अपने पैरों पर खड़ी होने जा रही है।"
"ऐसी बात नहीं है अनु के पापा," कहते हुए रेवती ने अनन्या के साथ हुई सारी बातचीत उन्हें बता दी।
घनश्याम ने कहा, "अरे, तुम नाहक ही चिंता कर रही हो। उसने वह यूं ही जोश में बोल दिया होगा। हमारी बेटी तो बहुत अच्छी बच्ची है।"
रेवती ने उनकी बात भले ही मान ली हो, लेकिन मन में अनन्या की बातों की चुभन उनकी हर धड़कन के साथ धक-धक करने लगी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः