संडे की दोपहर । प्रमोद जी एक रिश्तेदार आपके यहां जाने के लिए मेट्रो में चढ़े।
अमूमन हर समय खचाखच भरी रहने वाली मेट्रो आज संडे का दिन और दोपहर होने के कारण खाली पड़ी थी।
हां सीटों पर लोग बैठे थे।
प्रमोद जी ने सीट खोजने के लिए इधर-उधर नजर दौड़ाई तो उन्हें एक सीट खाली नजर आई और वह तेजी से जाकर उस सीट पर बैठ गए।
गर्मी के दिन थे। कुछ देर तो उन्हें अपनी ऊपर नीचे चलती सांसों को सही करने व पसीने सुखाने में ही लग गई।
फिर थोड़ा अपने आसपास के लोगों पर गौर किया। सभी अपने मोबाइल में व्यस्त थे।
तभी उनकी नजर अपने सामने वाली सीट पर बैठे अपने एक हमउम्र शख्स पर पड़ी। वह उन्हें कुछ जाना पहचाना सा नजर आया।
जाना पहचाना तो लग रहा था लेकिन कौन था यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था। काफी देर दिमाग दौड़ाने के बाद
उनकी आंखें चमक उठी। अरे यह तो सुधीर है।।
इतनी देर में ही अगला स्टेशन आया और सुधीर के साथ बैठा व्यक्ति उठ गया जैसे ही जगह खाली हुई प्रमोद जी उसके पास जाकर बैठ गए और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले
"फोन में ही घुसा रहेगा। जरा अपने आसपास भी देख ले!!"
जानी पहचानी आवाज सुनकर सुधीर ने नजर ऊपर उठाई और वह भी प्रमोद जी को पहचानने की कोशिश करने लगा
"अब आंखें फाड़े देखता ही रहेगा। मैं प्रमोद भूल गया क्या!!"
"ओ प्रमोद । अरे यार तुझे कैसे भूल सकता हूं लेकिन....."
"लेकिन क्या.... पता है मुझे फोन में... तू यूं ही नहीं घुसा होगा। अब भी लगा होगा अपनी तीन तेरह करने में।।"
"अरे कहां यार !! कितने साल हो गए एक दूसरे को देखे। बालों में सफेदी आ गई मुंह पर झुर्रियां पड़ गई समय तो लगता है ना पहचानने में।।
और बता इस समय कौन से स्कूल में है!! घर तो तूने पश्चिम विहार में लिया था ना!! और दोनों बच्चे पढ़ रहे हैं या सेटल हो गए!!" सुधीर ने एक सांस में ही प्रमोद से सारे सवाल पूछ डालें।
" स्कूल वहीं घर के पास है और हां दोनों बच्चे सेटल हो गए। बेटी लेक्चरर है और बेटा इंजीनियर ।
तुम सुनाओ प्रमोशन ली या नहीं और तुम्हारे दोनों बच्चे क्या कर रहे हैं।" प्रमोद जी ने सुधीर से पूछा।
" नहीं यार प्रमोशन नहीं ली। तुम्हें पता है ना... अपना तो काम ही ऐसा है ।प्रमोशन लेकर गुजारा नहीं था।।"
"अच्छा महाशय अभी भी ट्यूशन दे रहे हैं!!" प्रमोद हंसते हुए बोला।
"बस आदत सी हो गई है। खाली नहीं बैठ जाता।।"
"हां वह तो है मैं भी सोच रहा हूं कि रिटायरमेंट के बाद जरूरतमंद बच्चों को कोचिंग दूं लेकिन मुफ्त....!!"
" तू भी सरकार की तरह मुफ्त बांटने चला है !! अरे कुछ भी मुफ्त करेगा । लोग तुझे पागल समझेंगे।।
अपना समय देगा अपना ज्ञान देगा वह भी मुफ्त में...!!
मेरी मान रिटायरमेंट के बाद अपना कोचिंग सेंटर खोले।
तेरे स्कूल के ही बच्चे तेरे पास बहुत आ जाएंगे बाहर वालों की तो जरूरत ही नहीं....!! वैसे मैंने तो तुझे इतनी पहले ही कोचिंग देने की सलाह दी थी। "
सुधीर प्रमोद को समझाते हुए बोला।।
" अरे नहीं नहीं यार!! पूरी जिंदगी नौकरी कर ली। पैसे के पीछे जब जरूरत थी , मैं तब नहीं भाग अब तो भगवान की दया से... खूब मौज है।
चल छोड़ इन बातों को अभी तो रिटायरमेंट में तीन-चार साल पड़े हैं।
वैसे तूने बताया नहीं तेरे बच्चे क्या कर रहे हैं!!"
प्रमोद ने बात बदलते हुए कहा।
" कुछ बताने का हो तो बताऊं ना !!"
कहते हुए सुधीर का चेहरा थोड़ा गंभीर हो गया।
" मैं समझा नहीं!!"
" तुझे तो पता ही है बड़े वाले का मन कभी पढ़ाई में लगा नहीं।। 12th में उसकी इतने अच्छे नंबर आए नहीं की किसी अच्छे कॉलेज या किसी कोर्स में उसका एडमिशन होता। किसी तरह बाहर से उसे बी एड करवाया लेकिन अब टीचिंग लाइन में भी बहुत कंपटीशन है।
सीटेट एग्जाम क्लियर नहीं हुआ उससे । वह भी अब मेरे साथ ही कोचिंग में छोटी क्लासेस को पढ़ाता है ।
छोटे से उम्मीद थी। इंजीनियरिंग में एडमिशन भी हो गया था लेकिन वहां जाकर गलत संगति में पड़ गया और फिर
कुछ दिनों बाद ही सब कुछ छोड़-छाड़ कर वापस घर आ गया..... पता नहीं क्या सोच रखी है उसने....!! कुछ कहूं तो खाने को दौड़ता है!!
पता नहीं यार पिछले जन्म में क्या पाप किए थे जो इस जन्म में मेरे आगे आ रहे हैं!!"
कहते हुए सुधीर के चेहरे पर दर्द की अनगिनत रेखाएं खिंच आई।
सुनकर प्रमोद को बहुत दुख हुआ वह अभी कुछ कहता इससे पहले ही.....
अगला स्टेशन पटेल चौक..... की उद्घोषणा हो गई।
सुनते ही सुधीर ने प्रमोद की तरफ देखा और बोला "चलो यार चलता हूं । अपना स्टेशन तो आ गया।।
कभी समय मिले तो घर जरूर आना।।"
"हां हां बिल्कुल । तुम भी आया करो उधर कभी।।"
सुन सुधीर ने हां में गर्दन हिलाई और फिर दोनों दोस्तों ने हाथ मिलाया।
मेट्रो रूकी और सुधीर उतर गया।
सुधीर तो चला गया लेकिन प्रमोद उसके जाने के बाद भी काफी देर तक उसके बारे में ही सोचता रहा......
प्रमोद की पहले जॉइनिंग जिस स्कूल में हुई थी उसमें सुधीर पढ़ाता था।
यह एक प्राइमरी स्कूल था। छोटा सा स्कूल और छोटा सा स्टाफ । उस स्कूल में ज्यादातर स्लम एरिया के बच्चे आते थे।
प्रमोद और सुधीर दोनों हम उम्र थे इसलिए दोनों की दोस्ती भी हो गई ।
सुधीर हंसमुख स्वभाव का था सभी से मिलजुल कर रहता।
लेकिन प्रोफेशनल लाइफ में वह उतना सिंसियर ना था। कभी भी स्कूल टाइम पर नहीं आता और जाने की उसे सबसे ज्यादा जल्दी रहती ।
इसका कारण बाद में प्रमोद को पता चला कि सुधीर
बड़ी क्लास के बच्चों को होम ट्यूशन देता है।
उनका स्कूल हेडमास्टर काफी बड़ी उम्र का था। वह हमेशा सुधीर को समझाते हुए कहता
"सुधीर, तुम जो यह तनख्वाह ले रहे हो ना जिससे तुम्हारा घर चल रहा है । बच्चे बड़े स्कूल में पढ़ रहे हैं। वह इन गरीब बच्चों के कारण ही है ।
लेकिन ना तो तुम कभी स्कूल में समय पर आते हो और आने के बाद ना कभी इन बच्चों को ढंग से पढ़ाते हो।
स्कूल के बाद तुम क्या करते हो कहां जाते हो। इससे मुझे कोई मतलब नहीं लेकिन उम्र व ओहदे में बड़े होने के नाते मैं तुम्हें एक सलाह दूंगा कि 5 घंटे स्कूल में रहते हो तो कम से कम 3 घंटे इन बच्चों को पढ़ाओ । जिससे इनका भविष्य संवरे । इनके मां-बाप के दिल से निकलने वाली दुआएं पैसों से बढ़कर होगी तुम्हारे लिए लेकिन अगर इन गरीबों का हक मारोगे तो वो हाय आज नहीं तो कल.... आगे तुम खुद समझदार हो।।"
सुधीर सुनकर कुछ दिन तो उनकी बातों पर अमल करता लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।
वह प्रिंसिपल रिटायर हुए दूसरे आए फिर तीसरे लेकिन सुधीर नहीं सुधरा।
उसने प्रमोशन भी नहीं ली क्योंकि बड़े स्कूल में जाकर जिम्मेदारी ज्यादा होती और यहां वह खुद सीनियर हो गया था इसलिए कोई जल्दी से उसे कुछ कहता भी नहीं।
और इधर जैसे ही प्रमोद की प्रमोशन आई वह प्रमोशन लेकर हायर सेकेंडरी स्कूल में चला गया और उसके बाद घर भी बदल लिया और फिर सभी अपनी अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गए।।
लेकिन आज सुधीर से मिलकर उसे अपने पहले प्रिंसिपल की सीख याद आ गई......
सोचते हुए प्रमोद के मन में एक ही विचार बार-बार आ रहा था....
सुधीर यह तुम्हा
रे पिछले जन्म का नहीं..... इसी जन्म का फल है।
काश.... तुमने सर की बात मानी होती....!!
सरोज ✍️