Pagal - 59 - Last Part in Hindi Love Stories by Kamini Trivedi books and stories PDF | पागल - भाग 59 (अंतिम भाग)

Featured Books
Categories
Share

पागल - भाग 59 (अंतिम भाग)

मेरी मां मुझसे अकेले में बात करने के लिए ले गई और पूछा – क्या सच में मैं राजीव को चाहती हूं ?
मैं खुद अब तक कन्फ्यूज्ड थी ।
लेकिन वहां अभिषेक आ गया उसने मुझसे कहा – फिक्र मत करो । हम बहुत अच्छे दोस्त रहेंगे । और राजीव को मैं मिलने आया करूंगा ।
अभिषेक चाहें जितनी कोशिश करे स्ट्रॉन्ग बन ने की उसका दर्द उसके चेहरे पर दिख रहा था । वो चला गया तो मां बोली – राजीव से ज्यादा तुझे अभिषेक प्यार करता है बेटा ।
क्या तू इस शादी से खुश है ? – मां ने पूछा । मैं वहीं खड़ी सोचती रही । कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करूं।

मैने भगवान से प्रार्थना की और कहा – भगवान मैने अभिषेक को कभी उस नजर से देखा नही उसे भगवान की तरह पूजा । लेकिन आज दुख होने का कारण शायद उनके एहसानों के बाद भी उन्हें छोड़ देना है । राजीव से शादी की खुशी भी शायद इसीलिए नही है। भगवान अभिषेक की जिंदगी भी खुशियों से भर दो । प्लीज 🙏


मैने बहुत सोचा आज भी राजीव का पलड़ा भारी था ।

बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची की मैं ये शादी करूंगी और ये मेरा सही फैसला था । जो आगे जाकर मुझे समझ में आया । हंसी खुशी के माहोल में शादी संपन्न हुई ।
अभिषेक अपनी मां को लेकर जाने को हुआ तो मैंने मांजी से कहा
"मांजी ,, कुछ दिन यहां ठहर जाए आप प्लीज"
मेरे रिक्वेस्ट करने पर मेरी मां और आंटी ने भी उनसे रिक्वेस्ट की । तो अभिषेक उन्हे छोड़कर वापिस जाने लगा।
राजीव ने एक बार फिर अभिषेक का धन्यवाद किया।

आज फिर एक बार मैं और राजीव तन मन से एक होने जा रहे थे।

मैं राजीव के कमरे में उसके इंतजार में थी बिस्तर पर कागजात देखे जब उन्हें खोला तो वो कॉन्ट्रैक्ट पेपर थे मेरा दिल बैठ गया। राजीव के आने पर मैने उन पेपर्स के बारे में पूछा तो उसने कहा "ये एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज है कीर्ति"
मैं फिर किसी अनहोनी की आशंका में रुआंसी हो गई । मेरी आंखों में आंसू देख राजीव बोला "अरे मेरी मां ,, डेट तो देख ले" उसके इतना कहने पर मैंने डेट्स देखी ये वही पुराना कॉन्ट्रैक्ट था ।
"रावण कही के",मैने उसे कहा।

"अब इसकी जरूरत नही ," कहते हुए राजीव ने उसे फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया और मेरे करीब आया।

"अब ये रावण करेगा रासलीला" और इतना कहकर वह मेरे होठों पर अपने होठों से चूमने लगा।

"आई एम सॉरी कीर्ति" राजीव ने कहा ।

और फिर वो मेरे ऊपर झुका ,, ।

इधर अभिषेक जब लौट रहा था । उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। मुस्कुराहट मुझे राजीव के साथ देख कर । लेकिन दिल में हल्का दर्द था।

वो रेलवे स्टेशन आया । उसकी ट्रेन चलने को थी लेकिन उसे पानी की बॉटल खरीदनी थी। वह पानी की बॉटल लेने लगा तो ट्रेन चल दी । उसने जल्दी से पैसे दिए और ट्रेन के डब्बे में चढ़ गया। जब अपनी सीट पर पहुंचा तो क्या देखता है ?

उसकी सीट पर एक लड़की घुटनो में मुंह दबाए बैठी थी ।
अब अभिषेक का दिल धड़का "है भगवान ,, फिर से नही" उसके मुंह से निकला उसके दिमाग में कीर्ति से मिलने वाला पूरा दिन घूम गया । उसने खुद को संभाला और सामने वाली सीट पर बैठ गया।

वह उस लड़की को काफी देर तक देखता रहा मगर उसने अपना मुंह नही उठाया। इस बार उसने उस सीट के अपनी होने का दावा नही किया। वो सामने बैठ गया।

कुछ देर में टीसी साहब आए ।

" टिकट ,प्लीज" अभिषेक ने अपनी टिकट दिखा दी ।

टीसी ने उस लड़की को देखा और उससे टिकट मांगी । उस लड़की ने अपना मुंह उठाया । जैसे ही उसने अपना मुंह ऊपर किया । अभिषेक उसे देखता ही रह गया।
गहरे नीले रंग की आंखे थी उसकी वो दूध सी सफेद थी मगर रोने की वजह से उसकी नाक टमाटर की तरह लाल हो रखी थी ।

वंदना उसके मुंह से अनायास निकला ।

वो लड़की अजीब तरह से अभिषेक को देखने लगी ।

"टिकट नहीं है हमारे पास" उसने मासूमियत से टीसी से कहा

"सर इनका टिकट आप मुझ से ले लीजिए " ना चाहते हुए भी अभिषेक ने कहा।

उस लड़की ने मुस्कुरा कर अभिषेक की तरफ देखा अपने घुटने नीचे करके चप्पल पहने आंसू पोछे और धन्यवाद बोलकर ठीक से बैठ गई।

टीसी और अभिषेक एक दूसरे को देखने लगे । टीसी ने टिकट बनाया और चला गया।

अभिषेक इस बार कोई बातचीत नहीं करना चाहता था । इसलिए वह चुपचाप बैठ गया मगर उस लड़की ने ही आगे बढ़कर कहा "शुक्रिया"
अभिषेक बस मुस्कुरा दिया
"आपका नाम?"
"अभिषेक" अभिषेक ने उससे उसका नाम नही पूछा मगर वह सामने से बोल पड़ी।
"मेरा नाम वंदना है वैसे आपने मेरा एक्जैक्ट नाम कैसे ले लिया ? "
ये नाम सुन अभिषेक की धड़कने बढ़ने लगी।

फिर तो पूरी ट्रेन में उस लड़की ने अभी को अपनी पूरी कहानी बता दी ।
"मेरा इस दुनिया में कोई नही चाचा थे जिन्होंने मुझे बेच दिया मैं जैसे तैसे भाग कर डब्बे में चढ़ी जेल जाने के डर से रोना आ गया कि तभी आपने बचा लिया"

उसकी बकबक सुनकर अभिषेक थक चुका था उसने उठकर कसकर उसका हाथ उसके मुंह पर रख दिया । मगर ये करते वक्त वो उसके बहुत करीब था इतना करीब की दोनो एक दूसरे की सांसे महसूस कर पाए और धड़कन भी सुन सके । वंदना की आंखे बड़ी बड़ी हो गई थी। और अभिषेक उसकी खूबसूरती में खो गया था।

इस बार अभिषेक ने लंबा इंतजार नही किया और उस लड़की से कहा
"मेरे साथ चलोगी मेरे घर मेरी वाइफ बनके?"
वो लड़की तो जानती ही नही थी उसे कहां जाना है और अभिषेक उसे पहली ही नजर में पसंद आ गया था मगर इतनी जल्दी शादी ? ये सोच उसके हाथ पैर फूल रहे थे । और फिर कुछ देर सोचने के बाद इसी को अपना भाग्य समझ उसने भी हां कह दिया।

अभिषेक की मां के लौटने के बाद उसने भी वंदना से शादी कर ली। अभिषेक की मां वंदना को देखकर हैरान थी । उन्होंने संदूक निकाल कर जब इस वंदना को दिखाया तो वो भी चौंक गई । अभिषेक की पहली पत्नी वंदना इस वंदना की ना सिर्फ हमशक्ल थी बल्कि दोनों के नाम भी सैम थे।

अभिषेक के बारे में सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई । फाइनली मेरे मन का गिल्ट चला गया । मैने भगवान का धन्यवाद किया।

दो साल बाद ,

अभिषेक के घर एक लड़के ने जन्म लिया और मेरे यहां एक प्यारी सी बेटी ने।

दोनो परिवार अब खुशी खुशी अपनी जिंदगी के मजे ले रहे थे ।

इस कहानी के दो अंत हो सकते थे मैं बहुत कन्फ्यूज थी कि कीर्ति को अभिषेक के पास रहने दूं या राजीव की । लेकिन क्योंकि कहानी में कीर्ति राजीव के प्यार में पागल बताई है तो फिर उसे अभिषेक से प्यार कैसे हो सकता है सोचते हुए मैं इस नतीजे पर पहुंची कि अभिषेक की कहानी को एक सुखद अंत के साथ खत्म करना चाहिए । आपको कहानी कैसी लगी बताईएगा जरूर । 🙏

इस तरह एक खूबसूरत कहानी का अंत हुआ । धन्यवाद सभी पाठको का अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी रचनाएं पढ़ने के लिए ।

The end,,,,,❤️