प्रकरण - १२
हम इस बात को लेकर असमंजस में थे की मेरी संगीत कक्षा शुरू करने के लिए हम छात्र कहा से ढूंढे। लेकिन दर्शिनीने आसानी से हमारी इस दुविधा को दूर कर दिया।
वो बोली, "भाई! अगर आप संगीत कक्षा शुरू करना चाहते है, तो फिर आप खुद का प्रचार क्यों नहीं करते? अन्यथा, आपके पास सीखने के लिए कौन आएगा? लोगों को कैसे पता चलेगा कि आप संगीत कक्षा चलाते हैं?"
उसकी ये बात सुनते ही मेरे मन में एक खयाल आया और मैंने कहा, "तुम सही कह रही हो दर्शिनी। और तेरी ये बात यह सुनने के बाद मुझे एक खयाल आया है की अब जहां भी मैं मम्मी-पापा के साथ उनके शो में जाऊं, वहां हमे हम संगीत क्लास शुरू करने जा रहे है ऐसे पैम्फलेट छपवाने चाहिए। जिसमें हमारे म्यूजिक क्लास के बारे में जानकारी दी गई हो और उस बारे में विस्तार से बताया हो। शो में आने वाले सभी लोगों को वो पैम्फलेट बाट देना चाहिए। ये देखकर संगीत में रुचि रखने वाले कुछ लोग तो हमारा संपर्क जरूर करेंगे, है ना? और मेरे पास संगीत सीखने आएंगे।"
मेरी ये बात सुनकर वहा खड़े मेरे पापाने कहा, "हा, तुम्हारा ये खयाल तो बहुत ही अच्छा है। मेरे एक परिचित सवजीभाई है, जो की मेरे मित्र भी हैं, उनका केवल मुद्रण का ही काम है, इसलिए हम उन्हें ये पर्चे छपवाने के लिए दे सकते है।''
तभी दर्शिनी तुरंत बोल पड़ी, “लेकिन उस पैम्फलेट का डिज़ाइन तो मैं ही तैयार करूंगी।..आखिर आपकी इस आर्टिस्ट बहन किस काम की?”
दर्शिनी को बचपन से ही इस तरह के डिजाइन बनाना बहुत पसंद था। जब वह छोटी थी तो जो भी निमंत्रण कार्ड देखती थीं, उसकी एक कॉपी बना लेती थीं। उसे इस काम में बहुत मजा आता था। इसीलिए आज भी उसने यह काम अपने हाथ में ले लिया।
कुछ ही दिनों में दर्शिनी ने पैम्फलेट का एक बहुत अच्छा डिज़ाइन भी बना लिया। हमारे पूरे घर में सभी को यह डिज़ाइन बहुत पसंद आया। मेरी माँ ने मुझे उस पैम्फलेट की डिज़ाइन का विस्तार से वर्णन किया। मम्मीने मुझे बताया कि, दर्शिनीने बहुत अच्छा पैम्फलेट डिज़ाइन किया है। मैं वास्तव में इसे देखना चाहता था, लेकिन उस दिन मैं अपने आप को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था। देखने के लिए अब आंखे कहा थी मेरे पास?
उस दिन के बाद मैंने तय किया की मैं ब्रेल लिपि सीखूंगा। मैंने सोचा की भविष्य में मुझे कोई भी मजबूरी महसूस न करनी पड़े इसलिए मैं अब अपनी आगे की पढ़ाई भी ब्रेल लिपि के माध्यम से पूरी करूंगा और साथ साथ संगीत के क्लास भी चलाऊंगा।
मैंने घर पर सभी को बताया कि मैं ब्रेल लिपि सीखना चाहता हूं ताकि मैं अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा कर सकूं और मेरी आखरी साल की कॉलेज की जो परीक्षा अधूरी रह गई थी वो देकर अपनी डिग्री हासिल कर सकूं।
सभी मेरी इस बात से सहमत हो गए और मेरे लिए एक ऐसे शिक्षक की तलाश शुरू हुई जो मुझे ब्रेल लिपि सीखा सके।
उस समय, मुझे बिलकुल भी खयाल नहीं था की मैं अचानक अपने शिक्षक और अपने छात्र दोनों को एकसाथ ही मिलूंगा!
एक दिन की बात है। उस दिन मैं अपनी माँ और पिताजी के साथ एक शो में गया था। हर शो में मैं हमेशा अगली लाइन में आगे ही बैठता था। आज भी मैं ऐसे ही बैठा था। अब शो खत्म हो गया था। तभी अचानक एक आवाज़ मेरे कानों से टकराई। उसकी आवाज से मैं समझ गया कि यह किसी महिला की आवाज है। आवाज़ में बहुत मिठास थी और शायद एक अजीब सी कशिश थी जो मुझे तब मोहित कर रही थी।
उसने मेरे पास आकर पूछा, "क्या रोशन आपका नाम है?"
मैने कहा, "हाँ। मेरा ही नाम रोशन है।"
वो बोली, "तो तो फिर ठीक है। मैं आपसे ही विशेष रूप से बात करना चाहती हूं। मैं आपसे संगीत कक्षा के उन पैम्फलेटों के बारे में बात करना चाहती हूं जो आप ऑडिटोरियम के बाहर बांट रहे हैं।"
मैंने तुरंत उससे पूछा, "जी मेडम! बताईए। आप मेरे साथ उन पैंफलेट के बारे में क्या बात करना चाहती हो?"
वैसे तो मेरी हालत देखकर उसे ये तो पता चल ही गया था कि मैं देख नहीं सकता हूं। उसे शायद मेरी ओर सहानुभूति हुई होगी इसलिए जब मैं वहा से खड़ा होना चाहता था तब उसने मुझे सहारा देकर मेरी मदद की।
मैंने उसे अपनी परिस्थिति के बारे में बताते हुए उनसे कहा,"वैसे तो मेडम मैं एक सूरदास हूं, लेकिन मैं हमेशा से ऐसा नहीं था। एक दुर्घटना में मेरी आंखें चली गई और आज मेरी हालत ऐसी हो गई है। मुझे लगा कि मुझे आजीविका के लिए कुछ करना चाहिए, इसलिए मैंने सोचा की मुझे संगीत बहुत पसंद है तो क्यों न में इसे ही अपनी आय का स्रोत बना लूं? लेकिन शायद भगवान की मर्जी कुछ ओर होगी ऐसा अब मुझे लगने लगा है क्यों की ने हम सबके इतने लंबे प्रयास के बावजूद भी हमें अभी तक कोई भी छात्र नहीं मिला है।
मैंने पापा के शो में कई बार परफॉर्म किया है, हर कोई मेरे संगीत से बहुत खुश है, लेकिन कोई मुझसे सीखने को तैयार नहीं है। मेरे पिता के कहने के मुताबिक लोग मेरे संगीत से प्रभावित हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि मेरी किस्मत के दरवाजे अभी तक खुले नहीं है। लेकिन फिर भी मैं हारा नहीं हूं। पता नहीं क्यों, लेकिन उस दिन मैंने अपने मन की सारी बात एक अजनबी जिसे मैं जानता तक नहीं था उसके सामने उगल दी।
कई बार ऐसा होता है की अक्सर हम अजनबियों से वो बाते आसानी से कर पाते है जो हम अपने आप से भी नहीं कर पाते है। उस दिन मैंने भी ऐसा ही किया और एक अजनबी के सामने अपने मन की बात रख दी थी।
मेरे मन की बात सुनकर उसने मुझसे कहा, "ओह! मुझे बहुत खेद है की आप के साथ ये सब हुआ, लेकिन अब अगर मैं आप से ये कहूं कि भगवानने आपकी इच्छा सुन ली है तो?"
मैने पूछा, "क्या मतलब"?"
उसने उत्तर दिया, "मेरा नाम फातिमा है और मैं एक अंध विद्यालय में काम करती हूं। मैं वहां छात्रों को ब्रेल लिपि सिखाती हूं और मैं चाहती हूं कि आप हमारे उन छात्रो को संगीत का ज्ञान दे। हमारे छात्रों को संगीत की धुनों से परिचित कराने का हमारा एक छोटा सा प्रयास है। तो क्या आप हमारे इस प्रयास में हमारी मदद करेंगे? क्या आप हमारे छात्रों को संगीत सिखाएँगे? क्या आप हमारे छात्रों के संगीत गुरु बनना पसंद करेंगे?"
अचानक मुझे लगा कि किसीने मेरे हाथ में कोई बड़ा सा मिठाई का डिब्बा रख दिया है। मेरे मना करने का तो सवाल ही नहीं उठता था। अब तक मैं इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था और आज जब वह अवसर मेरे सामने आया तो मैं इतना मूर्ख तो न था कि जब लक्ष्मी स्वयं बिंदी लगाने आयी हो तो मुँह धो लूँ। तो मैंने तुरंत उनको हां कह दिया।
मैंने उनसे कहा, "हां, मैं आपके छात्रों को संगीत जरुर सिखाऊंगा। मैं आज अपने आप को बहुत भाग्यशाली महसूस करता हूं, कि आपने मुझे इतना अद्भुत अवसर दिया है। इस उत्तम कार्य के लिए मैं आपको जितना भी धन्यवाद दूं वो कम ही है। आप ये जो कार्य कर रही हो वह बहुत ही अच्छा है।"
आप नेत्रहीन लोगों के जीवन को सुरीला बनाने का काम कर रही है। और अगर मैं इसमें आपकी मदद कर सकूं तो इससे बेहतर चीज़ मेरे लिए और क्या हो सकती है? मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि भगवानने मुझे आज आपके रूप में आकर ये मौका दिया है। मैं उन सब सूरदास छात्रों को संगीत अवश्य सिखाऊंगा।"
हम दोनों ये सब बाते ही कर रहे थे तभी मेरे मम्मी पापा भी मेरे पास आ पहुंचे। उनके वहा आते ही मैंने उसे फातिमा से परिचय करवाया और जो भी बाते हमारे बीच हुई वो सारी बातें बताई।
मेरे माता-पिता यह सुनकर बहुत खुश हुए कि मुझे एक अंध विद्यालय में नौकरी मिल गई है।
दूसरे दिन से मेरा नए लोगों के साथ एक नया सफर शुरू होनेवाला था।
(क्रमश:)