प्रकरण - २०
फातिमा की सच्चाई जानने के बाद मुझे उससे हमदर्दी हो गई थी। मैं अब उसके ख्याल में बहुत ही डूबा रहने लगा था। मैं उसके हर दर्द को अब अपना महसूस करने लगा था। मैं अब तक खुद नहीं समझ पा रहा था कि फातिमा के प्रति मेरे मन में ये कैसी भावना आ रही है! लेकिन इतना तो तय था कि उसके दर्द से मैं भी दु:खी हो रहा था और जब वो खुश होती थी तो मैं भी खुश होता था।
उसका नाम और उसकी आवाज मेरे मन में गूंजता रहता था। उसका नाम सुनते ही मेरे मन में उसका एक काल्पनिक सुन्दर चेहरा बन जाता था। भले ही मैंने कभी भी उसे नहीं देखा, लेकिन उसकी आवाज में ही मुझे एक अपनापन महसूस होता था। कभी कभी मैं सोच में पड़ जाता था क्या शायद इसी को लोग प्यार कहते होंगे? लेकिन मुझे अभी भी प्यार की परिभाषा ठीक से समझ नहीं आई थी।
फातिमा की सच्चाई जानने के बाद हमारा रिश्ता शायद पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गया था। कभी-कभी फातिमा हमारे घर भी आती थी। मेरे मम्मी पापा का दिल भी अब फातिमाने जीत लिया था। फातिमाने हमारे घर में अपने लिए एक खास जगह बना ली थी।
अब तो ऐसा होता था कि फातिमा की मौजूदगी के बिना हमारे घर में कोई कार्यक्रम ही नहीं होता था। दर्शिनी भी अब फातिमा की खास दोस्त बन गई थी। दर्शिनी अपने दिल की सारी बाते फातिमा से बताती थी।
समय अब बहुत तेजी से भागने लगा था। इधर मुझे भी अब स्कूल के लड़कों को संगीत का ज्ञान देने में आनन्द का अनुभव होने लगा। विद्यालय के छात्रों और मेरे बीच भी एक गुरु शिष्य का प्यारा सा रिश्ता बन गया था।
मैं अपनी ख़ुशी का सारा श्रेय फातिमा को देता था। मेरे जीवन में फातिमा का आगमन मुझे एक नई दिशा में ले गया था। मेरा जीवन बहुत ही व्यवस्थित होने लगा था। मुझे अब खुश होने का कोई कारण नहीं ढूंढना पड़ता था, लेकिन मैं अब खुश ही रहा करता था। मेरे जीवन के अँधेरे में भी शायद एक सुनहरी ज्योत जगमगा उठी थी जो शायद अनमोल थी।
और इधर मेरे भाई रईश की पी.एच.डी.की पढ़ाई खत्म होने को आई थी। बस अब सिर्फ थीसिस लिखना और सबमिट करना ही बाकी था। रईश को अपने लक्ष्य के साथ-साथ मन के कोने में नीलिमा के प्रति अपनी भावनाओं का भी बार बार एहसास होता था।
वह रईश के कॉलेज के आखिरी दिन थे। वह बहुत दिनों से नीलिमा को अपने दिल की बात बताना चाहता था।
फिर एक दिन अचानक उसे वह मौका मिल गया और उसने नीलिमा से कहा, "नीलिमा! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। मैं बहुत समय से तुम्हें ये बात बताने का इंतजार कर रहा था।"
नीलिमाने कहा, "हाँ, तो बोल न! मुझे कुछ भी बताने के लिए तुम्हे इंतजार करने की जरूरत है क्या? क्या तुम भी.. क्या कहना चाहते हो?”
उसने अब नीलिमा को अपने दिल की बात बता दी। उसने नीलिमा से कहा, "नीलिमा! जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तभी से मैं तुम्हें पसंद करने लगा था। मैं तुमसे प्यार करता हूँ नीलिमा! क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
ये सुनकर नीलिमा बोली, "अरे पगले! तुने यह बात कहने में इतना सारा समय लगा दिया? वो तो मैं कब से जानती हूं।
रईश बोला, "मतलब? तुम्हे पता है?"
नीलिमा बोली, "हां, महिलाओं को ईश्वरने ऐसी शक्ति दी है कि उन्हें पता चल ही जाता है यदि कोई लड़का उन्हें पसंद करता है।"
ये सुनकर रईशने फिर पूछा, "तो क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
नीलिमा बोली, "हां, रईश मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं। मुझे भी तुमसे पहली नजर का प्यार हो गया था। आई लव यू टू रईश।"
प्यार दोनों ओर से था। दोनों एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करने के बाद काफी हद तक खुश थे। मानो दुनियाभर की ख़ुशी उन दोनों को मिल गयी हो ऐसा अनुभव वे कर रहे थे।
कुछ समय बाद रईश फिर घर आया। अब जब उसने नीलिमा के साथ प्यार का इजहार कर लिया था तो उसने घर आकर सभी को अपने और नीलिमा के रिश्ते के बारे में बताया। रईशने नीलिमा के बारे में घर में बताया तब मैं भी बोल उठा, "मुझे तो यह बात पहले से ही पता थी।"
मेरा ऐसा कहने पर सभी लोग मुझसे कहने लगे, "रोशन! यदि तुम्हें यह पहले से ही पता था, तो तुमने हम सबको पहले क्यों नहीं बताया? तुम्हें हमें पहले ही बताना चाहिए था न?"
मैंने कहा, "हाँ! बता तो देता, लेकिन रईशने मुझसे कहा था की मुझे यह बात घर में किसी को तब तक नहीं बतानी जब तक नीलिमा उसे इस रिश्ते के लिए हाँ न कह दे। और अब जब नीलिमाने हाँ कह ही दिया है तो मैं भी तुम्हें बता रहा हूँ की यह बात मुझे बहुत पहले से पता थी। पिछली बार जब रईश घर आया था तभी उसने मुझे बताया था। मैंने ही उससे कहा था की तुम नीलिमा को अपने दिल की बात बताने में कभी देर मत करना। फिर भी रईशने थोड़ी देर तो कर ही दी। उसने अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद ही नीलिमा को अपने दिल की बात बताई।
यह सुनकर रईश भी बोल उठा, "मैं इतनी जल्दी नीलिमा को कैसे बता देता? हम अभी अभी तो मिले थे। और मैं कोई भी जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहता था। मैं इस रिश्ते को कुछ समय देना चाहता था। मेरा मानना है कि, कोई भी नया रिश्ता बनाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। हर रिश्ते को एक मौका देना चाहिए और सही समय पर वो मौका देना चाहिए।"
मेरे पापा बोले, "हाँ, तुम सही कह रहे हो रईश! इस बात पर तो मैं भी तुमसे सहमत हूँ।"
मेरी मम्मी भी अब बोल उठी, "अब तुम ये बताओ की नीलिमा को घर कब ला रहे हो? मैं अपनी होनेवाली बहु का चेहरा देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं।"
दर्शिनी भी अब बोल उठी, "हाँ! भैया मुझे भी अपनी भाभी को देखना है।" वो भी अपनी भाभी से मिलने के लिए बड़ी उत्सुक थी।
कुछ दिनों बाद, रईश और नीलिमा दोनों ने अपनी थीसिस सबमिट कर दी और दोनों का पी.एच. डी. खत्म हुआ।
पढ़ाई खत्म होने के बाद रईश नीलिमा को लेकर घर आया। मेरे मम्मी पापा नीलिमा को देखकर बहुत खुश हुए और उन्होंने उन दोनों को आशीर्वाद दिया। हमारे घर में सभी को नीलिमा बहुत पसंद आई थी।
नीलिमा के परिवार के साथ हमारे परिवार की एक मुलाकात हुई। दोनों परिवारों ने एक दूसरे को पसंद किया। नीलिमा और रईश की शादी हो गई। दोनों बहुत खुश थे। सब कुछ इतनी तेजी से घटित हो रहा था कि यह एक खूबसूरत सपने जैसा था। नीलिमा के कदम हमारे परिवार और विशेषकर रईश के लिए बहुत ही शुभ साबित हुए।
जैसे ही रईश और नीलिमा दोनों को डॉक्टरेट की डिग्री मिली, वे दोनों अलग-अलग रिसर्च सेंटर में इंटरव्यू देने लगे। आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन दोनों को अहमदाबाद के ही नेत्रदीप आई रिसर्च सेंटर में नौकरी मिल गई। हमें सिर्फ इस बात का दु:ख था कि वे दोनों परिवार से दूर हो जाएंगे। लेकिन फिर सोचा राजकोट से अहमदाबाद इतना दूर कहाँ है? हम सब अपने आप को समझाते थे कि वो लोग जब चाहें यहां आ सकते हैं और जब हमारा मन हो तो हम भी तो उनसे मिलने जा सकते हैं।
रईश और नीलिमा दोनों बहुत खुश थे क्योंकि उन दोनो को अपनी मनचाही नौकरी मिल गई थी। रईश और नीलिमाने अहमदाबाद में ही एक मकान किराए पर ले लिया था। रईशने आँखों पर रिसर्च करके मेरे जीवन में ज्योति फैलाने का जो सपना देखा था, यह उसका पहला कदम था। उसे तो अभी भी बहुत ही लंबा रास्ता तय करना था।
"यहीं से मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आना था। एक नया अध्याय शुरू होने वाला था।" स्टूडियो में बैठे रोशन कुमार बोले।
अमिता बोली, "रोशनजी। जब भी मैं आपसे बात करती हूं तो पता ही नहीं चलता कि समय कहां चला जाता है! मैं और हमारे साथी दर्शक भी आपकी कहानियां सुनकर बड़ा आनंद ले रहे है। सुना है फातिमा और आपका रिश्ते में भी कई बाधाए आई?"
रोशनने कहा, "हाँ! अमिताजी। आप बिल्कुल सही कह रही हैं।"
अमिता बोली, "लेकिन अभी तक आपने फातिमा के साथ अपनी प्रेम कहानी के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताया है। तो अब हमें बताएं कि फातिमा के साथ आपकी प्रेम कहानी कैसे आगे बढ़ी? क्या आपके जीवन में कोई बाधाएं थीं या यह आसान था? कैसा था आप दोनों का प्यार? किस तरह आप दोनों का सफर शादी तक पहुंचा? अब तक हमने रईश और नीलिमा की प्रेम कहानी को जाना और अनुभव किया है। लेकिन हमारे दर्शक सिर्फ एक प्रेम कहानी से संतुष्ट नहीं हैं..! वे तुम्हारी और फातिमा की प्रेम कहानी को भी जानने को बहुत उत्सुक हैं और मैं भी...''
रोशनने कहा, "हाँ, हाँ, ज़रूर। मैं अपनी प्रेम कहानी भी बताऊँगा।" इतना बोलते ही रोशनकुमार का चेहरा खिल उठा।
अमिता बोली, "तो दर्शकों! चलो अब एक छोटा ब्रेक लेते हैं। कहीं नहीं जाना है। ब्रेक के बाद हम रोशन कुमार और फातिमा की प्रेम कहानी जानेंगे। तब तक हमारे चैनल संवाद पर हमारा ये कार्यक्रम देखते रहिए। जल्द ही फिर मिलेंगे।
(क्रमश:)