Swayamvadhu - 12 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 12

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स्वयंवधू - 12

वृषाली ने थोड़ी बातचीत के बाद गंभीरता से कहा,

"भैय्या अगर आप थके हुए नहीं है तो क्या आप हमारे साथ ऊपर चल सकते है?",

"क्या हो गया?", सरयू ने पूछा,

"सारी बात यहाँ नहीं हो सकती।", दिव्या ने कहा,

"रास्ता साफ है।", प्रांजली ने इधर-उधर देखकर कहा,

हम सब ऊपर गए, वृषाली ने धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला और वहाँ स्तब्ध खड़ी रही फिर कहा,

"वो भाग गया-",

"कैसे?", साक्षी ने भी अंदर जाकर देखा,

"पर मैंने उसे कसकर बाँधा था।", प्रांजली ने कहा,

"सुबह तक का तो वो यही था।", दिव्या ने कहा,

"हाँ, मैंने भी तुम्हारे साथ उसे यहाँ देखा था। आखिर वो भागा कैसे?!", प्रांजली ने गुस्से में कहा,

"आखिर यहाँ हुआ क्या था?", सरयू ने तंग आकर पूछा,

"तुम सब अंदर जाकर सारी बात स्पष्टता से कहो।", मैंने कहा,

"एक मिनट, आप सब अंदर जाइए मैं अभी आई।", वृषाली भागकर अपने कमरे से टैब लेकर आई।

कमरे में देखने पर सब बिखरा हुआ था। सारी फाइले इधर-उधर बिखरी पड़ी थी, लैपटॉप टूटा हुआ था, पेनड्राइव टूटी हुई थी, कुर्सी कमरे के दूसरी तरफ फिकी हुई थी। (पता नहीं मेरी सारी योजनाएँ, कागज़तो के साथ क्या हुआ होगा?)

"सारी फ़ाइलें सुरक्षित हैं वृषा।", वृषाली ने कहा,

"यहाँ हुआ क्या था?", मुझे अब सब जानना होगा,

"उससे पहले मैं आपको यह दिखाना चाहती हूँ। यह इंजेक्शन! हुआ ये कि...",

जैसे वृषाली ने कहा कल रात को, जब वो पानी लेने रसोई में जा रही थी तभी उसने देखा कि कोई सीढ़ी के उधर, सरयू के पीछे खड़ा था और उसके हाथ में कुछ छोटी चीज़ थी जो दूर से दिखी नहीं पर पकड़ने के ढंग से वो चाकू जैसा था। इसलिए वह सरयू को सचेत करने के लिए चिल्लाई तब हमलावर हड़बड़ा गया और सरयू को धक्का दे दिया। कालीन वाली सीढ़ियों की वजह से नुकसान कम हुआ। हमलावर भागने की कोशिश कर रहा था, तभी वृषाली ने उस पर अपने हाथ में पकड़ा जग उसपर फेंक मारा, जिससे उसका संतुलन बिगड़ गया, फिर उसने कुछ प्लेटें फेंकी जिससे उस हमलावर की रीढ़ की हड्डी में लगी जिसे हमने पकड़ लिया और कैद कर लिया। जब मैं इलाज के लिए सरयू को ले गया तब उसे वो सिरिंज ऊपर मिली जहाँ सरयू को धक्का दिया गया था।


उसके पास अछूती हर चीज़ की तस्वीरें थीं, जैसे कि सरयू कहाँ गिरा था, आदमी को कहाँ पकड़ा गया था, उसे सिरिंज कहाँ मिली थी, सब कुछ। यहाँ तक कि सिरिंज को साफ कपड़े से उठाया गया था।

"मुझे नहीं पता मैं सबूत को बचा पाई या नहीं पर इससे भैय्या को खतरा तो नहीं?", वृषाली ने पूछा,

"उसकी पूरी जाँच की गई और वह ठीक हैं। यह सिर्फ एक झटका था जिससे उसका शरीर गुजरा है।", मैंने कहा,

उसने जारी रखा, "पहेली के लिए मैंने अपना दरवाज़ा खोल रखा था पर यह मेरी ज़िंदगी कि आखिरी गलती होने से पहले बच गई।",

हुआ ये कि, उसे नहीं लगा था कि कोई ऐसे इतनी सुरक्षा में कोई अंदर घुस जाएगा। उसने वह काम पूरा किया जो अधूरा रह गया था और कैमरे के फुटेज की जाँच करने का फैसला किया, उसने उस रात के सभी वीडियो देखे और उस क्षेत्र का पता लगाया जहाँ से उन्होंने प्रवेश किया, और उसने कुछ संदिग्ध लोगों को घर पर नज़र रखते हुए देखा, इसलिए उसने सभी फुटेज को सहेजने का फैसला किया और पेनड्राइव और हार्ड डिस्क सहित सभी महत्वपूर्ण कागज़ात अपने साथ ले गई, यहाँ तक कि लॉकर में रखी चीजें भी बाद में तोड़ दी गईं।

इतना सारा काम करने के बाद वह बहुत तेज़ी से सो गई और अगले दरवाज़े से सरसराहट की आवाज़ सुनकर जागी। पहले तो उसने सोचा कि हम वापस आ गये थे। उसने एक ही समय में दो दरवाज़ों को खुलते और बंद होते सुना। कदमों की आहट अजीब होने के कारण वह सावधान हो गई, उसने चुपचाप उस दरवाज़े को बंद करने की कोशिश की जो पहेली के स्वतंत्र प्रवेश के लिए छोड़ा गया था लेकिन दुर्भाग्य उसके साथ अटका रहा, जब वह चुपचाप दरवाज़ा बंद करने की कोशिश कर रही थी तब अचानक किसीने ज़बरदस्ती दरवाज़ा खोल दिया। आत्मरक्षा के बारे में जो कुछ उसने मुझसे सीखा, उससे उसने विरोध करने की कोशिश की लेकिन, 

"मेरा कद छोटा था और मैं उनके जितनी मजबूत नहीं थी। उसने मुझे बिस्तर पर पटक दिया। जब मैं आवाज़ निकालने की कोशिश करने लगी तो उसने अपने हाथों से मेरे मुँह बंद कर दिया।",

उसने विरोध किया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। उसने एक आदमी की आवाज़ सुनी, जो कह रहा था, "खेलना बंद करो और वो चीज़ें ढूँढो जो हमसे माँगी गई थीं।',

"वह चिढ़ गया, और उसने मेरे हाथों को और भी कसकर पकड़ दिया। और मेरी ओर मुस्कुराकर बोला, 'मैंने सब कुछ नष्ट कर दिया और यह आखिरी चीज़ बची है।',

"मैं अपनी इज्ज़त के लिए डर गयी थी, तभी प्रांजलि पीछे से आई और उसे मारकर ढेर कर उसे बांध दिया पर इन सब चक्करो में दूसरा वाला भाग गया।


मैंने फिर आपकी तिजोरी देखी तो वह सुरक्षित था पर बाकि सब...मुझे उन सबका अंदाज़ा नहीं है।", वृषाली ने कहा, "मैंने सुना है कि वे यहाँ किसी विद्रोह के लिए आये थे...? मुझें नहीं पता।",

इन लोगो ने उसका मुँह खुलवाने कि कोशिश की पर वह टस-से-मस नहीं हुए। होते कैसे इन लोंगो से हाथ-पैर से ही बात किया जाता था।

साक्षी ने कहा, "हम किसी अपराध में शामिल नहीं होना चाहते इसलिए हमने उसे बाँध दिया।",

"हमने सुबह उन पर जाँच की थी और संघर्ष का कोई संकेत नहीं था।", दिव्या ने कहा,

(यह आश्चर्यजनक था।)

"और कुछ?", मैंने गंभीरता से पूछा,

"नहीं और कुछ नहीं। उसके बाद आर्य कर्मचारियों को लेकर आए और फिर उनके जाने के बाद आप लोग आए।", दिव्या ने कहा,

"सरयू तुम्हें जाकर आराम करना चाहिए और बाकि सब भी अपनी तैयारी पर लग जाओ।", मैंने सबको जाने के लिए और सब जाने लगे।


थोड़ी देर बाद, अपने कमरे में गया देखा, सब कुछ बिखरा पड़ा था। समीर बिजलानी अपनी औकात में आने लगा था। मैं कवच बनने के करीब था और वृषाली शुरूआती अवस्था में थी।

(वो उसे कैसे भी सोखना चाहता है। मुझे उसे जल्द ही यहाँ से दूर भेजना होगा।)

मैं सब देख रहा था कि उन्होंने क्या चुराया होगा, "...लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें कुछ नहीं मिला।",

"और नहीं तो क्या?", मैंने अपने पीछे वृषाली की आवाज़ सुनी,

मैंने उससे जाने के लिए कहा लेकिन वह नहीं गई, "वृषा मैंने कहा ना मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।", मैंने उसके सामने लॉलीपॉप रखा, "और ये लॉलीपॉप के बारे में नहीं है। क्या मैं आपको दो साल की लगती हूँ?",

उसने अपने जेब से मेरे घर कि चाबी दिखाकर पूछा, "चले?",

(और कोई चारा है?) इसकी जगह कोई और होता तो दस फुट नीचे होता।

मैं उसके कमरे में गया जहाँ उसने अपनी अलमारी खोली, जहाँ उसने एक बैग पकड़ा, "इसे बिस्तर पर रखने में मेरी मदद कीजिए।", मैंने उसकी मदद की फिर उसने उसे खोला और देखा तो वहाँ सभी ज़रूरी फाइलें, पेनड्राइव और हार्ड डिस्क थी।

फिर वह समझाने लगी, "यह मैंने सोच-समझकर लिया...सच कहूँ तो मुझे नहीं पता था कि जब मैंने इन्हें जब लिया तो मैं क्या सोच रही थी लेकिन...मैंने इन्हें ले लिया।",

"छठी इंद्रिय?",

"शायद? मैंने सी.सी.टी.वी में कैद फुटेज को देखा और उसे कॉपी कर लिया। सब कुछ, जैसे- कैसे आपके घर पर निगरानी रखी जी रही थी और कैसे वे भैय्या को अपने पीछे चलने के लिए बरगलाते रहे और कैसे वे घर में घुसे और भैय्या को धक्का दिया। मैंने यह सब कॉपी करके इस पेनड्राइव और अपने टैब में सेव कर लिया है।", उसने मुझे पेनड्राइव तो दे दी लेकिन अपना टैब नहीं दिया। (यह भविष्य में मदद करेगा।)

"मैं नहीं जानता था कि तुम इतनी चतुर हो?", मैंने खुद जैसा बने रहने कि पूरी कोशिश की,

"आप सी.आई.डी फैन से क्या उम्मीद करते हैं?", हमारे बचपन का मशहूर जासूसी टी.वी शो,

"उन्हीं की बदौलत मुझे एक अच्छी कैदी मिली।", मेरा काम बच गया,

"जाओ कल के लिए तैयार हो जाओ।",

"अभी नहीं। जब तक भैय्या नहीं आते तब तक मैं खाली हूँ। कुछ मदद?",

"और कोई चारा है?",

हम मुस्कुराए।

"वैसे मैं किसी अंजान पर अपनी ज़िंदगी भर कि मेहनत को लेकर भरोसा नहीं कर सकता।", सबको वापस रखने और बाकि बची हुई फाइले समेटने में मदद की। इसमे हमे ज़्यादा वक्त नहीं लगा। तारिका, वृषाली को ले गई।


दोपहर के वक्त वो मेरे पास आई और कहा, "वृषा मुझे आपकी मदद चाहिए...",

"हम्मम?", मैंने सुनने का इशारा किया और उसने कहा,

"वृषा, अपको पता है कि मैं किसी भी अवसर के लिए ड्रेसेस चुनने में कितनी ख़राब हूँ।",

"हाँ तो?", मैंने पूछा,

"मुझे आपकी मदद चाहिए जैसे मेकअप ब्रांड जिसकी वजह से मुझे पिछली बार तकलीफ़ हुई थी।",

(आह! उसे अधिकतम सौंदर्य प्रसाधनों से एलर्जी है... मैं और मोनिका उसकी एलर्जी के बारे में जानते है।),

"सरयू कहाँ है?", मैंने पूछा,

"भैय्या नीचे है, मैं भी वही जा रही हूँ।", उसने कहा,

"तुम जाओ मैं आता हूँ।", वो गई, मैं भी थोड़ी देर बाद नीचे गया।

"बस दो कदम चलकर देखो।", सरयू कि आवाज़ आई,

उसने पहला कदम लिया। (ये पक्का गिरेगी।) और तभी उसे हिल्स से नीचे सपाट मुँह-के-बल गिरते हुए देखा।

उसे देखकर मेरी हँसी छूट गई। मैं अपनी हँसी रोकने कि कोशिश करता हुआ उसके पास गया, वो उठ नहीं रही थी। मुझे पता था चोट उसकी शरीर पर नहीं बल्कि अहम पर पड़ी थी। मैं उसके पास गया, उसे उठाया और उसे सोफे पर बिठा दिया। उसने अपना चेहरा बिल्कुल छिपा रखा था जिससे ज़ाहिर था कि उसे बुरा लगा था।

"दर्द दे रहा है?", मैं उसका चेहरा उठाने कि कोशिश की,

वो अपना चेहरा हटाकर, ना में सिर हिलाई।

(रुष्ट है।)

"फू! चोट लगी है?", मेरी हँसी अब भी मेरे काबू में नहीं आई,

उसने फिर से ना में सिर हिलाया। इस बार उसने मुझे उसके बाल हटाकर चोट देखने दिया। बाल हटाने के बाद उसका एकदम गुस्से वाला शक्ल बाहर आया।

"तो चोट नाक पर लगी है? या अहम पर?", वो मुझे गुस्से में घूरकर उठकर जाने लगी पर वह यह भूल गई कि उसने अब भी हील्स पहन रखी थी। नतीजा- उसके पैर फिर असंतुलित होकर मुड़े और फिर मुझे उसे गिरने से बचाना पड़ा, वह अब बिल्कुल चुप थी।

"क्यों? मैं ही बदनसीब क्यों?", वह बुदबुदाई,

"आ! मुझपर हँसना बँद करिए ना? मैं पहले ही काफी अपमानित हो चुकी हूँ।", उसने धीरे से मुँह फुलाकर कहा,

उस समय मुझे यह बहुत मज़ेदार लगी, साथ ही यह प्यारी भी। वहाँ बाकि सब भी आए। सरयू उसके पास आया और पूछा, "क्या तुम ठीक हो?",

वह मुस्कुराई और बोली, "हम्म मुझे इन सबकी आदत है।",

"पर...", सरयू अपनी चिंता व्यक्त ही कर रहे था कायल वहाँ आई और कहा,

"शो अच्छा था पर- यदि आपका डेली सोप ख़त्म हो गया हो तो काम पर वापस आ जाएँ? तुम दूसरों को विलंबित करा रही हो!",

"अच्छा? तो ये बताना इसकी वजह से तुम्हारा क्या काम रुका?", दिव्या उसे आड़े हाथ लेने गयी,

मैंने परोक्ष रूप से टोकते हुए कहा, "क्या काम था?",

सरयू ने बताया कि उसे उन एलर्जी की सूची चाहिए जो उसे थी और जो उसके लिए उपयुक्त थी। उसके पास बहुत सारी चीज़ें थीं जिनका उपयोग उसके विरुद्ध किया जा सकता था। इस प्रतियोगिता में एक नियम थी कि हर चर्चा खुलकर की जाएगी, कोई रहस्य नहीं होगा।

मैंने उन चीज़ों के बारे में बताया जो उसके लिए उपयुक्त थीं, यह अन्य की तुलना में कम छोटी थी।

वहाँ मैंने आसमानी सुखदायक रंग की ड्रेस के कैटलॉग देखा। यह हम दोनों का पसंदीदा रंग है।

सारी बाते हो गई। मेरा यहाँ रुकने का कोई कारण नहीं दिखता लेकिन...मुझे उसकी चिंता थी। मैं उठा और सोचा, उसके इतिहास को देखते हुए उसे इन हील्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मेरी नज़र उस कैटलॉग पर पड़ी जिसे वह देख रही थी। अरे, यह उस गाउन से मेल खाता है जो मैंने अभी देखा था। यह बहुत सुंदर था, और मुझे पता था कि उसे क्या चाहिए और वह क्या करेगी।

उसने एक कदम उठाया और दर्द से कराह उठी, "आह!",

मैंने पूछा, "क्या दर्द ज़्यादा है?",

इस पर उसने जवाब दिया कि, "नहीं, यह दर्द से अधिक असुविधाजनक है।",

मैंने उसके पैर कि जाँच की तो यह मामूली सी सूजन थी, "तुम्हें बस एक दिन के आराम की ज़रूरत है। अपने पैर पर दबाव मत डालना।",

"लेकिन...फिर से?", उसे कल की चिंता थी,

"बस आराम करो। आज का तुम्हारा काम हो गया। बस आराम करो!",

इस पर वह हँसी, "आपको तो इन सब के बारे में ज़्यादा जानकारी है। आप कितनी लड़कियों के साथ घूमते थे?",

मैं आश्चर्य से अधिक स्तब्ध था, "ये कहाँ से आया?",

मैं महसूस कर सकता था कि हर किसीका कान मेरी तरफ़ थी। मैं जानता था कि अराजकता पैदा करने का यह बिल्कुल सही समय होगा लेकिन मैंने ऐसा ना करने का निर्णय लिया।

"बेफालतू कि बात मत करो।",

वो मुझे अविश्वास से देखते हुए, "ऐसा हो ही नहीं सकता सत्ताईस साल के अमीरज़ादे होकर भी आप अछूत हो सकते हैं? हो ही नहीं सकता!", उसने आत्मविश्वास से कहा,

तभी सरयू ने हस्तक्षेप कर कहा, "उस उद्देश्य से पहले, ड्रग्स के ज़रिए उसे फांसने की कोशिश की गई...", मैंने कहा, "पर दुख की बात है मैं वैसा आदमी नहीं हूँ।",

"अच्छा?", उसका टोन बिल्कुल उसकी बुआ की तरह थी।

मैंने उसके गाल पर चुटकी काटते हुए पूछा, "अरे, अपनी भाषा पर ध्यान दो। वयस्कों की तरह व्यवहार मत करो।",

"लेकिन मैं हूँ... ", उसने कुछ कहने की कोशिश की,

"तेईस साल का छोटी वयस्क अपने करियर की चिंता करो। अब मेरे पीठ पर चढ़ जाओ। पहले चलना सीख जाओ फिर आगे बढ़ना।",

"पर-", उसने अपना पक्ष रखने कि कोशिश की पर मैंने उसे बीच में टोककर कहा, "चढ़ना है या पूरी रात यही बितानी है?",

वह रूठकर मेरे कँधों पर चढ़ गई, मुझे पता था कि वह ऐसा क्यों बात कर रही थी, (लेकिन तुम्हें मेरे लिए अपना चरित्र बदलने की ज़रूरत नहीं है।) मैंने कायल की ओर घूरकर देखा और उसे अपना व्यवहार ठीक रखने के लिए अतिरिक्त चेतावनी दी।


ऊपर जाते समय मैं महसूस कर सकता था कि सभी की नजरें मुझ पर थीं और यही समीर बिजलानी के लिए फिलहाल सबसे बड़ी व्याकुलता होगी। सबके सामने वो अपना दम-खम तो दिखा सकता है पर पुलिसवाले का सामने अपना पत्ता खुले तौर पर नहीं खोल सकता। मुझे जल्द-से-जल्द स्थिति को अपने नियंत्रण में करना होगा।


(वाह! उनके कंधे बहुत चौड़े हैं।) मैंने दुनिया को कभी भी लंबे कद के नज़रिए से नहीं देखा। यह निश्चित रूप से कुछ अलग था, हर चीज़ इतनी ऊंचाई पर थी। (और मुझे ऊंचाई पसंद नहीं!) उनकी मांसपेशियाँ एक ही वक्त पर सख्त भी थी और मुलायम भी। (आजकल मैं उनके साथ सुरक्षित महसूस करने लगी हूँ। मैं उन पर भी बोझ नहीं बनना चाहती...)

ऊपर जाते-जाते उसने मुझसे बोला, "माफ करना वृषा मैंने आपसे ऐसे प्रश्न पूछे।",

मैंने समझ लिया, "कोई बात नहीं।",

"असल में हुआ कि कायल ने मुझे ऊपर अकेले पकड़ लिया था।",


कुछ देर पहले-

"माफ करना पर मुझे अब जाना होगा।", मैंने उससे कहा,

जाने देने के बजाए उसने कहा, "क्या वृषा बिजलानी ने तुम्हें मुझसे बात करने के लिए मना किया है?",

मैं चुप रही।

उसने मुझ पर तंस वाली मुस्कान दी, "ओह कमऑन! उसे क्या लगता है, कि वह मुझसे आगे निकल पाएगा? वह सपना देख रहा है। पर मैं अन्य लड़कियों की तरह नहीं हूँ जो बस आएगी और चली जाएगी। मैं कायल राज हूँ! कोई भी उन चीजों को नहीं ले सकता जिन पर मेरी नज़र हो!

तुम्हारी भलाई के लिए बता दूँ कि तुम बिल्कुल दूसरों की तरह हो जो, उसके जीवन में आएगी और जाएगी।"

उसने मेरे कान में फुसफुसाकर कहा, "बिल्कुल एक खिलौने कि तरह।",

उसने एक कदम आगे लिया और मैंने पीछे, "तुम बस खेलने कि एक चीज़ हो, जो कि चीज़ो को और मसालेदार बनाने के लिए काम आ रही हो। तुम सिर्फ एक विकल्प हो!... इसलिए अपनी आशाओं को काबू में रखना वर्ना... मैं ही उसकी अंतिम इच्छा हूँ!-", वह अपनी मर्ज़ी और फिर अपनी मर्ज़ी से चली गई?

(मुझे उस समय क्रोध आया जब उसने मुझे देखकर मुस्कुरा कर कहा 'खैरात' और मैंने उनसे इसके बारे में पूछा। उन्होंने हर बात से इनकार किया लेकिन साथ ही, नहीं भी। मुझे कहना होगा कि वे चरित्रवान व्यक्ति है, उन्होंने कभी मुझ पर हाथ नहीं डाला... या तथ्य यह है कि मैं अनाकर्षक हूँ। लेकिन इससे मेरी जान बच गई, सुंदर या प्यारा होना शुरू से ही मेरे बस की बात नहीं है। मैं बस वापस जाना चाहती हूँ।)


"सोना चाहती हो?", उन्होंने पूछा,

मुझे कल रात नींद नहीं मिली, मैंने बस 'हाँ' कहते हुए आवाज़ लगाई, "म्मम",

उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मरहम लगाया और मुझे ढकने में मदद की, फिर चले गए। मैं एक पल में ही सो गयी जैसे किसी ने मेरा स्विच ऑफ कर दिया हो।

मैं उठकर सीधा नहाकर बाथरूम से बाहर निकली, बाहर दरवाज़े से खरोंचने कि आवाज़ आई। मैंने पहेली के लिए दरवाज़ा खोला, वह मुझे देखकर म्याऊं-म्याऊं करने लगी।

मैंने उसे गोद में उठा लिया और उससे पुचकारते हुए पूछा, "क्या हो गया आज साक्षी को छोड़कर मेरे पास आ गई? देखो साक्षी तुमसे बहुत नाराज़ हो जाएगी और वो तुम्हें खाना नहीं देगी तो क्या करोगी?",

"म्याऊं", कह वो मेरा हाथ चाटने लगी।

"भूख लगी है?", (पर ज़्यादातर हर सुबह साक्षी पहेली को खाना दे देती है तो आज क्य-)

"पहेली तुम अब वृषाली के पास अपनी दाल गलाने मत जाओ!", साक्षी गुस्से में आई। मैं और पहेली दोंनो चौंक गए।

यह पहली बार था वो इस तरह नाराज़ हो रही थी,

मैंने आश्चर्यचकित होकर साक्षी से पूछा, "क्या हुआ?",

उसने मुझे बताया कि कैसे पहेली कल शाम से शरारती हो गई और उसने मध्यम आकार के स्नैक्स के दो पैकेट खा ली।

"वह दर्द से कांप रही थी, यह देखने के बाद सरयू को उसे अस्पताल भेजना पड़ा जहाँ वेट ने कहा कि 'यह कोई गंभीर बात नहीं है लेकिन उसे बारह घंटे तक खाना ना खिलाएँ।' ग्यारह घंटे हो गए हैं और एक घंटा और बाकी है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह छोटी शैतान बेहतर हो गयी है। जिसे कुछ भी दिखे, खा जाना है।",

उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "वह मेरे पास आई और फिर दिव्या के पास गई लेकिन उसके लिए कोई अच्छा संकेत नहीं था इसलिए देखो वह अपनी आखिरी उम्मीद को कितना मक्खन लगा रही है। उसे थोड़ा डांटो।",

मैंने पहेली को आँखों का स्तर में पकड़कर उससे कहे, "चालाक, गंदा बच्चा। प्यारा बच्चा-",

उसने मुझे डांटते हुए कहा, "उसे उसकी गलती पर डांटना है। पुचकारना नहीं।",

मैं हँसकर, "फिलहाल मुझे पहेली के दुख का अहसास हो रहा है। नाश्ते में क्या है?",

उसने कहा, "आज कोई नाश्ता नहीं करने वाला।",

मैं हैरान थी।

"आज प्रतियोगिता का दिन है और आज के दिन कोई नाश्ता नहीं खाने वाला। कल सबने सिर्फ सलाद खाया था। तुम्हें भी जितना हो सके कम खाना चाहिए।", साक्षी ने कहा,

(ब्यूटी इस पैंन। मैंने बस सुना था और आज देख भी लिया।)

"सच?", मेरा भारी शरीर एक वक्त के उपवास से आकर्षक हो जाएगा? बिल्कुल नहीं!...पर मुझे अपना मज़ाक नहीं उड़वाना। अब जब यह वास्तव में हो रहा था तो मैं अपने वज़न के प्रति अधिक सचेत थी, दिखता था कि मैं यहाँ किसी की बराबरी नहीं कर सकती। कयाल ने सही ही कहा था, 'तुम बिल्कुल एक हारे हुए व्यक्ति की तरह हो जो दूसरे कि तरस पर है।' वो सही थी।

"सात बज गए हैं अब हम आधे घंटे में निकलेंगे।", उसने मुझे कहा और पहेली को ले वहाँ से निकल गई। मैं थोड़ी देर के लिए वही खड़ी रही तब भैय्या मुझे ढूँढ़ते हुए आए।

"वृषाली शुक्र है तुम मुझे यहाँ मिल गई। हमें आधे घंटे में निकलना है इसलिए तैयार हो जाओ।",

"...मतलब पूरी तरह से?", मुझे समझ नहीं आया,

"नहीं। तुम होटल में जाकर तैयार होगी। तुम्हारा सारा सामान वहाँ सीधे पहुँचा दिया गया है। तुम्हें बस जाकर तैयार होना है और-", मैंने भैय्या को बीच में रोककर पूछा,

"आपकी चोट कैसी है?",

"ठीक है। मामूली सी मोच थी। तुम जल्द-से-जल्द तैयार हो आ जाना।", कह वो वहाँ से चले गए।

मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पेट में कुछ जमा हो रहा था। मुझे इतनी घबराहट महसूस हो रही थी कि यह डर मुझे हजारों बार नए तरीके से मार सकता था। मैं अपने कम आत्मविश्वास के कारण कभी भी किसी सामाजिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनी और कभी भी घर से बाहर नहीं निकली। यह केवल वृषा बिजलानी ही थे जो यह सोचते थे कि मैं अपने अनाड़ीपन से मिलियन डॉलर का पति जीत सकती थी। मुझे एक आदर्श इंसान के रूप में विवाह का उम्मीदवार बनने के लिए एक अति विशिष्ट व्यक्ति होने की आवश्यकता थी...(जोकि मैं नहीं हूँ! वृषा किसी और को क्यों नहीं ढूँढ लेते?)


मैं तैयार हो गयी और मैं वृषा के नाश्ते के बारे में सोच रही थी। लेकिन जब मैं नीचे उतरी तो मुझे उनके बारे में एक इंच भी सोचने का मौका नहीं मिला। मैंने देखा कि कैमरा, लाइटे और माइक्रोफोन वाले लोग कायल का पीछा कर रहे थे और वह काली मिनी ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही थी, लेकिन यह बहुत छोटी थी, जब मैंने उसे देखा तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सोच बहुत छोटी हो गई थी।...पर ये सच में बहुत छोटा था। मैं वापस ऊपर जाने के लिए मुड़ी तो रास्ता बंद हो गया था। मैं अपने कुर्ते पाजामे पहन कोने में खड़ी हो गई। उनकी नज़र मुझपर नहीं गयी। पूरे वक्त वो कायल और साक्षी के पीछे घूमते रहे, उसमे भी कायल को एक पल कि भी शांति नहीं मिली। (मशहूर होना भी सिरदर्द है।)

जब उनका काम पूरा हो गया तो वे बाहर चले गये। मैं पहेली के साथ थी जो खाने के लिए मुझे नखरे दिखा रही थी। मैंने एक सहायक से कहा कि वो उसे नौ बजे तक खाना खिला दे और यहाँ तक कि जब वह रोने लगे तो भी ज़्यादा खाना ना दे, "बस उसे वह मछली का खिलौना दे देना और वृषा के कमरे में एक बार जाकर देखना कि कही उन्होंनें फिर से बिस्तर पर गीले तौलिये तो नहीं फेंक दिया और हर समय उन्हें ए.सी चालू रखने की बुरी आदत है उसे भी देख लेना प्लीज़।",

"जी।", उन्होंने कहा,

भैय्या ने मुझे बाहर निकाला और हम कार के अंदर चले गये। कार में मैं, दिव्या, उसकी हेल्पर तारिका और भैय्या थे। वे सभी पीछे बैठ गए और मुझे ड्राइवर सीट के बगल वाली सीट पर फेंक दिया।

"अरे! मैं सामने क्यों हूँ, आप लोग नहीं?" मैंने शिकायत की,

दिव्या ने कहा, "केवल तुम ही हो जो इस ड्राइवर को संभाल सकती हो। वो तुम्हारे सिरदर्द है।",

मैं ही वो हूँ जो उन्हें संभाल सकती थी, (वैसे भी 'वे' कौन हैं?) तभी मैंने देखा कि वृषा पूरी तरह से तैयार होकर हमारी तरफ आ रहे थे। गहरे नीले रंग के थ्री पीस सूट में वे वाकई गज़ब लग रहे थे। ड्राइवर सीट पर मेरे बगल में बैठ गए।

उन्होंने कार स्टार्ट की और सभी से पूछा, "क्या तुम सभी ने खाना खाया?"

सबने ना में जवाब दिया। वो मेरी तरफ देखे तो मैंने भी ना में सिर हिलाया।

वो मेरी तरफ घूरकर देख रहे थे, "क्या?- सुबह मेरे पास वक्त नहीं था? सुबह से आप कहाँ थे? मुझे क्या अंदाज़ा होगा मुझे करना क्या था? और मुझे उपवास करने कि आदत है तो ठीक है।", मेरे मुँह में जो भी आया मैंने बोल दिया,

कार चलाते हुए वो हल्के से मुस्कुराकर पूछा, "मुझे नहीं पता था कि तुम इतने लंबे वक्त तक भूखी रह सकती हो?",

"आपका मतलब क्या है? मैं पिछले तीन साल से उपवास रख रही हूँ। मेरे अप- आपसे मिलने के बाद से मुझे सोमवार व्रत रखने नहीं हुआ।", मैंने अपनी नाराज़गी दिखाई,

"आज सोमवार है और तुम आज अपना उप-वास करने वाली हो?", उन्होंने अचानक लेफ्ट टर्न ले लिया,

मैं चुप रही। वे एक मंदिर के सामने रुके। यह कम लोगों वाला एक शिव-शक्ति मंदिर था।

"नीचे उतरो। और तुम वह सब कुछ खरीदकर आओ जिसकी तुम्हें ज़रूरत हो।", उन्होंने मुझसे कहा,

हम सब अंदर गए और भगवान जी के दर्शन किए। पंडित जी से आशीर्वाद लेते हुए उन्होंने फिर से हमें एक नए युवा जोड़े का आशीर्वाद दिया, "आपका रिश्ता भी शिव-शक्ति के रिश्ते जितना मज़बूत होगा।"

हमने एक-दूसरे की ओर देखा और वैसे ही चले गये। हम अपनी पीठ में महसूस कर सकते थै कि कई आँखें हमारी ओर देख रही थी।

मैंने उन्हें समझाया कि ऐसा पहले भी हो चुका था... मैंने जितना समझाने की कोशिश कर रही थी मेरे शब्द उतना मतलब नहीं बना रहे थे। वृषा ने टोकते हुए कहा, "यह हमारी गलती नहीं है कि कोई अपने मन से बात बना ले।",

"पर फिर भी ऐसी गलतफहमी...कायल तो इसे बेच देगी।", दिव्या ने कहा,

वृषा को फोन आया, "हैलो?... हम्म्म...मम्म", उन्होंने मुझे फ़ोन दिया और कहा, "यह तुम्हारे लिए है।",

(लेकिन मुझे कौन काॅल करेगा?),

उन्होंने स्पीकर चालू कर दिया। यह विषय था, "हाँ विषय?",

फ़ोन से, "वृषाली मुझे तुमसे उसके नये प्रोजेक्ट के बारे में बात करनी थी। मैंने रिव्यू भेजा है उसे एक बार देख लो प्लीज़।",

"रिव्यू?", मैंने वृषा की ओर देखते हुए पूछा,

"मैंने उसे सर को मेल कर दिया है। तुम उनसे ले लेना और प्लीज़ इसे तुम शाम तक कर देना।", उसने कहा,

"शाम तक?", इतने बेकार के काम के बीच वक्त कैसे मिलेगा? मुझे चिंता हो रही थी।

तब वृषा बोले, "विषय मुझे फाइनल रिव्यू तुम कल शाम को दे सकते हो।",

मुझे राहत महसूस हुई क्योंकि मैं स्वयंवधू की प्रतिभागी और सी.एम.ए बनना, दोनों एक साथ नहीं कर सकती। *टूट* फोन कट गया।

इससे पहले कि मैं कुछ कहती, मेरे पेट में ज़ोर से गुर्राहट होने लगी।

वे थोड़ा हँसे और बोले, "तुम अपना उपवास कैसे रखोगी?",

मुझे शर्म महसूस हुई। उन्होंने कहा, "अभी कुछ समय पहले ही तुम्हें सिर के दोनों तरफ चोट लगी थी।"

"ह-हाँ याद है पर...", मैंने अपना पक्ष रखने कि कोशिश की पर मैंने बीच में ही हार मान लिया,

"देखो वृषाली तुम्हें लगता होगा कि 'मैं कर सकती हूँ?', क्यों है कि नहीं?",

"...", मैं चुप रही,

"नाटकीय मत बनो बस खाओ।", उन्होंने कहा लेकिन...

उन्होंने कार को किसी नाश्ते की दुकान की पार्किंग में पार्क किया, "तुम सब जाओ और जो चाहो ले आओ। सरयू कार्ड ले लो।",

वे सभी चले गए जबकि मैं वृषा के साथ पीछे रह गयी,"वृषाली बच्ची तुम ये सोच रही हो ना कि तुम्हें वो कपड़े फिट होंगे या नहीं?",

मेंने हाँ में सिर हिलाया।


स्टोर में-

“लेकिन वह मोटी नहीं है।”, दिव्या ने कहा,

"पता है लेकिन वह ऐसा सोचती है।", सरयू ने कहा,

"कोई विशिष्ट करण होगा ना?", उसने पूछा,

"यह उसकी एलर्जी है जिसके कारण छह साल की छोटी उम्र में ही उसका वजन बढ़ गया था। अपने रिश्तेदारों के कारण समय बीतने के साथ उसे अपने शरीर पर बहुत शर्म आने लगी।", सरयू ने कहा,

"लेकिन वह अब नहीं है। वह औसत है लेकिन बहुत प्यारी है। मुझे यकीन है कि जब वह सही कपड़े पहनेगी तो कोई भी उससे नज़रें नहीं हटा सकता।", उसने जारी रखा, "यहाँ तक कि कायल भी घबरा गई क्योंकि वह अंदर से बाहर, दोनों तरफ से निपुण है लेकिन वह बहुत डरपोक है जो थोड़ा निराशाजनक है।",

"उसकी माँ ने वृषा से कहा था कि उसे यह मत बताओ कि वह यह कर सकती है या नहीं। उसे अपने दृढ़ मार्गदर्शन देते रहना। वह देर से सीखने वालो में से है, लेकिन वह कर सकती है। और मुझे नहीं लगता कि फैशन शो, नृत्य प्रतियोगिता, गायन प्रतियोगिता ऐसी प्रतियोगिता से आप दूसरों के साथ अपना भविष्य तय कर सकते हैं।", सरयू ने कहा,

"सबकी अपनी पसंद होती है।",

"और वृषा की सोच ऐसी नहीं है।",

"मैं भी सहमत हूँ कि यह ऐसा है जैसे किसी एक राजकुमार के लिए प्रतिस्पर्धा करना हो...स्वयंवधू। मैं आर्य के लिए ऐसा करना चाहती हूँ।", दिव्या, वह अपने सपनों की दुनिया में थी,

हम वहाँ वापस गए, हमने देखा कि वृषा और वृषाली काम कर रहे थे। वृषा ने डैशबोर्ड को लैपटॉप स्टैंड में बदलने में वृषाली की मदद कर रहा था। हम वहाँ गए, मैंने देखा वृषाली सुबह से भी ज़्यादा ठीक थी। हमने नाश्ता वितरित किया, दिव्या, तारिका, मेरे और वृषा के लिए एक सैंडविच और उसके लिए वड़े।

"मेरा नाश्ता अलग क्यों?", उसने उदास चेहरे से पूछा,

"यह ब्रेड दूध से बनी थी और यह तुम्हारा पसंदीदा है ना?", सरयू ने कहा, "और ये रहा तुम्हारा नींबू पानी।",

"ओह! आपको कॉफ़ी पीने की इजाज़त नहीं है याद है ना?", वृषाली ने पूछा, 

"हाँ, हाँ। तुम, मेरे लैपटॉप पर टुकड़े मत गिराओ।", मैंने उससे कहा जिसे उसने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया,

देखो अब वह कितनी आश्वस्त और प्रसन्न थी। कुछ देर पहले तक वह यह सोचकर चिंतित थी कि उसके कपड़े निश्चित रूप से उस पर फिट नहीं होगी और उसे शर्मिंदा होना होगा। मैंने हम सभी को वहाँ पहुँचाया। वह अभी भी मेरे फोन और लैपटॉप पर काम कर रही थी।

"तुम्हें फ़ोन की भी आवश्यकता क्यों है?", मैंने उससे पूछा,

वो फोन से, "इस विषय ने इतने कठिन शब्दों का चयन किया है ना, मैं अपनी भाषा भूल गई। कोई किसी चीज़ को इतना कैसे उलझा सकता है?",

बरर्ररर...

"आ-, वृषा आपके लिए काॅल आया।", उसने मुझे फोन दिया,

सब नीचे उतरने लगे, मैंने वृषाली को लैपटॉप ले जाने का इशारा किया, वे सभी होटल में चले गए और मैं अलग से गया और वहाँ डायरेक्टर्स मिला।

होटल बहुत भव्य था इससे उसे और भी डर लगेगा।