Savan ka Fod - 7 in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सावन का फोड़ - 7

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सावन का फोड़ - 7

लागातार हो रहे अनाउंसमेंट को अनसुना करते हुए सन्त समाज आगे बढ़ गया फिर भी सन्त समाज के मन मे बच्चे के प्रति एक भावनात्मक लगाव हो चुका था संत समाज के प्रमुख सन्त थे पुरेश्वर और शेष कार्तिकेय रमेश एव सत्यानन्द सबकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी एक बार सन्त समाज ने अपने निर्णय पुर्नविचार करने एव बच्चे को साथ ले चलने का विचार बनाने लगा लेकिन प्रमुख सन्त पुरेश्वर ने सभी सन्तो से कहा हम लोग सन्त है हम ईश्वर के अस्तित्व एव उसकी सत्यता पर विश्वास करते है हमी लोंगो के कहने पर शास्त्रों के दर्शन कि वास्तविकता को आम जन स्वीकार करता है जो धर्म एव आचरण कि संस्कृति संस्कार है और हम स्वंय इस धर्म मर्म आचरण कि संस्कृति संस्कार से विमुख हो जाए तो धर्म का अस्तित्व एव विश्वास आम जनता से ही उठ जाएगा क्योकि हम लोग आज भगवान शिव के सत्य स्वरूप पशुपतिनाथ जी कि पावन भूमि पर है अभी अभी हम लोग उन्ही का अभिषेक पूजन करके आ रहे है जब हम लोग पूजन हेतु मंदिर गर्भ गृह में प्रवेश कर रहे थे तभी बच्चा हम लोंगो से बिछड़ा है सम्भव है भगवान पशुपतिनाथ कि विशेष कृपा उस बच्चे अपने ब्रह्मांड कि एक संतान पर हो पुरेश्वर कि बात को मान कर सन्त समाज अपने अगले पड़ाव को चल पड़ा ।
माधवी एव सिद्धार्थ अपने काठमांडू के सप्ताह भर के प्रवास के दौरान प्रतिदिन बच्चे को लेकर नेपाल के प्रशासनिक अधिकारियों से उसके माँ बाप तक पहुंचाने कि गुहार लगाते किंतु किसी भी व्यक्ति ने बच्चे के विषय मे कोई दावा प्रस्तुत नही किया अंत मे सिद्धार्थ एव माधवी ने नेपाली कानून के अनुसार सभी औपचारिकताए पूर्ण करते हुए एव इस बात का अंडरटेकिंग देते हुए कि बच्चे के विषय मे जब भी कोई दावा प्रस्तुत करेगा उसे सौंप देंगे सभी औपचारिकताए पूर्ण किया औपचारिकताए पूर्ण होने के उपरांत बच्चे को लेकर सिद्धार्थ एव माधवी चल पड़े चलते चलते माधवी ने कहा सिद्धार्थ इस बार जब हम लोग मास्को से कलकत्ता जब पहुंचे थे और कालीघाट एव दक्षिण काली मंदिरों में माँ के दर्शन करने गए थे तभी दर्शन करते समय मेरा आँचल माँ के चरणों मे अपने आप गिर गया हम लोंगो ने तो इस साधारण सी बात पर कोई ध्यान नही दिया किंतु वहाँ के पुजारियों ने एक ही बात कही थी बेटी तुम्हारा आँचल वात्सल्य कि ममता का आँचल बनने वाला है जब तुमने पुजारियों को बताया कि गम्भीर दुर्घटना में घायल होने पर मेरी कोख निकली जा चुकी है और मैं कभी माँ नही बन सकती तब भी दक्षिण काली के पुजारी एव काली घाट के पुजारियों ने कहा था कि माँ के दरबार मे असम्भव कुछ भी नही और हम लोग कलकत्ता से सीधे पशुपतिनाथ ही आए है और यहां से मास्को चले जायेंगे कही यह बच्चा माँ काली एव पशुपतिनाथ का आशीर्वाद तो नही है सिद्धार्थ ने पत्नी माधवी से कहा इस तरह कि तकिया नुकुसी बातों में क्यो पड़ती हो यह मत भूलो कि जब भी इस बच्चे के असली मां बाप दावा करेंगे तुम्हे इसे लौटाना होगा यह तुमने ही लिख कर दिया है.माधवी ने पति सिद्धार्थ से कहा जो भी हो जब तक हमारे पास यह बच्चा रहेगा मेरी तपती ममत्व को शीतलता ही प्रदान करेगा ।सिद्धार्थ और माधवी अपने होटल लौट आए क्योकि इस बार उनके भारत दौरे के सभी उद्देश्य पूर्ण हो चुके थे और दूसरे दिन उन्हें मास्को कि फ्लाइट काठमांडू से ही पकड़नी थी
सिद्धार्थ माधवी बच्चे को लेकर होटल के कमरे में दाखिल हुए सिद्धार्थ तो कपड़े चेंज करके सो गया दिन के लगभग चार बज रहे थे लेकिन माधवी अपने बगल में बच्चे को सुला दिया और उसे निहारती रही माधवी के मन विचार में ममत्व हिलोरे मार रही थी और वह बच्चे को एकटक निहारती जा रही थी वह पूरी कोशिश करती कि उसकी पलक ना झपके निरंतर बच्चे को निहारे ही जा रही थी उसके अन्तर्मन में मम्मत्व ने इस कदर हिलोरें ले रही थी कि उसकी चोली उसके स्तनों से निरंतर निकलती दूध कि धार से भीग गयी दूध की बूंदे सोए पति सिद्धार्थ पर भी पड़ी एकाएक सिद्धार्थ नीद से जगा और देख कर हतप्रद हो गया कि माधवी किसी पत्थर कि मूरत कि तरह सिर्फ सोए बच्चे को निहारती जा रही थी और उसके पलक झपकने का नाम ही नही ले रहे थे।