Saathi - 8 in Hindi Love Stories by Pallavi Saxena books and stories PDF | साथी - भाग 8

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साथी - भाग 8

भाग -8

उस रोज तेज बारिश के कारण और आस पास से निकलती हुई गाड़ियों के तेज हॉर्न के कारण मुझे पूरी बात सुनाई ही नहीं दी मुझे केवल दुर्घटना ही सुनाई दिया और यह शब्द सुनकर मैं और भी ज्यादा घबरा गया था. तो मैंने उस व्यक्ति की पूरी बात ही नहीं सुनी और उस पर चिल्लाने लगा फिर जब उसने मुझे तुम्हारे जीवित होने का आश्वासन दिया तब कहीं जाकर मेरी जान में जान आयी.

मेरे जीवित होने का आश्वासन ...मतलब ? अरे बाबा, फोन मिलने से पहले तक तो मैं यही मानकर चल रहा था ना कि फोन तुम्हारा है तो दुर्घटना भी तुम्हारे ही साथ हुई है. ओह...! अच्छा, फिर उस भले आदमी ने मुझे तुम्हारे ही नंबर से अस्पताल की लोकेशन भेजी और मैं पागलों की तरह भागा -भागा वहाँ पहुंचा और तब मुझे पता चला कि वह तुम नहीं हो. मैं बता नहीं सकता कि मई उस वक्त किसी हालत में था. लेकिन फिर उसे देखने के बाद जब यह एहसास हुआ कि वो तुम नहीं हो, तब मैंने राहत की सांस ली कहते हुए पहले वाला रसोई की ओर बढ़ गया. उसे वहाँ जाते देखकर घर के नौकर ने आगे बढ़कर वहाँ जाना चाहा तो पहले वाले ने मुसकुराकर हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा 'नहीं आज चाय मैं बनाऊँगा तुम जाओ और जाकर नाश्ते की व्यवस्था करो'.

इतने में दूसरे वाले ने भी पहले वाले के पीछे आते हुए कहा, फिर ....? फिर मतलब ...? अरे फिर मतलब फिर क्या हुआ ...? कहते हुए वह चाय बनाने हेतु सामग्री ढूँढने लगा. क्या ढूंढ रहे हो ...? चाय का समान चाय बनाना है ना...! अरे मैंने कहा ना आज चाय मैं बनाऊँगा ,जी नहीं...! क्यूँ ...? तुम सिर्फ यह बताओ कि फिर आगे क्या हुआ. फिर होना क्या था उसने मुझे तुम्हारे विषय में थोड़ी जानकारी दी कि कैसे तुम उसको मिले. और कैसे फिर एक दिन तुमने शराब के बदले उसे अपना फोन दिया और हाँ वो जादुई नंबर वाली बात, का जिक्र आते ही दोनों बहुत ज़ोर- ज़ोर से हँसने लगे, तब पहले ने किसी तरह खुद को संभालते हुए दूसरे से पूछा यह क्या था भाई....? जादुई नंबर ...और फिर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा. हाँ तो और क्या कहता यार, अगर मैं उससे उस वक्त ऐसा नहीं कहता तो वह यह मोबाइल कब का बेच बाँचकर सारे पैसे दारू में उड़ा चुका होता. इसी जादुई नंबर के चलते उसने यह फोन नहीं बेचा. खैर वो सब छोड़ो और एक बात बताओ पहले वाले चाय बनने रखते हुए कहा, तुम्हें इतना विश्वास था इस बात पर कि चाहे जो हो जाये मैं तुम्हारा नंबर रिचार्ज करवाऊँगा ही करवाऊँगा…?

तब दूसरे ने मुसकुराते हुए कहा 'वेल....! देख लो मैंने तुम पर हमेशा खुद से ज्यादा विश्वास किया था और आज भी करता हूँ'. इतने में नौकर ने मेज पर नाश्ता लगा दिया और तब तक इनकी चाय भी बनकर तैयार हो गयी थी. फिर दोनों ने कई साल बाद एक साथ बैठकर नाश्ता किया. फिर पहले ने दूसरे से पूछा तुम्हारी कहानी यहाँ तक कैसे पहुंची ...? अब फ़्लैशबैक में जाने की बारी दूसरे वाले की थी उसने भी शून्य में देखते हुए अपनी कहानी बताना शुरु किया तुम्हारे जाने के बाद तो जैसे मेरा दिल ही टूट गया था. उस पल मुझे ऐसा लगा जैसा मेरा सब कुछ खत्म हो गया, मानो जीने के लिए अब कोई वजह ही नहीं बची मेरे जीवन में और बस इसी दुख में मैंने खुद को शराब में डुबो दिया और फिर एक दिन ऐसा आया कि शराब ने मुझे डुबो दिया.

मुझे पीने की लत ऐसी लगी कि सबसे पहले मैंने अपना घर बेच दिया, फिर गाड़ी बेच दी, जुआ खेला, सट्टा खेला, और भी न जाने क्या क्या किया. फिर एक दिन मेरी उस व्यक्ति से भेंट हुई जिसे मैंने यह मोबाइल दिया था और बदले में ना जाने क्यूँ, उस रोज उसने मुझे ना सिर्फ दारू पिलाई, बल्कि मुझे एक लॉटरी का टिकट भी दिया. हम लोग बाद में भी मिलते रहे, फिर शराब का अधिक सेवन करने के कारण मेरी सेहत ने जवाब देना शुरु कर दिया. तब उस भले आदमी ने मुझे न जाने क्या सोचकर नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करा दिया और फिर वहाँ मैंने खुद को नशा मुक्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया और फिर आगे कि कहानी तो तुम को पता ही है. मैं तुम्हारे सामने हूँ वो भी ज़िंदा और दोनों आँखों में नमी लिए मुसकुरा दिये और उसकी यह बात सुनकर पहले ने एक बार फिर दूसरे को कसकर अपने गले से लगा लिया. फिर दूसरे वाले ने पहले वाले से पूछा और क्या क्या बताया उसने तुम्हें मेरे बारे में...!

तब पहले ने कहा बताऊँगा, सब बताऊंगा, एक-एक करके जल्दी क्या है ? हम्म....! जल्दी तो कौई नहीं है. लेकिन जिस बन्दे को मैंने यह दिया था ना उसने मुझे एक टिकट दिया लॉटरी का और उसकी लॉटरी खुल भी गयी थी. मैंने उसे यह बताने के लिये कई बार फोन भी किया. मगर उसने फोन ही नहीं उठाया. बस इसलिए पूछा. अब वो व्यक्ति इस दुनिया में नही है. क्या ....? हाँ....! तुम्हें कैसे पता....? क्योंकि उसी ने मुझे यह फोन दिया था और तुम्हारे बारे में बताया था, करते हुए पहले ने दूसरे को सारी कहानी सुना दी. दूसरे ने पहले का अपने प्रति प्यार देखते हुए उस अपने गले से लगा लिया और फिर कैसे एक समाज सेवक के रूप में अपने ही जैसे लोगों के लिए बनी संस्था से जुड़कर उनके लिए काम करना प्रारम्भ किया, आदि...!

फिर उसने बताया कि वो ना सिर्फ ऐसे लोगों के लिये काम करता है जो समलैंगिक होने के कारण समाज और दुनिया से डरते है और चाहकर भी अपने “साथी” के साथ नही जी पाते. बल्कि वह एसे लोगों के लिए भी काम करता है जो कि पुरुष भी काम पाने के लिए (कास्टिंग काउच) का शिकार बन जाते है और फिर निर्माता और निर्देशक कैसे अपने मतलब के लिये एसे पुरुषों का शोषण करते है और फिर बदनामी के डर से डराकर, उन्हें कही काम नही करने देते और स्त्रियों की ही भांति उन्हें भी एक तरह की (वैशयावर्ती) या देह व्यापार में हमेशा के लिए धकेल दिया जाता है. परंतु चुंकि वह एक पुरुष होते है. इसलिए यह समाज उनकी बात पर विश्वास नहीं करता और उनका मज़ाक उड़ाता है और इस हद तक उड़ाता है कि उन बेचारों  के पास आत्महत्या के अतिरिक्त और कोई दुसरा विकल्प ही नहीं बचता.

ऐसा सब कहते हुए दूसरे वाले की आँखों से आँसू बह निकले. तब पहले ने दूसरे को संभाला और उसके इस काम की सराहना भी की और जो भी संभव हो वह सहयोग और सहायता करने का वादा भी किया.

यह एक बहुत बड़ा जाल है, इसे रोकना होगा पर यह इतना आसान नहीं है. पहले देह व्यापार जैसा शब्द केवल स्त्रियां के लिए ही उपयोग किया जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं है और यह सब बहुत भयावह है न बच्चे बच्चियाँ सुरक्षित है न स्त्री और पुरुष सुरक्षित है यह सब विपरीत लिंग की ही बात नहीं है बल्कि समलैंगिक लोगों की स्थिति तो और भी बुरी है इसलिए तो उन्होने अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए यह LGBTQIA+ नामक समुदाय बनाया इसके बावजूद भी उनकी जीवन के संघर्ष इस समाज में जिंदा रहने के लिए कम नहीं है. तो फिर देह व्यापार में धकेले गए लोगों के विषय में सोचने पर तो मेरी रुह काँप जाती है. इसलिए मैंने यह निर्णय लिया की समाज सेवा के माध्यम से मैं ऐसे लोगों से मिलकर उनकी जो भी जैसी भी सहायता कर सकूँ करूंगा. और जब तक ज़िंदा हूँ करता रहूँगा....!!!!

क्या दूसरे वाले की जीवन की सच्चाई बस इतनी सी ही है या और भी कुछ ऐसा है जो वह पहले वाले से छिपा रहा है... जानने के लिए जुड़े रहें 

जारी है...