Tamas Jyoti - 11 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 11

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तमस ज्योति - 11

प्रकरण - ११

उस दिन हमारे परिवार में सभी लोग बहुत खुश थे, क्योंकि रईश का एम.एस.सी. का रिजल्ट आया था और उसने टॉप किया था। 

थोड़े समय के बाद रईश अब अपनी पी.एच.डी. में प्रवेश की तैयारी में व्यस्त था। पी.एच.डी. में प्रवेश के लिए वो प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था। 

यदि वह इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है, तो उसका पी.एच.डी. में प्रवेश निश्चित ही था। और उसका पी.एच.डी. में दाखिला होते ही उसका आंखों पर रिसर्च करने का जो सपना था वो भी अब बहुत ही जल्द पूरा होगा। उसने पहले से ही अपने रिसर्च का विषय सोच रखा था, इसलिए फिलहाल वह अपना सारा ध्यान प्रवेश परीक्षा पास करने पर ही केंद्रित कर रहा था।

इस ओर मैं भी मैंने जो अपने मन में ठान लिया था वो बात अपने परिवार से साझा करनेवाला था।

मैंने अपने परिवार को अपने मन की बात साझा करते हुए कहा, "मम्मी पापा! वैसे तो ये विचार मेरे मन में बहुत समय से चल रहा था, लेकिन आज मैं इसे आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ। मैं आप लोगों से बहुत वक्त से ये बात करना चाहता था पर अब आज ये बात बताता हूं। जब भी मैं आप दोनो के साथ शो में आता हूं तब मैं आप दोनों जो भी गीत गा रहे होते हैं, उसे मैं बड़े ही प्यार से सुनता हूं।

जैसा कि आप सब जानते हैं, संगीतने मुझे हमेशा आकर्षित किया है और आज, जब मैं अपनी आंखो की वजह से कुछ और काम नहीं कर सकता तो मैंने सोचा, क्यों न मैं लोगों को संगीत के बारे में शिक्षित करूं? ये कैसा रहेगा अगर मैं अपने खुद के संगीत क्लास शुरू करु? 

देखिए न मेरी आंखे चली जाने की वजह से अब मैं रिसर्च तो नहीं कर पाऊंगा, रसायन विज्ञान में रिसर्च करने का मेरा जो सपना था वो तो अब कभी भी पूरा नहीं होगा, लेकिन मैं अपना सपना बदल भी तो सकता हूं न? अब मैंने ये नया सपना देखा है जिसे मैं अब साकार करना चाहता हूं। मेरा नया सपना उन छात्रों को संगीत का ज्ञान देना है जो संगीत में रुचि रखते हैं।

उनका जीवन संगीत के सूरो से भर दू, लेकिन पापा! मुझे इसके लिए आपकी मदद चाहिए। क्या आप मुझे हारमोनियम और तबला बजाना सिखाएँगे? मैं जानता हूँ कि आप एक उत्कृष्ट तबलावादक हैं। ये अलग बात है कि शो करते वक्त आपको वहा सिर्फ गाने का ही मौका मिलता है, लेकिन आपका सपना तो तबलावादक बनना ही था, है ना?"

मेरे पापा बोले, "हां बेटा! वही मेरा सपना था लेकिन हालात ऐसे थे कि मुझे तब केवल गाने का ही मौका मिला। तबला बजाने का नहीं। रोशन! तुम्हारा ये विचार बहुत ही अच्छा है। तुम लोगों के जीवन को संगीत से भरना चाहो और मैं इसमें तुम्हारी मदद न करूँ, ये तो हो ही नहीं सकता।"

तभी मेरी मम्मी बोली, "रोशन! बेटा! हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम संगीत की हमारी विरासत को  इस तरह आगे बढ़ाओगे। अब तक तो हम लोग यही चाहते थे कि तुम वैज्ञानिक बनो और रसायन विज्ञान में रिसर्च करने का जो सपना तुमने देखा था उसे पूरा करो। लेकिन प्रकृति की चालें भी कितनी अजीब होती है! किसने सोचा था कि तुम्हारी हालत ऐसी हो जाएगी और तुम...'' 
मैंने महसूस किया कि मेरी माँ की आवाज़ में यह कहते कहते मानो एकदम उदासी सी छा गई थी। 

मैं धीरे-धीरे अनुमान लगा रहा था कि मेरी माँ किस दिशा में है। जैसे ही मुझे समझ में आया मैं उसके पास गया और धीरे-धीरे मैंने उसका हाथ ढूंढने की कोशिश की और उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, "मम्मी! जो होना था वो तो अब हो ही गया है। अब परिस्थिति को स्वीकार करने के अलावा हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है।"

फिर धीरे-धीरे मैं मेरे पापा को ढूंढने की कोशिश करते हुए उनके पास गया और कहा, "पापा! क्यों न अब हम इस परिस्थिति से लड़ें और साहस के साथ इसका सामना करें? हमेशा ही बीती बाते याद करके दु:खी रहने से तो बेहतर है न की मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करू और मैं ऐसी चीजें करू जिसमें मैं आनंद का अनुभव करु।
मुझे संगीत में आनंद आता है इसलिए बहुत कुछ सोचविचार करने के बाद ही मैंने फैसला लिया है कि अब मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करूंगा और दूसरों के साथ खुशियां बांटने की कोशिश करूंगा और उसके लिए संगीत से बेहतर माध्यम मेरे लिए और क्या होगा?"

मेरी ये बात सुनकर मेरे पापा बोले, "आज मैं तुम्हारे जैसा बेटा पाकर अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूं। बेटा! मुझे तुम पर गर्व है रोशन!"
पापा की ये बात सुनकर रईश मजाक करते हुए तुरंत बोल पड़ा, "और मैं पापा! मुझ पर आपको गर्व नहीं है क्या?"

पापा बोले, "अरे! तुम पर भी गर्व है बेटा! इधर आ जाओ।" मेरे पापाने रईश को भी अपने पास बुलाया और हम दोनों को अपने गले लगा लिया और बोले, "तुम दोनों तो मेरे अनमोल रतन हो! बस! अब तो खुश न? रोशन! रईश! तुम दोनों तो मेरा गौरव हो।

मेरी मम्मी से हम दोनों की सफ़लता का सारा श्रेय मेरे पापा ले रहे थे वो सहा नहीं गया इसलिए वो भी बोल उठी, "और मेरे भी...तो रतन है ये दोनों समझे आप।"

तभी पापा भी बोले, "हा...हा...तेरे भी...है मेरी प्यारी मालती।" पापा की ये बात सुनकर हम सब हंस पड़े।

दूसरे दिन से मेरी ट्रेनिंग शुरू हुई। 

मेरे पापाने मुझे तबला और हारमोनियम का प्रशिक्षण देना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने मुझे हारमोनियम पर आरोह अवरोह बजाना सिखाया और फिर धीरे-धीरे अलग-अलग राग और सरगम सिखाए। मैंने हारमोनियम तो बहुत ही जल्दी सीख लिया। उसके बाद अब उन्होंने मुझे तबला सिखाना शुरू किया। उन्होंने मुझे विभिन्न तालों की समझ दी और तबले पर विभिन्न तालों को बजाना सिखाया। तीन अलग-अलग लय विलंबित, मध्यम और द्रुत लय में तबला बजाना सीखाया। कई बार द्रुत लय में बजाते समय मुझे तबला बजाने में बहुत ज्यादा ताकत लगानी पड़ती थी। हालाँकि मेरे हाथ दु:खने लगते थे, फिर भी मैं तबला बजाना जारी ही रखता था। मैं कभी भी हार नहीं मानता था। मैंने कुछ करने की ठान ली थी, इसलिए मैंने अपना प्रयास जारी रखा और एक दिन मैंने बहुत अच्छे से तबला बजाना सीख लिया।

मेरा ये प्रशिक्षण करीब एक साल तक चला। एक साल के बाद मैं छात्रों को तबला सीखा सकू उतना सक्षम हो गया था।

जिस दौरान मेरी ट्रेनिंग चल रही थी, उसी दौरान रईश को गुजरात यूनिवर्सिटी में ही पी.एच.डी. में दाखिला भी मिल गया। जानवरों की आंखों पर रिसर्च करने का उसका सपना अब सच होने वाला था। रईश अब अपनी आगे की पढ़ाई के लिए एकबार फिर से अहमदाबाद चला गया।

जीवन में जब खुशियां आती हैं तो चारों तरफ से एक साथ आती है। 

एक दिन मेरे पिताजीने मुझसे कहा, "बेटा! अब तुम इतना तो सीख ही गए हो कि अब तुम दूसरों को भी ज्ञान दे सकते हो। अब तुम जब भी चाहो तब अपने संगीत के वर्ग शुरू कर सकते हो।"

ये सुनकर मैंने कहा, "हाँ पापा! मैं भी आज आपको यही बात बतानेवाला था। लेकिन हम ऐसा क्या करे जिसकी वजह है हमें छात्र मिल सकें?" 

मेरे इस सवाल का जवाब मेरे पापा के बदले  दर्शिनीने दिया।

(क्रमश:)