Ardhangini - 39 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 39

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 39

अपनी दोनो भाभियो नेहा और सुरभि के साथ मैत्री हाथो मे वरमाला लिये धीरे धीरे स्टेज की तरफ बढ़ रही थी... मैत्री को उस खानदानी साड़ी मे सजा संवरा देखकर ज्योति से रहा नही गया और वो धीरे धीरे चलकर मैत्री के पास जाने लगी... वैसे तो मैत्री बहुत घबरायी सी, शर्मायी सी नीचे की तरफ ही देख रही थी लेकिन बीच बीच मे वो नजरे ऊपर करके आसपास देख लेती थी.. ऐसे ही जब उसने अपनी शर्मायी हुयी नजरो को एक बार ऊपर उठाया तो उसने देखा कि उसकी ननद ज्योति बहुत ही खुश होकर हंसते हुये उसकी तरफ आ रही है... ज्योति को देखकर मैत्री की आंखो मे जैसे चमक सी आ गयी... और वो अपनी घबराहट और शर्म को थोड़ी देर के लिये भूलकर ज्योति को देखकर मुस्कुराने लगी...

मैत्री के पास आकर ज्योति ने कहा- नमस्ते भाभी... भाभी आज आपको देखकर मेरे पास कोई शब्द ही नही है जिससे मै आपकी खूबसूरती की तारीफ कर सकूं....  ये खानदानी साड़ी पहन कर जो सम्मान आपने मम्मी और दादी की भावनाओ को दिया है उसका कोई मोल नही है... वो अनमोल है...

अपनी बात कहते कहते ज्योति ने सबके सामने अपने हैंडबैग से पांच सौ का नोट निकाला और मैत्री के ऊपर से न्योछावर करके पास ही खड़ी नाउन को दे दिया... इधर मैत्री जो ज्योति को वैसे ही बहुत पसंद करती थी... उसको ये सब करते देख मैत्री के दिल मे एक अलग ही जगह बन रही थी ज्योति के लिये और पिछली स्याह जिंदगी से जुड़ी ननदो के बारे मे जो सोच मैत्री के दिल मे थी वो भी ज्योति के लिये लगभग बदल चुकी थी... मैत्री ने अपने मन को समझा दिया था कि "नही... कोई इतना दिखावा नही कर सकता, ये जो ज्योति ने अभी किया वो सच्चे दिल से उसका खुद का स्वभाव अच्छा होने के चलते किया" 

ज्योति ने जो कुछ भी किया वो मैत्री के साथ स्टेज की तरफ जा रही नेहा, सुरभि और पास ही खड़ी सरोज और सुनीता को भी बहुत अच्छा लगा... इसके बाद मैत्री धीरे धीरे चलकर फिर से स्टेज की तरफ जाने लगी... मैत्री भले सिर झुकाये हुये स्टेज पर आ रही थी पर जतिन की प्यार भरी नजरें उसे एकटक देखे जा रही थीं...  मैत्री जैसे जैसे जतिन के पास आ रही थी उसके दिल मे एक अजीब सी बेचैनी सी हो रही थी.. ऐसा लग रहा था मानो उसके दिल मे मैत्री के लिये उसका प्यार उमड़ उमड़ के मैत्री को अपने रंग मे रंगने के लिये बेताब था....

मैत्री के जतिन के पास आते ही दोनो परिवारो के रिश्तेदार स्टेज पर आकर खड़े हो गये.... बड़े हर्षोल्लास के माहौल मे जयमाल का कार्यक्रम शुरू हुआ... शादी का माहौल हो और लड़के की तरफ से उसके साथ के कज़िन वगैरह शैतानी ना करें ऐसा कैसे हो सकता है...  जैसे ही मैत्री ने जतिन को जयमाल पहनाने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाया  जतिन के कज़िन्स ने उसको थोड़ा ऊपर उठा लिया... चूंकि जतिन की हाइट जादा थी और मैत्री की कम तो वो वैसे ही जतिन के सिर तक नही पंहुच पा रही थी ऊपर से जतिन के कज़िन्स ने मिलकर उसे ऊपर उठाया तो वो और लंबा हो गया तो मैत्री ने सिर झुकाये हुये ही अपने हाथ नीचे कर लिये और चुपचाप खड़ी हो गयी... इधर जतिन जो मैत्री के हर हाव भाव पढ़ रहा था और उसकी मनस्थिति को समझ रहा था उसे बिल्कुल भी अंदाजा नही था कि स्टेज पर खड़े उसके चचेरे ममेरे भाई उसे इस तरह से ऊपर उठा देंगे.... मैत्री जब अपना हाथ नीचे करके खड़ी हो गयी तो जतिन ने पीछे मुड़कर अपने भाइयो से बड़े ही प्यार से थोड़ा सीरियस लहजे मे कहा- नही ये सब मत करो.... जतिन के ऐसा कहने पर उसके भाइयो ने अपने हाथ पीछे खींच लिये... इसके बाद बिना शैतानियो के खुशनुमा माहौल मे मुसकुराते हुये जतिन ने मैत्री को वरमाला पहनायी.... इसके बाद मैत्री ने भी जतिन को वरमाला पहनाई और ऐसे जैसे जतिन को शुभकामनाएं दे रही हो मैत्री जतिन को देखकर बहुत ही प्यार से मुस्कुराई और फिर से अपना सिर झुका लिया.... जैसे ही जतिन और मैत्री ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई वैसे ही वहां खड़े सारे लोगो ने मुट्ठी भर भर के दोनो पर फूलो की बरसात कर दी.... तालियो और उल्लास के शोर के बीच जतिन और मैत्री के इस जीवन भर के प्रेम गठबंधन की पहली रस्म पूरी हो गयी थी.... जयमाल होने के बाद स्टेज के पास ही खड़े जतिन के मम्मी पापा बबिता और विजय दोनो बहुत खुश होते हुये स्टेज पर खड़े जतिन और मैत्री के पास जाने लगे तो उन्हे अपनी तरफ आते देख सिर झुकाये खड़ी मैत्री ने उन्हे देखकर बड़ी ही प्यारी मुस्कान अपने चेहरे पर लिये हुये उनसे सिर झुकाकर नमस्ते करी... और जब वो दोनो जतिन और मैत्री के पास पंहुच गये तो जतिन और मैत्री दोनो ने उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया.... इधर ज्योति और सागर समेत मैत्री के घरवालो ने जिनमे मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद, मम्मी सरोज, चाचा नरेश, चाची सुनीता समेत राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि ने बड़े प्यार से जतिन और मैत्री को शुभकामनाएं देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना करी.... इसके बाद जतिन और मैत्री के घरवालो समेत सारे रिश्तेदारो की फोटो खिंचाने की रस्म पूरी की गयी... जैसे जैसे समय बीत रहा था वैसे वैसे शादी मे आये दोनो तरफ के रिश्तेदार खाना खा कर धीरे धीरे अपने अपने घर जा रहे थे.... जतिन की तरफ के जादातर रिश्तेदार खाना खाकर वापस जनवासे मे आराम करने चले गये थे.... भीड़ काफी कम हो गयी थी..... खाना वाना खाने के बाद देर रात शुभ मुहुर्त मे अब बारी थी जतिन और मैत्री के सात फेरों की.... वो सात फेरे जो जतिन और मैत्री को सात जन्मो के पवित्र बंधन मे बांधने वाले थे....

मैत्री का खुद का मन भले अतीत की कड़वी यादों की वजह से बहुत भारी था लेकिन जिस तरह से जतिन और उसके परिवार के मैत्री से पहली बार मिलने के बाद से चीजें बहुत ही अच्छे तरीके से चल रही थीं उन्हे देखकर ऐसा लग रहा था कि भगवान से भी मैत्री का कष्ट देखा नहीं गया और शायद इसीलिये सब कुछ अपने आप होता चला गया और तमाम मानसिक और शारीरिक कष्टों के बाद आखिरकार मैत्री को ऐसा जीवनसाथी मिल ही गया जो उसके बोलने से पहले ही उसके मन की बात समझ जाता है!!

कहते हैं कि जोड़ियां भगवान खुद बनाते हैं और जिस तरह से जतिन और मैत्री मिले और आज पवित्र सात फेरों के बंधन में वो बंधने जा रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि वाकई भगवान ने ये जोड़ी.... खुद अपने हाथों से बनायी है!!

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पवित्र अग्नि के पवित्र सात फेरो के पवित्र सात वचन जतिन और मैत्री किस तरह से लेते हैं.... जानने के लिये पढ़ें अगला भाग.... बहुत जल्द!!

क्रमशः